शादी के पहले - प्राण शर्मा की एक छोटी सी कहानी | Kahani - Pran Sharma

शादी के पहले

प्राण शर्मा 


- सुसन, मैं तुमसे बेहद प्यार करता हूँ।

- मैं भी तुमसे बेहद प्यार करती हूँ

- हमें एक दूसरे से मिलते हुए दो साल हो गये हैं। हो गये न?

- हाँ, हमें एक दूसरे से मिलते हुए दो साल हो गये हैं समय का पंछी कितना तेज़ उड़ता है !

- समय का पंछी बहुत तेज़ उड़ता है लेकिन लगता है कि हमारा मिलना दो सालों से नहीं , कई सालों से है

 शायद जन्मों - जन्मों से है।

- तुम सही कहते हो , हमारा मिलना जन्मों - जन्मों से है।

- क्या तुम पिछ्ला जन्म मानती हो ?

- अब मानती हूँ , तुम्हारा प्यार पा कर। भारतीयों के प्यार में त्याग होता है। हमारे पड़ोस में भारतीय परिवार है। पति और पत्नी एक दूसरे पर जान देते हैं। कितना प्यार है उन दोनों में !

- क्या तुम मुझे उतना प्यार दोगी ?

- ज़रूर दूँगी। और तुम ?

- ज़रूर दूँगा। क्या तुम नहीं सोचती कि अब हमें शादी के बंधन में बंध जाना चाहिए ?

- मैं भी वही सोचती हूँ जो तुम सोचते हो।

- मैं क्या सोचता हूँ ?

- यही कि हमें अब शादी के बंधन में बंध जाना चाहिए।

- बहुत खूब ! ये हुई न दिल से दिल की बात। कब तक हम यूँ ही बाहर बागों या क्लबों में मिलते और एक दूसरे को गले से लगाते रहेंगे ?

- सही कहा है तुमने।

- मैं घर पहुँचते ही माँ - बाप से मशवरा करूँगा।

- मैं भी अपने माँ - बाप से मशवरा करूँगी।।

- जुलाई की छुट्टियों में हमारी शादी हो जानी चाहिए। तुम्हारा क्या खयाल है ?

- ठीक है , जुलाई की छुट्टियों में शादी ठीक रहेगी।

- कौन सी तारीख तय करें ?

- ऐसी तारीख हो जब रात को पूरा चाँद हो।

- पूरा चाँद ही होगा।

- तुम भी तो मेरे चाँद हो। उस रात को दो - दो चाँद खिलेंगे।

- सच ?

- सच।

 सुन कर सोनू मचल उठा। बढ़ कर उसने सुसन के दोनों गालों का प्यार ले लिया।

- एक बात कहूँ ?

- कहो।

- क्या ये मुमकिन है कि हमारी शादी हिन्दू रिवाज के अनुसार हो, हिन्दू मंदिर में ?

- हिन्दू रिवाज के अनुसार हिन्दू मंदिर में क्यों ?

- मैं अपने को हिन्दू दुल्हन की तरह देखना चाहती हूँ , हिन्दू मंदिर में ही।

- तुम्हारी बात सर - माथे पर।

- क्या तुम सेहरा अपने सर पर बाँधोगे ?

- बाँधूँगा , हिन्दू हूँ। सेहरा बाँधने में शर्म कैसी ?

- मैं साड़ी में कैसी लगूँगी ?

- एक अप्सरा थी , मेनका। क्या उसका नाम सुना है ?

- सुना है।

- उस जैसी लगोगी।

- सच ?

- बिलकुल सच।

 सुसन झूम उठी। उसने सोनू को अपनी बाँहों में भर लिया।

 सोनू ने अब एक नटखट प्रेमी की तरह उससे छेड़खानी करनी शुरू कर दी। बड़े नाटकीय अंदाज़ में बोला - सुसन , तुम्हें याद है कि पहली बार प्यार का इज़हार किसने किया था ? तुमने या मैंने ?

- याद है , अब तक याद है। क्या तुम्हें याद नहीं ?

- नहीं।

- झूठे।

- मुझे याद नहीं रहा।

- इतनी जल्दी भूल गये , भुलक्कड़ हो क्या ?

- नहीं तो।

- शादी के दो साल बाद तुम तो शादी की तारीख भी भूल जाओगे। मुझे भी भूल जाओगे और बच्चे हुए तो उन्हें भी भूल जाओगे।

- ऐसा तो कभी होगा नहीं।

- खाओ मेरी कसम।

- तुम्हारी कसम।

- अरे बुद्धू , प्यार का इज़हार तुमने किया था पहली बार। लड़की कभी पहले प्यार का इज़हार नहीं करती है , लड़का करता है।

- हाँ , याद आया। प्यार का इज़हार मैंने ही किया था। मैक्डोनल्ड में तुम सहेलियों की साथ आयी थीं , आइसक्रीम खाने के लिए। मेरी चैयर के सामने ही तुम बैठी थीं। बैठी थीं न तुम ?

- हां , सामने ही बैठी थी।

- आइसक्रीम खाते हुए तुम बहुत सुन्दर लग रही थीं , बहुत ही सुन्दर।

- तुम भी तो सुन्दर लग रहे थे , चाय पीते हुए

- क्या …. अब …. सुन्दर …. नहीं लग ….

 सोनू आगे के शब्द पूरे नहीं कर सका। मूर्छित हो कर वह सुसन पर गिर गया। उसने सोनू का ये नाटक समझा लेकिन बार - बार हिलाने पर भी वह नहीं हिल पाया। सुसन घबरा उठी।

 बोलते - बोलते सोनू को क्या हो गया है ?

 उसने अपने आपको भीगा हुआ पाया। सोनू पसीने से तरबतर था। उसने बोलने की कोशिश की लेकिन शब्द उसके मुँह में दबे के दबे रह गये।

 सुसन अब पूरी की पूरी कांप उठी।

 उसने इधर - उधर देखा , सहायता के लिए गुहार लगायी।

 थोड़े फासले पर बैठे गोरे लोग दौड़े आये। सभी ने एम्बुलैंस के लिए मोबाइल कर दिया। एम्बुलैंस को आते देर नहीं लगी।

 अस्पताल में डॉक्टर ने सोनू को अच्छी तरह से चेक अप किया। उसे मधु रोग था। उसे हाइपोग्लेमिया ( चीनी का कम हो जाना ) का आघात हुआ था। फ़ौरन उसे ग्लूकोस दिया गया। पूरी तरह होश में आते - आते उसे आधा घंटा लग गया।

 डॉक्टर ने उससे पूछा - क्या पहले भी तुम मूर्छित हुए थे ? क्या तुम्हारे घर - परिवार में किसीको मधुरोग है ?

 जवाब में उसने कहा था - जी , कभी - कभी मैंने बेहोशी महसूस की , वह बेहोशी बड़ी हल्की होती थी। पेट में वायु ही समझता रहा था मैं। मेरे घर - परिवार में किसीको मधुरोग नहीं है

 अस्पताल के डॉक्टर सोनू को अपने डॉक्टर से मिलने के लिए कहा और चौकस किया - कभी किसी बीमारी को नज़र अंदाज़ नहीं करो। हाइपोग्लेकेमिया के आघात से शरीर में चीनी की कमी हो जाती है। चीनी की कमी से व्यक्ति कहीं भी मूर्छित हो सकता है। घंटे दो घंटे के बाद कुछ न कुछ खाते रहना चाहिए। अब तुम्हें सावधान रहने की ज़रूरत है।

 इस रोग से आँखों की ज्योति जा सकती है , बहरापन आ सकता है और ह्रदयघात हो सकता है।

सुसन सुन सुन कर विचलित हुयी जा रही थी।

घर पहुँचते ही उसने फफक - फफक कर रोना शुरू कर दिया।

सारी रात वह सो नहीं सकी। भयानक विचारों में वह खोयी रही। कभी उसे लगा कि सोनू अंधा हो गया है , कभी उसे लगा कि वह बहरा हो गया है और कभी उसे लगा कि ह्रदय आघात से उसकी मृत्यु हो गयी है।

 इस उम्र में उसे ऐसी घातक बीमारी ! उफ़, मेरा जीना तो बड़ा कठिन हो जाएगा।

 सुबह होते ही थकी - माँदी और उलझी - उलझी सुसन सोनू को ईमेल किये बिना नहीं रह सकी - भूल जाओ कि मैं तुमसे शादी करूँगी। मैं नहीं चाहती कि हमारी संतान भी उसी हाल में गुज़रे जिस हाल में मैंने तुमको कल देखा। मेरा तुमसे शादी ना करने का ये फैसला अटल है। सोचो , मुझे कोई घातक रोग होता तो तुम भी मेरे जैसा फैसला करते।

 मुझसे मिलने की कोशिश नहीं करना। समझना कि हम नदी के दो किनारे हैं जो कभी मिल नहीं सकते।

सोनू सुसन का ये फैसला पढ़ कर भौंचक्का हो गया। उसे यक़ीन नहीं हुआ कि वह ऐसा आक्रामक निर्णय कर सकती है।

उफ़ , ये क्या हो गया है उसे ? मेरे लिए अपने धर्म को तिलांजली देने वाली ऐसा कर ही नहीं सकती है। अवश्य ही किसीने उसे उकसाया है। वह चिल्ला उठा - नहीं सुसन , ऐसा मत करो। अपनी कसमें याद करो।

 तत्काल ही सोनू ने सुसन को मोबाइल किया। एक बार , दो बार और तीन बार। कोई उत्तर नहीं।

 वह परेशान हो गया। उसका दिमाग चक्कर खा उठा। निराशा की अवस्था में उसने ज़ोर से मोबाइल फर्श पर पटक दिया।

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12 टिप्पणियाँ

  1. कभी कभी न चाहते हुये कुछ अलग निर्णय लेने पड जाते हैं ।

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  2. प्रिय भाई प्राण शर्मा जी आपकी कहानी ने मन को गहरे छू लिया,मैं सोचता हूँ कि हमारी संस्कृति आज भी गहरी है जहां जुड़ने के उपरान्त विछोह की ओर कदम जाते दिखाई नहीं देते बल्कि वहां त्याग नहीं जुड़ाव की भावना अपने आँचल में लेकर जिन्दगी को नए आयाम से जोड़ देती है,बधाई.

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  3. प्रिय भाई प्राण शर्मा जी आपकी कहानी ने मन को गहरे छू लिया,मैं सोचता हूँ कि हमारी संस्कृति आज भी गहरी है जहां जुड़ने के उपरान्त विछोह की ओर कदम जाते दिखाई नहीं देते बल्कि वहां त्याग नहीं जुड़ाव की भावना अपने आँचल में लेकर जिन्दगी को नए आयाम से जोड़ देती है,बधाई.

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  4. सत्य के सामना हर किसी को करना पड़ता है ... पर उसकी कठोरता को समझ कर निर्णय भी हो सकता है वो भी प्रेम का ... सोचा न था ...सोचने को मजबूर करती कहानी है ...

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  5. वक्त का तकाजा है और आपकी कलम का पैनापन...याद रहेगी कहानी बहुत दिनों तक!!

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  6. प्राण जी,

    पता नहीं क्यों मुझे लगता है कि सोनू सूसन को छोड़ने का फैसला नहीं करता, शायद यह मेरी भारतीय सोच है |
    आपने इस लघु कथा के माध्यम से दो मनोवृत्तियों को सहज रूप से प्रस्तुत किया है | सुन्दर कहानी | बधाई आपको |

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  7. कहानी के शीर्षक से ये आभास मिल जाता है कि शादी के पहले वाला प्यार शादी के बाद नहीं रहने वाला है।बीमारी इतनी ख़तरनाक भी नहीं थी उसका कुशल प्रबंधन न हो सके, आपने नायिका का कोई अंतर्द्वन्द दिखाये बिना उसका निर्णय बता दिया। शायद ये प्यार प्यार था ही नहीं। आम तौर पर ऐसी परिस्थिति मे नायक बलिदान करके अपने प्यार से नायिका को मुक्त करता है... यही अपेक्षा की जाती है। नायिका ने अपने रोगी प्रेमी को छोड़ दिया वो प्रैक्टिकल हो गई या स्वार्थी...यही सवाल है।

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  8. प्राण साहेब , क्या कहूँ , आपकी कहानी ऐसी पढ़ी , जैसे कोई फिल्म सी चल रही हो . इस बार आपके शब्दों में मौजूद जादू छा सा गया . मुझे दिल को छो गयी आपकी ये छोटी सी लेकिन ज़िन्दगी में मौजूद practicality को दिखाती हुई. आपका आभार इतनी अच्छी कथा को पढवाने के लिए. देरी से आने के लिए माफ़ी . हमेशा की तरह आपका विजय

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  9. प्राण साहेब , क्या कहूँ , आपकी कहानी ऐसी पढ़ी , जैसे कोई फिल्म सी चल रही हो . इस बार आपके शब्दों में मौजूद जादू छा सा गया . मुझे दिल को छो गयी आपकी ये छोटी सी लेकिन ज़िन्दगी में मौजूद practicality को दिखाती हुई. आपका आभार इतनी अच्छी कथा को पढवाने के लिए. देरी से आने के लिए माफ़ी . हमेशा की तरह आपका विजय

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  10. बहुत अच्छी लगी कहानी. सुसन ने अलग होने का फैसला लिया क्योंकि उसकी संस्कृति में दूसरों की समस्या से अलग हो जाना सहूलियत भरा है. हालांकि मधुमेह की बीमारी ऐसी नहीं जिससे उसने ऐसा निर्णय लिया. लेकिन सोनू के लिए सबक है कि वह खुद को पहचाने, प्रेम और आकर्षण को समझे. अच्छी कहानी के लिए बधाई.

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  11. बहुत अच्छी लगी कहानी. सुसन ने अलग होने का फैसला लिया क्योंकि उसकी संस्कृति में दूसरों की समस्या से अलग हो जाना सहूलियत भरा है. हालांकि मधुमेह की बीमारी ऐसी नहीं जिससे उसने ऐसा निर्णय लिया. लेकिन सोनू के लिए सबक है कि वह खुद को पहचाने, प्रेम और आकर्षण को समझे. अच्छी कहानी के लिए बधाई.

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