अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर – मृदुला गर्ग और वंदना राग #WomensDay


दो ज़रूरी सवाल और उनके जवाब

दो ज़रूरी सवाल और उनके जवाब


अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर हिंदी की वरिष्ठ पीढ़ी से मृदुला गर्ग और युवा पीढ़ी से वन्दना राग से दो ज़रूरी सवाल और उनके जवाब ... 


आप क्या सोचते हो कि वर्तमान में सबसे बड़ा मुद्दा जिसका सामना महिला / नारीवाद को करना पड़ रहा है (भारत और विश्व दोनों में) ?


मृदुला गर्ग :
सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि नारीवाद पुरुषों के खिलाफ मुहिम  छेड़ना छोड़ कर उन्हें साथ ले कर समाज में परिवर्तन लाने के लिए संघर्ष करे. यानी स्त्री अपने को आधी दुनिया नहीं सम्पूर्ण समाज माने।

वंदना राग : 
नारीवाद की भिन्न लोकल्स नारीवाद को एक संगठित आंदोलन के रूप में उभरने से रोक देते हैं. आवन्तर प्रसंग प्रमुख हो जाते हैं, और कोर मुद्दे बैकग्राउंड में धकेल दिए जाते हैं. भारत के सन्दर्भ में समस्या और जटिल है. यहाँ स्त्रियां न सिर्फ वर्गीय बल्कि जातिगत समीकरणों  के कारण भी  शोषण का शिकार होती हैं. फिर एक rural and urban divide भी अपना role play करता है. लिहाज़ा नारीवाद का संघर्ष बहुस्तरीय हो जाता है, और शोषण और प्रतिगामी मूलक आज़ादी के स्वर विभिन्न स्तरों पर भिन्न परिभाषाएं लिए हुए होते हैं. हाँ, एक बात यूनिवर्सल ज़रूर है, विश्व भर की स्त्रियां अपने को एक्सप्रेस करने की आज़ादी की मांग  करती हैं हर फील्ड में. आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक मंचों पर भी वे निर्णय लेने के अधिकार के लिए संघर्षशील हैं. भारत में खासतौर से एक स्त्री sensitive समाज की परिकल्पना का  स्वप्न ज़रूरी है,  क्योंकि सारे उदारीकरण के बावजूद वह आज भी बहुत primitive अवस्था में है. अफसोसनाक सच यह है की भारतीय समाज अपनी स्त्रियों को दोहरे दमन का शिकार बनाता है, एक मिथकीय देवी बना, दूसरा उसकी स्वायत्ता को ऊपरी मानकों से सजा बजा उसके लिमिट को तय करता हुआ. चूँकि निर्णायक भूमिका में अभी भी पित्रृसत्ता है, इसीलिए वैधानिक अधिकारों के बावजूद भारतीय स्त्री अभी भी स्वतंत्र या rightly empowered नहीं हो पायी है.


आप युवा लड़कियों के लिए अगली पीढ़ी में क्या मुख्य परिवर्तन देखना चाहेंगे?

मृदुला गर्ग : 
भारत में युवा पीढ़ी अगर अपने दायित्व को उतना ही महत्वपूर्ण माने जितना अधिकारों को मानती है तो समाज बेहतर हो सकता है. एक विषम समाज को सम पर लाने के लिए अपनी मानसिकता के साथ अपने बच्चों की मानसिकता बदलें। सबसे पहले शुरू यूँ करें की घर के आसपास और बहार जहाँ जाएं सफाई करवा कर ही दम लें.

वंदना राग : 
अगली पीढ़ी की स्त्रियां कम्फ़र्टेबल रहें अपने skin में, अपने शरीर के साथ कोई कुंठा या दबाब महसूस न करें, समाज में निर्णयात्मक भूमिका अख्तियार करें और समता मूलक समाज का हिस्सा हों.

००००००००००००००००

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
मैत्रेयी पुष्पा की कहानियाँ — 'पगला गई है भागवती!...'
Harvard, Columbia, Yale, Stanford, Tufts and other US university student & alumni STATEMENT ON POLICE BRUTALITY ON UNIVERSITY CAMPUSES
तू तौ वहां रह्यौ ऐ, कहानी सुनाय सकै जामिआ की — अशोक चक्रधर | #जामिया
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
चित्तकोबरा क्या है? पढ़िए मृदुला गर्ग के उपन्यास का अंश - कुछ क्षण अँधेरा और पल सकता है | Chitkobra Upanyas - Mridula Garg
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy
मन्नू भंडारी की कहानी — 'रानी माँ का चबूतरा' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Rani Maa ka Chabutra'
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل