डॉ राकेश पाठक की कवितायेँ | Poems : Dr Rakesh Pathak #हिंदी

कविता तब बहुत आत्मीय हो जाती जब उसे पढ़ते वक़्त लगे कि जिस काल में कविता है उसी काल में, कवि के आसपास ही कहीं इत्मिनान से बैठ, कवि को वह रचते देख रहे हों, जो हम चाह के भी नहीं कह सके. डॉ राकेश पाठक की कविता की हर पंक्ति आत्मीय हो गयी. शुक्रिया कवि. — भरत तिवारी २८/१०/२०१६, नई दिल्ली

डॉ राकेश पाठक की कवितायेँ | Poems : Dr Rakesh Pathak Photo Bharat tiwari


डॉ राकेश पाठक की आत्मीय कवितायेँ 

Poems : Dr Rakesh Pathak


हम दोनों



सभ्यता के प्रारम्भ में
चकमक पत्थर से
आग खोज कर लाये थे
हम दोनों
सिंधु घाटी की वीथिकाओं में
हमने ही तो रखे थे पहले कदम
ताड़ पत्रों पर लिखे थे
मनुष्यता के पहले प्रेम पत्र
शैलाश्रयों में सहस्त्राब्दियों पहले
हम दोनों ने ही बनाये थे भित्ति चित्र
महाप्रलय के बाद
सिर्फ हम दोनों ही तो बचे थे
पिरामिडों की दीवारों पर
पीठ लगाकर हम ही तो बैठते थे
बेबीलोन के झूलते बगीचों में
सबसे पहले भरीं थीं पीगें
अगले महा विस्फोट के बाद भी
हम दोनों ही बचे रहेंगे
प्रेम करने के लिए
अहर्निश।




मैंने प्रेम किया



मैंने प्रेम किया
आखेटक की तरह
तैयार किए अस्त्र-शस्त्र
मेहनत से बांधा मचान
ठीक किए सब कील काँटे
पैने किए तीर और
खींचकर परखी कमान
रेशम के महीन धागे से बुना जाल
और बिछा दिया उसके रास्ते में
भरमाया उसे प्रेम के 'मृग जल' से
अंतत: किया उसकी देह का संधान
मैंने प्रेम किया
प्रेम का अभिनय करते हुए





उसने प्रेम किया


उसने प्रेम किया
आलता घोल कर
पैरों में रचाया
हवन के लिए वेदी सजाई
आटे से चौक पूरा
और नवग्रह बनाए
रोली, चावल और थोड़ा सा कपूर रखा
पालथी मारकर बैठी
सिर पर जरा-सा आगे किया पल्लू
हथेली पर गंगाजल लेकर किया आचमन
‘आवाहनम् न जानामि’ कहते हुए
किया देवताओं का आह्वान
प्रेम हवन में खुद को करती रही स्वाहा
‘पूजाम् चैव न जानामि’ कहते हुए
उसने प्रेम किया
पूजा की तरह।




लौट आना


लौट आना इस बार भी
जैसे लौटती रही हो अब तक
लेकिन लौट आना
बसंत के पहले दिन से पहले
लौट आना
सावन की पहली बारिश  में
मिटटी की सौंधी गंध से पहले
पूस के महीने में
जब आसमान से रुई की तरह
झरने वाली हो ओस
ठीक उससे पहले लौट आना
जेठ में सूरज से
बरसने लगे आग
और सुलगने लगे धरती
कुछ भी हो जाये
उससे पहले तुम लौट ही आना
हमें साथ साथ ही तो चुनने हैं
बसंत में पहली बार खिले फूल
पहली बारिश के बाद
गीली मिट्टी पर बनाने हैं
दो जोड़ी पाँव के निशान
ठिठुरती सर्दी में
बरोसी के पास बैठ
करनी हैं ढेर सारी कनबतियां
और जेठ की तपती दुपहरी में
तुम्हारे सुलगते होठों पर
रखनी हैं गुलाब की पंखुड़ियां
जीवन की वही आस
और चेहरे पर हास लिए
मेरे विश्वास की तरह
तुम ज़रूर लौट आना।




विदा के बाद


हो सके तो रखना
थोड़ी सी जगह मेरे लिए
विदा के बाद भी
ज्वार उतरने के बाद
मन के किनारों की रेत पर
बचा कर रखना थोड़ा सा गीलापन
जैसे अलगनी पर छोड़ कर रखती हो
हमेशा एक रूमाल की जगह
जैसे बची ही रहती है
तुम्हारे बेतरतीब पर्स में
बिंदी के पत्ते के लिए गुंजाइश।




तुम्हारा पता


देश देशान्तरों को
पार करके पहुंचा मैं
मीलों पसरे मैदानों में
पीले सोने जैसी सरसों से
पूछा तुम्हारा पता
ऊंचे पहाड़ों पर
आसमान से बातें करते
देवदार के पास ठहरा
झुक कर उसने कान में
बताया रास्ता
महासागरों के किनारों पर
ठहरा रहा सदियों
तब लहरों ने आगे बढ़ कर
मेरा हाथ थामा
न जाने कितने प्रकाश वर्ष
लम्बा सफर तय करते करते
निविड़ अंधकार के बीच
जुगनुओं ने दिखाई राह
घनघोर सन्नाटे को चीर कर
झूंगुर बढ़ाते रहे मेरा हौसला
अबूझ जंगलों को पार करते समय
परिंदों ने सुनायीं परी कथाएं
सर्द रातों में
पुच्छल तारों ने की रौशनी
कि भटक न जाऊं
दिन की तेज़ रौशनी में
सूरज ने अपने घोड़े दे दिए
कि जल्द से जल्द पा सकूं
तुम्हारा पता
तब मिलीं तुम
घर की देहरी पर खड़ी
पैर के अंगूठे से
धरती को कुरेदती हुयी
मेरे लिए
अनंतकाल से प्रतीक्षारत।

डॉ राकेश पाठक
डॉ. राकेश पाठक, प्रधान संपादक ,डेटलाइन इंडिया 
जन्म: 1 अक्टूबर 1964, गोरमी जिला भिण्ड मप्र में
शिक्षा: एम ए (सैन्य विज्ञान),  एम ए (इतिहास),  पीएच.डी.(सैन्य विज्ञान)
ग्वालियर में कुछ वर्ष शासकीय प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक । सन् 1989 से सक्रिय पत्रकार।
अनुभव: संपादक नईदुनिया, संपादक नवभारत, संपादक नवप्रभात , संपादक प्रदेश टुडे ग्वालियर । सांध्य समाचार, स्वदेश, आचरण और लोकगाथा आदि समाचार पत्रों में महत्वपूर्ण दायित्व का निर्वाह।
पुरस्कार-सम्मान: सत्यनारायण श्रीवास्तव स्मृति पत्रकारिता पुरस्कार, जगदीश प्रसाद चतुर्वेदी पत्रकारिता पुरस्कार, राज भारद्वाज सम्मान
प्रकाशित पुस्तकें: यूरोप का यात्रा वृतांत ‘काली चिड़ियों के देश में' मेधा बुक्स दिल्ली से प्रकाशित, कविता संग्रह
बसंत के “पहले दिन से पहले” दखल प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित। शोध पुस्तक 'हिन्दी पत्रकारिता का इतिहास- मध्यप्रदेश' छत्तीसगढ़ हिंदी ग्रन्थ अकादमी से प्रकाशित
आने वाली पुस्तक: "परमाणु बम के मुहाने पर"
संपर्क : शिव प्रसाद, एम-157 ए, माधव नगर, ग्वालियर - 474002 म.प्र.
फोन : 0751-2627700, मोबाइल : 098260-63700, ई-मेल : rakeshpathak0077@gmail.com

००००००००००००००००
nmrk5136

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
मन्नू भंडारी की कहानी — 'रानी माँ का चबूतरा' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Rani Maa ka Chabutra'
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
मन्नू भंडारी की कहानी  — 'नई नौकरी' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Nayi Naukri' मन्नू भंडारी जी का जाना हिन्दी और उसके साहित्य के उपन्यास-जगत, कहानी-संसार का विराट नुकसान है
मन्नू भंडारी, कभी न होगा उनका अंत — ममता कालिया | Mamta Kalia Remembers Manu Bhandari
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy
Hindi Story: दादी माँ — शिवप्रसाद सिंह की कहानी | Dadi Maa By Shivprasad Singh
टूटे हुए मन की सिसकी | गीताश्री | उर्मिला शिरीष की कहानी पर समीक्षा