हिंदी कहानी: डियर पापा - आकांक्षा पारे | Hindi Kahani


हिंदी कहानी: डियर पापा - आकांक्षा पारे | Hindi Kahani

डियर पापा

~ आकांक्षा पारे

पापा जी

एक बड़ा वाला किस्सू आपके लिए।



आप सोच रहे होंगे मैं इतना बड़ा हो गया हूं फिर भी आपको किस्सू कर रहा हूं। कायदे से तो मुझे आपके प्रणाम करना चाहिए। पर सच बताऊं पापा आज आप बहुत याद आ रहे हैं। मैं अपने उसी बचपन के पापा से बात करना चाहता हूं। इसलिए प्रणाम या नमस्कार की जगह किस्सू कर रहा हूं। पापा, कल शाम मेरा प्रमोशन लेटर आ गया है। मैं ब्रांच मैनेजर बन गया हूं। नई ब्रांच खुली है, मांगल्या में। मुझे पता है ब्रांच घर से दूर है लेकिन ब्रांच मैनेजर बनना भी तो कम बड़ी बात नहीं है। चाहे ब्रांच छोटी ही क्यों न हो। आपको तो सब पता ही है कि मां और विजया की क्या प्रतिक्रिया रही होगी। दोनों खुश तो हैं प्रमोशन की खबर सुन कर मगर आपकी भाषा में कहूं तो उस खुशखबरी पर एक छोटा सा स्टार लगा है, वही कंडीडशन एप्लाय वाला। मां ने आशीर्वाद देने से पहले अपने अंदाज में कहा, 'तुम्हारी तो किस्मत ही खराब है। एक तो प्रमोशन देर से मिला, दूसरा इतनी दूर की ब्रांच मिल गई। कोई भी चीज तुम्हें ठीक-ठाक ढंग से मिल ही नहीं पाती।’ पापा आप यहां होते तो सबसे पहले खूब गर्मजोशी से मेरी पीठ थपथपाते, फिर दौड़ कर अन्नपूर्णा स्वीट्स से पेड़े मंगवा लेते। मम्मी बड़बड़ाती रहतीं और आप चुटकियां लेते रहते। फिर दोनों बहस करते और विजया अपनी आंखें फैला कर पूछती, 'इतनी बहस करते हैं तुम्हारे मम्मी-पापा। आखिर दोनों ने एकसाथ इतने साल निकाल कैसे लिए?’ 'इसका जवाब तो वह पंडति ही देगा जहां तुम्हारे नाना ने मेरी और तुम्हारी मां की जन्म पत्रिका मिलवाई थी।’ एक बार ठीक ऐसा ही सवाल पूछने पर आपने ठहाका लगा कर मुझ यह जवाब दिया था। याद है आपको। कोई बात नहीं मैंने अतुल और विपुल के साथ सेलीब्रेट कर लिया है। दोनों को आइसक्रीम खिलाने ले गया। मां और विजया के लिए भी एक बटर स्कॉच  की ब्रिक ले आया था। बहुत बोला दोनों को मोनिका गैलेक्सी आइसक्रीम पार्लर तक चलने को। पर एक को मंदिर में दीया लगाना था और दूसरी को सुबह नौकरी पर जल्दी पहुंचने के लिए रात से ही तैयारी करनी थी! जब अतुल-विपुल को आइसक्रीम दिला रहा था तो मुझे अपना दसवीं के रिजल्ट वाला दिन याद आ गया। क्या दिन था वह। पूरे मुहल्ले में दर्जनों बच्चे थे। किसी का आठवीं बोर्ड का नतीजा आने वाला था, किसी का बारहवीं का, कोई दसवीं के रिजल्ट के लिए पेट में उठ रही मरोड़ों पर काबू पा रहा था। और एक मैं था। कोई शिकन ही नहीं थी मेरे चेहरे पर। जब रिजल्ट आने शुरू हुए तो कोई पूरे स्कूल में फस्र्ट था, कोई अपने तीनों सेक् शन में टॉप। उपाध्याय अंकल के तो तीनों बेटे हमेशा से यूनिवर्सिटी टॉप किया करते थे। उसी साल शायद उनके एक बेटे को एयर फोर्स में नौकरी मिल गई थी। मां कितना दबाव महसूस करती थीं रिजल्ट के दिनों में। जब मेरा दसवीं का नतीजा आया था तो पूरे मुहल्ले में करीबन सात बच्चे थे। दो मेरिट में, तीन को गणित और साइंस में डिस्टिन्शन और एक का गुड फस्र्ट डिविजन। और मैं गणित में पचपन नंबर, विज्ञान में पैंतालीस और इंग्लिश में कुल साठ। सेकंड डिविजन की मार्कशीट ले कर जब मैं घर में दाखिल हुआ था तो मां की कैसी प्रतिक्रिया थी जैसे मैं किसी गमी की खबर के साथ घर में आया हूं।


बावजूद इसके आप मुझे आइसक्रीम खिलाने ले गए थे और ठहाका मार कर कहा था, 'अगर सब फस्र्ट आ जाएंगे तो सेकेंड कौन आएगा मेरे लाल, मेरे नीले, मेरे पीले!’ मां कितनी नाराज हुईं थीं कि आपकी इन ऊटपटांग बातों ने ही मुझे आलसी और गैर जिम्मेदार दिया है। नंबर कम होने की वजह से मुझे गणित विषय नहीं मिल पाया था और मुझे कॉमर्स लेना पड़ा था। यह अलग बात है कि मैं तो आट्र्स लेना चाहता था लेकिन मां के सामने आपकी एक न चली और मुझे कॉमर्स लेना ही पड़ा। 'गणित न सही कम से कम कॉमर्स तो पढऩे तो इसे।’ मां ने लगभग डांटते हुए आपको कहा था। मां को कितना धक्का लगा था, मैं खानदान का पहला लड़का था जिसे विज्ञान विषय नहीं मिल पाया था। 'हे भगवान, भार्गव खानदान में कोई लड़का विज्ञान के अलावा कोई और विषय पढ़ रहा है, लानत...लानत...लानत!’ मां के सामने आप इस डायलॉग को कैसे किसी फिल्मी अभिनेता की तरह बोलते थे। इसके बाद से हमेशा ही मां मुझे बेचारगी से देखती थीं। उस वक्त मुझे इतनी जोर से हंसी आती थी पर हंस नहीं सकता था। मैं आज भी सोचता हूं। इतना धैर्य आपके पास आया कहां से पापा? मां आपको क्या कम सुनाती थीं। वह हमेशा सोचती थीं कि ताऊजी, चाचाजी के मुकाबले आपकी नौकरी कमतर है। ताऊजी कॉलेज में प्रोफेसर और चाचा जी बड़े सरकारी अधिकारी। ऐसे में आपका एलआईसी में क्लर्क होना मां को जब तब अखरता था। सच कहूं पापा मुझे कभी नहीं लगा कि आपमें कुछ कम है। आप जितना हंसते हैं, जिंदादिल हैं ताऊजी और चाचाजी को दो जन्म लग जाएंगे ऐसा होने में। खैर छोडि़ए पुरानी बातों को। नई खबर तो यह है कि मैंने अतुल-विपुल दोनों को पेड़ पर चढऩा सिखा दिया है। विपुल थोड़ा डरता है, पर अतुल तो मैं क्या बताऊं पापा बिलकुल मेरी तरह सरपट चढ़ जाता है। वही आपकी वाली तकनीक से ही सिखाया है। पंजे थोड़े तिरछे और ऊंगलियों की मजबूत पकड़। हालांकि कल अतुल थोड़ा ज्यादा उत्साह में आ गया और बगल वाले माहेश्वरी अंकल के यहां जो अमरूद का पेड़ लगा है न उस पर से गिर गया। पैर में थोड़ी चोट है, पर ठीक हो जाएगी। मैंने कल हल्दी और अरंडी का पत्ता पैर में बांध दिया था। विजया नाराज है। अतुल की म्यूजिक क्लास का नुकसान हो रहा है। पर ठीक है म्यूजिक तो कोई सिखा देगा, पेड़ पर चढऩा तो हर कोई नहीं सिखा सकता न। वैसे अतुल ने गिरने से पहले जो अमरूद तोड़े थे उसकी चटनी बहुत बढिय़ा बनी है।


अच्छा भैया परसों बता रहे थे आप ई-मेल करना सीख गए हैं। सच में पापा आपकी इच्छाशक्ति गजब है। वैसे यह सब बातें मैं स्काइप पर भी कर सकता था। ईमेल कर सकता था। पर पता नहीं क्यों लगा आपको चिट्ठी ही लिखनी चाहिए। जब आप भैया के यहां से भारत लौटेंगे न तो मैं भी घर पर इंटरनेट कनेक्शन ले लूंगा। दोनों बच्चों को आप ही ईमेल करना सिखाइएगा। बहुत दिनों से पीछे भी पड़े हैं कि कंप्यूटर ले लूं। अब थोड़ी तनख्वाह भी तो बढ़ेगी। आखिर बैंक मैनेजर जो हो गया हूं। पापा भैया से कहिए न कि वे जल्दी से आपका टिकट करा दें। बहुत रह लिए आप उसकी सिलिकॉन वैली में। अब हम गरीबों की झोली में लौट आइए। आपने देखा मेरा सेंस ऑफ ह्यूमर कितना अच्छा हो गया है। बिलकुल आपकी ही तरह। और एक बात आपसे शेयर करना चाहता हूं। आप कहा करते हैं न कि जो वक्त मिले उसे दूसरे किसी अच्छे काम में लगाना । तो मैंने तय किया है कि ब्रांच छोटी है तो काम भी कम होगा। जो समय बचेगा उसमें मैं पार्ट टाइम एमबीए में एडमिशन ले लूं। अच्छा आइडिया है न पापा? अगर आपको लगे कि मुझे कुछ और करना चाहिए तो प्लीज आप मुझे बताना। आपने ही मुझे बैंक की तैयारी कराई थी और मैं यहां तक पहुंच पाया हूं। अपने छोटे से करिअर में मैनेजर तक पहुंचना कोई छोटी उपलब्धि नहीं है। मेरे बैंक में सब कहते हैं मेरी याददाश्त बहुत अच्छी है और मैं बैंक के लिए बिलकुल परफेक्ट हूं। यह सब इसलिए है कि आपने मुझमें विश्वास रखा। पापा मैंने आपको कभी कुछ नहीं दिया। पर मैं सोचता हूं यदि मैं अतुल, विपुल के लिए वैसा ही पिता बन सकूं जैसे आप मेरे लिए थे। खुशमिजाज और मेरी हर हरकत में साथ देने वाले। पापा मैं बहुत बेसब्री से आपका इंतजार कर रहा हूं। मुझे पता है आपको डेढ़ साल का वीजा मिला है। पर छह महीने विदेश में रहने के लिए बहुत हैं। आप जल्दी आइए। फिर मैं आपको अपनी नई ब्रांच ले चलूंगा, अपनी पुरानी मारूति 800 में। हां मैंने दो हफ्ते पहले सेकंड हैंड कार खरीद ली है। मम्मी को यह छोटी लगती है भैया की कार के मुकाबले पर मैं जानता हूं आपको पसंद आएगी। कार का रंग वही है पापा स्टील ग्रे। जो आपको पसंद है।

आपका

विजू
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