प्रेमा झा की कवितायेँ : प्रेम—फ़ारसी | Poems of Prema Jha #Hindi #Poem


प्रेमा झाकवितायेँ और कहानियाँ देश की प्रतीष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। चर्चित रचनाओं में लव जेहाद, ककनूस, बंद दरवाज़ा, हवा महल और एक थी सारा विशेष तौर पर पाठकों द्वारा पसंद की गई। हंस में छपी कहानी “मिस लैला झूठ में क्यों जीती हैं?” खासा चर्चा में रही है।
फ़िलवक्त अपने एक उपन्यास को लेकर शोधरत हैं। 
ईमेल: prema23284@gmail.com

प्रेमा झा की कवितायेँ : प्रेम—फ़ारसी | Poems of Prema Jha






प्रेम—फ़ारसी 

— प्रेमा झा

जानते हो जब कोई बात समझ न आए
तो हमारे शहर में उसे कहते हैं,
क्या फ़ारसी कह रहे हो?
बातें तुम समझो
इसलिए सीख ली मैंने
कई भाषाएँ
और
फ़ारसी उनमे से एक थी
जब तुम मेरा प्रेम नहीं समझोगे
तो बोलूंगी मैं
उर्दू,
अल्बानियन,
पश्तो,
बलूची,
फ्रेंच,
इतावली और अंग्रेजी
फिर तुम समझ जाओ शायद
क्यों?
मैंने हिंदी में नहीं कहा तुमसे 'आई लव यू!'
क्योंकि हमारी भाषा
तुमको संवेग में ले जाएगी
और असर भी देसी वाला!
कहना इतना कि तुमसे प्रेम
एक पूर्णकालिक रोजगार की तरह कर रही हूँ
देर तक ठहरेगा तेरे जेहन में
और एक-एक हर्फ़ धड़कन—सा सीनें में!
कहो, मुझसे भी हमारी भाषा में
तुम प्यार कर रहे हो!






हिम 

तेरे घर का पता कुछ न था
मेज़ पर मुलाक़ात बिखरी रhi
तेरे लिए जाम शीशे में था
और मेरा सूरज वक़्त बड़ा कम था
दूरियाँ दूर थी इस कदर कि
तमाम उम्र हम इन्हें
मापने की इकाई ढूंढते रहे
बस शब्द तुम साथ रहे, साथ रहोगे
मैंने पन्ने पर आज फिर उसका नाम लिखा
तुममे है वो माद्दा जो 'दूरी' लिखकर
दूरी का चेहरा दिखा देते हो
है वो बड़ा सफ़ेद, सफ्फाक़
थोड़ा-थोड़ा हिम ग्लेशियर से मिलता हुआ
जहाँ चढ़ना पर्वतारोहण है
और
प्रेम में तो हिम हो जाना ही पर्याप्त है!






प्रेम—ज़मीन 

कवितायेँ न होती तो मैं न होती
तुम न होते तो कवितायेँ नहीं
और अब कह रहे हो
कवितायेँ तो फसाद हैं,
स्वप्न हैं,
प्रेम हैं,
आसमान हैं,
हवाएं हैं
और
ये सब चीज़ें हाथ से पकड़ी नहीं जाती
बह जाने दो इसे जैसे आंसू, नदी और रास्ते
बताओ मैं क्या करूँ?
मैं रास्ते पर अकेले चल रही हूँ
सुनो,
चलोगे क्या मेरे साथ
पर्वतों के पीछे,
घाटियों में,
समंदर के पास
और
उसके बाद किसी गैर मुल्क में
जहाँ कवितायेँ जगती हैं,
स्वप्न सच होते हैं
फिर उसकी जमीन हम और तुम बनाएँगे!






स्वप्न—पाखी 

विश्लेषण करुँगी तुम्हारी ख़ुमारियों का
और कल कहूँगी कि तुम्हारा कोई असर नहीं मुझ पर
मैं नींद से बाहर आ जाऊंगी
ये जानते हुए भी कि मेरे सपने में तुम रहते हो
सुनो,
तुम घर बदल लो
हो सके तो ये शहर भी
और हाँ, चलते समय
स्वप्न—पाखी
जो मैं अक्सर तुम्हारी जेब में रख देती थी
मुझे लौटा कर जाना!





मैं तुम्हारा नाम लिखूंगी 

कुछ रास्तों के पते नहीं होते
कुछ मकान के नंबर नहीं
और कुछ वज़ूद के सानी नहीं
दिल से दिल तक पंहुचने की
कोई सड़क,
स्टेशन या गाड़ी नहीं!
सुदूर पंहुचना चाहोगे मेरे साथ
तो चलो
महाद्वीप में एक नाव चलाकर आएं
कोरे कागज़ की
जिस पर तुम्हें एक नाम लिखना होगा
मैं तुम्हारा लिखूंगी!

ग़ैर—ज़रूरी 

लम्बी जिंदगी नहीं चाहती हूँ
थोड़ा—सा जीवन चींटी जितनी
और छिपकली जितनी
घर की दीवारों से मिलना चाहती हूँ
वहाँ— जहाँ तुम रहते हो!
वो चुप जो छिपा रहता है हरदम
और बाकी दुनिया से कटा-कटा
घिरनी के छत्ते—सा
किसी की छत के ग़ैर-ज़रूरी  जंजाल—सा
कोई उसमे आग लगा देता है
खतरनाक हो गई हूँ
तुमसे बेइन्तेहाँ मुहब्बत करके
तुम्हारे लिए एक डरावनी रातों—सी
जिसे तुम भूल जाना चाहोगे
वैसे ही जैसे
किसी बुरे ख़्वाब को
सुबह भूलना चाहता है इंसान
मैंने देखा, कल दोपहर
तूमने मधुमक्खी के छत्ते में आग लगाई
और
मीठा निकाल कर मक्खी को मार दिया है!

चिनार का ठूंठ 

तुम सोचते रहे कि
क्या कर सकते हो मेरे लिए
कि
एक रोज तुमने मुझे अपने पास बुलाया
हम दोनों ने साथ वोदका पी
एक गिलास से
देर तक एक-दूसरे के हाथों को थामे हुए
तुमने मुझे बड़ी देर तक
अपनी बाजुओं में जकड़े रखा
और सोचते रहे कि
काश! ये प्रयोजन ता-ज़िन्दगी यूं ही चलता रहे—
जो होना नहीं था
तुमने धरती की साँझ लाल आभा से
कुछ किरणे चुरायीं
और टांक दी मेरी ओढ़नी से
तुम सोचते रहे कि
क्या कर सकते हो मेरे लिए कि
इस वास्ते तुम
बार-बार मुझसे पूछते रहे कि
कैसे रहोगी
कौन रखेगा तुम्हारा ख़याल
और
क्या तुमने अपने थैले सम्हालकर रखे
तुम्हें मेरे थैले की
बड़ी चिंता थी
तुम जानते थे ये एक बात कि
उस थैले में
तुम्हारे लिए मैंने
कई कवितायेँ लिखकर रख ली हैं
तुम जाते-जाते भी
मेरे थैले के बाबत
पूछते रहे थे
हाँ, मेरे थैले में था
कुछ सूर्य किरण
चाँद की उजली रात
दुधिया सफ़ेद बर्फ़ को चीरता
चिनार का ठूंठ
तुम्हें उन सबकी बड़ी चिंता थी
कि तुम हर बार पूछते रहे थे
मेरी छोटी-छोटी बातों के मद्देनज़र भी
हाँ, तुम ठीक हो न!
तुम्हें कोई तकलीफ़ तो नहीं
तुम घबरा गए थे
मेरे अकेलेपन से
कि एक शाम जब तुम जा रहे थे
मुझे जोर से गले लगा लिया
और कहने लगे
हर रोज़ मिलूंगा
बहुत हाँफते हुए कि—
तुम जान गए थे
तुम्हारे सच बोलने का माद्दा
अब तुममे नहीं रह गया है
और
तुमने उस अँधेरी शाम
एक सफेद झूठ कह दिया।


(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
००००००००००००००००

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy
एक पेड़ की मौत: अलका सरावगी की हिंदी कहानी | 2025 पर्यावरण चेतना
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
चित्तकोबरा क्या है? पढ़िए मृदुला गर्ग के उपन्यास का अंश - कुछ क्षण अँधेरा और पल सकता है | Chitkobra Upanyas - Mridula Garg
Hindi Story: दादी माँ — शिवप्रसाद सिंह की कहानी | Dadi Maa By Shivprasad Singh
मैत्रेयी पुष्पा की कहानियाँ — 'पगला गई है भागवती!...'