होली के मुक्तक - सुधेश


सुधेश
३१४ सरल अपार्टमेंट्स , सैक्टर १०
नई दिल्ली ११००७५
फ़ोन ०९३५०९७४१२०

होली के मुक्तक


रंग का त्योहार होली है ,
प़ेम का व्यवहार होली है ,
तुम कहाँ घर में छिपे बैठे
निकल आओ यार होली है ।
     विविध वर्णी यह रंगोली है ,
     चुनर भीगी साथ चोली है ,
     अगर तन के साथ मन भीगे
     तभी समझो आज होली है ।
रंग में पूरी शकल धो ली ,
holi greetings shabdankan 2013 २०१३ होली की शुभकामनायें शब्दांकन
भंग में टोली बहुत डोली ,
यह घड़ी क्या रोज़ आती है ,
आज होली हो महज़ होली ।
     यह न केवल रीत रह जाये ,
     रीत के संग प़ीत रह जाये ,
     होली मनाओ इस तरह से
     प्यार की बस जीत रह जाये ।

एक टिप्पणी भेजें

2 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

काली-पीली सरसों | ज्योति श्रीवास्तव की हिंदी कहानी | Shabdankan
बारहमासा | लोक जीवन और ऋतु गीतों की कविताएं – डॉ. सोनी पाण्डेय
चित्तकोबरा क्या है? पढ़िए मृदुला गर्ग के उपन्यास का अंश - कुछ क्षण अँधेरा और पल सकता है | Chitkobra Upanyas - Mridula Garg
मैत्रेयी पुष्पा की कहानियाँ — 'पगला गई है भागवती!...'
Harvard, Columbia, Yale, Stanford, Tufts and other US university student & alumni STATEMENT ON POLICE BRUTALITY ON UNIVERSITY CAMPUSES
Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
 प्रेमचंद के फटे जूते — हरिशंकर परसाई Premchand ke phate joote hindi premchand ki kahani
तू तौ वहां रह्यौ ऐ, कहानी सुनाय सकै जामिआ की — अशोक चक्रधर | #जामिया
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
मन्नू भंडारी की कहानी — 'रानी माँ का चबूतरा' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Rani Maa ka Chabutra'