रवीश कुमार का 'सचिन' को खुला पत्र #Sachin #Ravish #SachinMakesMeSenti

इसमें कोई दो राय नहीं है कि हम सब सचिन को पसंद करते हैं। किन्तु ये भी एक सच है कि क्रिकेट में बीते दिनों से शुरू हुए अ-जेंटलमैनपन का लगातार बढ़ते जाना, बहुतों को (जिनमे से मैं भी एक हूँ) क्रिकेट से दूर कर रहा है।
बहरहाल अभी आप रवीश का सचिन को लिखा खुला पत्र पढ़िए और पढ़ते वक़्त, रवीश ‘बिटवीन द लाइन्स’ क्या कहना चाह रहे हैं, इसका ध्यान रखियेगा।
रवीश आपको आभार कि आपने पत्र को शब्दांकन पर प्रकाशित करने की अनुमति दी।
आप का


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सचिन

रवीश कुमार 

आदरणीय सचिन,

जब एक से एक घोटालेबाज़ पार्टियों के नेताओं को ख़त लिखते वक्त उनके नाम के आगे आदरणीय लिखा है तो आपको आदरणीय कहने में संकोच कैसा । आप उन सबसे ज़्यादा हक़दार हैं ।

       मैं आपके खेल के किस तरफ़ हूँ ठीक से नहीं जानता । पर पता नहीं क्यों आज बेहद अफ़सोस हो रहा है कि मैंने आपको किसी स्टेडियम में अपनी आँखों से खेलते नहीं देखा । देखना चाहिए था । आप जब छोटे थे शायद हमारी उम्र के आस पास तब हमने आपकी और कांबली की शतकीय साझेदारी वाली कामयाबी को कापी के किसी पन्ने पर ध्यान से लिखा था कि शायद कहीं ये किसी इम्तिहान में काम आ जाए । पर किसी इम्तिहान में बैठा नहीं और आप मेरे काम आते आते रह गए । पर आपकी तस्वीर को बंगाल के पुरुलिया ज़िले की एक बियाबान पहाड़ी पर बनी एक झोपड़ी में देखा तब समझा कि आप क्या हैं । उस झोंपड़ी के भीतर कुछ भी नहीं था, बाहर से ग़रीबी रेखा भी नहीं गुज़र रही थी मगर भीतर आपकी तस्वीर । सचिन सर्वत्र विराजयेत । ग़लत संस्कृत हो तब भी यह देखने में बिल्कुल ठीक लगता है । वजह आप हैं ।

       आपके खेल को टीवी पर ज़रूर देखा है । नाख़ून चबाते हुए और धड़कनों को गिनते हुए कि आपका ही बल्ला मुझे एक परास्त भारत की किसी हीन ग्रंथी से बाहर निकाल सकता है । जैसे तिरासी के साल कपिल की टीम ने और बयासी के साल पी टी ऊषा में निकाला था । जब पी टी ऊषा एशियाड में जीती थीं तब उनके असर में हम चार बजे सुबह पटना के गांधी मैदान में दौड़ने जाने लगे । उस अंधेरे में खुद को पी टी ऊषा समझ कर भागने का प्रयास किया मगर लगा कि मुँह से झाग निकल आएगा । गांधी मैदान के बीच में स्थित गांधी जी की मूर्ति के नीचे जाकर बैठ गए । कहने का मतलब है आप लोगों की कामयाबी लोगों पर असर करती है । जब आपकी तरह बल्ला आज़माने का वक्त आया तब तक ज़िंदगी के वे लम्हे नज़दीक़ आने लगे थे जिसमें खुद के लिए कोई रास्ता चुनना था । आपकी तरह बनने के लिए किसी अंधेरे में नहीं जागा ।

       लेकिन आपको टीवी पर देखते हुए बहुत अच्छा लगता था ।  आप खेलते थे और हम क्रिकेट को समझते थे । हर शाट को जानने लगे । गेंदबाज़ की घबराहट को और बल्लेबाज़ के आत्मविश्वास को । हम क्रिकेट को स्कोर बोर्ड से बाहर भी समझने लगे । उससे पहले लगता था कि पड़ोस वाले चाचा जी को ही क्रिकेट आती है । मेरे पिताजी नया नया क्रिकेट सीख रहे थे । गावस्कर के हर चौके पर पड़ोस वाले चाचाजी से पूछते िक अब इंडिया जीत जाएगा । चाचा जी डाँट देते और कहते कि चुप रहिए । नहीं बुझाता है तो काहे टोक देते हैं । क्रिकेट सिर्फ चौका छक्का का खेल नहीं है । पिताजी चुप हो जाते लेकिन जब इंडिया हार जाता तब चाचाजी पर खुंदक निकालने लगते । अरे इ सब जीतता नहीं है आप फालतूए टाइम बर्बाद करते हैं । क्रिकेट पर चाचाजी की कापीराइट होती थी । दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं पर हिन्दुस्तान ने ऐसे ही क्रिकेट को टटोल टटोल कर देखना समझना सीखा है । आपके आने के बाद सब तेज़ी से बदल गया । प्रभाष जोशी तो आपके बारे में लिख कर रूला ही देते थे । मालूम नहीं हिन्दी के इस पत्रकार को आप जानते हैं या नहीं । फिर भी सचिन आपको जानना क्रिकेट को जानना हो गया ।

       जब मैच फ़िक्सिंग का दौर आया तो मैं क्रिकेट से दूर हो गया । इंडिया टुडे का वो संस्करण याद है जिसमें आपके शरीर के हर अंग को तीर के सहारे बताया गया कि यहाँ से ये पावर निकलता है वहाँ से वो पावर । फिर आपकी कामयाबी को कचकड़े के डिब्बे में मीडिया पैक करने लगा । मैंने कम देखा आपको । आज लग रहा है मुझे आपको जी भर के देख लेना चाहिए था । पर आपके लिए हमेशा सम्मान बना रहा ।

       आज आपने सन्यास की घोषणा की है । चैनलों पर आपके रिकार्ड ऐसे चल रहे हैं जैसे इलेक्ट्रानिक टाइपराइटर के पीछे से काग़ज़ की रिम निकलती जा रही हो । आपने क्रिकेट को बहुत अच्छी यादें दी हैं और हम जैसे कम देखने वालों को न देखने का अफ़सोस । आपने अपने नाम को न सिर्फ कमाया बल्कि उसे अपने आचरण से बनाए भी रखा ।  दरअसल आप कभी बड़े हुए ही नहीं । दर्शकों ने आपको बच्चे की तरह ही देखा है । आप क्रिकेट में कृष्ण के बाल रूप हैं । जिसकी अनेक लीला़यें हैं ।

       आपके खेल को समझना हिन्दी चैनलों के बस की बात नहीं हैं । शुक्र है आपने इनके लिए बहुत आँकड़े बना रखे हैं । आज की रिकार्डिंग मँगा लीजियेगा । कभी ज़िंदगी में आराम से देखियेगा । आपकी विदाई को कितने ख़राब तरीके से विश्लेषित किया गया है । हिन्दी सिनेमा के गानों पर आपके शाट्स चढ़ाकर उन्हें रोड साइड बैंड बारात में बदल दिया है । मैं क्रिकेट का ज्ञानी नहीं हूँ ,खुद भी क्रिकेट पर ख़राब शो करता हूँ मगर क्या करूँ करना ही पड़ता है । लेकिन जो लोग दिन रात क्रिकेट करते हैं उनके पास आपके लिए कोई अच्छा विश्लेषण नहीं है । यही ख़ालीपन सही समय होता है चुपचाप चले जाने का । आपके क्रिकेट के मैदान से जाने की ख़बर सुनकर मैं भावुक हूँ । आप हम सबकी शान रहे हैं । आपको ऐसे कैसे जाने देंगे एक ख़त तो लिखेंगे न । खुद ही पढ़ने के लिए ।

आपका

रवीश कुमार 'एंकर'  

10 अक्टुबर 2013 रवीश के ब्लॉग 'क़स्बा' से 
http://naisadak.blogspot.in/2013/10/blog-post_1023.html


Key: Sachin Tendulkar’s No 10 jersey retired 

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