विज्ञापन लोड हो रहा है...
कृपया एडब्लॉक बंद करें। हमारा कंटेंट मुफ्त रखने के लिए विज्ञापन ज़रूरी हैं।

कहानी: लाल डोरा - महेन्द्र भीष्म


कहानी

लाल डोरा

महेन्द्र भीष्म


लोगों में दहशत व्याप्त थी । यह दहशत किसी प्राकृतिक आपदा की पूर्व चेतावनी वाली नहीं थी जिसे मौसम वैज्ञानिक रेडियो, टेलीविजन के माध्यम से आमजन की जान–माल की सलामती के लिए दिया करते हैं ।

विजन 2021 के तहत देहली महानगर के व्यवस्थापन एवं सुन्दरीकरण के लिए बनाई गयी महायोजना के अंतर्गत शहर की मुख्य सड़कें चैड़ी की जा रही थीं । आसपास के गांवों को एम०सी०डी० यानी म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन ऑफ डेलही की परिधि में विशेषज्ञ समिति लाल डोरा की अनुशंसा से जोड़ा जा रहा था । मजदूर, ठेकेदार, इंजीनियर आक्रमणकारी फौज की तरह कुदाल, बेलचा, हथौड़ा, फावड़ा हाथों में लिए और पैटन टैंकों व तोपों की भांति बुलडोजर, जे०सी०बी० के साथ शहर की मुख्य सड़क पर आ डटे थे । सड़क पर लोगों का हुजूम उतर आया था । चारों ओर शोरगुल बढ़ रहा था ।
Hindi, hindi kahani online, Kahani, lucknow, Mahendra Bhishma, कहानी, महेन्द्र भीष्म, लखनऊ

महेन्द्र भीष्म

संयुक्त रजिस्ट्रार, प्रधान पीठ सचिव उच्च न्यायालय इलाहाबाद, लखनऊ पीठ, लखनऊ

संपर्क: +Mahendra Bhishma
ईमेल: mahendrabhishma@gmail.com
मोबाईल: +91-8004905043, +91-9455121443

स्थानीय लोगों के सम्भावित विरोध को मद्देनजर रखते हुए शान्ति व्यवस्था भंग न हो, इसलिए पर्याप्त पुलिस बल की तैनाती भी प्रशासन द्वारा कर दी गयी थी ।

यह मानव स्वभाव ही है कि परिजन की हत्या से भी बढ़कर दारुण दु:ख, क्लेश सम्पत्ति के अपहरण या नष्ट होने पर होता है । वर्षों की जमा पूंजी जोड़कर बनाई दुकान या मकान जब ताश के पत्तों की तरह ढहने के करीब हो, तब उसके स्वामी की क्या हालत हो सकती है, यह तो कोई भुक्तभोगी ही महसूस कर सकता है ।

सड़क के चैड़ीकरण में कइयों का तो पूरा सूपड़ा ही साफ हो रहा था । नीचे दुकान, ऊपर मकान दोनों लाल डोरा की जद में आ गये थे, इंच भर जमीन भी नहीं बच पा रही थी । उन बेचारों का दिमाग काम नहीं कर रहा था, दिल बैठा जा रहा था तो दूसरी ओर जिनके मकान लाल डोरा की जद से बचे हुए थे, उनके भवन स्वामियों की बांछें खिल आई थीं । वर्षों से अपने भाग्य को कोसते और पड़ोसी के भाग्य पर ईर्ष्या करते ऐसे लोग आज मन ही मन बहुत खुश हो रहे थे । कई एक ने तो अपने–अपने मकान में दुकान, रेस्टोरेंट होटल तक के नक्शे तैयार करा लिए थे । दूसरों की अवनति के बावजूद खुद की प्रगति होने की उम्मीद मात्र से मानव प्रफुल्लित हो उठता है । जैसे कुछ लोगों को अपने घर में जन्मे बच्चे की अपार खुशी होती है और दूसरे के घर में मृत बच्चा पैदा होने पर कोई दु:ख नहीं होता, ठीक इसी तरह की स्थिति आज शहर की इस प्रमुख सड़क के दोनों ओर बसे बाशिन्दों की थी । वे बड़े खुश थे जिनके मकान लाल डोरा की निशानदेही से बचे थे और अब उनके मकान सड़क के ठीक सामने आ जाने वाले थे, वहीं दूसरी ओर जिनकी दुकान–मकान सब ध्वस्त हो जाने वाले थे, उनके हृदय की धड़कन पल–प्रतिपल बढ़ती जा रही थी । मारे घबराहट के उन बेचारों को कुछ सुझाई नहीं दे रहा था, कोर्ट ने स्थगनादेश देने से मना कर दिया था । बचाव के सारे प्रयास निष्फल हो चुके थे । धूमिल आशाएं धुएं की तरह तिरोहित हो चुकी थीं । उम्मीद जब तक रहती है, व्यक्ति में ढाढ़स बंधा रहता है, उम्मीद के टूटते ही सब कुछ खत्म हो जाता है ।

वयोवृद्ध राजिन्दर खन्ना छियहत्तर साल के होने जा रहे थे । विभाजन के समय वह दसेक वर्ष के किशोर थे । तीन बहनों के बाद वह अपने माता–पिता की अंतिम सन्तान थे । अपना सर्वस्व साम्प्रदायिकता की आग में झोंकते दंगा–फसाद से बचते–बचाते, जब वह इस शहर में पहुंचा था, तब वह अपने माता–पिता के साथ अकेला ही था । तीनों बड़ी बहनों को उसके एवज में वहीं पाकिस्तान में रोक लिया गया था । उसके प्राण बख्श दिए गये थे, ऐसा बहुत सालों बाद मां ने उसे मरते वक्त बताया था ।

बड़ी, पापड़, अचार का व्यवसाय उसके पिता ने शुरू किया था । मां बनाती, किराने की दुकानों में बेच आते, आदेश लेते, शादी–ब्याह या जन्मदिन की पार्टियों के लिए विशेष रूप से अचार आदि की आपूर्ति करते । दो पैसे खर्च करते, दो पैसे बचा लेते । शनै:–शनै: परिश्रम रंग लाया, धन्धे ने तेजी पकड़ी । शरणार्थी कैम्प से निकलकर एक छोटा–सा घर किराये पर ले लिया । कुछ वर्ष बीते और मुख्य सड़क से लगे इस मकान को खरीद लिया । पापाजी के स्वर्गवासी होने तक उसने अपने दोनों बेटों को अचार के धन्धे में अपने साथ मदद में ले लिया । इकलौती बेटी की शादी कर दी । दोनों बेटों ने मकान के नीचे के हिस्से को आधुनिक दुकान का रूप दे दिया था । शोरूम में कांच के पारदर्शी खिड़की–दरवाजे लग गये । कंप्यूटर से बिल निकलने लगा । शोकेस में नाना प्रकार के अचार कांच के पारदर्शी कनटेनरों में रखे जाते । शहर के तीन सितारा व पांच सितारा होटलों तक में उनके यहां का बना अचार पहुंचाया जाने लगा । अचार की मांग बढ़ी तो कर्मचारी बढ़े और रुपये–पैसों की आमदनी भी ।

राजिन्दर खन्ना नियमित शोरूम में जाते, निर्धारित स्थान पर बैठते और दुकान में चल रही गतिविधियों को देख मन ही मन खुश होते । दोनों स्वस्थ बेटों के प्रसन्न चेहरे देख उनका दिल बाग–बाग हो उठता । ईश्वर का दिया सब कुछ था उनके पास आज्ञाकारी दोनों पुत्र, सेवाभाव से परिपूर्ण संस्कारित बहुएं, धर्मपरायण धर्मपत्नी, समृद्ध घर–परिवार में ब्याही बेटी, स्वस्थ नाती–पोते । वाहे गुरु की असीम अनुकम्पा उनके परिवार के ऊपर बरस रही थी । खुशहाल परिवार था उनका । दो वर्ष पहले पड़े हृदयाघात के बाद दोनों बेटे–बहुओं ने उनका विशेष खयाल रखना शुरू कर दिया था । कुछ भी ऐसा नहीं करने देते थे जो स्वास्थ्य के लिए घातक हो । उनकी दवा–दारू से लेकर खानपान की बारीकियों तक का ध्यान रखा जाने लगा था । सब कुछ ठीक चल रहा था । बच्चों की आत्मीयता–निकटता के अहसास मात्र से उनकी आत्मा गद्गद हो उठती थी । धर्मपत्नी के सेवा भाव के वह पहले से ही कायल थे, पर इन दिनों जो निकटता व प्यार उन्हें मिल रहा था, वह किसी भी औषधि से कहीं बढ़कर था ।

लाल डोरा’ ग्रहण बन आ चुका था राजिन्दर और उनके परिवार के ऊपर । एक बार फिर वे अपने ही घर से विस्थापित कर दिए जाने वाले थे । विस्थापन का दंश शूल बन चुभता ही नहीं, विध्वंस कर देता है मन और आत्मा दोनों को । तिनका–तिनका जोड़कर जिस घर, जिस दुकान को उन्होंने बनाया था, वह नेस्तनाबूद हो जाने वाले थे । लाल डोरा की जद में आ चुका था उनका मकान । पड़ोसी रहमत जो कभी मुंह उठाकर देखता भी नहीं था उनकी ओर, सुबह से तीन बार चाय के लिए पूछ गया था । दिखावटी प्रेम भला कहां छुपता है, हां दिल की खुशी छुपाए नहीं छुपती जो इन दिनों उनके पड़ोसी रहमत को हो रही थी । पड़ोसी रहमत बाहर से तो उनके प्रति दु:ख–संवेदना का इजहार करता थकता नहीं था, पर कहीं दिल के किसी कोने से जो प्रसन्नता की बयार उसके बहती, वह राजिन्दर को महसूस हो ही जाती । आखिर उनके पराभाव के बाद ही उसके दिन जो फिरने वाले थे । इतना हिमायती है तो क्यों नहीं कहता, “कोई बात नहीं खन्ना साहब । आप हमारे मकान के नीचे वाले हिस्से में वैसा ही शोरूम बना लीजिए और दूसरे हिस्से में रहिए ।” और मनचाहा किराया पाता, पर ऐसा भला वह क्यों करने चला था । अब तो उसका मकान मुख्य सड़क पर आ जाने वाला था । वह अपना धन्धा बढ़ाएगा, अपनी दुकान खोलेगा, उन्हें भला क्यों पूछने चला ?

दोनों बेटों की मनोदशा देख और दुखी हो जाते राजिन्दर खन्ना । एक पिता अपने बेटे को कभी दुखी नहीं देखना चाहता, वह उसे पराजित होते नहीं देख सकता । यहां उनके दोनों बेटे दु:ख और पराजय से जूझ रहे थे । भयानक शून्य उनके सामने आ खड़ा हुआ था । कल शाम से उठे सीने के दर्द को वह छुपाए हुए थे । कैसे बतलाएं वह अपनी परेशानी । इस समय शारीरिक कष्ट से ज्यादा मानसिक सन्ताप से सभी घरवाले दो–चार हो रहे थे ।

सुबह से ही रहमत मियां के मकान के नीचे वाले हिस्से में दुकान खाली कर सामान रखवाया जाने लगा था । कुछ दिन के लिए यह अस्थायी व्यवस्था की जा रही थी । घर का सारा सामान पहले ही पैक कर लिया गया था । सुबह का नाश्ता बहुओं ने तैयार कर लिया था ।

चाय–नाश्ते के पूर्व राजिन्दर ने दोनों बहुओं के सिर पर रोज की तरह हाथ रखा था, पर आज उनके हाथ कांप रहे थे । सुबह तड़के सीने में तेज दर्द उभरा था, उन्होंने सारबीट्रेट किसी को बताए बिना ली थी । आराम किया, यह बात उन्होंने किसी को नहीं बताई, फिर ऐसी परेशानी के समय तो वह कदापि बताने वाले नहीं थे । दोनों बेटे अपनी धर्मपत्नियों से कह रहे थे कि पापाजी का खयाल रखना और व्यस्त हो गये ।

नौकरों से उन्हें पता चल चुका था कि आज एम०सी०डी० वाले बुलडोजर चलाएंगे । उनके दोनों बेटे–बहुएं इस वक्त नौकरों सहित इसी में लगे थे कि जितना बच जाए, सुरक्षित कर लिया जाए । एम०सी०डी० वालों की पूर्व चेतावनी और मियाद कब की खत्म हो चुकी थी, पर उनकी तरह सभी को लग रहा था शायद अंत तक कोई रास्ता निकल आए, शायद उनकी दुकानें, उनके मकान टूटने से बच जाएं । शायद...और अब तो कोई चारा नहीं थाय सिवाय इसके कि जो बचा सको, वह बचा लो, बाकी अपनी आंखों के सामने ध्वस्त होते देखते रहो । यही नियति बना दी थी नीति नियंताओं ने जो इस वक्त की दशा और पीड़ितों की मनोदशा से कोसों दूर अपने वातानुकूलित कक्षों में चाय सिप कर रहे होंगे या मीटिंगों में मशगूल होंगे ।

तेज खनखनाहट की आवाज हुई, रजिन्दर जी से रहा नहीं गया, पास से गुजरते एक नौकर से पूछ ही लिया, “क्या हुआ ? यह भयानक आवाज कैसी ?” “पापाजी एम०सी०डी० का बुलडोर दुकान ढहा रहा है । दुकान की सामने की कांच की दीवार गिरी है, उसकी आवाज थी...”

नौकर चला गया । कितनी मोटी कांच की दीवार थी आर–पार साफ–साफ दिखता था । बड़े बेटे ने बताया था, ‘पापा यह दीवार कांच की जरूर है, पर होती बहुत मजबूत है, बुलडोजर से ही टूट सकती है ।’ और आज वह बुलडोजर से ही टूट रही है ।

एम०सी०डी० के मजदूरों के घन चलाने की आवाजें आनी शुरू हो चुकी थीं । अपने कमरे में लेटे राजिन्दर खन्ना के सीने में तेज दर्द उभरा, उन्होंने स्टूल पर रखे दवा के डिब्बे की ओर हाथ बढ़ाया, तभी तेज भड़भड़ाकर कुछ गिरने की आवाज उनके कानों में सुनाई दी । सब कुछ बिखरता जा रहा था । वे दवा की डिब्बी से सारबीट्रेट निकाल नहीं पाए, घन की पड़ती कर्कश चोटें एकाएक उन्हें अपने सीने पर पड़ती महसूस हुर्इं, कुछ पल बाद वह संज्ञाशून्य हो गये, उनकी निस्तेज खुली आंखों की दृष्टि कमरे की छत पर अटक कर रह गयी । घन, बुलडोजर के साथ लोगों की तेज होती आवाजें समवेत रूप से चहुं ओर गूंज रही थीं, पर इन सबसे परे राजिन्दर खन्ना देह त्याग चुके थे, त्रासदियों से दूर, भव बाधाओं से मुक्त वे अनन्त गन्तव्य की ओर प्रस्थान कर चुके थे ।

जब तक देह में प्राण हैं, सारे सरोकार उसके साथ जुड़े हैं । देह से प्राण के जाते ही देह मिट्टी हो जाती है और अपने ही लोगों में मिट्टी को मिट्टी में मिला दिए जाने की उतावली बलवती होने लगती है ।
Bharat Web Developer

Morbi aliquam fringilla nisl. Pellentesque eleifend condimentum tellus, vel vulputate tortor malesuada sit amet. Aliquam vel vestibulum metus. Aenean ut mi aucto.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें