जापानी पर्यटक से रेप... यत्र नारी पुज्यते, रमंते तत्र देवता ??? - नीलम मलकानिया

मंथन
भारत में बलात्कार की दिन ब दिन बढती जा रही घटनाएँ अब वीभत्स रूप ले चुकी हैं इन घटनाओं का रूप तब कुछ और घिनौना हो जाता है जब भारत भ्रमण को आयी, हमारी मेहमान, विदेशी महिला के साथ बलात्कार होता है एक सवाल मेरे ज़हन में उठता है कि यदि मैं एक विदेशी महिला होता तो क्या भारत आने की हिम्मत जुटा पाता? नहीं ! आप अपना जवाब दें ...

नीलम मलकानिया, भारत की हैं और जापान में 'रेडियो जापान' की हिन्दी सेवा से जुडी हैं हाल में कोलकाता में एक जापानी महिला पर्यटक के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना से आक्रोशित हो कर उन्होंने जो लेख लिखा है, वह ना सिर्फ भारतीय-पुरुष की मानसिकता को नंगा कर के दिखता है बल्कि साथ ही ऐसे बिन्दुओं को भी देखने को मजबूर करता है, जो हमारे ऊपर लगे वो धब्बे हैं, जिन्हें हमने अगर साफ़ नहीं किया तो वो हर हाल में कैंसर का रूप धारण कर लेंगे. 

नीलम ने अपने विचारों को शब्दांकन से साझा किया इसके लिए उन्हें धन्यवाद... 

भरत तिवारी

जापानी पर्यटक से रेप... यत्र नारी पुज्यते, रमंते तत्र देवता ??? 

नीलम मलकानिया

एक बात जिसकी मैं भारत में कल्पना तक नहीं कर सकती वो है किसी पुरुष के साथ के बिना भी अकेले घूम सकना और पूरी तरह सुरक्षित महसूस करना ...


जो समाज अपनी ही गली-मोहल्ले की लड़की की इज़्ज़त नहीं कर सकता उससे एक विदेशी के प्रति सम्मान के भाव की अपेक्षा करना बेकार है।
हमारे देश में महिलाओं के ख़िलाफ़ पता नहीं कौन सा एक युद्ध चल रहा है कि किसी भी गली-कूचे में, भीड़ या सुनसान जगह में, रेल में या बस में, कार में या सड़क पर पैदल चलते समय यहाँ तक कि दफ़्तर और घर में भी महिलाएँ सुरक्षित नहीं। हमारे बीच शायद ही कोई ऐसी महिला हो जो यौन उत्पीड़न का शिकार ना हुई हो। हाल ही में एक जापानी युवती के साथ भारत में हुए दुष्कर्म की ख़बर से मन बहुत खिन्न है। ... हालाँकि सरकार द्वारा त्वरित कार्यवाही होना अपेक्षित ही था। दो देशों के आपसी संबंधों मे खटास लाने की एक सोची-समझी साज़िश की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता जैसा कि मीडिया में बताया जा रहा है लेकिन फिर भी बेहद दुख हुआ इस ख़बर से। इसके कई कारण हैं एक तो लड़की होने के नाते सहज ही इस दर्द से जुड़ाव हो जाता है और उस पर जापान में रहते हुए संवेदना कुछ अधिक गहरी हो जाती है। जब-जब कोई ऐसी ख़बर सुनती हूँ तो निर्भया और बदायूँ जैसी अनेक घटनाएँ आँखों के सामने एक प्रश्नचिह्न बनकर तैरने लगती हैं। 

ज़रूरी ये है कि देश के पुरुषों की मानसिकता का शुद्धिकरण किया जाए
मुझे लगता है कि भारतीय पुरुषों की कुंठित मानसिकता एक शोध का विषय है। जो समाज अपनी ही गली-मोहल्ले की लड़की की इज़्ज़त नहीं कर सकता उससे एक विदेशी के प्रति सम्मान के भाव की अपेक्षा करना बेकार है। भारत के अपार संभावनाओं से भरे पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सभी संबंधित मंत्रालय एकजुट होकर काम कर रहे हैं। सड़कों की हालत सुधारना, देश में सफ़ाई को बढ़ावा देना, यातायात व्यवस्था को बेहतर करना, मुख्य पर्यटन स्थलों को सुख-सुविधाओं से लैस करना। ये सब बहुत ज़रूरी है, लेकिन इससे भी ज़रूरी ये है कि देश के पुरुषों की मानसिकता का शुद्धिकरण किया जाए। सरकार तो अपनी कोशिश कर ही रही है, उम्मीद है कि माहौल बदले लेकिन ये एक सामाजिक दायित्व भी तो है। हर एक को समाज का ये डरावना चेहरा बदलने में योगदान करना चाहिए। मैं हमेशा से कहती आई हूँ कि काशी तो क्योतो नगरी बन जाएगी पर मानसिकता का क्या होगा? मानती हूँ कि सभी पुरुष ऐसे नहीं हैं लेकिन जो हैं क्या वो भारतीय नहीं हैं? क्या उनकी वजह से विदेशों में भारत की छवि ख़राब नहीं होती? अगर तथाकथित शरीफ़ पुरुषों को अपनी छवी प्यारी है तो मुझे लगता है कि उन पर महिलाओं के मुक़ाबले अधिक ज़िम्मा है कि जब वो किसी महिला को असुरक्षा के भाव से घिरी पाएँ तब अपनी शराफ़त के बोझ तले दबे, मुँह में ताला लगाए चुपचाप किसी कोने में ना दुबकें। बल्कि जो ग़लत हो रहा है उसका विरोध करें अन्यथा ये आरोप सुनने को तैयार रहें कि सभी एक जैसे हैं। 

क्यों हमारे यहाँ पर्यटन से जुड़े शोध और व्यवसाय पर पुरुषों का वर्चस्व बना हुआ है?
विदेशी लड़कियाँ सामान्य परिस्थितियों में मुश्किल से कुछ दिन या कुछ सप्ताह भारत में रहती है और उनमें से अधिकतर का भारत का ये पहला सफ़र अंतिम सफ़र भी बन जाता है। अनुभव ही इतने कड़वे होते हैं कि वो दुबारा ये सब झेलना नहीं चाहतीं और कभी भी भारत ना जाने का फ़ैसला कर लेती हैं। कोई अपनी मेहनत की कमाई ख़र्च करके दुनिया के एक ऐसे देश को देखने आता है जो विश्व गुरु होने का दंभ भरता है और बदले में क्या पाता है, उम्र भर के लिए कड़वी यादें? मुझे बहुत अच्छा लगता है ये देखकर जब जापानी लड़कियाँ भारत से आने के बाद दिखाती हैं कि उन्होंने वहाँ से क्या ख़रीदा या कहाँ घूमी। जब वो भारत से लाई गई साड़ी पहनती हैं या बिन्दी लगाती हैं तो और भी प्यारी लगने लगती हैं। भारतीय संस्कृति और विभिन्न रीति रिवाजों के बारे में उनकी जिज्ञासा बेहद मासूम लगती है और उस एक पल में अपने देश के प्रति हमारा सम्मान और प्यार बढ़ जाता है। निजी अनुभव के आधार पर कह रही हूँ कि जब भी जापान में कहीं पर्यटन की बात होती है तब हम उसे अपने देश से जोड़कर ज़रूर देखते हैं। तुलना करने पर पाते हैं कि हमारी संस्कृति बहुत सम्पन्न है, पूरी दुनिया में अलग-अलग कोनों में जो अनुभव लिया जा सकता है वो भारत के ही पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण में घूमकर लिया जा सकता है। कभी-कभी लगता है कि भारत इस दुनिया का ही एक मिनिएचर है। यहाँ जापान में मैं ख़ूब घूमती हूँ और पाती हूँ कि जो भी सुख-सुविधाएँ यहाँ उपलब्ध करवाई गई हैं वो हमारे यहाँ भी करवाई जा सकती हैं बस बजट और इच्छाशक्ति का मसला है। लेकिन एक और मसला है जो बहुत गंभीर है जिस पर सबसे पहले ध्यान दिया जाना बेहद ज़रूरी है - वो है महिलाओं की सुरक्षा का मसला। क्या वजह है कि भारत में महिलाएँ अपने ही देश के अलग-अलग हिस्सों में कहीँ अकेली घूमने की हिम्मत नहीं कर सकतीं। क्यों हमारे यहाँ पर्यटन से जुड़े शोध और व्यवसाय पर पुरुषों का वर्चस्व बना हुआ है? क्यों हमारे यहाँ अध्यात्म से जुड़ा भ्रमण हो या फिर काम से कुछ दिन की छुट्टी, महिलाओं को एक सीमित और सुरक्षित कोना ही तलाशना पड़ता है? 

कत्थक सीखने जापान से भारत गई एक लड़की ने कहा था कि शायद ये छेड़खानी भारत की संस्कृति का हिस्सा है
मैं यहाँ जापान में रहते हुए अपने देश की बहुत सी बातें मिस करती हूँ और साथ ही यहाँ की बहुत सी सुविधाओं का लाभ भी उठाती हूँ। लेकिन एक बात जिसकी मैं भारत में कल्पना तक नहीं कर सकती वो है किसी पुरुष के साथ के बिना भी अकेले घूम सकना और पूरी तरह सुरक्षित महसूस करना। हम अपने विविध राज्यों की तुलना तो कर सकते हैं कि कहाँ महिलाएँ अपेक्षाकृत कम असुरक्षित हैं लेकिन सीना ठोक कर ये नहीं कह सकते कि अधिकतर स्थानों में सुरक्षित हैं। भारत में जो जापानी नागरिक रह रहे हैं और जापान में जितने भारतीय हैं उन सबकी यही कोशिश रहती है कि दोनों देशों के बीच सम्बन्ध और प्रगाढ़ होते रहें। इसी उद्देश्य से हम लोग अपने-अपने अनुभव भी साझा करते हैं कि परस्पर पर्यटन को बढ़ावा मिले और एक देश की विशेषता से दूसरे देश के नागरिक अवगत हो सकें। शायद यही वजह है कि तमाम सामरिक कूटनीतियों में जन का जन से सम्पर्क विशेष महत्व रखता है। जापान से जब भी मेरी कोई परिचित भारत घूमने जाने की इच्छा व्यक्त करती है तब तमाम गर्व के साथ और देश की ख़ूबियों व विविधताओं के बखान के साथ, अपनी सांस्कृतिक धरोहर की बात करते समय या फिर उसकी रुचियों के अनुकूल उपयुक्त शहर का नाम बताते समय एक बात ज़रूर कहनी पड़ती है कि अपना ध्यान रखना, किसी अन्जान व्यक्ति के साथ कहीं बाहर मत जाना, लगातार फ़ोन करती रहना वगैरह वगैरह...पता नहीं क्यों दिल किसी आशंका से भर जाता है।
नीलम मलकानिया रेडियो जापान जापानी पर्यटक से रेप

नीलम मलकानिया

रेडियो के विदेश प्रसारण प्रभाग में कार्यरत जापान में रह रही नीलम मलकानिया रेडियो जापान की हिन्दी सेवा में कार्यरत हैं।

16 अक्तूबर 1980 को पंजाब में जन्मी नीलम दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक व हिन्दी साहित्य व रंगमंच में स्नातकोत्तर हैं और कॉलेज के समय से पत्र-पत्रिकाओं के लिए स्वतन्त्र लेखन करती रही हैं। दिल्ली व मुंबई में कई नाटकों के मंचन में मंच पर और मंच-परे सक्रिय भूमिका निभाने वाली नीलम इग्नू से रेडियो लेखन में डिप्लोमाधारी भी हैं। ऑल इण्डिया रेडियो के नाटक एकांश में रांगेय राघव, सत्यजीत रे, रवीन्द्र नाथ ठाकुर की रचनाओं का रेडियो नाट्य रूपान्तरण पेश कर चुकी नीलम एक 'बी हाई ग्रेड' की कलाकार हैं। हिन्दी, उर्दू और पंजाबी सहित पाँच भाषाओं में कई धारावाहिकों की डबिंग करने वाली हंसमुख स्वभाव की नीलम लगभग चार सालों तक FM Gold में प्रेज़ेन्टर रही हैं साथ ही कई टेलिविज़न धारावाहिकों में अभिनय तथा धारावाहिकों का लेखन भी करती रही हैं। । कई मंचों पर स्वरचित कविताओं का पाठ कर वाहवाही बटोरने वाली नीलम इन दिनों एक किताब पर और एक फ़िल्म की कहानी पर काम कर रही हैं लेकिन बहुत पूछने पर भी इस बारे में अभी कुछ ज्यादा बताने को राज़ी नहीं हुईं... हमारी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं नीलम।

ईमेल: meriawaazsuno16@gmail.com
फोन : +81-80-8474-1413
... बहुत पहले मेरी एक जापानी सहेली ने बताया था कि भारत में एक ऑटोड्राइवर ने उसके साथ बदतमीज़ी की थी और वो कुछ ना कर सकी... कत्थक सीखने जापान से भारत गई एक लड़की ने कहा था कि शायद ये छेड़खानी भारत की संस्कृति का हिस्सा है... नीदरलैंड की मेरी एक प्रौढ़ परिचित जब भारत में रह रही थीं तब एक आदमी रोज़ उनका पीछा करता था....पिछले दिनों रोमेनिया की एक लड़की ने भारत-भ्रमण के दौरान सहेजे अपने अनुभव साझा किए और कुछ बताते-बताते रुक गई। जो उसने नहीं बताया उससे मैं भारतीय `लड़की` होने के नाते अच्छी तरह परिचित हूँ। मुझे लगता है कि हर भारतवासी जब देश से बाहर जाता है तो ख़ुशी से चमकती उसकी आँखों में ये सपना भी होता है कि काश!हमारा देश भी ऐसा बन जाए। मन में सवाल उठते हैं कि कब हम अपने हर संसाधन का सही इस्तेमाल करके अपने अवसरों का दोहन इस तरह करेंगे कि आर्थिक कारण हमें अपना देश छोड़ने को मजबूर ना करें। देश से बाहर पैर निकले तो बस पर्यटन के प्रयोजन से। बहुत सी आँखें ये सपना देख रहीं हैं और उम्मीद है कि कभी न कभी ये पूरा भी होगा। पूरी दुनिया किसी ना किसी वजह से भारत पर नज़र लगाए है, भले ही हमसे कोई द्विपक्षीय व्यापार ना कर रहा हो और भले ही हमारी विदेश नीति में उसका कोई विशेष महत्व ना हो लेकिन भारत आज अपने आंतरिक और विदेशी मसलों में एक ऐसे महत्वपूर्ण मोड़ से गुज़र रहा है कि सबकी निगाह तो है ही हम पर। हम अपने घर में बैठकर कितनी भी बुराई करें अपनी लेकिन जब ये बुराई सीमाएँ लाँघकर बाहर निकलती है तब उसकी चुभन बढ़ जाती है। बुराई तो सड़े हुए पानी सी है, हम उसे ढक तो सकते हैं लेकिन उसकी सडाँध का क्या करेंगे? ये वही देश है जिसके मूल में यत्र नारी पुज्यते, रमंते तत्र देवता का भाव है। ये वही देश है जो नवरात्रि में भक्तिभाव से भर जाता है। ये वही देश है जिसके हर उच्च पद पर महिला रही है और आज भी है, ये वही देश है जो अपने जनसांख्यिकी आँकड़ो के हिसाब से अब सबसे युवा देश होने का अपार लाभ उठाने जा रहा है। भारतीय मानसिकता महिलाओं के मामले में देवी से दासी के बीच ही झूलती रहती है। सखा भाव या सहयोगी भाव कितना दुर्लभ बना दिया गया है। अपने देश के प्रति सम्मान का भाव रखते हुए भी और देश-प्रेम से लबरेज़ होते हुए भी मुझे बहुत दुख से कहना पड़ रहा है कि भारतीय समुदाय के कुछ हिस्से अपनी तमाम सम्पन्नाताओं के बावजूद एक बात में बहुत ग़रीब हैं और वो है महिलाओं के प्रति सम्मान का भाव।.....

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