...तो मोदीजी बेहद नर्वस हैं... — अभिसार शर्मा | ItihaasPurush Modi - Abhisar Sharma



मोदीजी आप इतिहास पुरुष हैं

अभिसार शर्मा 

“अपने अन्दर की बुराइयों से लड़ने के लिए वो कष्ट सहने को तैयार है। ” ऐसा कहा था मोदीजी ने। मुझे उनके पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर दिए गए बयान से ज्यादा इस बात पर आपत्ति है। उसकी चर्चा बाद में पहले इस बयान की बात करते हैं।


तो फिर बताइए...क्या बुराई है उस आम इंसान में जो घंटों लाइनों में लगा रहा ? जिसकी रोज़मर्रा की अर्थव्यवस्था चरमरा गयी ? धंधे चौपट और आप लगातार बयान बदलते रहे, लक्ष्य बदलते रहे। काले धन से आतंकवाद और वहां से डिजिटल, फिर रियल-एस्टेट तक पहुँच गए। इस बयान में न सिर्फ ज़मीनी हकीकत, उससे पनपने वाली समस्याएं और नोटबंदी के शिकार लोगों को लेकर उदासीनता है, बल्कि समस्या इससे ज्यादा गंभीर है। या तो मोदी बेहद नर्वस हैं या उन्हें जनता की समस्याओं का बिलकुल भी अंदाजा नहीं है। । सच्चाई से मुँह मोड़ लेना, शुतुरमुर्गी रवैया अपनाना, किसी भी आलोचना का आसान जवाब होता है। मोदीजी यही कर रहे हैं। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद, देश के सैनिक लगातार मारे जा रहे हैं। भाईदूज के दिन तो एक ही परिवार के चार लोग मारे गए। नगरोटा हुआ। एक और सैनिक छावनी पर पाकिस्तानी चूहों का हमला। प्रधानमंत्री की सुविधावादी खामोशी यहाँ दिखाई दी। यानी कि, गज़ब है। इसपर कोई सवाल नहीं करता। ज़ाहिर जवाब क्यों देंगे आप? विपक्ष संसद में बयान की मांग करता रहा और आप मौन रहे। बिलकुल उनकी तरह।

क्या ये रणनीति उत्तर प्रदेश और पंजाब के चुनावों में काम आएगी? ये तभी संभव होगा अगर जनता ये मान रही है कि मोदीजी की तुलना में उत्तरप्रदेश और पंजाब के बाकी सभी राजनेताओं की विश्वसनीयता शून्य है। और अगर जनता तमाम मुश्किलों के बावजूद, बीजेपी को वोट देती है। तब तो मोदी इस देश में सबसे ऐतिहासिक प्रधानमंत्री हो जायेंगे। कालजयी ROCKSTAR ! वापस राज्यसभा में प्रधानमंत्री के तेवरों की बात करते हैं। ये पहली बार नहीं है जब मोदीजी ने ऐसा बयान दिया है। याद होगा आपको...

“नोटबंदी के बाद मित्रों, गरीब सुख की नींद सो रहा है और अमीर की रातों की नींद उड़ गयी है”

मीडिया में भी नोटबंदी को लेकर अचानक कमाल की ख़ामोशी पसर गयी है

इन दोनों बयानों को आप क्या कहेंगे ? कुछ लोग इसे बेहतरीन सियासत भी बताना चाहेंगे। यानी कि मैं मान ही नहीं रहा कोई समस्या है तो आप मुझसे जवाबदेही किस बात की लेंगे ? ऊपर से मीडिया में भी नोटबंदी को लेकर अचानक कमाल की ख़ामोशी पसर गयी है। उत्तरप्रदेश जीत गए तो हर जगह “मोदी मोदी “ होना लाज़मी है और करोड़ों लोगों को जो समस्याएं हुई थी या फिर मेरे जैसे पत्रकारों ने अपनी ज़मीनी रिपोर्ट से लोगों तक पहुंचाई थी, वो बेमानी साबित होंगी। कम से कम राजनीतिक स्तर पर। रिपोर्ट के स्तर पर बिलकुल भी नहीं। बीजेपी को 400 सीट भी मिल जाएँ,मैं तब भी कहूँगा कि नोटबंदी का फैसला एक भ्रमित फैसला था, जिसका मकसद सिर्फ और सिर्फ मोदीजी की छवि को दैवीय, ईश्वरीय बनाना था। कम से कम वो तो ऐसा मानते हैं। इससे लोगों को समस्याएं हुई हैं। इसने धंधे चौपट किये हैं। और सबसे बड़ी बात, इसने “सामान्य“ क्या होता है, उसकी परिभाषा बदल दी है। अब मिडिल क्लास के लिए भी ज़ेब में पैसा, काफी है आपकी ज़रुरत अनुसार है, ये ज़रूरी नहीं।

दरअसल मोदी एक और काम कर सकते थे। वो संजीदगी से स्वीकार करते कि नोटबंदी से लोगों को काफी मुश्किलें हुई हैं। इससे परेशान लोगों, मारे गए लोगों के प्रति शोक व्यक्त कर देते। मान लेते कि उन्हें अंदाजा नहीं था कि लोगों को ऐसी दिक्कतें पेश आयेंगी। मगर आप भी जानते हैं कि ऐसा कभी नहीं हो सकता, खासकर वो मोदीजी जो खुद को अपने नाम से संबोधित करते हैं। जितनी बार मैंने मोदीजी की जुबां से खुद अपना नाम लेते सुना है, वैसा “स्वाभिमानी” शायद ही कोई प्रधानमंत्री होगा। अहम ब्रह्मास्मी। मैं, मुझे और मेरी। यही आत्ममुग्धता मोदीजी को अपनी गवर्नेंस की कमियाँ देखने से रोक रही है। ऊपर से उन्हें साथ मिल गया है अमित शाह का। जिनके सामने अगर कोई बीजेपी नेता अपनी कोई समस्या लेकर पहुँच जाए, तो उसकी खैर नहीं। पहले तो उसके मोबाइल फ़ोन को दफ्तर के बाहर रखवाया जाता है, ताकि कोई स्टिंग न कर दे, फिर जिस तरह के शब्दों के साथ अध्यक्ष महोदय उन्हें नवाजते हैं, इसकी तसदीक पार्टी के कई नेता आपको कर देंगे। ऊपर से अमित शाह और प्रधानमंत्री दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। ये जोड़ी गज़ब की है। जब तक बीजेपी का सितारा बुलंद है, तब तक पार्टी मे किसी की हिम्मत नहीं कि कोई कुछ बोल दे। एक और वजह है। मोदीजी और सर-संघ-चालक मोहन भागवत में भी समीकरण बेहद सौम्य दिखाई देते हैं। ऐसा वाजपेयी के ज़माने में नहीं था। यानी कि 11 मार्च को अगर बीजेपी हार भी गयी, तो मुझे नहीं लगता कि नागपुर से कोई त्वरित घंटा बजेगा।

यानि मोदी बहुत सहज स्थिति में हैं। और अगर उनकी आँखों में आंसू छलक भी आते हैं (कुछ ऐसे मौके हमने देखे हैं), तब वो उन गिनेचुने लम्हों का नतीजा होगा, जब वो ज्यादा तनाव में आ जाते होंगे। उनके पास अमित शाह जैसे मित्र हैं जो बाकी सभी “मित्रों” पर राजनीतिक तौर पर भारी साबित होते हैं।

अब बात करते हैं मनमोहन सिंह पर उनकी टिप्पणी की। बकौल प्रधानमंत्री, मनमोहन सिंह बाथरूम में रेनकोट पहन कर नहाते हैं। एक रचनात्मक जुमला था। भावनाओं को समझें। वो भ्रष्टाचार पर पूर्व प्रधानमंत्री पर टिप्पणी कर रहे थे, बता रहे थे कि 35 सालों तक पूर्व प्रधानमंत्री सिंह का देश की अर्थव्यवस्था पर दबदबा रहा, फिर भी उनके दामन में कोई दाग नहीं। मोदीजी ने कहा भी कि मैं उसी सिक्के में जवाब देता हूँ जिस शब्दावली का प्रयोग विपक्ष करता है। अग्निपथ फिल्म का डायलोग भी है...सवाल जिस जुबान में किया जाए, जवाब उसी जुबान में मिलना चाहिए। और संवाद की अदायगी भी मोदीजी के पसंदीदा अभिनेता, श्री अमिताभ बच्चन ने की थी। आखिर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नोटबंदी को संगठित लूट बताया...अब जवाब मनमोहन सिंह पर व्यक्तिगत हमला तो बनता ही है न ? क्यों मोदीजी ? सोशल मीडिया में आपकी सेना का भी यही अंदाज़ है। और जब आप ऐसी बातें करेंगे, तो वो भी तो आपसे ऐसी सकारात्मक सीख लेगा ? क्योंजी?

मगर मैं आपकी एक बात नहीं समझा मोदीजी। अगर पूर्व प्रधानमंत्री का वाकई देश की अर्थव्यवस्था पर ऐसा दबदबा था कि देश की दशा और दिशा उन्होंने तय की, तो फिर आप और आपके समर्थक उन्हें गूंगा, मैडम का ग़ुलाम जैसे जुमलों से क्यों नवाजते हैं ? इतना असरदार आदमी हैं अगर ये सरदार, तो फिर आपके प्रोपगंडा का क्या। कि मनमोहन सिंह कोई फैसला नहीं ले सकते। कुछ असर नहीं है उनका,वगैरह वगैरह। घोर confusion है।

मेरा व्यक्तिगत तौर पे मानना है कि प्रधानमंत्री का काम होता है संवाद के स्तर को उठाना। ये याद रखना कि चुनावी मंच के भाषण और संसद में दी गयी स्पीच में ज़मीन आसमान का फर्क है। यही वजह है कि जब वेंकैय्या नायडू विपक्ष द्वारा मोदी के बारे में संसद के बाहर दिए गए बयानों का हवाला देते हैं, तो वो बहुत हलकी दलील साबित होती है। मगर उससे भी बड़ा सवाल। आप किस तरह के समर्थक चाहते हैं ? इस आक्रोश और तल्खी की कोई हद है क्या ? आप चुनावी मंच में 50 करोड़ की गर्लफ्रेंड की बात करते हैं, उसका नतीजा आपके भक्तों की बोलचाल और रवैय्ये में दिखाई देता है। सभी हदें पार हो जाती हैं। आज आपने रेनकोट और घी की बात की, देखिएगा उसका परिणाम, आम संवाद में कैसे उभर कर आता है। इस लिहाज़ से आप वाकई भारतीय सियासत में ऐतिहासिक हो गए हैं।


(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
००००००००००००००००


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ