दिनमान की यादें - 1 — विनोद भारद्वाज | #DinmanKiYaden #Sansmaranama


दिनमान की यादें - 1 —  विनोद भारद्वाज | #DinmanKiYaden #Sansmaranama


कवि, उपन्यासकार और कला समीक्षक विनोद भारद्वाज जी को आप शब्दांकन पर पहले भी पढ़ते रहे है. विनोदजी के पास श्रेष्ठ यादों के कई दबे हुए खजाने हैं, जिनमें से वह यदाकदा कुछ मणियाँ निकालते हैं. इस दफ़ा वह अपने दिनमान के दिनों को याद करते हुए कुछ अनजानी और रोचक जानकारियां साझा कर रहे हैं. शुक्रिया विनोदजी.... भरत एस तिवारी/ शब्दांकन संपादक

#DinmanKiYaden


दिनमान की यादें — 1 

— विनोद भारद्वाज 

जब मैंने दिनमान में काम शुरू किया, रघुवीर सहाय की कोशिशों से (धर्मवीर भारती मुझे धर्मयुग में ही रखना चाहते थे, वे प्रबंधन में ताक़तवर संपादक थे), तो हिंदी के तीन बड़े कवि दिनमान में एक साथ काम कर रहे थे। बाद की पीढ़ी के कवि प्रयाग शुक्ल तो थे ही। रघुवीर सहाय, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना और श्रीकांत वर्मा का एक साथ दफ़्तर में होना मुझे बहुत उत्साहजनक बात लगी, लेकिन जल्दी ही पता लग गया कि वे एक-दूसरे के साथ सहज नहीं थे। दिनमान के संस्थापक संपादक अज्ञेय रघुवीर सहाय और सर्वेश्वर को ख़ुद अपनी पसंद से लाये थे, पर श्रीकांत वर्मा टाइम्ज़ की मालकिन रमा जैन की पसंद थे। श्रीकांत विशेष संवाददाता होने के कारण दफ़्तर बस थोड़ी देर के लिये आते थे , एकाध दिन उन्हें अपनी रिपोर्ट टाइप करानी होती थी, वे मुझसे और प्रयागजी से थोड़ा गप्पबाज़ी कर के चले जाते थे। संपादक रघुवीर सहाय से उनका न के बराबर संवाद था। वे इंदिरा गांधी के नज़दीक होते जा रहे थे, ’ ग़रीबी हटाओ’ को वह अपना दिया सफल नारा बताते थे। कवि वह बहुत अच्छे थे, परिहास भाव उनमें ज़बरदस्त था। राजनीति ने उन्हें डुबा दिया।


एक बार रघुवीर सहाय बहुत बीमार पड़े, उन्हें वर्टिगो हो गया था। वे आर के पुरम में मेरे पड़ोसी थे, मुझे बहुत कम उम्र से जानते थे, कुछ दिन उन्होंने मुझे कार चलाना भी सिखाया, कभी-कभी दिनमान का अंक छपने चला जाता था, तो वो प्रेस क्लब में मुझे बियर पिलाने भी ले जाते थे। ऐसे बॉस भला कहाँ मिलेंगे। जब वह बीमार हुए, तो श्रीकांतजी ने कहा मैं उनका हलचाल पूछने के लिए उनके घर जाना चाहता हूँ, आपको भी मेरे साथ चलना होगा। पर वे बहुत नर्वस थे, पहले मुझे अशोक होटेल के बार में ले गए, फिर बहुत हिम्मत कर के रघुवीरजी के घर गए। वह जब वापस चले गए, तो मैं वहीं रुक गया। मेरा घर पास में ही था। रघुवीर सहाय उनके जाते ही बोले, जिसकी वजह से मैं बीमार हूँ वही मेरा हालचाल पूछने आया है।

प्रयागजी सौम्य स्वभाव के थे पर एक बार वह श्रीकांतजी पर ग़ुस्से में बरस पड़े। इमर्जन्सी के बाद जब जनता सरकार बनी, तो श्रीकांत वर्मा बहुत अपराध भाव से दफ़्तर आए, मेरी मेज़ पर बैठ गए। पास ही प्रयागजी की मेज़ थी। श्रीकांतजी ने उनसे भी दोस्ताना संवाद की कोशिश की। पर प्रयागजी के जीजा और कवि गिरधर राठी इमर्जन्सी में लम्बे समय तक तिहाड़ जेल में थे। वह दुःख, पीड़ा से भरे हुए थे, वे श्रीकांतजी पर बरस पड़े। श्रीकांतजी चुपचाप खिसक लिए।

सर्वेश्वरजी साहित्य अकादमी पुरस्कार के लिए बेचैन रहते थे। मेरे मित्र विष्णु खरे अकादमी में उप सचिव थे। धूमिल को मरणोपरांत पुरस्कार मिला, तो मुझे उन्होंने फ़ोन कर के बधाई दी। धूमिल लघु पत्रिका आरम्भ के कारण मेरे मित्र बन गये थे, उम्र के फ़ासले के बावजूद। मैंने सर्वेश्वर को सूचना दी। उनकी मेज़ रघुवीर सहाय के कमरे के ठीक बाहर थी। उन्होंने दरवाज़ा खोला, कहा, रघुवीरजी लगता है अकादमी पुरस्कार के लिए मरना ही पड़ेगा।

और उन्हें सच में अकादमी पुरस्कार मरने के बाद ही मिला।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
००००००००००००००००


विनोद भारद्वाज #संस्मरणनामा : रघुबीर सहाय...धर्मवीर भारती...


'अभिनेत्री': विनोद भारद्वाज की चर्चित #कहानी


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
 प्रेमचंद के फटे जूते — हरिशंकर परसाई Premchand ke phate joote hindi premchand ki kahani
ऐ लड़की: एक बुजुर्ग पर आधुनिकतम स्त्री की कहानी — कविता
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy
अखिलेश की कहानी 'अँधेरा' | Hindi Kahani 'Andhera' by Akhilesh
समीक्षा: अँधेरा : सांप्रदायिक दंगे का ब्लैकआउट - विनोद तिवारी | Review of writer Akhilesh's Hindi story by Vinod Tiwari