head advt

युवा, हिंदी अकादमी और मैत्रेयी पुष्पा - अनंत विजय | Anant Vijay on Maitreyi Pushpa Controversy


कहीं ऐसा तो नहीं कि युवा कहकर युवाओं से जुड़ने की जुगत में लेखक खुद को या आयोजक लेखक को या आलोचक लेखक को युवा घोषित कर देता है ?

~ अनंत विजय

साहित्यक विवाद होने चाहिए... लेकिन जब विवाद के बीच व्यक्तिगत हमले होने लगते हैं, किसी के चरित्र से लेकर व्यक्तित्व पर सवाल खड़े होने लगते हैं तब साहित्य बीमार पड़ने लगता है

युवा, हिंदी अकादमी और मैत्रेयी पुष्पा - अनंत विजय | Anant Vijay on Maitreyi Pushpa Controversy

विवादों के बवंडर में ‘युवा’ लेखक

इन दिनों हिंदी साहित्य जगत में ‘युवा लेखन और लेखक‘ को लेकर घमासान मचा हुआ है । दरअसल पूरा प्रसंग ये है कि दिल्ली की हिंदी अकादमी ने युवा कहानी और युवा कविता पर दो दिनों का आयोजन किया । हिंदी की वरिष्ठ और चर्चित लेखिका मैत्रेयी पुष्पा के हिंदी अकादमी का उपाध्यक्ष बनने के बाद अकादमी का ये पहला बड़ा आयोजन था । कविता पर जो आयोजन हुआ था उसका नाम - कविता के नए रूपाकार, युवा कवियों के साथ एक शाम । कहानी पर हुए आयोजन को नाम दिया गया था – हमारे समय की हिंदी कहानियां, स्वरूप और संभावनाएं । सरकारी कार्यक्रम के लिहाज से देखें तो आयोजन बेहतर था । पूरे आयोजन पर मैत्रेयी पुष्पा की छाप दिख रही थी, उनकी पसंद और नापसंद दोनों की । कविता पर हुए आयोजन पर जिन कवियों को बुलाया गया था उसको लेकर सोशल मीडिया पर खूब हो हल्ला मचा । कवियों की उम्र को लेकर भी छींटाकशी की गई । विरोधस्वरूप दिल्ली के दर्जनभर से ज्यादा युवा कवियों ने एक अलग आयोजन किया और अपनी कविताएं पढ़ीं । यह सब तो साहित्य में हमेशा से चलता रहा है । सरकारी आयोजनों में जो उसके कर्ताधर्ता होते हैं उनकी ही चलती है लेकिन इस बार हिंदी अकादमी का चयन अपेक्षाकृत कम विवादित रहा । हिंदी अकादमी की उपाध्यक्ष मैत्रेयी पुष्पा ने सोशल मीडिया पर अपने अनेकानेक पोस्ट में इस बात को रखा कि अकादमी का यह पहला आयोजन है और उसको उसी कसौटी पर कसा जाना चाहिए । लेकिन युवा को लेकर सोशल मीडिया पर विरोध जारी रहा । युवा शब्द पर हुए इस विवाद की भी वजह है जिसका जिक्र इस लेख में आगे आएगा । फेसबुक आदि पर मचे हो-हल्ला के बीच आयोजन के दौरान हिंदी अकादमी की उपाध्यक्ष मैत्रेयी पुष्पा ने मंच से एलान किया कि अगले आयोजन से युवा शब्द हटा दिया जाएगा । इसको हिंदी के युवा लेखक और कवि अपनी जीत के तौर पेश कर रहे हैं । उन युवा लेखकों को ये सोचना होगा कि साहित्य में जीत या हार नहीं होती है। बहुत दिनों बाद हिंदी अकादमी को एक सक्रिय उपाध्यक्ष मिला है । हमें उम्मीद करनी चाहिए कि वो वस्तुनिष्ठ होकर साहित्य के लिए काम करेंगी । उनको थोड़ा मौका भी दिया जाना चाहिए । हलांकि उनको जो टीम मिली है उससे बहुत ज्यादा उम्मीद बेमानी है, चंद लोगों को छोड़कर उनमें से ज्यादातर के साहित्यक अवदान को हिंदी साहित्य के सामने आना शेष है । हैरानी की बात है कि कहानी पर हुए आयोजन की अध्यक्षता वरिष्ठ आलोचक मैनेजर पांडे को सौंपी गयी । कहानी पर हुए आयोजन का अध्यक्ष पांडे जी को किस आधार पर बनाया गया ? कम से कम मेरे जैसा पाठक अब तक मैनेजर पांडे के कहानी पर किए गए काम से अनभिज्ञ है । कार्यक्रम में मैनेजर पांडेय ने मेरी आशंका को सही साबित किया । उन्होंने इस आयोजन में ना तो कहानी के स्वरूप और ना ही संभावना पर गंभीरता से कोई अवधारणा प्रस्तुत की । एक अनाम सी पक्षिका के विशेषांक लेकर पहुंचे और उसके ही आधार पर कहानी के वर्तमान पर भाषण दे दिया । मैनेजर पांडे को बुलाने की वजह समझ से परे है । मैत्रेयी पुष्पा को मैं करीब डेढ़ दशक से ज्यादा वक्त से जानता हूं, वो जो ठान लेती हैं उसपर चलती हैं । तमाम विरोध और झंझावातों के बावजूद । इस वजह से ही शायद उन्होंने मैनेजर पांडे को नहीं बदला होगा । अगर चयन में थोड़ी बहुत खामी रह जाए या फिर अपने अपने लोगों को बुलाया जाए तो किसी नतीजे पर पहुंचने के पहले सोशल मीडिया पर सक्रिय लेखकों को धैर्य रखना चाहिए । सावधान तो उपाध्यक्ष को भी रहना चाहिए, उन्हें अब काफी लोग तारीफ करनेवाले मिलेंगे । आनेवाले दिनों में उनपर संचयन, पत्रिकाओं के विशेषांक आदि भी निकलेगे । अगर इस तरह के लोगों को बढ़ावा मिलता है तो जाहिर तौर पर वो घिरेंगी लेकिन हमें ये मानकर नहीं चलना चाहिए कि ऐसा ही होगा । खैर ये एक अवांतर प्रंसग है, जिसपर भविष्य में चर्चा होगी ।

बात हो रही थी हिंदी में युवा लेखकों पर । साहित्य में युवा कहने की कोई सीमा नहीं है । पचास पार या पचास को छूते लेखक को हिंदी साहित्य समाज में युवा माना जाता है । साहित्य अकादमी जो युवा सम्मान देती है उसके मुताबिक लेखक की उम्र पैंतीस साल से अधिक नहीं होनी चाहिए । लेकिन इस वक्त हिंदी में एक साथ इतनी पीढ़ी सक्रिय है कि सब गड्डमड् हो गया है । जिसके जो मन हो रहा है वो लिख रहा है । इस तरह के अराजक माहौल में चालीस पचास साल पार के लेखक लेखिका भी युवा हुए जा रहे हैं । इस संदर्भ में एक बेहद दिलचस्प प्रसंग याद आता है । सन दो हजार की बात होगी । हंस पत्रिका के दफ्तर में उसके संपादक राजेन्द्र यादव से मिलने गया था । हंस का ताजा अंक आया था जो यादव जी ने मेरी तरफ बढ़ाया । मैंने पन्ने पलटने के बाद उनसे पूछा कि बुढा़ती लेखिकाओं की आप जवानी के दिनों की तस्वीर क्यों छापते हैं । उन्होंने हल्के फुल्के अंदाज में गंभीर बात कह दी । उन्होंने कहा कि हिंदी के कई पाठक लेखिकाओं की तस्वीर देखकर हंस खरीद लेते हैं । अब जब युवा लेखक की उम्र को लेकर जब एक बार फिर से विवाद हो रहा है तो राजेन्द्र यादव की बात जेहन में कौंधी । कहीं ऐसा तो नहीं कि युवा कहकर युवाओं से जुड़ने की जुगत में उदारता के साथ लेखक खुद को या आयोजक लेखक को या आलोचक लेखक को युवा घोषित कर देता है । हलांकि यह बहुत दूर की कौड़ी है लेकिन कौड़ी है अच्छी ।

कुछ दिनों पहले मैत्रेयी पुष्पा जी ने भी स्त्री विमर्श को लेकर एक लंबा लेख लिखा था । उस लेख में मैत्रेयी जी ने लिखा था – ‘इक्कीसवीं सदी में जबसे ‘युवा लेखन’ का फतवा चला है, लेखन की दुनिया में खासी तेजी आई है। लेखिकाओं की भरी-पूरी जमात हमें आश्वस्त करती है। किताबें और किताबें। लोकार्पण और लोकार्पण। इनाम, खिताब, पुरस्कार जैसा बहुत कुछ। प्रकाशक, संपादक भी अपने-अपने स्टाल लेकर हाजिर। अपने-अपने जलसों की आवृत्तियां। कैसा उत्सवमय समां है। कौन कहता है कि यह दरिंदगी और दहशत भरा समय और समाज है? साहित्य जगत तो यहां आनंदलोक के साथ है। नाच-गाने और डीजे। शानदार पार्टियां और आपसी रिश्तों के जश्न। ऐसा लगता है जैसे कितनी ही कालजयी रचनाएं आई हैं। मगर इस समय की कलमकार के अपने रूप क्या हैं? युवा के सिवा कुछ भी नहीं, यह युवा लेखिका का फतवा किस दोस्त या दुश्मन ने चलाया कि इस समय की रचनाकार अपनी उम्र का असली सन तक अपने बायोडाटा में दर्ज नहीं करतीं, क्योंकि उम्र जगजाहिर करना युवा लेखन के दायरे से खारिज होना है। वे लेखन के हल्केपन की परवाह नहीं करतीं, जवानी को संजोए रखने की चिंता में हैं। इसी तर्ज पर कि रचना में कमी-बेसी से डर नहीं लगता साब, वयस्क कहे जाने से डर लगता है। परवाह नहीं उम्र पैंतालीस से पचास पर पहुंच जाए, युवा कहलाने का अनिर्वचनीय सुख मिलता रहे । लगता है मैत्रेयी जी जब हिंदी अकादमी के आयोजनों के लिए लेखकों का चयन कर रही थीं तो उन्होंने अपनी ही कही इस बात को भुला दिया । युवा के नाम पर चालीस पार की लेखिकाओं और लेखकों को युवा घोषित करते हुए कार्यक्रम में जगह दे दी । क्या वो अपना कहा ही भूल गईं कि जो लेखिका अपने बायोडाटा में अपनी उम्र दर्ज नहीं करती क्योंकि उम्र जाहिर करना युवा लेखन के दायरे से खारिज होना है । क्या वो भी आमंत्रित लेखक लेखिकाओं को वयस्क कहने से डर गईं । दरअसल सरकारी आयोजनों में एक कमेटी प्रतिभागियों का चुनाव करती हैं । संभव है उपाध्यक्ष ने चुनाव करते समय कमेटी के सदस्यों को छूट दी होगी । उस छूट का ही नतीजा है कि कुछ ऐसे लेखकों का चयन हो गया जिनपर और जिनके लेखन पर विवाद उठ खड़ा हो गया । यह भी संभव है कि युवाओं को जोड़ने का अनिर्वचनीय सुख हिंदी अकादमी भी लेना चाहती हो । हिंदी में युवा कहलाने का जो फैशन है उसपर गाहे बगाहे विवाद होता रहा है । मेरा मानना है कि साहित्यक विवाद होने चाहिए । इससे साहित्य की सेहत अच्छी बनी रहती है लेकिन जब विवाद के बीच व्यक्तिगत हमले होने लगते हैं, किसी के चरित्र से लेकर व्यक्तित्व पर सवाल खड़े होने लगते हैं तब साहित्य बीमार पड़ने लगता है । साहित्य में विवादों की एक लंबी परंपरा रही है लेकिन जिस तरह से उसको सोशल मीडिया ने मंच और हवा दोनों दी वो चिंता की बात है । लेखन पर सवाल खड़े होने चाहिए तर्कों और तथ्यों के साथ, फिर चाहे वो कितना भी बड़ा लेखक क्यों ना हो । युवाओं के लेखन को खास तौर पर कसौटी पर कसना चाहिए ।  

००००००००००००००००

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

  1. एक सटीक आलेख ...........ऐसे प्रश्न ही अकादमियों को सोचने को मजबूर करेंगे और तस्वीर को बदलने में सहायक होंगे .

    जवाब देंहटाएं

गलत
आपकी सदस्यता सफल हो गई है.

शब्दांकन को अपनी ईमेल / व्हाट्सऐप पर पढ़ने के लिए जुड़ें 

The WHATSAPP field must contain between 6 and 19 digits and include the country code without using +/0 (e.g. 1xxxxxxxxxx for the United States)
?