दस्तख़त
शीरीं-फ़रहाद, लैला-मजनू,
जसमा-ओडन, देवदास-पारो आदि,
त्याग, मृत्यु और
समर्पण की लोमहर्षक कृतियाँ हैं।
इन कथाओं में प्रेम और बेवफाई का
छत्तीस
का
आँकड़ा था -रवीन्द्र कालिया
बेवफाई तो उर्दू शायरी का बहुत जाना-पहचाना शब्द था। इस शब्द का सहारा लेकर बहुत शायरी हुई और इस विषय पर सैकड़ों ग़ज़लें हो गयीं। साहित्य भी इससे अछूता नहीं रहा, चाहे जिस भाषा का हो। प्रेम में त्रिकोण तो साहित्य का एक आधारभूत तत्त्व रहा है। इसको लेकर कई कालजयी रचनाएँ भी लिखी गयीं। जैसे टॉलस्टॉय की अन्ना केरेनिना तो एक ऐसा उपन्यास है, जिसका विश्व की तमाम भाषाओं में अनुवाद उपलब्ध है। परम्परागत रूप से प्रेम की परिकल्पना त्याग, समर्पण, विरह, वेदना आदि के रूप में ही की गयी है। हमारी तमाम लोक प्रेम कथाएँ जैसे—शीरीं-फ़रहाद, लैला-मजनू, जसमा-ओडन, देवदास-पारो आदि, त्याग, मृत्यु और समर्पण की लोमहर्षक कृतियाँ हैं। इन कथाओं में प्रेम और बेवफाई का छत्तीस का आँकड़ा था। बाद में पाठकों ने पाया कि प्रेम और बेवफाई का एक परोक्ष रिश्ता भी है। दोनों का चोली-दामन का साथ है। प्रेम के प्रवाह को सीमाओं में बाँधना एक कठिन प्रक्रिया है। अक्सर वह सीमाएँ तोडऩे लगता है।
प्रेम को कड़े अनुशासन में रखने पर प्रश्न चिन्ह लगने लगे। मन्नू भंडारी ने ‘यही सच है’ में एक और प्रश्न उठाया था, क्या स्त्री एक साथ दो लोगों से प्यार नहीं कर सकती? इसके दूसरे पहलू पर भी चर्चा होने लगी, क्या किसी स्त्री से प्रेम करने का अर्थ प्रेम पर पूर्णविराम लगने के समान है? बेवफाई शायद समाज में उतना प्रचलित शब्द था भी नहीं। फिल्म`‘थोड़ी सी बेवफाई’ रिलीज़ हुई तो यह शब्द लोकप्रिय हो गया। इसकी तहें भी खुलने लगीं।
सोशल मीडिया की आमद के साथ समाज में प्रेम के नये-नये प्रयोग भी सतह पर आने लगे। वास्तव में सोशल मीडिया ने इस संसार के समक्ष एक और संसार रच दिया— आभासी संसार। लोग समय काटने या जीवन की एकरसता से मुक्ति पाने के लिए इस आभासी संसार में विचरण करने लगे। इस आभासी संसार में इतनी गुंजाइश है कि आप अपनी ज़रूरत के अनुसार अपने नये संसार का ताना-बाना बुन सकते हैं। रोज़मर्रा की परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए अनेक दरवाज़े खुले नज़र आते हैं। कल्पना कीजिए एक पढ़ी-लिखी उम्रदराज़ महिला को जब कोई ठौर नहीं मिलता तो वह सोशल मीडिया का सहारा लेती है और यकायक एक युवती का रूप धारण कर सोशल मीडिया में अवतरित हो जाती है। ज़रा-सी दिलचस्पी दिखाते ही सैकड़ों की संख्या में उसके आभासी मित्रों की संख्या में द्रुत गति से इज़ाफा होने लगता है। उसके क्रान्तिकारी विचार पढ़ कर लोग प्रभावित होने लगते हैं, उसके भीतर छिपा हुआ लावा आग उगलने लगता है। वह चैटिंग में मशगूल रहने लगी। उसका समय मज़े से कटने लगा। वह अपनी पसन्द का एक हीरो भी चुन लेती है और उसे ऑन लाइन पाते ही चैटिंग में जुट जाती है। कुछ दिनों बाद वह महसूस करती है कि उसे इतना प्यार तो अपने पति से भी न मिला था, जितना इस सम्पर्क से प्राप्त हो रहा था। कई बार उसे यह आशंका भी होती कि उसका प्रेमी भी कहीं उसका हमउम्र न हो, जो उसी की तर्ज़ पर प्रेम का अभिनय कर रहा हो। दरअसल यह माध्यम आप को एक आभासी साहस भी देता है। आप जीवनभर जो काम चाहते हुए भी नहीं कर पाते, उसे करने का सुनहरा अवसर प्रदान करता है। यह आभासी दुस्साहस रोमांचित ज़रूर करता है, मगर इस आभासी दुस्साहस का एक छोर कई बार आभासी बेईमानी की श्रेणी में आने लगता है। कई बार सुखी दाम्पत्य में दरार पैदा होने लगती है जब पति पत्नी एक-दूसरे की तरफ़ पीठ किए फोन पर चिपके रहते हैं। दोनों अपना-अपना पासवर्ड गोपनीय रखते हैं। कुछ लोग इसे ‘साइबर चीटिंग’ कहने लगे हैं। क्या ‘चीटिंग’ और ‘साइबर चीटिंग’ में कोई अन्तर है। बेईमानी तो बेईमानी है, चाहे वह आभासी ही क्यों न हो। दोनों मजबूर हैं क्योंकि दोनों को आभासी मित्र से अधिक सुकून मिलता है, वास्तविक साथी से कहीं ज़्यादा। इसे बढ़ावा देना कई बार बहुत महँगा पड़ता है। साइबर बेइमानी के कारण तलाक़ भी होने लगे हैं। आधुनिक जीवन-शैली के ये सब अन्तर्विरोध हैं।
सोशल मीडिया ने
इस संसार के समक्ष
एक और संसार
रच दिया—
आभासी संसार
प्रेम को कड़े अनुशासन में रखने पर प्रश्न चिन्ह लगने लगे। मन्नू भंडारी ने ‘यही सच है’ में एक और प्रश्न उठाया था, क्या स्त्री एक साथ दो लोगों से प्यार नहीं कर सकती? इसके दूसरे पहलू पर भी चर्चा होने लगी, क्या किसी स्त्री से प्रेम करने का अर्थ प्रेम पर पूर्णविराम लगने के समान है? बेवफाई शायद समाज में उतना प्रचलित शब्द था भी नहीं। फिल्म`‘थोड़ी सी बेवफाई’ रिलीज़ हुई तो यह शब्द लोकप्रिय हो गया। इसकी तहें भी खुलने लगीं।
सोशल मीडिया की आमद के साथ समाज में प्रेम के नये-नये प्रयोग भी सतह पर आने लगे। वास्तव में सोशल मीडिया ने इस संसार के समक्ष एक और संसार रच दिया— आभासी संसार। लोग समय काटने या जीवन की एकरसता से मुक्ति पाने के लिए इस आभासी संसार में विचरण करने लगे। इस आभासी संसार में इतनी गुंजाइश है कि आप अपनी ज़रूरत के अनुसार अपने नये संसार का ताना-बाना बुन सकते हैं। रोज़मर्रा की परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए अनेक दरवाज़े खुले नज़र आते हैं। कल्पना कीजिए एक पढ़ी-लिखी उम्रदराज़ महिला को जब कोई ठौर नहीं मिलता तो वह सोशल मीडिया का सहारा लेती है और यकायक एक युवती का रूप धारण कर सोशल मीडिया में अवतरित हो जाती है। ज़रा-सी दिलचस्पी दिखाते ही सैकड़ों की संख्या में उसके आभासी मित्रों की संख्या में द्रुत गति से इज़ाफा होने लगता है। उसके क्रान्तिकारी विचार पढ़ कर लोग प्रभावित होने लगते हैं, उसके भीतर छिपा हुआ लावा आग उगलने लगता है। वह चैटिंग में मशगूल रहने लगी। उसका समय मज़े से कटने लगा। वह अपनी पसन्द का एक हीरो भी चुन लेती है और उसे ऑन लाइन पाते ही चैटिंग में जुट जाती है। कुछ दिनों बाद वह महसूस करती है कि उसे इतना प्यार तो अपने पति से भी न मिला था, जितना इस सम्पर्क से प्राप्त हो रहा था। कई बार उसे यह आशंका भी होती कि उसका प्रेमी भी कहीं उसका हमउम्र न हो, जो उसी की तर्ज़ पर प्रेम का अभिनय कर रहा हो। दरअसल यह माध्यम आप को एक आभासी साहस भी देता है। आप जीवनभर जो काम चाहते हुए भी नहीं कर पाते, उसे करने का सुनहरा अवसर प्रदान करता है। यह आभासी दुस्साहस रोमांचित ज़रूर करता है, मगर इस आभासी दुस्साहस का एक छोर कई बार आभासी बेईमानी की श्रेणी में आने लगता है। कई बार सुखी दाम्पत्य में दरार पैदा होने लगती है जब पति पत्नी एक-दूसरे की तरफ़ पीठ किए फोन पर चिपके रहते हैं। दोनों अपना-अपना पासवर्ड गोपनीय रखते हैं। कुछ लोग इसे ‘साइबर चीटिंग’ कहने लगे हैं। क्या ‘चीटिंग’ और ‘साइबर चीटिंग’ में कोई अन्तर है। बेईमानी तो बेईमानी है, चाहे वह आभासी ही क्यों न हो। दोनों मजबूर हैं क्योंकि दोनों को आभासी मित्र से अधिक सुकून मिलता है, वास्तविक साथी से कहीं ज़्यादा। इसे बढ़ावा देना कई बार बहुत महँगा पड़ता है। साइबर बेइमानी के कारण तलाक़ भी होने लगे हैं। आधुनिक जीवन-शैली के ये सब अन्तर्विरोध हैं।
दस्त़खत: सम्पादकीय नया ज्ञानोदय, जनवरी 2014
1 टिप्पणियाँ
स्वयं को छिपाये रख प्रेम पाने का उपक्रम अधूरा ही रह जाता है।
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