द्वारपाल
हनुमान चालीसा : चौपाई 21
राम दुआरे
तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा
बिनु पैसारे ॥
शिव के द्वारपाल नंदी का बदला, राम के द्वारपाल हनुमान ने, रावण की द्वारपाल लंकिनी को हरा के लिया।
...मृत्यु के देवता, यम, शहर के अंदर आने से डर रहे थे। अंततः, राम को दरवाजे से हनुमान को हटाना पड़ा ताकि यम अपना कर्तव्य निभा सके। राम ने अपनी अंगूठी महल के फर्श की एक दरार में गिरा दी और हनुमान से उसे ले आने को कहा। हनुमान फर्श की उस दरार के अंदर चले गए, जहां उन्हें पता लगता है कि यह तो नागलोक में जाने की एक सुरंग है...राम का दरवाज़ा
आपको रखवाले के रूप में पाता है।
आपकी आज्ञा के बिना
उसे कोई पार नहीं कर सकता।
हिंदू पौराणिक कथाओं में देवताओं के द्वारपाल बहुत महत्वपूर्ण हैं। दरवाज़ा, बाहर और अंदर, जंगली और घरेलू, प्रकृति और संस्कृति दो दूरियों के बीच की दहलीज़ है। सुरक्षा गार्ड और सचिवों की तरह, द्वारपाल आंतरिक दुनिया की अखंडता को कायम रखता है। वे यह तय करते हैं कि मंदिर में देवता तक कौन पहुंचता है, और कौन नहीं। उदाहरण के तौर पर पुरी, ओडिशा के जगन्नाथ मंदिर में, हनुमान बाहर खड़े है, लोगों का कहना है, हनुमान, समुद्र की आवाज़ तक को मंदिर में प्रवेश से रोकते हैं कि अंदर देवता परेशान नहीं होने पायें।
द्वारपाल की उपस्थिति, हमारा ध्यान भारतीय समाज की विशेषता: जातियों की सामाजिक-संरचना, की तरफ आकर्षित करती है। सदियों से, भारत के एक निवासी की पहचान, उस बड़े समुदाय से होती रही थी, जिससे उसका परिवार सम्बंधित हो। आमतौर पर, एक समुदाय के सदस्य एक पेशा अपनाते थे। हर जाति अपने को अलग रखती थी, दुनियाभर के आदिवासी समुदायों की तरह, बाहरी लोगों के साथ विवाह की अनुमति नहीं होती थी, इस तरह उनका ज्ञान-तंत्र, जो उनकी आय का साधन था, बचा रहता था। लगभग 500 साल पहले, भारत आने वाले यूरोपीय लोगों ने जाति के लिए 'कास्ट’ शब्द का इस्तेमाल किया, क्योंकि उन्हें इस प्रथा में यूरोप के कबीलों की झलक दिखी, जहां खून की शुद्धता बहुत मायने रखती थी।
आज भारत में 2000 से अधिक जातियां हैं। सदियों से लोग जिन्हें चार वर्णों (चतुर्थ-वर्ण) में वर्गीकृत करना चाह रहे हैं, जिसमें सबसे ऊपर ब्राह्मण पुजारी, उसके बाद शक्तिशाली जमीदार, उसके बाद अमीर व्यापारी और बाकी इसके नीचे। लेकिन इस जाति प्रथा को जो चीज सबसे अलग बनाती है वह आर्थिक या राजनीतिक ऊंचाई से नहीं बल्कि पवित्रता की अवधारणा से जुड़ी है : कुछ समुदाय आंतरिक रुप से पवित्र हैं (उदाहरण के लिए पुजारी), जबकि कुछ समुदाय आंतरिक रूप से ही अपवित्र हैं (उदाहरण के लिए द्वारपाल, कसाई)। अशुद्ध को, मंदिरों रसोईयों, यहां तक की कुँओं के पास जाने की मनाही थी। इसलिए, एक भव्य मंदिर में, सिर्फ शुद्ध लोगों को अंदर गर्भ गृह जहां देवता की मूर्ति स्थापित होती है, जाने की अनुमति थी, जबकि अशुद्ध को बाहर रहना पड़ता था, दरवाजे के बाहर, कई बार सड़क के भी बाहर।
जिन्हें मंदिर के अंदर जाने की अनुमति नहीं थी, उनका हनुमान के प्रति झुकाव होना स्वाभाविक था क्योंकि वह मंदिर के बाहर स्थापित होते थे। अंदर बैठे राजसी राम जिन तक बड़े लोगों की ही पहुंच होती थी के बजाय हनुमान तक पहुंचना कहीं ज्यादा आसान था।
पुजारियों द्वारा फैलाई गई वर्ण की शुद्धता और संत कवियों द्वारा समझाए गए आत्मा के सिद्धांत, के बीच तनाव का पुराना हिंदू इतिहास है। बाद वाले सिद्धांत से वह उत्सव बने जिनमें भगवान नियमित रूप से, रथों और पालकियों पर, मंदिरों से बाहर निकल, उन समुदायों से मिलते हैं जिन्हें मंदिर के अंदर जाने की इजाजत नहीं है। इससे यह भी हुआ कि बहुत से द्वारपाल काफी कुछ मंदिर के भीतर स्थापित देवता की तरह दिखने लगे। यह जिन्हें इजाजत नहीं थी उन्हें आश्वासन देने के लिए था की इंसान भले इंसान को जुदा कर दे लेकिन भगवान किसी को जुदा नहीं करता।
वैकुंठ के द्वारपालों को जय और विजय कहते हैं। देवी के पवित्र उपवनों के द्वारपाल को माया और लाया कहते हैं। शिव का द्वारपाल और वाहन नंदी बैल है। हनुमान राम के द्वारपाल, संदेश वाहक, सचिव, और बाहुबली हैं।
एक बार रावण शिव से मिलने गया लेकिन नंदी ने उसे दरवाजे पर रोक दिया क्योंकि शिव शक्ति के साथ थे, और उन लोगों को अपना एकांत चाहिए था। रावण को इस तरह रोका जाना अच्छा नहीं लगा, वह बिना नंदी पर ध्यान दिए आगे बढ़ गया। जब नंदी ने रावण का रास्ता रोका, रावण ने नंदी को वानर कहा। नंदी को रावण का यह व्यवहार पसंद नहीं आया, क्योंकि वह तो अपना काम कर रहे था। उसने अभिमानी रावण को श्राप दिया कि तुम्हारे विनाश का कारण वानर ही होंगे। ऐसा माना जाता है, इसे पूरा किया जाने के लिए, शिव के देवत्व का एक हिस्सा पृथ्वी पर हनुमान के रूप में अवतरित हुआ। शिव के द्वारपाल नंदी का बदला, राम के द्वारपाल हनुमान ने, रावण की द्वारपाल लंकिनी को हरा के लिया।
अयोध्या में राम के महल के दरवाजे का रक्षक हनुमान के होने के कारण, जब राम का अपने नश्वर शरीर को छोड़ बैकुंठ लौटने का समय हुआ, तब मृत्यु के देवता, यम, शहर के अंदर आने से डर रहे थे। अंततः, राम को दरवाजे से हनुमान को हटाना पड़ा ताकि यम अपना कर्तव्य निभा सके। राम ने अपनी अंगूठी महल के फर्श की एक दरार में गिरा दी और हनुमान से उसे ले आने को कहा। हनुमान फर्श की उस दरार के अंदर चले गए, जहां उन्हें पता लगता है कि यह तो नागलोक में जाने की एक सुरंग है, वहां उन्हें राम की अंगूठियों का एक पहाड़ मिलता है। वह सोच में पड़ जाते हैं कि आखिर राज क्या है। इस पर, नागों के राजा, वासुकी ने कहा, ‘दुनिया भी, हर जीवित प्राणी की तरह, जीवन और मृत्यु के चक्र से गुजरती है। जैसे हर जीवन का युवावस्था होती है, वैसे ही संसार का त्रेता युग है जब राम का शासन होता है। इस युग में, हर बार, भूलोक से एक अंगूठी नागलोक में गिरती है, जिसके पीछे एक वानर आता है, और वहां ऊपर राम की मृत्यु हो जाती है। यहां जितनी अंगूठियां है उतने ही राम और हनुमान है। कुछ भी हमेशा नहीं रहता। लेकिन जो जाता है, वापस अवश्य आता है। ‘
उत्तर भारत में, शेर की सवारी वाली देवी शेरावाली की अवतार अनेक पहाड़ों वाली देवियों के मंदिर के रक्षक भैरव देवता और लंगूर देवता हैं, जिनमें से पहला वाला एक भांग पीने वाले बच्चे की तरह दिखता है, और बाद वाला एक दूध पीने वाले वानर की तरह। इन दोनों देवों में नियंत्रित-पुरुषत्व, ब्रम्हचर्य और योग समाहित है।आजकल, बहुत लोग लंगूर देवता को हनुमान मानते हैं।
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