तीन ख़बरों की एक कहानी! - क़मर वहीद नक़वी Qamar Waheed Naqvi - One Story from Three News

राग देश
क्या विकास का मतलब सिर्फ़ जीडीपी, सड़क, लक़दक़ कारें, मेट्रो और शॉपिंग माल ही होता है? यह सब है, लेकिन सोच विकसित नहीं, तो सभ्यता के पायदान पर आप बहुत नीचे, बहुत पिछड़े ही पाये जायेंगे!


तीन ख़बरों की एक कहानी!

क़मर वहीद नक़वी


तीन ख़बरें! तीन हादसे! एक देश! और देश का एक सच! तीन पहलू! देश के लिए न ये हादसे नये हैं और न इन हादसों के आइनों में दिखनेवाला सच! इस बार फ़र्क़ यह है कि यह तीन ख़बरें लगभग एक साथ, एक-एक करके आयी हैं. ज़रा इनको एक साथ रख कर देखिए कि कैसी तसवीर बनती है? और क्या इस तस्वीर को बदले बग़ैर विकास का कोई ख़ाका बन सकता है? क्या विकास का मतलब सिर्फ़ जीडीपी, सड़क, लक़दक़ कारें, मेट्रो और शॉपिंग माल ही होता है? यह सब है, लेकिन सोच विकसित नहीं, तो सभ्यता के पायदान पर आप बहुत नीचे, बहुत पिछड़े ही पाये जायेंगे!

पहली ख़बर. दिल्ली में सड़क हादसे में महाराष्ट्र बीजेपी के दिग्गज नेता और केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गोपीनाथ मुंडे का निधन. दुर्घटनाओं पर किसी का वश नहीं हैं. कभी भी हो सकती हैं. लेकिन जिस दुर्घटना ने मुंडे की जान ले ली, उसका एक ही कारण था. बहुत छोटा! इतना छोटा कि उसे न तो दिल्ली के लोग कुछ मानते हैं और न ही पुलिस! किसी एक ड्राइवर ने लाल बत्ती की परवाह नहीं की! क्यों? इसलिए कि क्या होगा, अगर बत्ती पार कर गये? ज़्यादा से ज़्यादा सौ रुपये का जुरमाना! होते क्या हैं सौ रुपये! अव्वल तो पकड़े ही नहीं जायेंगे और अगर ग़लती से पकड़ भी लिये गये तो सौ रुपये फेंकेंगे और निकल जायेंगे! और जब चौराहे पर चालान काटनेवाला पुलिस का बन्दा ही न हो, तब काहे की लालबत्ती! हालत यह है कि जो इक्का-दुक्का लोग ट्रैफ़िक के नियम मान कर चलते हैं, उन्हें लोग बेवक़ूफ़ के ख़िताब से नवाज़ते हैं! दिल्ली और बड़े शहरों में तो तब भी केवल दिन के समय ट्रैफ़िक पुलिस की मौजूदगी से लोग थोड़ा-बहुत क़ायदे से चल लेते हैं, लेकिन देश के बाक़ी हिस्सों में तो न दिन, न रात, ट्रैफ़िक नियम नाम की कोई चीज़ ही नहीं है! क्योंकि नियम मानना और अनुशासित रहना शायद हमारे संस्कारों में नहीं है. वैसे बड़ा संस्कारी है यह देश!

अब नितिन गडकरी जी ने एलान किया है कि वह ट्रैफ़िक के कड़े क़ानून बनायेंगे, अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड, जर्मनी, जापान और सिंगापुर के क़ानूनों को देखा जा रहा है, हमारे क़ानून अब उनसे नरम नहीं होंगे! काश, यह सद्बुद्धि एक मंत्री की जान गँवाये बग़ैर ही आ गयी होती! लेकिन कैसे आती! जब तक कोई बड़ी घटना न हो, तब तक किसी कान पर कोई जूँ नहीं रेंगती! चलिए देर आयद, दुरुस्त आयद! क़ानून तो बन जायेगा, लेकिन पालन कैसे होगा? कौन करायेगा? कौन करेगा? 

कहीं देख रहा था, किसी ने दिलचस्प टिप्पणी की है कि अगर भारत में लोग केवल ट्रैफ़िक नियम मानने लग जायें तो देश अपने आप ही बहुत विकास कर जायेगा! ठीक यही बात फ़िलीपीन्स के एक वक़ील और राजनेता एलेक्ज़ेंडर लैक्सन ने अपनी चर्चित किताब '12 लिटिल थिंग एवरी फ़िलिपिनो कैन डू टू हेल्प अावर कंट्री' में लिखी है. फ़िलीपीन्स को बुलन्दी पर पहुँचाने के लिए उन्होंने 'देशभक्ति' के जो 12 सूत्र सुझाये हैं, उनमें पहला ही सूत्र ट्रैफ़िक नियमों के बारे में है. वह कहते हैं कि 'ट्रैफ़िक नियम देश के सबसे सामान्य बुनियादी नियमों में से हैं और अगर हर फ़िलीपीनी इन्हें मानने लगे तो देश में कम से कम एक बुनियादी स्तर का राष्ट्रीय अनुशासन हम देखेंगे और अनुशासन की यह संस्कृति किसी भी राष्ट्र की नियति-नियन्ता होती है!' तो गडकरी जी, कड़ा क़ानून बनाइए, अच्छी बात है, लेकिन उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है कि लोगों में यह ज़िम्मेदारी पैदा की जाये कि वह क़ानून मानने लगें!

दूसरी ख़बर. बदायूँ में बलात्कार के बाद दो बहनों की फाँसी लटका कर हत्या! रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना है यह. लेकिन उससे भी ज़्यादा भयानक है वह बेहयाई की बातें जो अखिलेश-मुलायम परिवार की तरफ़ से कही जा रही हैं. मुलायम तो पहले ही अपनी चुनाव सभाओं में यह 'मासूम' तर्क दे चुके हैं कि 'लड़कों से बलात्कार ग़लती से हो जाता है.' अब मुलायम जी कह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में 'डर' लगता है तो जाकर दिल्ली में रहो! उनके पुत्र जी कह रहे हैं कि बलात्कार कोई ख़ाली उत्तर प्रदेश में ही थोड़े ही होता है. गूगल कर के देख लो, कहाँ-कहाँ बलात्कार होता है, उस पर क्यों नहीं लिखते? इतनी संवेदनहीनता, इतनी ग़ैर-ज़िम्मेदारी और इतनी बेशर्मी! सबको मालूम है कि उत्तर प्रदेश में तो अब शायद क़ानून नाम की कोई चीज़ रह ही नहीं गयी है. लेकिन मुख्यमंत्री और उनके परिवार को कोई परवाह नहीं! हैरत है कि चुनावों में हुई करारी हार के बावजूद कोई परवाह नहीं! लेकिन इस मामले में वह अकेले नहीं हैं. तमाम पार्टियों के राजनेताओं का यही हाल है! शिवराज सिंह चौहान के 'सुशासन' वाला मध्य प्रदेश बलात्कार के मामले में देश में पहले नम्बर पर है! वहाँ के गृह मंत्री बाबू लाल ग़ौर कहते हैं कि बलात्कार तो भगवान ही रोक सकता है क्योंकि बलात्कारी क्या पहले से बता कर जाता है कि बलात्कार करने जा रहा है? तो सरकार कैसे रोक सकती है बलात्कार? तरस आता है? आप बतायें कि आपने रोकने के लिए क्या क़दम उठाये? आपकी पुलिस कितनी चुस्त है? रिपोर्ट दर्ज होती है? जाँच मुस्तैदी से होती है? अपराधी पकड़े जाते हैं? मुक़दमे कितनी जल्दी निबटते हैं? कितने मामलों में सज़ा हो पाती है? और सबसे महत्त्वपूर्ण यह कि बलात्कार के ख़िलाफ़ समाज में चेतना फैलाने के लिए आपने कोई अभियान चलाया क्या? स्कूलों-कॉलेजों में युवाओं के बीच जा कर बलात्कार के विरुद्ध कोई माहौल बनाने की कोशिश की? जवाब हाँ हो तो बताइएगा!

तीसरी ख़बर. पुणे में फ़ेसबुक की फ़र्ज़ी पोस्ट के ज़रिये दंगा भड़काने का षड्यंत्र और इसी के नतीजे में एक मुसलिम युवक की हत्या. पकड़े गये लोग 'हिन्दू राष्ट्र सेना' के बताये जाते हैं. ख़बर है कि हत्या के बाद इन्होंने एसएमएस किया कि 'पहला विकेट गया!' लोकसभा चुनाव के पहले उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर में दंगे भड़के थे. बाद में 'अपमान का बदला' लेने के लिए वोट देने की अपीलें जारी हुई थीं. दंगे भड़काने के एक आरोपी अब केन्द्र में मंत्री हैं! महाराष्ट्र में कुछ महीनों बाद विधानसभा चुनाव होने हैं. कहीं उत्तर प्रदेश की स्क्रिप्ट महाराष्ट्र में दोहराने की तैयारी तो नहीं! या यह तीस साल बाद संघ के 'परम वैभव' के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए यात्रा की शुरुआत है? बात-बात पर ट्वीट करने वाले प्रधानमंत्री जी का शुक्रवार को इन पंक्तियों के लिखे जाने तक भी 'हिन्दू राष्ट्र सेना' को फटकारते हुए कोई ट्वीट नहीं आया? थोड़ी हैरानी हुई! इसका सन्देश क्या है?

तो ये तीन ख़बरों की कहानी थी! एक क़ानून न मानने की, दूसरी क़ानून को लागू न कराने की और तीसरी क़ानून की आँखें फेर लेने की! तो क़ानून तो अब भी बहुत हैं, मन चाहे जितने और बना भी लीजिए, लेकिन क्या हम दिल से, ईमानदारी से, साफ़गोई से, पूरी निष्ठा से क़ानून का सम्मान करने का संकल्प लेंगे, उसे न ख़ुद तोड़ेंगे, न किसी को तोड़ने देंगे, बिना किसी भेदभाव के क़ानून को लागू करेंगे! समस्या की जड़ यहाँ है. और सभ्य विकास की सीढ़ियों का रास्ता क़ानून की इन्हीं गलियों से हो कर जाता है! तय आपको करना है कि विकास का कौन-सा माडल आपको सुहाता है!

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

काली-पीली सरसों | ज्योति श्रीवास्तव की हिंदी कहानी | Shabdankan
बारहमासा | लोक जीवन और ऋतु गीतों की कविताएं – डॉ. सोनी पाण्डेय
चित्तकोबरा क्या है? पढ़िए मृदुला गर्ग के उपन्यास का अंश - कुछ क्षण अँधेरा और पल सकता है | Chitkobra Upanyas - Mridula Garg
मैत्रेयी पुष्पा की कहानियाँ — 'पगला गई है भागवती!...'
Harvard, Columbia, Yale, Stanford, Tufts and other US university student & alumni STATEMENT ON POLICE BRUTALITY ON UNIVERSITY CAMPUSES
Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
 प्रेमचंद के फटे जूते — हरिशंकर परसाई Premchand ke phate joote hindi premchand ki kahani
तू तौ वहां रह्यौ ऐ, कहानी सुनाय सकै जामिआ की — अशोक चक्रधर | #जामिया
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
मन्नू भंडारी की कहानी — 'रानी माँ का चबूतरा' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Rani Maa ka Chabutra'