रेणु हुसैन की कविताएं इधर बहुत निखरी हैं। पढ़ने में वह आनंद मिल रहा है जो हिन्दुस्तानी कविता की भाषा में होना चाहिए। और, विचारों के धरातल की फलक ख़ूब कुलांचे भरते हुए भी, नियंत्रण से बाहर नहीं जा रही है। पढ़कर अपने विचार दीजिएगा। ~ सं०
दृश्य का टूटना
एक हरे पेड़ का बंजर में बदल जाना भी होता है
और एक हृदय का टूटना
शायद यूँ होता है...
Renu Hussain Bio
रेणु हुसैन पेशे से सरकारी स्कूल नेताजी नगर सर्वोदय विद्यालय में अंग्रेजी की शिक्षिका हैं। अनेकों गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से समाज सेवा में लगी रहने वाली रेणु कवियित्री व ग़जलगो भी हैं। उनके दो कविता संग्रह पानी प्यार एवं जैसे और एक कहानी संग्रह गुण्टी प्रकाशित हो चुके है।उनके आगामी काव्य संग्रह का नाम घर की औरतें और चाँद है।
पसीने के सिक्के
रेणु हुसैन
कहते थे
पिता के पाँव में चकरी है
मुझे तो ये धरती ही
उनकी परिक्रमा करती हुई लगी
मेरी माँ का चेहरा चाँद सा रोशन रहा है
हम पिता के पाँव और माँ का मुख देखते रहे हैं।
पिता के स्वप्न
हमारी आँखों में तारों की तरह झिलमिलाते रहे हैं
पिता भोर से रात तक भटकते थे
शाम को
उनकी जेब में
पसीने के सिक्के खनकते मिलते
उस पसीने से आटा गूँध
माँ हमें रोटी खिलाती थी
अब माँ
उन्ही सिक्कों से बने महल में रहती है
माँ जब मंदिर में फूल चढ़ाती है
उन फूलों से
पिता के पसीने की ख़ुशबू आती है।
पिता के पाँव में चकरी है।
2.
मैं लिखती हूँ
मैं लिखती हूँ
कि तल्ख़ी का कोई तरीक़ा मुझे नहीं आता
मैं लिखती हूँ
कि दर्द देख के चुप रहा नहीं जाता
मैं लिखती हूँ
कि न लिखूँ तो रूह कहीं मर न जाए
रह जाए बस मकान और घर बन न पाए
मैं लिखती हूँ
कि एक दरिया बहता रहता है मेरे अंदर
वो कहता तो कुछ नहीं
पर आँखों में भर आता है अक्सर
कि बहता सा वो दरिया कहीं सूख ना जाए
बनके पत्थर रह जाए फिर बह ना पाए
ख़ामोश ख़ुद में कुछ और ही होती हूँ मैं
लिखकर ही सही मगर मोती पिरोती हूँ मैं
मैं लिखती हूँ
कि गुम हूँ गुमशुदा सी इस शहर में
ये नग़मे हैं पैग़ाम मेरे इस सफ़र में
कि मिल जाए ज़रा मुझको अपना मकाँ भी
इक ज़मीं हो और उसका इक आसमाँ भी
मैं न क़िस्सा हूँ न क़िस्से का किरदार कोई
ये ख़ाकपन ही है फ़क़त न शहकार कोई
मुझे लफ़्ज़ों में ढूँढो
कि सियाही बनके ख़ुशबू सी बही हूँ
कि लिखने के सिवा कुछ भी नहीं हूँ
3
लड़का और लड़की
उस लड़के की अंगुलियाँ टटोल रहीं थीं
खुले आसमाँ पर सितारे
लड़की ने अपने चमकीले सपनों की चादर बिछा दी
वे हाथ थामे चलने लगे
गोया कि दोनों के बीच एक साफ़ नदी बह रही थी
यूँ नदी अपना सफ़र पूरा कर रही थी
रास्ता शुरू से तय था
इस सफ़र में
लड़का बिछ कर पत्थर बन गया था
लड़की के हाथ जल चुके थे ।
4.
दृश्य का टूटना
दृश्य का टूटना
बस एक दृश्य का टूटना भर नहीं होता
एक टुकड़े आसमान का लुप्त होना
एक बहती नदी का हिस्सा का प्लावित होना ,
एक मुट्ठी भर जंगल का खो जाना
और एक दर ओ दीवार में दरारें भी होता है
मगर सबसे ज़्यादा क्षतिग्रस्त
उस फूल की ख़ुशबू होती है
जो अबतक
उस दृश्य से बाहर खिड़की के मार्फ़त
कमरे के कोनों तक फैली हुई थी और
रह रहकर दीवारों की सीलन को
सुखाती रही थी
दृश्य का टूटना
एक हरे पेड़ का बंजर में बदल जाना भी होता है
और एक हृदय का टूटना
शायद यूँ होता है ..
5.
मैंने तुम्हारी बात नहीं की
आँसू
एक क़तरा है
समंदर से भरा
नमकीन और खारा
दर्द का इससे कोई लेना देना नहीं
लहरें खुद ही पत्थरों पर आकर टूटती हैं या
समंदर उन्हें अपने अंदर से धकेलता रहता है,
बादल पहाड़ों पर टूट के बरसते हैं या
घटायें भर के बरस जाती हैं,
धूप की आग के पीछे क्या है
क्या ज़मीं की गहराई में भी शोले हैं !!
उजली बर्फ़ के नीचे कौन पिघल रहा है ,
दरख़्तों के जिगर में क्या हरा हैं,
और तकिए पर बारिशें क्यूँ होती हैं..!!
मैंने तुम्हारी बात नहीं की
न ही फूलों की
उस मोड़ की भी नहीं
जहाँ से हमारी निस्बत बनी और टूट भी गई
हाँ मगर उस सड़क के किनारे
हवा ख़ुश्क होती है
काग़ज़ के कुछ मटमैले टुकड़े होते हैं
ये टुकड़े अब सूखे पत्ते बन गए हैं
वहाँ दो आँखें भी रखी होती हैं
बेहद ख़ूबसूरत कतरे होते हैं उनमें
साफ़ और चमकदार
मैले कुचैले खुरदरे चेहरे
और खिचड़ीनुमा गंदे बालों के बीच
वो कतरे तब और चमक उठते हैं
जब कोई आँख उनसे टकराती है
फटी बिवाइयों से होंठ मुस्कुराने की कोशिश में
गुलाबी हो जाते हैं
उनमें छिपे लाल पीले दाँत खिलने लगते हैं
उसी वक्त समंदर
उन क़तरों से नमक तक छीन लेता है
और तुम कहते हो
मैं उस रास्ते पर आज भी रुक जाती हूँ
नहीं
आँसू का इस सबसे कोई लेना देना नहीं
दर्द का उस वाक़ये से कोई रिश्ता नहीं
आँसू फ़क़त एक क़तरा है
नमकीन और खारा ...
Renu Hussain Books
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