मौत के कागज़ सभी भरने लगे
अब तो जीते जी ही सब मरने लगे
भरभरा परदे सभी गिरने लगे
जो ढंके थे चेहरे दिखने लगे
कौन हिटलर है सिकंदर कौन हैं
घर घर में तानाशाह जब उगने लगे
देशभक्ति हो गयी आसान यों
तिरंगे सड़कों पे अब बिकने लगे
जो ख़ुदी बेचा किये, देखे 'भरत'
आज पहरेदार वो होने लगे
मैं सिर्फ उत्तर प्रदेश की बात कर रहा हूं बाकी राज्यों में क्या होता है नहीं कह सकता
उत्तर प्रदेश के किसी भी अस्पताल में जब किसी सप्लायर या कंपनी को दवा यंत्र आदि इत्यादि किसी भी चीज का आर्डर मिलता है, तब यह पहले ही तय हो चुका होता है कितना कमीशन अस्पताल को जाएगा, अस्पताल अर्थात पेमेंट प्रक्रिया से जुड़ा विभाग और विभाग के लोग ।बगैर कमीशन मिले सप्लायर को पेमेंट हो जाए तकरीबन असंभव है। वैसे एक बात इसमें यह भी है की अधिकतर सप्लायर पहले ही सामान चाहने वाले या पेमेंट देने वालों में से किसी का जानकार होता है। लेकिन पेमेंट फिर भी कमीशन मिलने के बाद ही दी जाती है। गोरखपुर का यह नृशंस हत्याकांड असल में इसी की देन है।
यह बात उत्तर प्रदेश सरकार से जुड़े हर व्यक्ति को पता है। अकारण नहीं है कि सारे मंत्री एक प्रिंसपल और एक सप्लायर के पीछे पढ़े हुए हैं। बार-बार नाम ले रहे हैं ताकि हमारा ध्यान इस चेन के ऊपर न जाने पाए और अब क्योंकि यह मुद्दा राष्ट्रीय स्तर का हो गया है तो ऐसे में अपनी दुधारू गाय कमीशन को बचाना सबसे जरूरी है, क्योंकि वह नहीं होगी तो कोठियां गाड़ियां अथाह धन संपत्ति कहां से आएगी। और पेमेंट चयन से जुड़ने के लिए जो पैसे खर्च किए कि विभाग में आ सकें, वह भी तो निकालने हैं। यह भी क्लियर है कि सप्लायर और प्रिंसपल के मत्थे सब कुछ डालने के पहले ही तय हो गया होगा कि अभी मामला गरम है, ठंडा होते ही सब पहले जैसा हो जाएगा।
नेताओं की कुटिल मासूमियत जो बच्चों की मौत के बावजूद बरकरार नजर आती है, वह शायद इस दुखद घटना का सबसे दुखद पहलू है। कितनी आसानी से प्रदेश के सर्वेसर्वा कहते हैं कि प्रिंसपल ने पैसे नहीं दिए और वह ऋषिकेश चले गए। वाह! वह उसी दिन आए जिस दिन मौतें मीडिया में आती हैं और उसी दिन सप्लायर को पैसे भी दिए जाते हैं। और यह सब तब हो रहा है जबकि उनके मुताबिक उन्हें और उनके साथ के उन सारे लोग को जो कुछ दिनों पूर्व, इसी अस्पताल में, बैठक में शामिल थे — किसी को ऑक्सीजन की कमी का कुछ भी नहीं पता था। कहां से लाते हो यह हत्यारी मासूमियत? उनके स्वास्थ्य राज्य मंत्री का दुर्घटना के पीछे कारण बताने का तरीका और कारण दोनों ही तुच्छ और हवाई है। वह कहते हैं— आंकड़़े की पर्ची को देखने के बाद — कि बीते वर्षों में भी ऐसा ही होता आया है और इस वर्ष यह सब कोई जापानी वायरस है जिसके चलते हो रहा है। मंत्री जी यह कहने से पहले इतना तो सोचते कि यह सिर्फ एक अस्पताल में क्यों हो रहा है, कोई जापानी कनेक्शन है या वहां पर वायरस ज्यादा अच्छे से फलते फूलते हैं?
स्वास्थ्य मंत्री की जिरहबाज़ी यहीं नहीं ख़त्म होती वह आगे बताते हैं कि गोरखपुर का यह मेडिकल कॉलेज सिर्फ गोरखपुर ही नहीं बल्कि अड़ोस-पड़ोस के और शहरों और नेपाल के मरीजों को भी इलाज देता है और मेडिकल कॉलेज में सिर्फ ज्यादातर वह केस आ रहे होते हैं जिसमें मरीज की हालत मरणासन्न होती है। इसलिए उनके हिसाब से मरीज मर जाता है और अस्पताल में होने वाली मृत्यु की संख्या बढ़ा जाता है। मंत्री जी आपकी सुने तब तो बड़े अस्पतालों, मेडिकल कॉलेजों में इस उम्मीद से जाने वालों को कि वहां जान बचेगी, बेहतर इलाज होगा नहीं जाना चाहिए। इसका एक निष्कर्ष यह भी निकलता है कि देश के सारे प्रमुख विश्वसनीय बड़े अस्पतालों में मरने वालों की संख्या छोटे अस्पतालों से अधिक होती होगी मौत को आपने कितने आसान समीकरण में बदल दिया!
भ्रष्टाचार हटाने की बात कहना और भ्रष्टाचार हटाना उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव है। बाकी पहले था कि 'ये जो पब्लिक है सब जानती है', अब ऐसा नहीं रहा है अब पब्लिक जितना जानती थी सब भूल चुकी है।
यह बात उत्तर प्रदेश सरकार से जुड़े हर व्यक्ति को पता है। अकारण नहीं है कि सारे मंत्री एक प्रिंसपल और एक सप्लायर के पीछे पढ़े हुए हैं। बार-बार नाम ले रहे हैं ताकि हमारा ध्यान इस चेन के ऊपर न जाने पाए और अब क्योंकि यह मुद्दा राष्ट्रीय स्तर का हो गया है तो ऐसे में अपनी दुधारू गाय कमीशन को बचाना सबसे जरूरी है, क्योंकि वह नहीं होगी तो कोठियां गाड़ियां अथाह धन संपत्ति कहां से आएगी। और पेमेंट चयन से जुड़ने के लिए जो पैसे खर्च किए कि विभाग में आ सकें, वह भी तो निकालने हैं। यह भी क्लियर है कि सप्लायर और प्रिंसपल के मत्थे सब कुछ डालने के पहले ही तय हो गया होगा कि अभी मामला गरम है, ठंडा होते ही सब पहले जैसा हो जाएगा।
नेताओं की कुटिल मासूमियत जो बच्चों की मौत के बावजूद बरकरार नजर आती है, वह शायद इस दुखद घटना का सबसे दुखद पहलू है। कितनी आसानी से प्रदेश के सर्वेसर्वा कहते हैं कि प्रिंसपल ने पैसे नहीं दिए और वह ऋषिकेश चले गए। वाह! वह उसी दिन आए जिस दिन मौतें मीडिया में आती हैं और उसी दिन सप्लायर को पैसे भी दिए जाते हैं। और यह सब तब हो रहा है जबकि उनके मुताबिक उन्हें और उनके साथ के उन सारे लोग को जो कुछ दिनों पूर्व, इसी अस्पताल में, बैठक में शामिल थे — किसी को ऑक्सीजन की कमी का कुछ भी नहीं पता था। कहां से लाते हो यह हत्यारी मासूमियत? उनके स्वास्थ्य राज्य मंत्री का दुर्घटना के पीछे कारण बताने का तरीका और कारण दोनों ही तुच्छ और हवाई है। वह कहते हैं— आंकड़़े की पर्ची को देखने के बाद — कि बीते वर्षों में भी ऐसा ही होता आया है और इस वर्ष यह सब कोई जापानी वायरस है जिसके चलते हो रहा है। मंत्री जी यह कहने से पहले इतना तो सोचते कि यह सिर्फ एक अस्पताल में क्यों हो रहा है, कोई जापानी कनेक्शन है या वहां पर वायरस ज्यादा अच्छे से फलते फूलते हैं?
स्वास्थ्य मंत्री की जिरहबाज़ी यहीं नहीं ख़त्म होती वह आगे बताते हैं कि गोरखपुर का यह मेडिकल कॉलेज सिर्फ गोरखपुर ही नहीं बल्कि अड़ोस-पड़ोस के और शहरों और नेपाल के मरीजों को भी इलाज देता है और मेडिकल कॉलेज में सिर्फ ज्यादातर वह केस आ रहे होते हैं जिसमें मरीज की हालत मरणासन्न होती है। इसलिए उनके हिसाब से मरीज मर जाता है और अस्पताल में होने वाली मृत्यु की संख्या बढ़ा जाता है। मंत्री जी आपकी सुने तब तो बड़े अस्पतालों, मेडिकल कॉलेजों में इस उम्मीद से जाने वालों को कि वहां जान बचेगी, बेहतर इलाज होगा नहीं जाना चाहिए। इसका एक निष्कर्ष यह भी निकलता है कि देश के सारे प्रमुख विश्वसनीय बड़े अस्पतालों में मरने वालों की संख्या छोटे अस्पतालों से अधिक होती होगी मौत को आपने कितने आसान समीकरण में बदल दिया!
भ्रष्टाचार हटाने की बात कहना और भ्रष्टाचार हटाना उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव है। बाकी पहले था कि 'ये जो पब्लिक है सब जानती है', अब ऐसा नहीं रहा है अब पब्लिक जितना जानती थी सब भूल चुकी है।
भरत तिवारी
1 टिप्पणियाँ
Kis dor mei aa gaye h hum
जवाब देंहटाएंGar koi kisi ki jaan bachaye to
Uski hosla afzai karne ke bajai
Usmei dharm dhundne lagtei h
Uske beetei karmo ko dhundhne lgtei h
Socho gar upar wala bhi esa karei to
Hum sab hi kahi na kahi dozak (nark) ke
Haq daar h....
Shayad ab hamme insaniat baki nahi rahi ya kahe hum Quraan, Geeta ya bible mei kahi gayi
Baato par nahi bas jhoothe netau ki baato
Par chal rahe h.....