कविता: मुबारक हो दामोदर भाई - विमल कुमार | Mubarak ho Damodar Bhai, Vimal Kumar's Poem


विमल कुमार
यूनीवार्ता, रफ़ी मार्ग, नई दिल्ली-11001,
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निवास: सेक्टर-13/1016, वसुंधरा, गाजियाबाद
ई-मेल- vimalchorpuran@gmail.com

मुबारक हो दामोदर भाई !
तुम्हे मुबारक हो..

इस तख्तो ताज के लिए
तुम्हे मुबारक हो
इस रंगों साज़ के लिए
तुम पर उन लोगों के गुमां ओ नाज़ के लिए
भी मुबारक हो

अब तो तुम नहीं रहे किसी बात के गुनहगार
अब भला कौन कहेगा कि तुम करोगे इस मुल्क को शर्मशार
अब सवाल ही कहाँ उठता है
कि तुमने किया था किसी से साथ कोई सौदा या व्यापार

मुबारक हो दामोदर भाई
मुबारक हो.........

इस जंग में जीत के लिए
दुनिया की इस रीत के लिए

कितनी शानदार थी तुम्हारी पैकेजिंग
और उस से भी लाजवाब मार्केटिंग
और उस से भी अधिक नायाब तुम्हारी ब्रांडिंग

इस उम्दा फंडिंग के लिए भी मुबारकबाद

तुम वाकई मुबारकबाद के हक़दार हो ही
अब तो इसी तरह ही जीती जायेगी लडाई
सचाई और नैतिकता से कोसों दूर ....

इसलिए मुबारकबाद देता हूँ तुम्हे दामोदर भाई
जितने दाग थे तुम पर
अब सब धुल गए
हमारे भी कई लोग जो तुम से मिल गए
फूल तुम्हारे जो चारो तरफ खिल गए

तुम्हारी इस रहस्यमयी और कुटिल मुस्कान के लिए भी मुबारक हो
इस अनोखी सतरंगी उड़ान के लिए भी मुबारक हो
और इस प्रायोजित अभियान के लिए भी मुबारक हो

दमोदर भाई
मुबारक बाद देता हूँ
दाढी में छिपे तुम्हारे तिनके के लिए
कंधे पर लटके २० साल पुराने गम्छे के लिए
माथे पर लगे रोज़ नए टीकों के लिए

ये अलग बात है
कि जब तुमको देखता हूँ तो कुछ जलने की गंध आने लगती है
तुम्हारी आवाज़ सुनता हूँ
तो किसी बच्चे के रोने की आवाज़ सुनायी पड़ती है
दामोदार भाई
फिर भी तुम्हे मुबारक हो...

तुम तो हर फन
में माहिर हो
सपनो को बेचने में उस्ताद
पर हमे तो हमारी आत्माएं ही रोक देती हैं

जाहिर है ये राजनीति है
जो इतने सालों में अब एक शतरंज बन गयी है
इस खेल में कभी तुम मात होते हो
कभी हम मात होते है दामोदर भाई

तुम्हे इस लंगड़ा कर चलते
भीतर से भूख की आग में जलते
हर रात कराहते,किसी को मुक्ति के लिए पुकारते
इस मुल्क के सुन्दर आगाज़ के लिएतुम्हे मुबारक हो....


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