ठुमरी: रसिकों को कौन रोकेगा - भरत तिवारी | #IndianClassical


गिरिजा देवी जी के साथ तानपुरे पर शोभा चौधरी (बांये) रीता देवो (दांये) और देव प्रिया 

गिरजादेवी जी की सलाह 

- भरत तिवारी




शांति हीरानन्द
ठुमरी,अर्ध-शास्त्रीय गायन या सुगम शास्त्रीय संगीत की इस हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत शैली के रूमानियत (रस) और भक्तिपूर्ण संगीत में मानसून की बारिश और बारिश की फुहार में समाये संगीत को गीतों में बदलने की क्षमता होती है. और जब ठुमरी के उस्तादों का जमावड़ा हो तब तो इसने अपनी छटा को बिखेरना ही है. दिल्ली के संगीत प्रेमियों को, बीते दो दिनों से, कमानी ऑडिटोरियम में चल रहे ठुमरी फेस्टिवल के खुशगवार मौसम और उसके रंग में रंगी ठुमरी, प्रेम कर रही है.

गिरिजा देवी जी, शोभा चौधरी,रीता देवो, देव प्रिया, मुराद अली खान व  धर्मनाथ मिश्र







सिंधु मिश्र
रविवार 3 सितम्बर को उत्सव का समापन 'ठुमरी की अप्पाजी' गिरजादेवी के गायन से हुआ। सुनने वालों की संख्या कमानी की क्षमता से अधिक होने के कारण बीसियों लोगों को गेट पर ही रोकना पड़ा, मगर रसिकों को कौन रोकेगा, इसलिए उन्हें रुक रुक कर, भरे हुए हाल में जगह नहीं होने के कारण, मंच के आसपास और गैलरी में यानी जिसे जहां जगह मिली उसने वहीं से आनंद उठाया।





पूजा गोस्वामी : बलमवा बैरी हो गए हमार

 मिनीपोलिस अमेरिका में बसी कलाकार, संगीतकार, शिक्षक और भारतीय शास्त्रीय संगीत गायिका पूजा गोस्वामी ने ठुमरी की मादक शाम को राग बिहाग में ठुमरी 'हमसे नजर काहे फेरी' से आगाज़ दिया. पिता पंडित सुरेंद्र गोस्वामी से आरम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद पूजा गोस्वामी ने प्रोफेसर अजीत सिंह पेंटल और बड़े भाई डॉ शैलेंद्र गोस्वामी से ख्याल की शिक्षा पायी है। पूजा ने उस्ताद अमीर खान के प्रमुख शिष्य पंडित अमरनाथ के काम पर दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री हासिल की है और अर्ध-शास्त्रीय स्वर संगीत शांति हीरानंद जी से सीखा है, इसका असर उनकी अगली पेशकश राग मिश्र गारा में 'बलमवा बैरी हो गए हमार' और अन्त में उनके पिता की, रवानी में बंदिश की ठुमरी 'इक तो ये बैरी कंगना खनके' में नजर आया।





मीता पंडित: हमरी अटरिया पर आ जा रे संवरिया


ग्वालियर घराने की ख़याल गायकी से ताल्लुक़ रखने वाली मीता पंडित शाम की दूसरी आवाज़ रहीं. पंडित घराने की 6वीं पीढ़ी वाली मीता, घराने की पहली महिला  क्लासिकल सिंगर हैं और तराना, ठुमरी, भजन और सूफी विधाओं में गायन में महारत रखती हैं. मीरा ने अपनी आवाज़ के खालिश सुरों को मिलाते हुए राग तिलंग में ठुमरी सजन तुम काहे को नेहा लगाए', उसके बाद मौसमी छाई घटा घनघोर' सुनाई. ,अपनी प्रस्तुति के समापन पर भैरवी में मशहूर ठुमरी 'हमरी अटरिया पर आ जा रे संवरिया' बेहद संजीदा और गीत के एक एक बोल से मिलान करते सुर में पेश की।






ठुमरी में गीत के शब्दों पर कई दफा निरर्थक ज़ोर लगाया जा रहा है : गिरिजा देवी

धर्मनाथ मिश्र
पांच वर्ष की उम्र से गायन शुरू करने वाली ८८ वर्षीय गिरिजा देवी जब मंच पर होती हैं तब वे पूरी तरह 'ठुमरी की रानी' होती हैं, ठुमरी की हर अदा, सुर, बारीकी और श्रोताओं पर उस समय उन्हीं का राज होता है। उन्होंने अपने अंदर के बच्चे को बहुत सम्हाल के रखा है, इसी कारण वह मंच पर, घर के आंगन की तरह, सहज रहते हुए गा पातीं हैं। ठुमरी गायकी से जुड़े गायकों को, गीत के बोल के साथ न्याय करने की सलाह, उन्होंने अपने ख़ास अंदाज़ में दी। वह इस बात से चिंतित हैं कि ठुमरी में गीत के शब्दों पर कई दफा निरर्थक ज़ोर लगाया जा रहा है और यह इस शैली की मूल भावना को छेड़ रहा है।

अप्पा जी ने श्रोताओं को खंबावती में ठुमरी, मिश्र पीलू में दादरा 'लागी बयरिया मैं सो गई हो ननदिया', कजरी 'भीजी जाऊं' और तीन दिन के समारोह का समापन भजन  'तुम बिन शंकर कोई नहीं मेरा' सुना के किया।

कार्यक्रम की समाप्ति पर बाहर निकलते श्रोताओं की बातों में, फेस्टिवल की सफलता को प्रदर्शित करता,  अगले साल का इंतज़ार अभी से सुनायी पढ़ रहा था।

(आज के नवोदय टाइम्स में प्रकाशित)


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