दस तक ही क्यों? —अशोक चक्रधर


करी ख़ुदकशी युवा कृषक ने, 
  रुदन भरी तेरहवीं, 
    पंच मौन थे ग्राम-सभा के, 
       हुई न गहमागहमी। 
देना मोल फसल का सारा। 
प्यारे, तेरह पांच अठारा!





दस तक ही क्यों? —अशोक चक्रधर


चौं रे चम्पू!

—अशोक चक्रधर


चौं रे चम्पू! तैनैं एक मुखड़ा सुनायौ ओ, ‘यारा दस्तक देत अठारा’ गीत आगै बढ़ायौ?

बढ़ाया था चचा! कभी-कभी कवि एक शब्द में अटक जाता है। मैं आपको उस गीत की रचना-प्रक्रिया बताता हूं। मेरा कवि अटक गया ’दस्तक’ में, ‘दस तक ही क्यों, दस से अठारह तक चल’। मैं अनायास गणित में उलझ गया। सन सत्रह के हालात और संख्याओं से जुड़े हिंदी मुहावरे गणित को सुलझाने लगे।

तू तौ हमेसा ते उलझौ भयौ ऐ! कैसै, का सुलझायौ? 

देखिए, दस और आठ अठारह होते हैं, गीत आगे बढ़ा, ‘दस अवतारों की पूजा की, गई न घर की कड़की, अष्टधातु की मुंदरी पहनी, क्वारी बैठी लड़की! कर दे अगले बरस निपटारा। प्यारे, दस और आठ अठारा!’ अब सुनो ग्यारह और सात की बात, ‘नौ-दो ग्यारा चैन हुआ है, सारा घर अलगाया, सात दिनों से नहीं रू-ब-रू, व्हाट्सऐप की माया। बातें फिर करवा दोबारा। प्यारे, ग्यारह सात अठारा!




अब आवैगौ बारै और छै, ऐं? 

हां! ‘बारहमासा गाए कैसे, मन है बेहद भारी, छै महिने से रोज़गार को, भटक रहा बनवारी। बन्ना ना घूमे नाकारा। प्यारे, बारा और छै अठारा!’ आगे सुनिए, ‘करी ख़ुदकशी युवा कृषक ने, रुदन भरी तेरहवीं, पंच मौन थे ग्राम-सभा के, हुई न गहमागहमी। देना मोल फसल का सारा। प्यारे, तेरह पांच अठारा!’ अब चौदह और चार देखिए, ‘चौदहवीं का चांद करे क्या, बालम गुमसुम मेरा, चार दिनों की रही चांदनी, फिर तम ने आ घेरा। महका-चहका दे चौबारा। प्यारे, चौदह चार अठारा!’ इसी तरह पंद्रह और तीन, ‘पंद्रह दिवस जला बस चूल्हा, भूखे तीनों प्रानी, किस-किस को बतलाएं जाकर, अपनी राम कहानी। अब तो कर सबका उद्धारा। प्यारे, पंद्रह तीन अठारा! अब सोलह सिंगार कहां हैं, सूरत हो गई मैली, मुद्दत हुई न आई दूध की, दो लीटर की थैली। फिर से बहे दूध की धारा। प्यारे, सोला और दो अठारा! सत्रह साल बाद दुनिया ने, रूप का लोहा माना, विश्वसुंदरी मानुषि छिल्लर का नंबर वन आना। चमके सबका एक सितारा। प्यारे, सत्रह एक अठारा!’ चचा, जैसे छिल्लर के दिन फिरे, वैसे ही नए साल में देश की चिल्लर के दिन भी फिरें। कहानी ख़त्म!

वाह पट्ठे!


(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
००००००००००००००००

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

कहानी ... प्लीज मम्मी, किल मी ! - प्रेम भारद्वाज
Hindi Story: कोई रिश्ता ना होगा तब — नीलिमा शर्मा की कहानी
विडियो में कविता: कौन जो बतलाये सच  — गिरधर राठी
इरफ़ान ख़ान, गहरी आंखों और समंदर-सी प्रतिभा वाला कलाकार  — यूनुस ख़ान
दो कवितायेँ - वत्सला पाण्डेय
ब्रिटेन में हिन्दी कविता कार्यशाला - तेजेंद्र शर्मा
एक पेड़ की मौत: अलका सरावगी की हिंदी कहानी | 2025 पर्यावरण चेतना
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
हमारी ब्रा के स्ट्रैप देखकर तुम्हारी नसें क्यों तन जाती हैं ‘भाई’? — सिंधुवासिनी
कहानी: फ़्लर्टिंग मेनिया - इरा टाक