हजारी - राकेश कुमार सिंह | Rakesh Kumar Singh - Hajari

हजारी                                                                            

                                                                                                    राकेश कुमार सिंह
तीन भाइयों के बीच
अकेली थी हजारी.
रमपुरा काकी कहती है
कि उसके जनमने पर उसके बाप ने
रेवाज के उल्टा
टोले भर में लड्डू बांटा था
इतरा कर बोला था कि
अपनी लछमी की शादी में
खूब लछमी खरचेंगे.
पांच साल की भी नहीं हुई थी वह
कि उसकी मतारी
कपड़ा-लत्ता, गहना-गु‍डिया, सांठ-सनेश
सब जोड़ने-चितने लगी थी.
काकी कहती है कि
रूप और गुण के आगर
हजारी के बियाह में
बूशट-पाइंट पहिन-पहिन के
बरातियों ने खूब डेंस किया था.
उसके बाप ने
पचास हजार नगद और फटफटिया
और मामा ने सिमेना देखने वाला टिबियो दिया था.
काकी कहती है
माघ में बियाह हुआ
जेठ तक सब ठीके चला
अषाढ़ में हजारी की एक चिट्ठी आयी
बाप से पांच हजार और मंगवाया था.
सावन में राखी के दिन
बड़का भैया तीन हजार दे आए
और कहे
कि बाकि नन्हकू लेके आएगा भादो पुरनेमा तक
बड़का भैया के आए हुए
दस दिन भी नहीं हुए
कि आज अखबार में
हजारी का बियाह वाला फोटो छपा है
और लिखा है
दो हजार के लिए उसके पति ने
उसके दोनों आंख निकाल लिए.
माथ पीट-पीट के काकी कहती है
अबकी अगहन में हजारी सोलह की हो जाती.

राकेश कुमार सिंह का  परिचय कुछ यों है ............
तरियानी छपरा, बिहार की पैदावार. तक़रीबन दस बरस सराय-सीएसडीएस के साथ दिल्ली के मीडिया बाज़ारों का अध्ययन और ‘मीडियानगर’ पुस्तक श्रृंखला की एडिटरी. बेघरों के मसलों पर ‘हमशहरी’, वनाधिकारों पर आधारित ‘फेयाड़ा’ और 'छात्र उद्घोष' का भी संपादन. शौकिया और कमाऊ लिखाई-पढाई. पहली किताब ‘बम संकर टन गनेस’ देहाती बिहार के समकालीन इतिहास के महत्‍त्‍वपूर्ण दस्तावेज़ के तौर पर चर्चित. फिलहाल अगली पुस्तक ‘बियॉन्ड नागाज़: कुंभ के अंदरखाने’ के नाम शब्दों के जुटान पर. यदा-कदा रंग और कूची से खेलने की जबरिया कोशिश भी. मूडानुसार, नुसरत, गुलाम अली, रुना लैला, किशोर, आशा, इंडियन ओशन, बालेश्वनर और खेसारीलाल यादव के सुरों के साथ मस्ती . पांच-छह बरस से कुर्तुलैन हैदर का ‘कलंदर’ आदर्श और राकेश उसके पीछे-पीछे. यश मालवीय की ‘समय की मार सह लेना, नहीं रुकना मेरे साथी’ से निरंतर हौसले का आयात. जाति और जेंडर निरपेक्ष भारत आाखिरी स्वप्न. तीन ही शौक़: फक्कड़ी, घुमक्कड़ी और तस्वीरबाज़ी. rakeshjee@gmail.com और +91 9811 972872.
nmrk5136

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
मन्नू भंडारी की कहानी — 'रानी माँ का चबूतरा' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Rani Maa ka Chabutra'
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
मन्नू भंडारी की कहानी  — 'नई नौकरी' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Nayi Naukri' मन्नू भंडारी जी का जाना हिन्दी और उसके साहित्य के उपन्यास-जगत, कहानी-संसार का विराट नुकसान है
मन्नू भंडारी, कभी न होगा उनका अंत — ममता कालिया | Mamta Kalia Remembers Manu Bhandari
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy
Hindi Story: दादी माँ — शिवप्रसाद सिंह की कहानी | Dadi Maa By Shivprasad Singh
टूटे हुए मन की सिसकी | गीताश्री | उर्मिला शिरीष की कहानी पर समीक्षा