हिंदी में मासकॉम - भरत तिवारी / Mass Comm in Hindi - Bharat Tiwari

हिंदी में मासकॉम 

- भरत तिवारी


‘हिंदी मीडिया’, ‘हिंदी और मीडिया’, ‘मीडिया में हिंदी’... इस ‘मीडिया’ शब्द को जब-जब ‘हिंदी’ के साथ लिखा देखता हूँ, तब और तब भी जब ऐसा खुद लिखना पड़ रहा हो, जैसे कि अभी; एक सवाल दिमाग में आता है और संभव है कि आपके दिमाग में भी ये सवाल आता हो - आखिर हम हिंदी के विकास की बात कैसे और किस मुंह से करें जब हम आज तक ‘मीडिया’ (अंग्रेजी का शब्द) से ही पीछा नहीं छुड़ा पाए हैं?

सोचिएगा!!! कोशिश करके देखता हूँ और ‘संचार माध्यम’ का प्रयोग करता हूँ, शायद कुछ बात बने। एक और शब्द है- ‘मासकॉम’ मुझे तो कभी ये समझ ही नहीं आया। सवाल- क्या कर रहे हो आजकल? जवाब- मासकॉम! सवाल - अंग्रेजी मीडिया ने तुम्हें भी आकर्षित कर ही लिया? जवाब- अरे नहीं, कतई नहीं, हिंदी में मासकॉम कर रहा हूँ!!! अब इसका क्या किया जाए? सोचिएगा !!! आगे बढ़ता हूँ क्योंकि यहां मैं अंग्रेजी की बुराई या हिंदी की वकालत नहीं करना चाह रहा हूँ, सिर्फ इतनी पड़ताल की कोशिश है कि हमारे ‘संचार माध्यमों’ ने क्या कहीं कुछ छोड़ा है या फ़िर हिंदी का पूरा ही बेड़ागर्क कर दिया है।

बात अगर ‘टेलीविज़न’ से शुरू की जाए तो यहां भी सबसे पहले अंग्रेजी (टेलीविज़न, टीवी) ही आती है। खैर... टीवी पर हिंदी के लिए अच्छा काम भी हो रहा है लेकिन हमारे अंग्रेजी-मोह को बाज़ार बहुत अच्छे से जानता है और यही कारण है कि हम मुफ्त में दिखाए जाने वाले हिंदी कार्यक्रमों के बजाय, उन कार्यक्रमों को देखना पसंद करते हैं जिनके लिए हमसे पैसा लिया जाता है। अब ये हास्यास्पद स्थिति है, लेकिन बरक़रार है। और ये तब तक बनी रहेगी जब तक कि ‘दूरदर्शन’ अपनी महत्ता को नहीं समझेगा, आखिर क्यों देश का ऐसा टीवी ‘चैनल’ जिसकी पहुंच सबसे अधिक है, दोयम दर्जे के कार्यक्रम दिखाता है? कहीं ऐसा जानबूझकर तो नहीं हो रहा? खैर इससे नहीं फर्क पड़ता कि ऐसा क्यों हो रहा है। फ़र्क तब आएगा जब ऐसा होना रुकेगा, जब सख्त निर्देश होंगे कि “हिंदी मजाक की नहीं बल्कि न सिर्फ भारत की प्रथम राजभाषा और सबसे अधिक बोली/समझी जाने वाली भाषा है, हिंदी चीनी के बाद विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा भी है।

हिंदी से हो रहे खिलवाड़ को धीरे-धीरे नहीं वरन तुरंत रोकने की कोशिश होनी ज़रूरी है। रेडियो (अंग्रेजी शब्द) की तो हालत और भी ख़राब है, अभी जून 2014 में ही प्रसार भारती ने तीस साल पुराने कार्यक्रम ‘युवावाणी’ जो की जम्मू, श्रीनगर, कोलकाता और दिल्ली से प्रसारित होता है, को बंद करने का निर्णय लिया है। अब इसका कारण पढ़कर ये नहीं समझ आया कि हंसा जाए या कि.... प्रसार भारती का कहना है कि ये कार्यक्रम आर्थिक रूप से लाभप्रद नहीं है... अर्थात हिंदी का कोई कार्यक्रम इसलिए बंद किया जा रहा है क्योंकि उसको बाज़ार से विज्ञापन नहीं मिल रहे, तो साहब आने वाले दिनों में तो आपको हिंदी के सारे ही कार्यक्रम बंद करने पड़ेंगे? या फिर कार्यक्रम की रोचकता, गुणवत्ता उच्च श्रेणी की बनाई जाए ताकि लोग उसे सुनें... बाज़ार खुद ब खुद आपके पास आएगा, आप बनिए तो इस लायक।

रेडियो पर हिंदी भला कैसे आगे बढ़े, सरकारी ऍफ़एम रेडियो लगाने पर सुनाई पड़ता है “एआईआर ऍफ़एम रेडियो .... “ या गोल्ड या रेनबो !!! ये कौन सी दिशा है जिस पर हमारा सबसे सशक्त माध्यम जा रहा है? हिंदी की ऐसी दुर्दशा ना कीजिए। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही लगातार ऐसी खबरें आ रही हैं कि हिंदी के दिन बहुरेंगे, ख़ुशी की बात है जो ऐसा होता है।

इधर बीच टीवी पर अंग्रेजी समाचार चैनलों में जब मोदीजी ने हिंदी में साक्षात्कार दिए तो बहुत अच्छा लगा लेकिन जो बात अखरी वो ये कि हिंदी जानने के बावजूद साक्षात्कारकर्ता की भाषा हिंगलिश रही, ऐसा लगा कि वो अपने अंग्रेजी-भाषी दर्शकों को ये सन्देश देना चाह रहा हो कि “मुझे हिंदी नहीं आती”, ये दुखद है लेकिन ध्यान से देखें तो संचार-माध्यमों में हिंदी के पिछड़ने की समस्या का कारण भी यहीं नज़र आता है---- जब किसी देश का नागरिक ‘खुश हो कर’ ऐसा दिखाए कि उसे वहां की भाषा ही नहीं आती और उसे इस बात का दुःख नहीं बल्कि गर्व जैसा कुछ हो... तो भला भाषा का उत्थान कैसे संभव है? जब तक हमें, हिंदी को न बोल पाना, शर्म की बात नहीं लगती; हिंदी ना लिख सकने पर हम गौरवान्वित महसूस करने के बजाय शर्मिंदा नहीं होते, संचार-माध्यमों के रुख में बदलाव संभव नहीं दिखता।

भरत तिवारी

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story: कोई रिश्ता ना होगा तब — नीलिमा शर्मा की कहानी
विडियो में कविता: कौन जो बतलाये सच  — गिरधर राठी
इरफ़ान ख़ान, गहरी आंखों और समंदर-सी प्रतिभा वाला कलाकार  — यूनुस ख़ान
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
परिन्दों का लौटना: उर्मिला शिरीष की भावुक प्रेम कहानी 2025
Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
रेणु हुसैन की 5 गज़लें और परिचय: प्रेम और संवेदना की शायरी | Shabdankan
एक पेड़ की मौत: अलका सरावगी की हिंदी कहानी | 2025 पर्यावरण चेतना
द ग्रेट कंचना सर्कस: मृदुला गर्ग की भूमिका - विश्वास पाटील की साहसिक कथा