बढ़े हैं साहित्य में अवसर
~ वंदना सिंह
हिंदी साहित्य में हाल के दिनों में जिन युवा लेखकों ने अपने लेखन से साहित्य जगत का ध्यान अपनी ओर खींचा है उनमें इंदिरा दांगी का नाम प्रमुख है । अभी हाल ही में इंदिरा दांगी को साहित्य अकादमी का युवा पुरस्कार मिला है । दो हजार तेरह में जब उनका पहला कहानी संग्रह – एक सौ पचास प्रेमिकाएं छपा था तो उसने साहित्य के पाठकों को चौंकाया था ।अगले वर्ष इंदिरा दांगी का उपन्यास ‘हवेली सुल्तानपुर’ प्रकाशित हुआ और फिर उसके अगले वर्ष ‘शुक्रिया इमरान साहब’ के नाम से एक और कहानी संग्रह प्रकाशित हुआ । इस बीच इंदिरा दांगी को कई पुरस्कार मिले । भारतीय ज्ञानपीठ का’ नवलेखन अनुशंसा पुरस्कार’, ‘अखिल भारतीय कलमकार कहानी पुरस्कार’, ‘वागीश्वरी सम्मान’, ‘रमाकांत स्मृति पुरस्कार’, ‘सावित्रीबाई फुले’ पुरस्कार समेत कई पुरस्कार मिले । इंदिरा दांगी ने बहुत कम समय में हिंदी साहित्य के बड़े आकाश के काफी जगह को घेरा है ।
पोर्न लेखन से बच पाना ये इस वक्त के साहित्यकारों के लिए बड़ी चुनौती है, जो इन चुनौतियों को स्वीकारेगा वही बच पाएगा - इंदिरा दांगी
इंदिरा दांगी का मानना है कि साहित्य में अवसर पहले से अधिक हुए हैं । इंदिरा कहती हैं कि जब उन्होंने लिखना शुरू किया तो उनके वरिष्ठ बताया करते थे कि पहले छपने के अवसर कम थे । रचना के प्रकाशन के लिए वर्षों तक इंतजार करना पड़ता था । उनका मानना है कि वर्तमान परिदृश्य में अखबारों और व्यावसायिक पत्र-पत्रिकाओं में साहित्य के पन्ने के लिए काफी मात्रा में रचनाएं चाहिए । उनका कहना है कि इस तरह के अवसर से भावयित्री और कारयित्री दोनों तरह की साहित्यिक पत्रिकाओं को अवसर मिलता है । उनका मानना है कि साहित्य में भी डिमांड और सप्लाई की अर्थशास्त्रीय सोच उसी तरह से घुल मिल गई है जैसे जीवन के अन्य अनुशासनों में । इंदिरा यह भी मानती है कि आज के लिखने वालों में पिछली पीढ़ी के लेखक-लेखिकाओं जैसे गुणवत्ता का आग्रह कम ही मिलता है । इंदिरा के मुताबिक अवसर की विपुलता की वजह से रचना की स्तरीयता बचाए रखने की बड़ी चुनौती भी लेखकों के सामने है । वो साफ तौर पर कहती हैं कि साहित्य को अपनी मुल्क की आवाम की आवाज होनी चाहिए लेकिन आज की कई तथाकथित युवा लेखिकाएं मरते किसानों, जलाई जा रही बहुओं, आम आदमी के दर्द को दर-किनार कर लिव इन रिलेशन, बलात्कार, डिवोर्स या स्त्रियों के व्यभिचार की वकालत करती रचनाएं लिख रही हैं जो छप भी जा रही है, फौरन चर्चा भी हो जाती है । उनका मानना है कि अपने आप को अत्यधिक लेखन से बचाना, रचना पर धैर्य के साथ काम करना, पोर्न लेखन से बच पाना ये इस वक्त के साहित्यकारों के लिए बड़ी चुनौती है । इंदिरा मानती हैं कि जो इन चुनौतियों को स्वीकारेगा वही बच पाएगा ।
बहुत बड़ी संख्या में कविता के रचे जाने को लेकर इंदिरा दांगी कहती हैं कि संख्या का कभी भी उतना महत्व रहा नहीं है और ना ही इस बात का कि एक साथ कितनी पीढ़ियां रच रही हैं । वो कहती हैं कि महत्व सिर्फ इस बात का होता है कि रचा क्या जा रहा है । इंदिरा कहती है कि अच्छी कविता का जहां जिक्र चलता है वहां निराला के अलावा शमशेर, दुष्यंत कुमार, धूमिल या उनसे आगे आइए तो केदार जी कविता पर ही बात होती है । वो यह बात भी मानती हैं कि इधर के कवियों की रचनाएं हम पसंद करते हैं लेकिन जब कविता की चर्चा होती है तो इन दिनों लिखी जा रही कविताओं की चर्चा नहीं होती है । हलांकि वो यह कहकर अपने को कविता से अलग करती हैं कि वो मूलतः गद्यकार है और कविता की उनकी समझ बस पाठक जितनी है जो अच्छी कविता सुनकर पढ़कर याद कर लेता है और बुरी को भूल जाता है । सोशल मीडिया के फैलाव को लेकर इंदिरा कहती है – अति सर्वत्र वर्जयेत । वो कहती हैं कि साहित्य में इतने अवसर आ गए हैं कि फेसबुक पर छपी कविताओं की किताब प्रकाशित हो चुकी है । उनका मानना है कि फेसबुक पर सक्रिय नए रचनाकार अपेक्षित मेहनत नहीं करते । सोशल मीडिया को इंदिरा एक बड़े अवसर के तौर पर भी देखती हैं । वो साफ तौर पर कहती हैं कि अगर हम बाजारवाद के बहकावे में आए बगैर सस्ती और फौरी लोकप्रियता, डिमांड और सप्लाई, पोर्न और पॉपुलर राइटिंग के फेरे में ना पड़े तो सोशल मीडिया कोई बुरी चीज नहीं है बरतने के लिए ।
वंदना सिंह
ईमेल: samayman.india@gmail.com
००००००००००००००००
0 टिप्पणियाँ