उसका फ़ैसला — कहानी — वीणा शर्मा



आत्मविश्वास एक ऐसा औज़ार बन सकता है जिससे इंसान अपनी ज़िंदगी को दुरुस्त कर सकता है, वीणा शर्मा ने जनसत्ता में करीब एक वर्ष पहले प्रकाशित अपनी कहानी 'उसका फ़ैसला' के ज़रिए मुझ पाठक को तो यही सिखाया। एक बात और वर्तमान समय में प्रेम की परिभाषा के साथ की जा रही छेड़छाड़ से प्रेम को होने वाला नुक़सान से बचना होगा...
—भरत तिवारी

उसका फ़ैसला

— वीणा शर्मा


अनुपमा ने करीने से बांधी अपनी पीली साड़ी की सिलवटें ठीक की,खुले छोड़े पल्ले को थोड़ा लहरा कर देखा । कानों ओर गले में पहने ब्लैक मेटल के सेट को उतार कर उसने अपने पसंदीदा सोने के बुन्दे पहन लिये जिन में छोटे-छोटे काले मोतियों की झालरें लगी थी और गले में केवल काले मोतियों की माला । आदमकद शीशे में स्वयं पर एक भरपूर नज़र डाली वह अच्छी लग रही थी, सांवली रंगत पर भी पीला रंग अच्छा लग रहा था, हालांकि अमूमन पीला रंग वह कभी लाल या काले के साथ ही पहनना पसन्द करती थी लेकिन आज वह उससे मिलने जा रही थी । उसके बारे में सोच कर वह अनायास ही मुस्कुरा दी । अपनी मुस्कुराहट देख कर उसे अपनी दसवीं कक्षा की छात्रा शोनाली की बात याद आ गई । दो दिन पहले ही दसवीं कक्षा का विदाई समारोह था । हर साल साधारण सी साड़ी में सारे उत्सव निपटाने वाली अनुपमा को आज नये रूप में देख कर सभी हैरान थे । यही शोनाली चहक उठी थी- मैम आप मुस्कुराते हुए बहुत प्यारे लगते हो । ऐसे ही मुस्कुराते रहा करो । वह पीछे मुड़ कर देखती है तो उसे अपने अन्दर ही बड़ा बदलाव दिखाई देता था । यह बदलाव अचानक नही था । वह खुद हैरान थी कि क्या हो गया है उसे ? क्या पिछले बीस सालों से वह जैसे जी नही रही थी । इन दो महीनों ने जैसे उसका कायापलट कर दिया था । वह स्वयं को ही नही पहचान पा रही थी । दो महीने पहले सब कुछ वैसे ही चल रहा था जैसे पिछले बीस सालों से चला आ रहा था । कभी आत्मज कहता- ममा आप इतने अच्छे स्कूल में जॉब करती हो फिर भी इतनी सादा सी बनकर क्यों रहती हो । आप अपनी फ्रेंडज़ को ही देखो कितना बन ठन कर रहती हैं । वह अक्सर हँस कर टाल जाती और प्यार से उसके बालों में अँगुलियाँ फिरा देती आत्मज तुरत खीझ कर कहता क्या ममा बालों का स्टाइल बिगाड़ दिया इतनी मुश्किल से जैल लगाकर बनाया था । अब फिर से बनाना पड़ेगा । आप तो कुछ समझती ही नही । वह तुनक कर चला जाता । और वह सोचती रह जाती आखिर क्यों वह अमु (आत्मज) की बात नही मानती लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद भी स्वयं से प्रेम करना नही सीख पायी ।
उसका फ़ैसला — कहानी — वीणा शर्मा

डाॅ. वीणा शर्मा

असि.प्रोफेसर (हिन्दी)
गार्गी कालेज, दिल्ली विश्वविद्यालय
मो०: 9650536258
 
     आत्मज को जिस दिन बैंगलोर छोड़ कर आयी उसी दिन पहली बार उसने उससे बात की थी । बात क्या थी बस दो टूक । स्कूल में हर साल प्रतियोगिताएँ आयोजित होती हैं । इस बार उसे भी डिबेटिंग सोसायटी में डाल दिया गया । उसने मना भी किया था लेकिन यह कह कर टाल दिया गया कि स्कूल के अन्य काम भी आपकी नौकरी के अन्तर्गत ही आते हैं । वह चुप लगा गयी । अभी तक केवल अँग्रेज़ी और हिन्दी वाले अध्यापक ही इस सोसायटी में होते थे । इस बार उसमें मैथ्स वालों को भी जोड़ गया था । उसे केवल अतिथियों से बात करने का कार्य सौंपा गया था । दरअसल वसुधा ने ही जोर देकर उसे यह काम सौंपा था कि देखो अनु तुम बहुत विनम्रता से बात करती हो और तुम्हारी आवाज़ भी बहुत मीठी है इसलिये अतिथियों से तुम ही बात करोगी । और उसे मानना पड़ा था । दो अतिथियों से बात करने के बाद तीसरे अतिथि के रूप में आने वाले विभोर जी से उसे बात करनी थी लेकिन उनका फोन लगातार व्यस्त जा रहा था । रात को दस बजे उसका मोबाइल बजा । इतनी देर से उसे दो ही लोग फोन करते थे एक उसका छोटा भाई और दूसरे माँ । हेलो बोलते ही उसे लगा जैसे बीस साल एक पल में सिमट गये हों । उसने हल्के से जैसे बुदबुदाया शैवाल ओह वह धम से सोफे पर बैठ गयी । उधर से हेलो हेलो की आवाज़ आ रही थी । अब उसने अपना स्वर कड़ा करते हुये कहा जी कहिये । उधर से आवाज़ आयी देखिये आप के फोन से मेरे फोन पर कुल सात मिस्ड कॉल्स हैं बताइये क्या सेवा कर सकता हूँ मैं आपकी । दरअसल मैं आज सारा दिन व्यस्त रहा । क्षमा प्रार्थी हूँ बताइये । ओह आप विभोर जी हैं । नमस्कार सर । दरअसल हम आपको अपने स्कूल के डिबेटिंग प्रोग्राम में विशिष्ट अतिथि के रूप में आमन्त्रित करना चाहते हैं । थोड़ी देर चुप्पी के बाद उधर से आवाज़ आयी-अनुपमा जी धन्यवाद मुझे अपने कार्यक्रम में आमन्त्रित करने के लिये, मैं अवश्य आऊँगा । बस इतनी सी बात ही की थी उसने । उसके बाद डिबेट वाले दिन वह बीमार होने की वजह से स्कूल जा नही पायी,और उनसे मिलना भी हो नही पाया । दो महीनों के बाद जब अमु ने जब उसके आइ फोन पर वाट्सऐप चालू कर दिया और साथ ही कुछ लोगों को भी उसमें जोड़ दिया । उसमें एक नाम विभोर जी का भी था । तो वही नम्बर फोटो के साथ उभरा –स्टेट्स था इन मीटिंग । उसने एक धन्यवाद का संदेश भेज दिया । चूंकि उसी दिन होली भी थी इसलिये तुरंत उधर से मुगलिया दरबार की होली का सुन्दर चित्र आ गया, साथ में कुछ प्रकृति की तस्वीरें भी भेजी । वह विभोर जी की तस्वीर को देर तक निहारती रही । वह बीस साल पीछे लौट रही थी वही पिंक और नेवी ब्लू का कांम्बीनेशन । उसको शैवाल को चाहने का जनून भी यही था । उन दिनों लिंडा गुडमैन का जादू जो सिर पर सवार था । वह सोचती है लेकिन आज ? आज तो वह न उस उम्र में है और न ही उस सोच में । फिर आज वह क्यों चाह रही थी कि बातचीत का यह सिलसिला कभी खत्म न हो । उस दिन लगभग एक घण्टा उन्होंने बात की । इसके बाद तो सुप्रभात और शुभरात्रि के बीच हज़ारों प्रकार की बातें साहित्य, राजनीति, समाजशास्त्र,मनोविज्ञान,संगीत कला ,फिल्में हर विषय पर उनकी बातें होतीं । हर रोज कॉफी पर मिलने के वायदे होते हर रोज़ टूटते । एक दिन शाम को उनकी बातचीत का सिलसिला चला तो एक घण्टे से ऊपर हो गया । अनुपमा- एक रिश्ता ऐसा भी होना चाहिये जो छल-कपट से दूर हो । विभोर जी - ऐसा सम्भव नही । अनुपमा- क्यों सम्भव नही जब पेड़-पौधे, चाँद- सितारे अपनी-अपनी जगह खिलते जगमगाते हैं कोई किसी की सीमाओं का उल्लंघन नही करता,मनुष्य ऐसा क्यों नही कर सकता । विभोर जी- विचार अच्छे हैं, निभाना मुश्किल । अनुपमा- आपको क्यों मुश्किल लगता है देखिये सारी समस्या तब शुरु होती है जब हम दूसरों से बहुत सारी अपेक्षाएँ बाँध लेते हैं । विभोर जी- सहमत हूँ आपसे । आप सही कह रही हैं लेकिन इन्सान कहता कुछ और है करता कुछ और मैं भी दूसरे लोगों की तरह ही हूँ । लेकिन मन है न बावरा बाँध ही लेता है । अब देखिये हम कभी मिले नही, एक बार बस फोन पर बात की है,फिर भी ऐसा क्या है जो हमें बाँधता है ,दिन रात चैटिंग करवाता है । इसके बाद बात बन्द हो गयी । इसी बीच फैज़ की, बशीर बद्र, हों अथवा हिन्दी के कवियों की पंक्तियाँ वे एक दूसरे को भेजते रहते उस पर टीका टिप्पणी भी करते,विभोर जी अपनी नयी कहानी, नयी कविता को सांझा करते । हाँ विभोर जी एक प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं । इसपर वह अपनी राय बताती जिस को विभोर जी बड़े ध्यान सुनते कभी मान जाते और कभी उस बात को अपने दृष्टिकोण से समझाने की कोशिश करते । कभी व्यवस्था के ऊपर ऐसी बात शुरु होती कि बहस का रूप ले लेती,लेकिन कुछ ऐसा था कि ऐसी बातों में कभी विभोर जी सहमत हो जाते जो कि अमूमन ऐसा होता और कभी वह हार मान लेती । इतनी बातें होतीं कि कभी-कभी नोंक-झोंक हो जाती और लेकिन तुरत ही मान मुनौवल भी । दो महीने हो गये यह सिलसिला चले हुए और आज हम मिल रहे हैं, लेकिन अचानक फिर से शैवाल ने उसकी नसों को जकड़ना शुरु कर दिया था । आज भी शैवाल ही उसकी भावनाओं का केन्द्र था । पता नही वह उससे प्रेम करती थी या नफरत लेकिन शैवाल के बाद उसने किसी पुरुष को अपने निकट महसूस नही किया था । शैवाल ने उसके अस्तित्व को झिंझोड़ कर रख दिया था । शैवाल के बाद वह कभी किसी पर विश्वास नही कर पायी । उसके इस रवैये से कई लोग उसके सामने ही अजीब सा मुँह बना कर चले जाते थे,लेकिन उसे कोई फर्क नही पड़ता था । दरअसल उसे लगता हर खूबसूरत पुरुष शैवाल ही है । शैवाल ने उसे इतनी बुरी तरह से तोड़ा था कि अब परिवार के अलावा उसे किसी अन्य पर भरोसा ही नही रहा था । शैवाल के जाने के बाद कितना तो जोर लगाया गया था उससे मिन्नतें की गयी थी कि वह अपने जीवन के बारे में फिर से सोचे लेकिन उसकी जिद्द भी अंगद का पैर थी जिसे कोई हिला तक नही पाया । अपनी शादी की पीड़ा की टीसें उसने पल-पल झेली थीं यह केवल वही जानती थी । जब आत्मज उसकी गोद में आया तो उसे लगा कि वह अपनी बाकी जिन्दगी उसी की परवरिश में बिता देगी और अब तक उसने ऐसा किया भी । आत्मज उसका बेटा केवल उसका बेटा है । उसके नौ महीनों का अहसास केवल उसका अपना था शैवाल कहीं भी उसमें सांझेदार नही था । मात्र बीस दिनों में उसकी शादी और अलगाव का तामझाम सिमट गया था । बिल्कुल ऐसे जैसे बीस दिनों में कोई फिल्म की शूटिंग मुकम्मल करके लौट गया हो । शैवाल ऐसे ही चला गया उसे आश्चर्यचकित करता हुआ, जैसे हैरान करता हुआ वह आया था । उसकी बाहरवीं की परीक्षा हो कर चुकी थी । वह चाचा के पास दिल्ली जाने के लिये उत्साहित थी लेकिन तभी धूमकेतू सा शैवाल का रिश्ता उसके लिये आ गया । शैवाल पाँच फुट दस इँच का खूबसूरत नौजवान पहली ही नज़र में सब को भा गया । शैवाल अमेरिका में सॉफ्टवेयर इंजीनियर था । पापा के किसी मित्र ने यह रिश्ता बताया था । अमेरिका और उससे भी अधिक सॉफ्टवेयर इंजीनियर सुनकर ही सभी इतना खुश हो गये कि किसी ने कुछ और जानने की कोशिश ही नही की । सभी उसके व्यक्तित्व से पूरी तरह प्रभावित हो गये थे । लेकिन उसकी रज़ामंदी किसी ने जानने की जरूरत ही नही समझी थी । सभी खुश थे कि घर बैठ-बिठाए इतना अच्छा रिश्ता जो मिल रहा था । आखिर साँवली लड़की के भाग्य में इससे बेहतर तो कुछ हो ही नही सकता था । उसे तो जैसे चुप मार गयी थी । वह तो अभी पढ़ना चाहती थी । दिल्ली से चाचा भी परिवार सहित आ गये थे । शैवाल केवल बीस दिनों की छुट्टी लेकर आया था ।
 
     जब उसे पहली बार शैवाल के सामने प्रस्तुत किया गया । किसी ने उससे कुछ नही पूछा । उसे केवल सजा धजा कर उसके समक्ष बिठा दिया गया केवल उसकी सहमति असहमति के लिये किसी वस्तु की तरह । शैवाल वाकई बहुत खूबसूरत नौजवान था । उसे भी लगा कि शायद यही उसके लिये सही होगा । अलग से बातचीत करने में उसने कोई उत्साह नही दिखाया । यह उसे कुछ अजीब लगा लेकिन सभी ने इसे उसकी शराफत का दर्जा दिया । निश्चित समय पर शादी सम्पन्न हुयी । वह विधिवत शैवाल की पत्नी बन गई । लेकिन भारत की यह विधि शादी का ठोस प्रमाण होने के बावजूद भी अमेरिका में स्वीकृत नही थी क्योंकि इसके लिये कोर्ट-मैरिज आवश्यक थी । शैवाल ने बीसवें दिन ऐलान कर दिया कि बॉस ने उसकी छुट्टियाँ रद्द कर दी हैं,कम्पनी में कुछ समस्या हो गई है,उसे उसी दिन निकलना है । एक महीने बाद वह अनु को अमेरिका ले जाएगा । वह चला गया । उसने वहाँ पहुँचने की न तो अपनी कोई सूचना दी और न ही उसका हाल जानने की कोशिश की । जो फोन किये गये वे या तो पहुँच से बाहर बताये गये या बन्द । उसने अपने जानने वालों से भी सम्पर्क तोड़ दिया था । वे भी शर्मिन्दा थे । जबकि सत्य यह था कि वह पहले से वहाँ एक योरुपीय लड़की से विवाहित था । हालांकि यह बात पापा के वह मित्र भी कहाँ जान पाये थे । दूसरे शैवाल का उससे कुछ भी न पूछना उसे अखरा जरूर था । सारी बातें बाद में जाकर खुल पायीं जब पापा ने यह बताया कि शैवाल ने उनसे दो लाख रुपये उधार लिये थे । दरअसल शैवाल का यहाँ शादी करने का कभी कोई इरादा ही नही था । पापा के मित्र के जरिए वह किसी तरह से यह जानने में कामयाब हो गया कि पापा एक अच्छे वर की तलाश कर रहे हैं । शैवाल भारत अपने जिन जायदादी पैसों की तलाश में आया था वह उसे नही मिले थे । केवल दो लाख के लिये शैवाल ने नाटक की पटकथा तैयार कर ली थी और किसी को इसकी भनक तक नही लगी थी । लेकिन उसे तो कसाई के हाथों जिबह किया जा चुका था ।
 
     इन कार्यकलापों में उसे समझ ही नही आ रहा था कि वह किसको दोष दे,शैवाल को जो एक अजऩबी था अथवा अपने परिवार को जिन्होंने उसके खूबसूरत चेहरे के पीछे की सचाई जाने बिना उसे उस कसाई के हाथ सौंप दिया था,जो बीस दिन कानूनी अधिकार के साथ उसका बलात्कार करता रहा । अथवा स्वयं को भी कि हर रोज वह उसकी आत्मा को किरची-किरची तोड़ता रहा और उसने दर्द का अहसास तक नही किया । हाँ कोशिश की तो हर रोज बेसन, मलाई, और फेयर एंड लवली से गोरा होने की ताकि वह भी शैवाल की थोड़ी सी तारीफ पा सके । वह उसे पल-पल काट रहा था और वह बेसुध थी उसकी उसी निर्ममता को प्रेम समझ कर वह अपने भाग्य पर इठला रही थी । लेकिन जब वह चला गया उसे बिना बताये तो बहुत चीखी चिल्लायी थी अपने उसी भाग्य पर । और कुछ दिनों के बाद वह चाचा-चाची के पास दिल्ली आ गयी थी । वह अब अपने भविष्य के बारे में सोचना चाहती थी । लेकिन संभवत उसकी नियति उसे अभी और परखना चाहती थी । मम्मी-पापा और चाचा-चाची सबने उसे छुटकारा पाने की सलाह दी थी लेकिन वह नही मानी । उसने निर्णय कर लिया था कि वह इस बच्चे को जन्म भी देगी और अकेले ही उसे पालेगी भी । वह नितान्त उसका अपना होगा,उसका आत्मज । हालांकि आत्मज की सारी जिम्मेदारियाँ चाची ने उठा ली थी और वह स्वतन्त्र होकर अपनी पढ़ाई में जुट गयी थी । उसने गणित विषय चुना था और बी.एड. करके एक अच्छे स्कूल में उसे स्थायी नौकरी भी मिल गयी थी । और आज उस बात को बीस साल हो चुके हैं । अचानक उसने कुछ निर्णय किया और गाड़ी निकाल कर शहर के बाहर निकल गई । सड़क के एक तरफ चार पाँच पेड़ों पर पलाश फूला हुआ था । वह गाड़ी एक ओर खड़ी करके उन वृक्षों के पास चली गयी । सुर्ख रंग में डूबे आग की लपटों से प्रतिभासित इन फूलों में उसे अपना व्यक्तित्व प्रतीत होता हुआ लगा । एकान्त में तपस्वी की तरह कोई उसके पास आये अथवा न आये वह खिलता रहेगा । उसने अपना फोन निकाला और वाट्सऐप को हटा दिया । अब उसे दूसरे किसी शैवाल से मिलने की इच्छा नही थी । उसने आत्मज को संदेश भेजा- कल की फ्लाइट से आ रही हूँ । गाड़ी घर की ओर मोड़ दी । एफ.एम. पर गाना चल रहा था- हम तो भई ऐसे हैं ऐसे रहेंगे । 
००००००००००००००००

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story: कोई रिश्ता ना होगा तब — नीलिमा शर्मा की कहानी
विडियो में कविता: कौन जो बतलाये सच  — गिरधर राठी
इरफ़ान ख़ान, गहरी आंखों और समंदर-सी प्रतिभा वाला कलाकार  — यूनुस ख़ान
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
परिन्दों का लौटना: उर्मिला शिरीष की भावुक प्रेम कहानी 2025
Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
रेणु हुसैन की 5 गज़लें और परिचय: प्रेम और संवेदना की शायरी | Shabdankan
एक पेड़ की मौत: अलका सरावगी की हिंदी कहानी | 2025 पर्यावरण चेतना
द ग्रेट कंचना सर्कस: मृदुला गर्ग की भूमिका - विश्वास पाटील की साहसिक कथा