सुधेश
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होली के मुक्तक
रंग का त्योहार होली है ,
प़ेम का व्यवहार होली है ,
तुम कहाँ घर में छिपे बैठे
निकल आओ यार होली है ।
विविध वर्णी यह रंगोली है ,
चुनर भीगी साथ चोली है ,
अगर तन के साथ मन भीगे
तभी समझो आज होली है ।
रंग में पूरी शकल धो ली ,

भंग में टोली बहुत डोली ,
यह घड़ी क्या रोज़ आती है ,
आज होली हो महज़ होली ।
यह न केवल रीत रह जाये ,
रीत के संग प़ीत रह जाये ,
होली मनाओ इस तरह से
प्यार की बस जीत रह जाये ।
2 टिप्पणियाँ
कोमल भावनाओं से परिपूर्ण अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना :)
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