स्तनपान की सार्वजनिकता — मालविका जोशी

'विषय संवेदनशील है और संजीदगी से सोचने की मांग करता है' — मालविका जोशी


Malvika Joshi

जिस समय अख़बारों में बलात्कारों की ख़बर बढ़ती जा रही है, विभत्सता बढ़ती जा रही है, और बलात्कार पीड़ित की उम्र के ओर-छोर समाज के भयानक होते रूप का विस्तार दिखा रहे हैं, उसी समय मलयालम पत्रिका के कवर पर छपी स्तनपान कराती माँ की तस्वीर चर्चा में आती है। स्तनपान की सार्वजनिकता पर इस बहाने शुरू हुई बहस हिन्दुस्तानी समाज के वर्तमान मानसिक-स्तर के लिए लाभदायक हो सकती है। रंगमंच, बैले, और संभाषण कला जैसे विषयों में दक्ष मालविका जोशी, शिक्षा, संस्कृति और सामाजिक विषयों पर सोचने वाली महिला हैं, उनके विचार आप शब्दांकन पाठकों के लिए...क्योंकि बहस के लिए विभिन्न पक्षों को समझना ज़रूरी है।

भरत तिवारी

Cover page of Malayalam magazine Grihalakshmi
Cover page of Malayalam magazine Grihalakshmi (Photo: Twitter)


स्तनपान की सार्वजनिकता — मालविका जोशी

जैसा समाचारों में पढ़ा उससे लगा कि इस चित्र के जरिये लेखिका स्तनपान कराने के हक़ को मांग रही है…इस अनुरोध के साथ कि हमें घूरें नहीं। "गृहलक्ष्मी" के इस अंक को लेकर पक्ष और विपक्ष दोनों तरह के विचार सामने आए है। खबर तो ये है कि इस पत्रिका पर एफआईआर भी दर्ज हो गया है। जाहिर है कि जैसे हालात इन दिनों है उसमें ऐसा कदम खलबली मचाने के लिए उठाया गया भी हो सकता है। लेकिन विषय संवेदनशील है और संजीदगी से सोचने की मांग करता है। स्तनपान करती माता को घूरने वाले दो-चार लोगों को सीख देने के लिए ऐसे विषय को उठाने का विचार अच्छा हो सकता है लेकिन उसका प्रस्तुति करण कई प्रश्न खड़े करता है।

FIR lodged on Malvyalam Magazine


उस लेख की लेखिका गिलु जोसफ है और चित्र भी उनका ही है ऐसा बताया गया है। चित्र में जो माता स्तनपान करती दिखाई गई है उनकी मांग में सिंदूर है। यानी एक हिन्दू माता के माध्यम से वे अपनी बात कहना चाह रही हैं। प्रश्न है कि क्या कोई मुस्लिम या ईसाई माता भी दिखाई जा सकती थी। विशेषकर केरल में जहाँ इन तीनों धर्मावलंबियों की संख्या अच्छी खासी है। दूसरा प्रश्न ये भी कि क्या वो बच्चा उन्हीं का है या उसे भी मॉडल की तरह ही प्रयोग में लाया गया है। तीसरा प्रश्न ये कि माँ अपने बच्चे को दूध पिलाये ये अधिकार प्रकृति प्रदत्त है उसे इस तरीके से प्रदर्शित करने की जरूरत क्यों आ पड़ी। प्रश्न और भी बहुत है जिन पर सोचने के लिए भारतीय संस्कृति को समझना जरूरी है।

मेरे दो बेटे है और उनके शैशव काल में मैंने बस से, ट्रेन से, वो भी कभी जनरल, और कभी स्लीपर क्लास में बहुत सफर किया है। कई बार अकेले भी सफर किया है। मुझे कभी सफर में स्तनपान कराते हुए संकोच नहीं हुआ। बल्कि कई बार तो सहयात्रियों की सदाशयता के कारण अपने आपको और सहज महसूस किया। ऐसे भी अवसर आये जब सार्वजनिक स्थान पर लोगों को ऐसी माताओं के लिए विशेष व्यवस्था करते देखा। भारत में माता जब अपने शिशु को स्तनपान कराती है तो उसे अपने आंचल, पल्लू या दुपट्टे से ढंक लेती है। इसमें भी भाव श्लील अश्लील का नहीं होता बल्कि ये होता है कि दूध पीते बच्चे को दूसरों की नज़र न लग जाये। लेकिन ये भाव समझने के लिए भी आपको भारतीय संस्कृति के मर्म को समझना जरूरी है।


एक और बात ये कि माता जब अपने शिशु को दूध पिला रही होती है तो ये उसके जीवन का सबसे आनंददायी और गर्व का क्षण होता है। उस समय उसके चेहरे का तेज और संतोष देखकर उसके बारे में ममता के अलावा और कोई भाव नहीं उमड़ता। राजकपूर जैसे निर्देशक को भी आलोचना का सामना करना पड़ा था जब उन्होंने मंदाकिनी को फ़िल्म "राम तेरी गंगा मैली" में इस रूप में लेकिन गलत भाव से प्रस्तुत किया था।

स्तनपान कराती माता की एक मूर्ति बहुत प्रसिद्ध है और उसे देख कर प्रेम और श्रद्धा ही उपजती है। प्रश्न है कि आप क्या दिखाना चाहते हैं, क्यों दिखाना चाहते हैं, और किस मक़सद से दिखाना चाहते है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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1 टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (05-03-2018) को ) "बैंगन होते खास" (चर्चा अंक-2900) पर भी होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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