लन्दन में कथा यू.के. ने आयोजित की कथागोष्ठी

कथा यू.के. की नवीनतम साझी कथा गोष्ठी (01 जून 2013) में वरिष्ठ उर्दू कहानीकार मोहसिना जीलानी ने अपनी संवेदनशील कहानी ‘दरवाज़ा खुला रखना’ का पाठ किया तो वहीं हिन्दी कथाकार डा. अचला शर्मा ने अपनी नवीनतम कहानी (जो हाल ही में पाखी पत्रिका में प्रकाशित हुई है) – उस दिन आसमान में कितने रंग थे – का पाठ किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता भारतीय उच्चायोग की श्रीमती पद्मजा जी ने की और मुख्य अतिथि थे भारतीय उच्चायोग के हिन्दी एवं संस्कृति अधिकारी श्री बिनोद कुमार

    कहानियों पर भारत से पधारे श्री राज कुमार अवस्थी,  प्रो. अमीन मुग़ल, कैलाश बुधवार, ज़किया ज़ुबैरी, श्रीमती पद्मजा, कविता वाचक्नवी, शिखा वार्ष्णेय, शन्नो अग्रवाल, स्वाति भलोटिया, ख़ुर्शीद सिद्दीकि, इस्लामाबाद से आए तारिक़ साहब, एवं अरुणा सभरवाल के साथ साथ कथाकार तेजेन्द्र शर्मा ने भी टिप्पणियां की।

    पहले मोहसिना जीलानी ने अपनी कहानी का पाठ किया। कहानी ब्रिटेन में बसी एक ऐसी मुस्लिम महिला की है जिसे उसका पति छोड़ कर एक अंग्रेज़ महिला के साथ कनाडा में जा बसता है। उस महिला के लिये उसका पुत्र ही जीने का एकमात्र मक़सद बन जाता है। आहिस्ता आहिस्ता कैसे पुत्र अपनी मां से दूर हुआ जाता है... मां मुख्य घर से ऐनेक्सी में पहुंचती वहां से ओल्ड पीपल्स होम । जब उसके जीवन से जुड़ी सभी चीज़े ऐनेक्सी से निकल कर सड़क पर आ जाती हैं, तो पड़ोसी डा. बहादुर लेखक की सोच पाठकों के सामने प्रकट करता है।

    सबका मानना था कि कहानी आज केवल ब्रिटेन के गोरे समाज की यह समस्या नहीं है। आज यह पूरे पश्चिमी समाज की समस्या है। पुरानी यादें साथ नहीं छोड़ रहीं और नये समाज से तारतम्य नहीं बिठा पा रहे। वैसे भारत और पाकिस्तान के शहरों में भी अब यही हो रहा है। यह कहानी स्मृतियों पर आघात की कहानी है। समय और संस्कृति का टकराव कहानी प्रस्तुत करती है। कहानी दो धरातलों पर चलती है – पति और पुत्र के सम्बन्धों का चित्रण है तो वहीं स्थानों के धरातल पर भी कहानी मन को छूती है। सामान के बहाने औरत सड़क पर आ गई है। कहानी पुत्र के चरित्र चित्रण के साथ भी पूरा न्याय करती है।

    अचला शर्मा की कहानी का थीम, भाषा, निर्वाह सभी अपनी अप्रोच में मॉडर्न हैं। बहुत बारीक़ स्तर पर कहानी अभिनव के विवाहित जीवन और पहले प्रेम पर साथ साथ चलती है। पत्नी द्वारा गर्भधारण ना कर पाना; प्रेमिका द्वारा पहले गर्भ का अबॉर्शन करवाना और फिर अपनी शादी से ठीक पहले प्रेमी द्वारा गर्भ धारण करके दुबई चले जाना; पति को मालूम है कि वह बाप बनने में सक्षम है इसके बावजूद पत्नी  को ख़ुश रखने के लिये अपना वीर्य आई.वी.एफ़ के लिये देने को तैयार हो जाता है। कहानी सीधी रेखा में नहीं चलती बल्कि अभिनव दिमाग़ में चल रहे द्वन्द्व के माध्यम से पत्नी एवं प्रेमिका के बीच झूलती है।

    कहानी अवस्थी जी को लम्बी लगी मगर कुल मिला कर सबका मानना था कि कहानी एक नई दुनियां से हमारा परिचय करवाती है। सभी चरित्र, स्थितियां पाठक के दिमाग़ पर छा जाते हैं। भाषा पर लेखक की पकड़ साफ़ दिखाई देती है। लेखिका ने अपने युगबोध को अपनी कहानी के माध्यम से व्यक्त किया है। कहानी को समकालीन और बोल्ड कहा गया जो कि इतने सयंम से लिखी गई है कि बदनाम कहानी होने से अपने को बचा लेती है। कहानी के बिम्ब और शब्दावली इसे एक कविता का सा आभास देती है। एक तरह से पेंटिंग भी लगती है यह कहानी। वैज्ञानिक प्रगति का कहानी में समावेश प्रभावित करता है। कहानी के तनाव और पुरुष दृष्टिकोण से नारी के मन को समझने की कोशिश की भी तारीफ़ की गई। औलाद की चाह कहीं इन्सान में अमरत्व पाने की लालसा भी लगती है।
उपरोक्त साहित्य प्रेमियों के अतिरिक्त सय्यद जीलानी, शाहिदा अज़ीज़. अहमद अज़ीज़, रेहाना सिद्दीकि, मुज्जन ज़ुबैरी, डा. हबीब ज़ुबैरी, आदि भी कार्यक्रम में शामिल हुए। मेज़बान रहे एजवेयर निवासी श्रीमती अरुणा अजितसरिया (एम.बी.ई) एवं श्री नन्द अजितसरिया

मुख्य अतिथि श्री बिनोद कुमार ने उच्चायोग की ओर से ऐसे साहित्यिक प्रयासों की तारीफ़ करते हुए पूरे सहयोग का आश्वासन दिया और कथा यू.के. के अध्यक्ष श्री कैलाश बुधवार ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।

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