वो रात
अनामिका चक्रवर्ती
तब किसी को नहीं पता था कुछ ही देर में सारे शहर में मातम छाने वाला है। ऐसा मातम जिसमें दुनिया भी शरिक होने वाली है। हर आँख नम होने वाली है। जिसकी चर्चा सारे विश्व में होने वाली है।

भोपाल: मौत की गैस और गोरी राजनीति
हर तरफ चीख पुकार भाग दौड़ हर कोई कहीं भी बस भाग जाना चाहता था। दिशाहीन बस सब भाग रहे थे । कोई सही दिशा में, तो कोई गलत दिशा में। मगर मौत भी भाग रही थी सबके पीछे सबको एक साथ ही लील लेना चाहती थी कुछ ही घंटो में। और लील भी रही थी माँ की गोद से बच्चे को , बच्चे से माँ को छीन रही थी। गर्भवती औरतो को , अंधो को, बूढ़ो को जो भाग भी नहीं रहे थे या भाग ही नहीं सकते थे । गरीब अमीर आज सब पर मेहरबान हो गई थी मौत। वो राक्षस रूपी काली डरावनी रात अपना नाम इतिहास में दर्ज करने पर उतारू हो गई थी । मौत के नाम पर। मासूम जानवर जन्हें तो किसी की कोई बात समझ ही नहीं आ रही थी । वो भी मौत का ग्रास बन रहे थे।
चौथे माले में वो औरत अपने तीन बच्चो को लेकर समझ नहीं पा रही थी क्या करें। कहाँ जाए सबसे छोटा बेटा मात्र ढाई महीने का और दो बेटीयों को लेकर कहाँ जाए । पति शहर से बाहर किसी की शादी में शरिक होने गए थे। और बिल्डिंग के सभी लोग बार बार कह रहे थे कि भागो यहाँ से कहीं दूर निकल चलो नहीं तो सब के सब मारे जाएंगे। और फिर देखते ही देखते सारा मोहल्ला खाली हो गया । पूरी बिल्डिंग भी खाली हो गई। रह गया सिर्फ़ सन्नाटा जहाँ मौत अपना नंगा नाच शुरू कर चुकी थी और सिर्फ एक फासला रह गया मौत और तीन बच्चो को लेकर माँ के बीच और डर, जाने ये फासला मिटे तो कौन साथ छोड़ दे।
अब सांसे फसने लगी जैसे किसी ने लाल खड़ी मिर्च जलाकर गले में उतार दी हो और खांसी थी की रूकने का नाम ही न ले पूरा शरीर खांसते-खांसते हलाकान हुआ जा रहा था। पेट से जैसे अंतड़ियाँ किसी भी वक़्त बाहर आ जाएगी। आँखो के सामने काले-काले चमगादड़ जैसे झपट्टा मार रहे हो। एक से डेढ़ घंटे में चारो की हालत पूरी तरह बिगड़ने लगी और कुछ ही देर में ढाई माह का बच्चा बेहोश हो गया । माँ और बड़ी बेटी की मानो ये देखकर प्राण ही रूक गए। पर साहसी माँ ने हिम्मत नहीं हारी । उसने घर के खिड़की दरवाजो से आने वाली हवा को रोका उनके किसी भी बारीक से बारीक जगहो पर कपड़ा ठूस दिया और हलका गुनगुना पानी अपने बच्चो को पिलाया । कुछ ही देर में बेटा एक लम्बी सांस लेते हुए होश में आ गया। तब सबके जान में जान आई। माँ की समझदारी और साहस ने उस परिवार को तो बचा लिया।
मगर सुबह होते होते पूरे शहर में तब तक हाहाकार मच चुका था। किसी को किसी की सुध नहीं थी । लोग भागते भागते पैरो के नीचे कुचले जा चुके थे। दम घुटने के कारण मर चुके थे। आधे से अधिक शहर शमशान में तब्दील हो चुका था। यहाँ वहाँ जहाँ देखो सिर्फ़ लाश ही लाश नज़र आ रही थी। लाशे भी इतनी की गिनी भी नहीं जा सके। शहर की जमीन भी कम पड़ जाए इनके अंतिम संस्कार के लिए। मौत अपना काम कर चुकी थी। मगर अपना ज़हर हमेंशा के लिए इस शहर को सौगात के रूप में दे गई थी। इंसान और बेजुबान जानवर सब मौत के काल में समा चुके थे। एक जगह तो एक भीड़ में भागते हुए नीचे गिरकर कुचले जाने से महिला के पेट को फाड़ते हुए उसके सात माह का गर्भ से शिशु बाहर आ गया रक़्त रंजित बच्चे की तो सांसे चल रही थी मगर माँ काल के मुह में समा गई थी।
रोते बिलखते लोग लाशो के बीच अपनो को ढूंढ रहे थे। और कहीं कहीं तो कोई ढूंढने वाला भी नहीं बचा था। कहीं छोटे मासूम बच्चे रो रहे थे पर उन्हें गोद लेने वाला कोई न था। हाँ काल बनकर आने वाली ये रात है मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में 2 दिसम्बर 1984 की अर्धरात्री में युनियन कार्बाइड कारखाने से निकली एक जहरीली गैस (मिथाइल आइसो साइनाइट MIC) के रिसाव की जिसे विश्व की सबसे भीषणतम औधोगिक-दुर्घटना के रूप में जाना जाता है। जिसमें सरकारी आँकड़े के हिसाब से तो 15,300 लोगो के मारे गए है जबकि ऐसा माना जाता है की 35 से 40 हजार लोगो की मौत हुई थी उस रात और अनगिनत पशुओ की भी । और दो लाख लोगो पर इसका जहरीला असर हुआ था। एक ऐसी गैस त्रासदी जिसे कोई नहीं भूल सकता । जो अपना विष सदियो के लिए इस शहर वासियो को देकर गयी है। जिसे हजारो लोग आज भी भोग कर रहे ।
ये इतिहास में दर्ज सबसे भयानक औद्दोगिक त्रासदी की ऐसी सर्द रात है जिसकी सुबह आज तक नहीं हुई। जिसके भी खून में ये ज़हर गया है उसकी पीढ़ी दर पीढ़ी उस रात को ही जी रही है। आँखो की रोशनी के जाने से लेकर नपुंसकता , बांझपन दे गई वो काल बनी रात। लोगो के फेफड़े क्षतिग्रस्त हो गए , लोग दिमागी तौर पे अपंग हो गए। जाने कितने रोग दे गयी ये।
परन्तु आज तक न ही कोई न्याय हुआ पीड़ितो के साथ न ही उन्हें कोई मुआवजा दिया गया। 29 वर्ष हो गए मगर क़ातिल को कोई सज़ा नहीं हुई । जिसने हजारो लोगो को मौत के मुह में धकेल दिया और जिंदा बचे लोगो को तिल-तिल मरने के लिए ज़हर दे गया।
ये मेरी अपनी आपबीती है जिसका जिक्र मैने लेख के बीच मे किया है। वो साहसी माँ मेरी माँ थी जिनके कारण आज हम तीनो भाई बहन और माँ भी जीवित है। माँ को प्रणाम... मै इस त्रासदी में मारे गए सभी लोगो को अपनी ओर से विनम्र श्रद्धांजली देती हूँ। और उनकी पवित्र आत्मा की शांती की प्रार्थना करती हूँ।
अनामिका चक्रवर्ती
जन्म स्थान - जबलपुर (म.प्र.)
प्रारंभिक शिक्षा - भोपाल म.प्र. से।स्नातक - मनेन्द्रगढ़ (गुरू घासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर ) छ.ग. से। कम्प्युटर में PGDCA
कार्यक्षेत्र- विगत कुछ वर्षो से निजी संस्थानो में कार्यरत थी किन्तु अब पूर्ण रूप से लेखन के प्रति समर्पित हूँ। वेब पत्रिका में रचनाएँ प्रकाशित। बचपन से ही साहित्य में रूची । गद्य और पद्य दोनो विधाओ में लेखन। सभी विषयो पर अपनी कविता और कहानी एवं लेख से अपने अनुभव और भावनाओ के द्वारा समाज को एक सकारात्मक दृष्टीकोण देना चाहती हूँ।
1 टिप्पणियाँ
वाकई आज भी सिहर जाती हूँ उस रात के ख़याल से......
जवाब देंहटाएंउसके बाद के कई दिन बहुत दुःख भरे थे.......
अनु