साहित्य के चोर-उचक्के - अनंत विजय | Anant Vijay on Plagiarism


साहित्य के चोर-उचक्के

-अनंत विजय

हाल के दिनों में लेखकों की एक ऐसी पीढ़ी सामने आई है जो साहित्य को सीढ़ी बनाकर प्रसिद्धि हासिल करना चाहती है । अब से लगभग दो दशक पहले इस तरह का साहित्यक प्रेम अफसरों में देखा जाता था । कई प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों ने अपने को साहित्यक क्षेत्र में स्थापित करने के लिए बहुत जतन किए थे । हमें याद है कि नब्बे के दशक के शुरुआती वर्षों में दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में आयकर विभाग के आला अफसर की किताबों के सेट का विमोचन हुआ था । शानदार चमचमाते कार्यक्रम में हिंदी के नामवर दिग्गज मौजूद थे । कमिश्नर साहब की करीब आधा दर्जन पुस्तकों का एक साथ विमोचन हुआ । पांस सितारा होटल की ठंडी हवा में हिंदी के दिग्गजों ने उनको कई तरह के विशेषणों से नवाजा और एक लेखक के तौर पर उनको मान्यता का सर्टिफिकेट भी जारी कर दिया । हिंदी के नामचीन दिग्गजों के साथ मंच पर बैठकर उस आला अफसर के चेहरे पर संतोष का भाव था । समारोह में आने वाले सभी साहित्यकारों और साहित्य प्रेमियों के लिए उनके विभाग के कनिष्ठ अफसर हाथ बांधे खड़े थे । जब उनको बेहतरीन लेखक होने का सर्टिफिकेट दे दिया गया तब वहां मौजूद लोगों ने जमकर रसरंजन किया और पांच सितारा होटल के खाने का लुत्फ उठाया । अब बारी विदा होने की थी । वहां मौजूद लोग जब निकलने लगे तो उनके लिए उपहार का डब्बा तैयार था । छह किताबों का सेट और पार्कर कलम का सेट । उन दिनों पार्कर पेन सेट को बेहतरीन तोहफा माना जाता था । खैर यह पूरा प्रसंग बतलाने का मकसद सिर्फ इतना है कि साहित्य को कई लोग सीढ़ी की तरह इस्तेमाल कर अपना कद बढ़ाना चाहते हैं । लेकिन यहां यह भी बताते चलें कि हिंदी के सबसे प्रतिष्ठित प्रकाशन संस्थानों में से एक से प्रकाशित कमिश्नर साहब की किताबों का अब कोई नाम लेनेवाला भी नहीं है । इन दिनों साहित्य में कुछ ऐसे लोग आ गए हैं जो साहित्य के मार्फत समाज में अपने को बौद्धिक साबित करना चाहते हैं । इनमें से ज्यादातर कवयित्रियां हैं जो पुराने कवियों की कविताओं की नकल करते हुए शब्द बदलकर लोकप्रिय होना चाहती हैं । हिंदी साहित्य जगत में हमेशा से ऐसे लोग रहे हैं जो इस तरह की प्रतिभाहीन लेखिकाओं की पहचान कर उनकी महात्वाकांक्षाओं को परवान चढ़ाते हैं । इसके कई फायदे होते हैं । उन फायदों की फेहरिश्त यहां गिनाने का कोई अर्थ नहीं है । हम तो यहां साहित्य के बड़े सवालों से मुठभेड़ करने कि कोशिश कर रहे हैं । बड़ा सवाल यह है कि इन दिनों कविता में साहित्यक चोरी धड़ल्ले से चल रही है और कुछ साहित्यक लोग और चंद साहित्यक संस्थाएं इन साहित्यक चोरी को वैधता प्रदान करने में जुटे हैं ।

साहित्य के चोर-उचक्के - अनंत विजय | Anant Vijay on Plagiarism हिंदी में एक कवयित्री ने रघुवीर सहाय की कविता को आधार बनाकर उनकी लाइनें उड़ाकर एक कविता लिख डाली । रघुवीर सहाय को जिन लोगों ने नहीं पढ़ा था या जिनकी स्मृति में रघुबीर सहाय की कविता नहीं थी उनको युवा कवयित्री की इस कविता में चमत्कार दिखाई दिया । उक्त कविता की जमकर चर्चा हुई । उसी कविता के आधार पर लेखिका को पुरस्कार भी दे दिए गए । उसी कवयित्री ने पवन करण की कविता के आधार पर भी एक कविता लिखकर खूब वाहवाही बटोरी । इसी तरह एक शायर ने भी अपने पूर्ववर्ती शायर की शायरी के शब्दों में हेरफेर कर उसको छपवा लिया । वो भी चर्चित हो गए । लेकिन साहित्य की दुनिया इतनी विस्तृत है और इसमें इतने सजग पाठक हैं कि इस तरह की साहित्यक चोरी करके कोई बचकर निकल नहीं सकता है ।  कवयित्री और शायर साहब दोनों को पाठकों ने एक्सपोज कर दिया । जब उनकी साहित्यक चोरी पकड़ी गई तो उनसे जवाब देते नहीं बन पड़ रहा था । कवयित्री तो खामोशी के साथ किनारा कर गईं लेकिन शायर महोदय ने एक ही जमीन की शायरी बताकर अपनी कविता का बचाव करने का प्रयास किया ।

सवाल यह नहीं है कि एक कवयित्री या एक शायर ऐसा कर रहे हैं । यह प्रवृत्ति इन दिनों जोर पकड़ रही है । फेसबुक और सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने इस तरह की साहित्यक चोरी को बढ़ावा दिया है । फेसबुक पर कुछ मीडियाकर किस्म के कथित साहित्यकारों का एक गैंग ऑपरेट करता है जो अपने गैंग के सदस्यों की रचनाओं को लेकर उड़ जाता है । उसपर इतने लाइक्स और कमेंट होने लगते हैं कि आम और तटस्थ पाठकों को लगता है कि कोई बहुत ही क्रांतिकारी चीज सामने आई है । लेकिन फेसबुकिया माफिया ये भूल जाते हैं कि ये आभासी दुनिया है और इसका फैलाव अनंत है । इसके दायरे में जो भी चीज आ जाती है वो बहुत दूर तक जाती है । सुदूर बैठा पाठक जो साहित्य के समीकरणों को नहीं समझता है और जो गंभीरता से साहित्य को घोंटता है वह जब इस तरह की साहित्यक चोरी को देखता है तो प्रमाण के साथ उजागर कर देता है । संभव है कि इस तरह की साहित्यक चोरी से फौरी तौर पर प्रशंसा मिल जाए लेकिन नकल के आधार पर कोई साहित्य में स्थापित ना तो हो पाया है और ना ही आगे हो पाएगा । 
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