अंग्रेज़ी को पानी पी पीकर कोसते हिंदी मीडियावालों से अगर यह पूछ लिया जाए कि वह अपने जिस माध्यम को देश में सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला बता रहे हैं उसका उसी देश की कला और संस्कृति को पढ़ाने में क्या योगदान है, तो उनका बगलें झांकना तय मानिए। और यही कारण है कि हिंदी पट्टी का सिर्फ हिंदी पढ़ने वाला शास्त्रीय संगीत की बात करने पर, ऐसे मुंह बा लेता है जैसे आउट ऑफ सिलेबस बात हो। 70 साल से चले आ रहे ‘श्रीराम शंकरलाल संगीत समारोह‘ के बारे में, अन्य जगहों को छोड़, अगर दिल्ली-वालों से ही पूछा जाए तो बहुत संभव है कि उनका परम ज्ञानी होने के दंभ भरभरा जाए।
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पं. उल्हास काशलकर, बिस्वजीत रॉय चौधरी, कालिदास | फोटो: भरत तिवारी |
देश के आज़ाद होने के वक़्त, जब रियासतें, जहाँ कला और संस्कृति पाली पोसी जाती थीं, ख़त्म हो रही थीं। राज्य के अलावा शास्त्रीय संगीत और उसके उस्तादों को जिन्हें आगे चलकर संगीत की विरासत सम्हालनी थी, उन्हें सम्हालने की ज़िम्मेदारी जिन लोगों ने समझी और सम्हाली, उनमें
सर श्रीराम के भाई
सर शंकरलाल और दोनों भाइयों के परिवार का ऐतिहासिक योगदान है। 1947 के पंद्रह अगस्त की रात आज़ादी के पर्व में एक पूरी रात संगीत की भी जुड़ी, जिसे सजाया था ‘श्रीराम भारतीय कला केंद्र’ की संस्थापक
सुमित्रा चरत राम ने, और जिसमें उस्ताद
अल्लाउद्दीन खान, उ. अमजद अली खान के पिताजी उस्ताद
हाफिज अली खान, जो ग्वालियर से दिल्ली आये, पं.
रवि शंकर, उस्ताद
विलायत खान, उस्ताद
मुश्ताक हुसैन खान , राहुल देव बर्मन के गुरु पं.
समता प्रसाद, बांसुरी का वर्तमान रूप — जिसके चलते वह एक शास्त्रीय वाद्य यंत्र बन सकी — देने वाले पं.
पन्नालाल घोष, पं बिरजू महाराज के पिता पं
अच्छन महाराज शामिल थे। केंद्र की पहली मैनेजर श्रीमती
निर्मला जोशी और उनके बाद आयीं श्रीमती
नैना देवी, की संगीत और दिल्ली में गहरी पैठ थी। आप दोनों ने इन उस्तादों को केंद्र से जोड़ने, दिल्ली लाने यानी ख़त्म हो गयी रियासतों से जुड़े दिग्गजों को आश्रय व अपना गुरुकुल, केंद्र को बनाने के लिए तैयार किया। शब् ए आज़ादी की उस महफ़िल ने ‘
झंकार म्यूजिक सर्किल’ को जन्म दिया, जो आगे चलकर हर महीने संगीत की बैठक और सालाना उत्सव शुरू किया। यह वह उत्सव है जिसके आने का इंतज़ार उस्तादों को रहता है। ताकी सनद रहे, यह कुछ वह नाम जो उत्सव का हिस्सा रहते रहे हैं:
भीमसेन जोशी, गंगुभाई हंगल, बड़े गुलाम अली खान खान, आमिर खान, दागर ब्रदर्स, मल्लिकार्जुन मंसूर, राम चतुर मलिक, शराफ़त हुसैन खान, पंडित जसराज, बेगम अख्तर, गिरिजा देवी, किशोरी आमोनकर, रशीद खान, राजन साजन मिश्रा, अजय चक्रवर्ती, उल्हास काशलकर, बिस्मिल्लाह खान, अली अकबर खान, निखिल बनर्जी, राधिका मोहन मोहित्रा, अमजद अली खान, शरण रानी, हरि प्रसाद चौरासिया, शिव कुमार शर्मा, जाकिर हुसैन, सुल्तान खान, राम नारायण, एल सुब्रमण्यम, एन राजन , शाहिद परवेज़, विश्वमोहन भट्ट।
संस्थापक सुमित्रा चरतराम की पुत्री, केंद्र की निदेशक,
शोभा दीपक सिंह ने दिल्ली के इस संगीत-उत्सव के 71वें वर्ष को ‘श्रीराम भारतीय कला केंद्र’ — जिसके एक तरफ का हिस्सा कमानी ऑडिटोरियम और दूसरी तरफ साहित्य अकादमी है — के हरे-भरे लाँन में 8,9,10 मार्च को मनाया। उत्सव में संगीत भरने के लिए
पं जसराज, पं. उल्हास काशलकर, पं. उदय भवालकर, पं. रोणु मजूमदार, पं. शॉनक अभिषेकी, देबाशीश भट्टाचार्य, आरती अंकलीकर टिकेकर, इरशाद खान, कलापिनी कोमकली, जयंती कुमारेश और
मंजिरी असनारे की मौजूदगी ने उस्तादों के बीच भविष्य के उस्तादों को सुनने का ऐतिहासिक मौका दिया। रसिक श्रोताओं और पुरानी दिल्ली की सोंधी चाट-जलेबी के बीच देर तक चलने वाली महफ़िल का लुत्फ़ तब और बढ़ जाता रहा, जब पं. उल्हास काशलकर जैसे भगवान-की-आवाज़ वाले उस्ताद, ‘पंडितजी एक गीत और...’ जैसी एक-से अधिक दफ़ा की जाने वाली दरख्वास्त सुन लेते रहे।
(साभार: प्रभात खबर)
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आरती अंकलीकर टिकेकर | फोटो: भरत तिवारी |
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उ० अकरम खान (तबला) उ० इरशाद खान (सितार) | फोटो: भरत तिवारी |
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पंडित जसराज, संगत पर बाँए से केदार पंडित (तबला), अंकिता जोशी, पंडितजी, रतन मोहन शर्मा और हारमोनियम पर मुकुंद पेटकर। | फोटो: भरत तिवारी |
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शोभा दीपक सिंह, पं० जसराज, दीपक सिंह | फोटो: भरत तिवारी |
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पं. उल्हास काशलकर | फोटो: भरत तिवारी |
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शैलजा खन्ना, बिस्वजीत रॉय चौधरी, आरती अंकलीकर टिकेकर और शोभा दीपक सिंह | फोटो: भरत तिवारी |
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चेयरमैन दीपक सिंह और निदेशक शोभा दीपक सिंह के साथ श्रीराम कला केंद्र की टीम | फोटो: भरत तिवारी |
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तानपुरे पर बिस्वजीत रॉय चौधरी से सरोद सीख रहे डच शिष्य सत्यकाम | फोटो: भरत तिवारी |
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