आप का प्रधानमंत्री कौन ?
रवीश कुमार

आम आदमी पार्टी ने लोकसभा की रणनीतियों पर विचार करने के लिए दो सदस्यों की कमेटी बनाई है । देखते हैं क्या नतीजा निकलता है । लेकिन देश भर में फैले आप के वोलिंटियर में जुनून पैदा करने के लिए भी ज़रूरी होगा कि अरविंद केजरीवाल को आप प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर पेश करे । तो तीन तीन दावेदार होंगे इस बार प्रधानमंत्री के ।
राजनीति क़यासों का खेल है । आम आदमी पार्टी ने जब से तीन सौ से भी अधिक सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ने का मन बनाया है तब से ही यह सवाल घूम रहा है कि आम आदमी पार्टी की तरफ़ से प्रधानमंत्री का उम्मीदवार कौन होगा ? इसका जवाब ढूँढते ढूँढते मैं अरविंद केजरीवाल पर पहुँच जाता हूँ । तब मैं सोचने लगता हूँ कि अरविंद केजरीवाल क्या गुजरात के मुख्यमंत्री की तरह प्रधानमंत्री का उम्मीदवार जल्दी हो जायेंगे या मार्च अप्रैल में होंगे । दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी अभी भी ख़ाली लगती है । यह सिर्फ एक क़यास है ।
इसलिए कि बीजेपी ने मोदी के रूप में अपना उम्मीदवार सबसे पहले उतार दिया था । मोदी को भाव न देने के चक्कर में कांग्रेस ने कहना शुरू कर दिया था कि हम पार्टी के रूप में चुनाव लड़ते हैं । तब कांग्रेसी डरते थे कि राहुल गांधी का नाम लेंगे तो मोदी से सीधा मुक़ाबला होगा और इससे बचना चाहिए । मगर चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जो गत हुई उससे पार्टी ने अपनी लाइन बदल दी । नतीजों के दिन ही सोनिया गांधी ने कह दिया कि कांग्रेस के प्रधानमंत्री का उम्मीदवार देंगे । इसीलिए सत्रह जनवरी को कांग्रेस जयपुर की तरह बैठक करने वाली है । जिस तरह से राहुल सक्रिय हुए हैं उससे तय लगता है कि राहुल गांधी उम्मीदवार होंगे ।
तो दो उम्मीदवार तय हैं । राहुल नहीं भी हों तब भी कांग्रेस किसी का नाम तो तय ही करेगी । आज जब नरेंद्र मोदी का ब्लाग आया तो तुरंत सूचना फ़्लैश होने लगी कि राहुल गांधी प्रेस कांफ्रेंस करेंगे । मोदी और उनके समर्थकों ने राहुल पर चुप रहने या मीडिया से बात न करने का आरोप लगाया था । तब अंग्रेज़ी के कई बड़े पत्रकारों ने भी अख़बारों में लिखा था कि राहुल सोनिया मीडिया से बात क्यों करते हैं । मोदी जब से प्रधानमंत्री के उम्मीदवार हुए हैं मीडिया के किसी हिस्से से बात नहीं की है । चंद विदेशी एजेंसियों को ज़रूर इंटरव्यू दिया है मगर बहस के लिए सबको ललकारने वाले मोदी ने कभी इंटरव्यू नहीं दिया या प्रेस कांफ्रेंस नहीं किया । बिहार धमाके के बाद ज़रूर मीडिया के कैमरे के सामने आए मगर सवाल-जवाब का मौक़ा नहीं दिया । सद्भावना यात्रा के दौरान मोदी ने ज़रूर बस में इंटरव्यू दिया था । राहुल गांधी प्रेस कांफ्रेंस करने लगे हैं । राहुल के आलोचकों की जीत हुई है । उधर अदालत ने गुजरात दंगों में मोदी की भूमिका को साबित करने के लिए कोई सबूत न मिलने की एस आई टी रिपोर्ट पर मुहर लगा कर मोदी को बड़ा राजनीतिक बल प्रदान किया है । इससे मोदी को अपने नाम के कारण गठबंधन बनाने में हो रही दिक़्क़तें भी दूर हो जायेंगी । वैसे इस फ़ैसले से पहले ही चंद्राबाबू नायडू, जगमोहन रेड्डी चौटाला येदियुरप्पा ( अलग से) मिलने लगे थे । जयललिता तो है हीं । मगर अन्ना द्रमुक ने भी प्रस्ताव पास किया है कि अगला प्रधानमंत्री तमिलनाड से हो । मगर यह महज़ एक औपचारिकता लगती है । जयललिता अपनी कुर्सी छोड़ कर अस्थिर सरकार का नेतृत्व नहीं करेंगी ।
राहुल लगातार खुद को बदल रहे हैं । मोदी बहुत आगे निकल चुके हैं । फिर भी मधु कौड़ा और लालू से समझौता लोकपाल के बहाने राहुल भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ कैसे खड़े होते दिख सकते हैं । फिर भी वे आदर्श घोटाले के बारे में महाराष्ट्र सीएम के सामने कह रहे हैं कि मेरी राय है कि रिपोर्ट को रिजेक्ट करने के फ़ैसले पर विचार किया जाए । मेरी राय ? जो भी हो प्रेस कांफ्रेंस से लग रहा है कि ये वो राहुल नहीं हैं । पहले से ज़्यादा स्पष्ट और मुखर हैं । ख़ुद को ऐसे राजनीतिक अंतर्विरोधों के हवाले करने लगे हैं जिसके कारण मीडिया से भागा करते थे । जिस तरह से वे मीडिया के सवालों का सामना कर रहे हैं जल्दी ही उन्हें मँजा हुआ नेता बनाने लगेगा । तो राहुल तैयार हो गए हैं । मोदी तैयार है ही । मैंने खुद कई लेखों में राहुल को कच्चा कहा है । यह वे खुद साबित कर देते हैं जब उस दिन प्रेस कांफ्रेंस कर गुजरात दंगों पर कुछ नहीं बोलते हैं जब मोदी कैमरे पर आये बिना ब्लाग पर विस्तार से लिखते हैं कि कैसे उन्होंने आरोपों की पीड़ा झेली है तब जब वे खुद आहत हैं । रविशंकर प्रसाद ने भ्रष्टाचार पर राहुल के बयान को दोहरापन बताया है ।
अब इस स्थिति में संभव नहीं लगता कि आम आदमी पार्टी प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के बिना उतरेगी । राहुल और मोदी पर कौन हमला करेगा और किस हैसियत से । दिल्ली चुनाव में अरविंद ने शीला दीक्षित को प्रथम निशाने पर रखा था । बीजेपी पर भी हमला होता था मगर सीधा हमला कांग्रेस पर होता था । मोदी आम आदमी पार्टी पर निशाना साधते थे मगर नाम लेकर नहीं । अरविंद का तो नाम भी नहीं लिया है । मगर क्या लोकसभा में आप इसी रणनीति पर चल पायेगी । तकनीकी रूप से मनमोहन सिंह की सरकार प्रथम निशाने पर होगी लेकिन राजनीतिक रूप से इस लड़ाई में नरेंद्र मोदी पहले नंबर पर आ चुके हैं । क्या आप नरेंद्र मोदी पर सीधा हमला करेगी । आप के तेवर से लगता है कि कांग्रेस से समर्थन लेकर अपराधबोध से ग्रसित है । इसलिए पहला एलान राहुल गांधी के ख़िलाफ़ कुमार विश्वास को उतारने का किया । गुजरात में आम आदमी पार्टी के सक्रिय होने की ख़बरें तो आ रही हैं लेकिन क्या लोकसभा चुनाव में अरविंद शीला के ख़िलाफ़ लड़ने का मास्टर स्ट्रोक दोहरा पायेंगे । क्या वे नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ेंगे । गांधीनगर या बनारस से । मोदी पर उनका सीधा हमला मुस्लिम मतदाताओं के बीच स्पष्ट दावेदार बनायेगा । दिल्ली में जिसकी कमीं के कारण आम आदमी पार्टी को मुसलमानों के वोट तो बहुत मिलें मगर एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं जीत सका । वर्ना कांग्रेस की आठ सीट में से पाँच आप के पास होती । देखते हैं अरविंद केजरीवाल गुजरात दंगों पर मोदी के ब्लाग को लेकर चुप रह जाते हैं या बोलते हैं । क्या मोदी अरविंद का नाम लेकर हमला करेंगे ? जैसा वो राहुल को शहज़ादे बताकर करते हैं । मोदी चुप हैं मगर जेटली ने फ़ेसबुक के स्टेटस के ज़रिये आम आदमी पार्टी पर खूब हमला किया है । दिल्ली बीजेपी ने तो चुनाव के बाद आम आदमी पार्टी और अरविंद को विरोधी नम्बर वन घोषित कर दिया है । टकराव की पृष्ठभूमि तैयार है मगर आमना सामना नहीं हो रहा है ।
आम आदमी पार्टी ने लोकसभा की रणनीतियों पर विचार करने के लिए दो सदस्यों की कमेटी बनाई है । देखते हैं क्या नतीजा निकलता है । लेकिन देश भर में फैले आप के वोलिंटियर में जुनून पैदा करने के लिए भी ज़रूरी होगा कि अरविंद केजरीवाल को आप प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर पेश करे । तो तीन तीन दावेदार होंगे इस बार प्रधानमंत्री के । राहुल और मोदी दोनों के पास अण्णा ढाल है । अरविंद और मोदी का आमना सामना दिलचस्प होगा अगर हुआ तो । यह भी देखेंगे कि नाम लेकर पहला वार कौन करता है । मोदी या अरविंद । रही बात ये कि दिल्ली का मुख्यमंत्री कौन होगा तो जैसा कि मैंने शुरू में कहा राजनीति क़यासों का खेल है ।
रवीश के ब्लॉग 'कस्बा' http://naisadak.blogspot.in/ से
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