उस्ताद अमजद अली खाँ साब, यह प्यार का रिश्ता है — भरत एस तिवारी @bharattiwari



उस्ताद अमजद अली खाँ साब यह प्यार का रिश्ता है 

— भरत एस तिवारी

आज के प्रभात खबर में प्रकाशित हुए इस लेख को अख़बार में जगह की कमी के चलते हुई कतर-ब्योंत कुछ अटपटी है, इसलिए यहां पूरा लेख आपके लिए।


दुनिया में धार्मिक इमारते बहुत बन चुकी हैं, मुझे नहीं लगता कि हमें अब उन्हें और बनाने की ज़रुरत है।  





पिछले दिनों इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में मेंबर सेक्रेटरी के दफ़्तर की लॉबी में बैठा था। उनके कमरे का दरवाज़ा खुला और बाहर को आये डॉ सच्चिदानंद जोशी, अचल पांड्या और उनके साथ थे उस्ताद अमजद अली खाँ साब। जब तक मैं खड़ा हो ही रहा हूँ खाँ साब वहीँ से नाम लेते हुए कुछ ऐसा बोले जो मेरे अन्दर के कलाकार की प्रशंसा थी। क्या मैं हक्काबक्का रह गया क्या सरलता इतनी विरल हो चुकी है कि सामना होने पर हम चौंक जाते है? उसके बाद सब साथ ही रहे काफी देर तक। उनके मूड और हावभाव से यह अहसास हो रहा था कि वह आईजीएनसीए जिस कारण से भी आये होंगे वह कुछ बहुत अच्छा ही होगा। हुआ भी ऐसा ही, उनकी संस्था ‘सरोद घर’ और आईजीएनसीए मिलकर 21,22 और 23 दिसम्बर को उनकी रागों का उत्सव मना रहे हैं। ‘दीक्षा: गुरु-शिष्य परम्परा श्रृंखला’ में उस्ताद अमजद अली खाँ के शिष्य देश के विभिन्न हिस्सों से जमा होंगे और तीन शामें — अपने गुरु के सानिध्य में गुरु की ही बनायीं धुनों से — संगीत से सजायेंगे। यह बेजोड़ प्रयोग है। और यह शायद-ही इस स्तर पर पहले किया गया हो। खाँ साब में एक अनोखी दिव्यता है — दिव्य मेरे लिए बड़ा सम्मानीय शब्द है और उनकी शख्सियत के साथ इस ‘दिव्य’ लिखने से पहले ज़ेहन में कई ऐसे वाकये गुजरे और ठहरे हैं जो ‘उनकी दिव्यता’ को दर्शाते हैं। इस पर कभी विस्तार से लिखूंगा।

उस रोज़ उनके घर पर बातें हो रही थीं... खाँ साब बोले “आज की दुनिया में एक सीमेंटेड बिल्डिंग को इंस्टीट्यूशन कहा जाता है पहले ज़माने में एक विद्वान् आदमी को इंस्टीट्यूशन समझा जाता था। और इसीलिए गुरु शिष्य परंपरा बनी; शिष्य गुरु के साथ रहते थे, गुरु के साथ खाते थे और गुरु की सेवा करते थे। सेवा जैसे कोई सेवादार करता है: ‘जाओ भाई पान ले आओ’ ‘हाथ दबा दो’ ‘पांव दबा दो’ और शागिर्द यह सब ख़ुशी के साथ, समर्पण भाव से करता था। आज हर कला इंस्टीट्यूश्न्लाईज़ड हो गयी है। सीखने वाला फीस देता है और सिखाने वाले को तनख्वाह मिलती है तो एक बहुत फॉर्मल रिलेशन बनती है...”





मैंने इससे जुड़ा सवाल उठाया: दो लोग हैं एक गुरु शिष्य परंपरा से सीखता है और दूसरा एक ‘फीस और तनख्वाह वाली’ संस्था से, ऐसे में दोनों की कला में फ़र्क-सा नज़र क्यों आता है?

“मेरे बुजुर्गों का मानना था कि ‘एक साधे सब सधे, सब साधे सब जाए’! तब हम ग्वालियर में थे, पिताजी के साथ मैं वहाँ के सिंधिया स्कूल में गया। प्रिंसिपल शुक्लाजी ने पिताजी से कहा कि इन्हें हम पढ़ाना चाहेंगे इन्हें बोर्डिंग में भर्ती कर दीजिये। पिताजी ने सवाल किया “अगर यह बोर्डिंग में होंगे तो इन्हें मैं सिखाऊंगा कब? उनका सोच था कि पढ़ाई और संगीत एक साथ नहीं हो सकती। मेरा सोच यह नहीं है, मैं ईश्वरीय सत्ता में भरोसा रखता हूँ और ईश्वर ज़र्रे को आफ़ताब बना सकता है... जब आप किसी पीएचडी को सुनते हैं जो कि बेशक बहुत अच्छा सुना रहा है लेकिन आपको क्यों लगता है कि कोई पीएचडी सुना रहा है... कहीं न कहीं कुछ छूट जाता है इस सब के बाद जो बात सबसे महत्वपूर्ण है कि दुनिया किसको अपनाती है — आज दुनिया बिस्मिल्लाह खाँ को मिस कर रही है; वो सिर्फ़ शहनाई के लिए दुनिया में आये थे। यह प्यार का रिश्ता है, दुनिया जिसे प्यार दे वह ही सबसे बड़ा कलाकार है। “

और जैसा कि हर बातचीत घूमते-फिरते आज के माहौल पर ज़रूर आती है... खाँ साब कह रहे थे कि “दुनिया में धार्मिक इमारते बहुत बन चुकी हैं, मुझे नहीं लगता कि हमें अब उन्हें और बनाने की ज़रुरत है। टीवी खोलते ही हिन्दू-मुस्लिम हिन्दू-मुस्लिम की बहस को देख कर मुझे यह चिंता होती है कि हमारे बच्चों पर और हमारी युवा पीढ़ी पर इसका क्या असर हो रहा होगा? ये मेरी अपील है लोगों से “हर शहर में अच्छे से अच्छे हॉस्पिटल बनाएं ताकि ग़रीब आदमी का भी इलाज हो सके। आज इतने फाइव स्टार हॉस्पिटल बन गए हैं हमारे देश में जहाँ ग़रीब इन्सान जा ही नहीं सकता।“ ... उस्ताद अमजद अली खाँ में वह शक्ति है जिसे मैं दिव्य मानता हूँ और आपसे यह कह सकता हूँ कि आप में भी वह शक्ति है, क्या आपने उसके होने को नकार दिया है? सनद रहे “संगीत ईश्वर है”

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
००००००००००००००००

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story: कोई रिश्ता ना होगा तब — नीलिमा शर्मा की कहानी
इरफ़ान ख़ान, गहरी आंखों और समंदर-सी प्रतिभा वाला कलाकार  — यूनुस ख़ान
कहानी ... प्लीज मम्मी, किल मी ! - प्रेम भारद्वाज
विडियो में कविता: कौन जो बतलाये सच  — गिरधर राठी
दो कवितायेँ - वत्सला पाण्डेय
समीक्षा: अँधेरा : सांप्रदायिक दंगे का ब्लैकआउट - विनोद तिवारी | Review of writer Akhilesh's Hindi story by Vinod Tiwari
ब्रिटेन में हिन्दी कविता कार्यशाला - तेजेंद्र शर्मा
अखिलेश की कहानी 'अँधेरा' | Hindi Kahani 'Andhera' by Akhilesh
हमारी ब्रा के स्ट्रैप देखकर तुम्हारी नसें क्यों तन जाती हैं ‘भाई’? — सिंधुवासिनी
सेकुलर समाज में ही मुसलमानों का भविष्य बेहतर है - क़मर वहीद नक़वी | Qamar Waheed Naqvi on Indian Muslims