पारदर्शी था किरणों का तल तक पहुँचना - रीता राम की कवितायेँ

पारदर्शी था किरणों का तल तक पहुँचना - रीता राम की कवितायेँ


वादियाँ एक निमंत्रण  


पहाड़ों से घिरी झील
प्रकृति का निमंत्रण
बसा शहर चारो ओर
कुछ राह तकते पेड़ पौधे
तैरते जुगनुओं सा पानी
युवा जोड़ों को ले तैरती बोट
reeta ram poetry poetess shabdankan  रीता राम की कवितायेँ शब्दांकन संगीत बिखेरती फिज़ाओं में
स्याह बादलों से लिपटती
नीलगिरी की पत्तियाँ
बतियाती कोपलें
पहाड़ों से आते जाते रास्ते
कभी भटकाते कभी दिखाते राह
हरियाली पिरोती
भरी भरी सी नमी
भीतर तक समाती सुखद हवा
जैसे पूरी वादी का सोंधा कोमलपन
बतिया रहा हो हमसे
घाटियाँ उतर-उतर जा रही हो भीतर
एक ठंडी मस्ती खुश्क हलक में
बिखेरती ज़ुल्फों में अल्हड़ता
बयार लिपटती बारंबार
करती गुफ्तगू सरसराते हुये
राग घोलती स्पर्श में
लिपट कर चूमती होठों को
दिल पिघलता हैं भीतर
प्यार की आगोश में
धड़कती हैं वादियाँ
पहाड़ों के पहाड़ों में कही गहरे
झील के संग
तृप्ति की चाहत समेटे
घनीभूत वाष्पकणों के इंतजार में ।


निशब्द वार्तालाप  

भेजी थीं नजरें तुमने
करती रही आत्मसात
हरियाली में लहराते शब्द थे
reeta ram poetry poetess shabdankan  रीता राम की कवितायेँ शब्दांकन तरंगे थीं फिज़ाओं में गूँजती
बोलती थीं वीरानी दूर से
सोखा था निगाहों ने मेरी
अनछूये एहसास का कोरापन
तुम्हारी धड़कनें देख रही थी
गहरायी मेरे अंतर्मन की
पारदर्शी था किरणों का तल तक पहुँचना
लपेटती रहीं तुम्हारी रोशनी
मेरे ओंस से स्पंदन को
तुम्हारी तर्जनी का मेरी अनामिका को सहलाता स्पर्श
निशब्द वार्तालाप के प्रमाण
आगोश में ले रहे थे
स्नेह की पनपती प्रकृति को ।

बिना मुंडेर की छत

छू गयी बूंदें बारिश की
reeta ram poetry poetess shabdankan  रीता राम की कवितायेँ शब्दांकन सिहरन ने भरा आगोश में हल्की ठंडक के साथ
होठों को धीरे धीरे नीला करती हुई
सिकुड़ती गयी पोरों की त्वचा
मैं थीं सुन्न, अल्हड़ मन सराबोर
छ्ह मंजिल इमारत के टाँकी की छत पर
हाथ फैलाये मूसलाधार बारिश में
गिरफ्त में थीं बादलों के
वो अपनी ताल को जोड़ता
मिलन के लिये जैसे बरस पड़ा
और मैंने पाया गुनगुनाते खुद को
बिना मुंडेर की छत के किनारे में बैठ भीगते हुये
हवा मे पैर हिलाने की इच्छा
सिमट गयी हल्की हरी काई में फिसलन सहेजते
मूसलाधार क्षितिज को निहारती यादें
ख़्वाहिश बन आयी थीं समेटने
और बिखरा गयी बरसने मूसलाधार।



रीता राम                                                   

शिक्षा : एम. ए. , एम.फिल. ( हिन्दी ), मुंबई विश्वविद्यालय
रचनाएँ : “ तृष्णा ” प्रथम कविता संग्रह एवं पत्रिकाओं में कवितायें प्रकाशित
पता : 34/603, एच॰ पी॰ नगर पूर्व, वासीनाका, चेंबूर, मुंबई- 74
संपर्क : reeta.r.ram@gmail.com


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
कहानी ... प्लीज मम्मी, किल मी ! - प्रेम भारद्वाज
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
दो कवितायेँ - वत्सला पाण्डेय
मैत्रेयी पुष्पा की कहानियाँ — 'पगला गई है भागवती!...'
ब्रिटेन में हिन्दी कविता कार्यशाला - तेजेंद्र शर्मा
दमनक जहानाबादी की विफल-गाथा — गीताश्री की नई कहानी
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
जंगल सफारी: बांधवगढ़ की सीता - मध्य प्रदेश का एक अविस्मरणीय यात्रा वृत्तांत - इंदिरा दाँगी
Harvard, Columbia, Yale, Stanford, Tufts and other US university student & alumni STATEMENT ON POLICE BRUTALITY ON UNIVERSITY CAMPUSES