मेरे अपने सभी सुधि पाठक ,सुधि श्रोता और नवोदित, वरिष्ठ,तथा मेरे समय साथ के सभी गीतकार,नवगीतकार और साहित्यिक मित्रों को समर्पित आज का यह नया गीत विद्रूप यथार्थ की धरातल पर सामाजिक व्यवस्था और प्रबंधन की चरमराती लचर तानाशाही के कुरूप चहरे की मुक्म्मल बदलाव की जरूत महसूस करता हुआ नवगीत ! साहित्यिक संध्या की सुन्दरतम शीतल बासंती बेला में निवेदित कर रहा हूँ !आपकी प्रतिक्रियाएं ही इस चर्चा और पहल को सार्थक दिशाओं का सहित्यिक बिम्ब दिखाने में सक्षम होंगी !
और आवाहन करता हूँ "हिंदी साहित्य के केंद्रमें नवगीत" के सवर्धन और सशक्तिकरण के विविध आयामों से जुड़ने और सहभागिता निर्वहन हेतु !आपने लेख /और नवगीत पढ़ा मुझे बहुत खुश हो रही है मेरे युवा मित्रों की सुन्दर सोच /भाव बोध /और दृष्टि मेरे भारत माँ की आँचल की ठंडी ठंडी छाँव और सोंधी सोंधी मिटटी की खुशबु अपने गुमराह होते पुत्रों को सचेत करती हुई माँ भारती ममता का स्नेह व दुलार निछावर करने हेतु भाव बिह्वल माँ की करूँणा समझ पा रहे हैं और शनै शैने अपने कर्म पथ पर वापसी के लिए अपने क़दमों को गति देने को तत्पर है!....
रहते हम शहरों में भेड़ियों के पहरों में बन रहे निवाले हम रह रह के ! हम रह रह के बन रहे निवाले !! बन रहे निवाले हम रह रह के ! लारियों के अजनवी शिकारियों के हांथों हम हीचे चीर हरण सह सह के ! चीर हरण सह सह के हांथों हम हीचे हांथों हम हीचे चीर हरण सह सह के ! दरबारी दरबार के नहीं और न ही नवरत्न हैं उज्जैनी राज के, कौन सुने तर्जनी की पीड़ा अंगूठे सब रत्न हुए राजा के ताज के , क्या कहिये हचर मचर बग्घी के पहिये टूटेगी धुरी छोड़ हारे हम कह कह के ! हारे हम कह कह के टूटेगी धुरी छोड़ टूटेगी धुरी छोड़ हारे हम कह कह के ! रहते हम शहरों में भेड़ियों के पहरों में बन रहे निवाले हम रह रह के ! हम रह रह के बन रहे निवाले !! बन रहे निवाले हम रह रह के ! लारियों के अजनवी शिकारियों के हांथों हम हीचे चीर हरण सह सह के ! चीर हरण सह सह के हांथों हम हीचे हांथों हम हीचे चीर हरण सह सह के ! रहते हम शहरों में भेड़ियों के पहरों में बन रहे निवाले हम रह रह के ! हम रह रह के बन रहे निवाले !! बन रहे निवाले हम रह रह के ! लारियों के अजनवी शिकारियों के हांथों हम हीचे चीर हरण सह सह के ! चीर हरण सह सह के हांथों हम हीचे हांथों हम हीचे चीर हरण सह सह के ! यक्ष की पीडाएं भूलकर गढने लगे कालिदास सूक्तियां अनूठी , फाड़ फाड़ मछली के पेट को खोज रहे साकुंतली अनुपम अंगूठी , खप गईं पीढियां चढ चढ रेतीली सीढियां सूख गये आंसू आँखों से बह बह के ! आँखों से बह बह के सूख गये आंसू सूख गये आंसू आँखों से बह बह के ! रहते हम शहरों में भेड़ियों के पहरों में बन रहे निवाले हम रह रह के ! हम रह रह के बन रहे निवाले !! बन रहे निवाले हम रह रह के ! लारियों के अजनवी शिकारियों के हांथों हम हीचे चीर हरण सह सह के ! चीर हरण सह सह के हांथों हम हीचे हांथों हम हीचे चीर हरण सह सह के ! गहरा है ,नया नया घाव है चुटुक वैदिया में पक पक के हो गया नासूर , जीते जी चींटियाँ लीलेंगी अजगर मिटटी के शेर का क्या है कसूर , पत्थर क्या जानें सांसें पहचानें छाती की पीड़ा प्राणों को दह दह के ! प्राणों को दह दह के छाती की पीड़ा छाती की पीड़ा प्राणों को दह दह के ! रहते हम शहरों में भेड़ियों के पहरों में बन रहे निवाले हम रह रह के ! हम रह रह के बन रहे निवाले !! बन रहे निवाले हम रह रह के ! लारियों के अजनवी शिकारियों के हांथों हम हीचे चीर हरण सह सह के ! चीर हरण सह सह के हांथों हम हीचे हांथों हम हीचे चीर हरण सह सह के !
भोलानाथ डॉ,राधा कृष्णन स्कूल के बगल में अन अच्.-७ कटनी रोड मैहर , जिला सतना मध्य प्रदेश .भारत संपर्क -08989193763
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मेरे अपने सभी सुधि पाठक ,सुधि श्रोता और नवोदित, वरिष्ठ,तथा मेरे समय साथ के सभी गीतकार,नवगीतकार और साहित्यिक मित्रों को समर्पित आज का यह नया गीत विद्रूप यथार्थ की धरातल पर सामाजिक व्यवस्था और प्रबंधन की चरमराती लचर तानाशाही के कुरूप चहरे की मुक्म्मल बदलाव की जरूत महसूस करता हुआ नवगीत !
जवाब देंहटाएंसाहित्यिक संध्या की सुन्दरतम शीतल बासंती बेला में निवेदित कर रहा हूँ !आपकी प्रतिक्रियाएं ही इस चर्चा और पहल को सार्थक दिशाओं का सहित्यिक बिम्ब दिखाने में सक्षम होंगी !
और आवाहन करता हूँ "हिंदी साहित्य के केंद्रमें नवगीत" के सवर्धन और सशक्तिकरण के विविध आयामों से जुड़ने और सहभागिता निर्वहन हेतु !आपने लेख /और नवगीत पढ़ा मुझे बहुत खुश हो रही है मेरे युवा मित्रों की सुन्दर सोच /भाव बोध /और दृष्टि मेरे भारत माँ की आँचल की ठंडी ठंडी छाँव और सोंधी सोंधी मिटटी की खुशबु अपने गुमराह होते पुत्रों को सचेत करती हुई माँ भारती ममता का स्नेह व दुलार निछावर करने हेतु भाव बिह्वल माँ की करूँणा समझ पा रहे हैं और शनै शैने अपने कर्म पथ पर वापसी के लिए अपने क़दमों को गति देने को तत्पर है!....
रहते हम शहरों में
भेड़ियों के पहरों में
बन रहे निवाले हम रह रह के !
हम रह रह के बन रहे निवाले !!
बन रहे निवाले हम रह रह के !
लारियों के
अजनवी शिकारियों के
हांथों हम हीचे चीर हरण सह सह के !
चीर हरण सह सह के हांथों हम हीचे
हांथों हम हीचे चीर हरण सह सह के !
दरबारी दरबार के नहीं
और न ही नवरत्न हैं उज्जैनी राज के,
कौन सुने तर्जनी की पीड़ा
अंगूठे सब रत्न हुए राजा के ताज के ,
क्या कहिये
हचर मचर बग्घी के पहिये
टूटेगी धुरी छोड़ हारे हम कह कह के !
हारे हम कह कह के टूटेगी धुरी छोड़
टूटेगी धुरी छोड़ हारे हम कह कह के !
रहते हम शहरों में
भेड़ियों के पहरों में
बन रहे निवाले हम रह रह के !
हम रह रह के बन रहे निवाले !!
बन रहे निवाले हम रह रह के !
लारियों के
अजनवी शिकारियों के
हांथों हम हीचे चीर हरण सह सह के !
चीर हरण सह सह के हांथों हम हीचे
हांथों हम हीचे चीर हरण सह सह के !
रहते हम शहरों में
भेड़ियों के पहरों में
बन रहे निवाले हम रह रह के !
हम रह रह के बन रहे निवाले !!
बन रहे निवाले हम रह रह के !
लारियों के
अजनवी शिकारियों के
हांथों हम हीचे चीर हरण सह सह के !
चीर हरण सह सह के हांथों हम हीचे
हांथों हम हीचे चीर हरण सह सह के !
यक्ष की पीडाएं भूलकर
गढने लगे कालिदास सूक्तियां अनूठी ,
फाड़ फाड़ मछली के पेट को
खोज रहे साकुंतली अनुपम अंगूठी ,
खप गईं पीढियां
चढ चढ रेतीली सीढियां
सूख गये आंसू आँखों से बह बह के !
आँखों से बह बह के सूख गये आंसू
सूख गये आंसू आँखों से बह बह के !
रहते हम शहरों में
भेड़ियों के पहरों में
बन रहे निवाले हम रह रह के !
हम रह रह के बन रहे निवाले !!
बन रहे निवाले हम रह रह के !
लारियों के
अजनवी शिकारियों के
हांथों हम हीचे चीर हरण सह सह के !
चीर हरण सह सह के हांथों हम हीचे
हांथों हम हीचे चीर हरण सह सह के !
गहरा है ,नया नया घाव है
चुटुक वैदिया में पक पक के हो गया नासूर ,
जीते जी चींटियाँ लीलेंगी अजगर
मिटटी के शेर का क्या है कसूर ,
पत्थर क्या जानें
सांसें पहचानें
छाती की पीड़ा प्राणों को दह दह के !
प्राणों को दह दह के छाती की पीड़ा
छाती की पीड़ा प्राणों को दह दह के !
रहते हम शहरों में
भेड़ियों के पहरों में
बन रहे निवाले हम रह रह के !
हम रह रह के बन रहे निवाले !!
बन रहे निवाले हम रह रह के !
लारियों के
अजनवी शिकारियों के
हांथों हम हीचे चीर हरण सह सह के !
चीर हरण सह सह के हांथों हम हीचे
हांथों हम हीचे चीर हरण सह सह के !
भोलानाथ
डॉ,राधा कृष्णन स्कूल के बगल में
अन अच्.-७ कटनी रोड मैहर ,
जिला सतना मध्य प्रदेश .भारत
संपर्क -08989193763