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कहानी: इत्ता-सा टुकड़ा चांद का - उमा शंकर चौधरी | Uma Shankar Choudhary: Kahani Itta Sa Tukda Chand Ka

उमा शंकर चौधरी की  कहानी ‘इत्ता-सा टुकड़ा चाँद का’ उस विकास के मॉडल का सच हमें दिखाने की कोशिश कर रही है  जहां बच्चों के पनपने  जगह ही नही है। क्या आप पाठक (अपने) इस  समाज में बच्चों को समझ पा रहे है?   ~ सं0 

 Uma Shankar Choudhary: Kahani Itta Sa Tukda Chand Ka (Photo: Bharat Tiwari)


कहानी: इत्ता-सा टुकड़ा चांद का

उमा शंकर चौधरी

चार कविता संग्रह ‘कहते हैं तब शहंशाह सो रहे थे’, ‘चूंकि सवाल कभी खत्म नहीं होते’, ‘वे तुमसे पूछेंगे डर का रंग’ और ‘कुछ भी वैसा नहीं’ तीन कहानी संग्रह ‘अयोध्या बाबू सनक गए हैं’, ‘कट टु दिल्ली और अन्य कहानियां’,  और ‘दिल्ली में नींद’ एक उपन्यास ‘अंधेरा कोना’ प्रकाशित। 
साहित्य अकादमी युवा सम्मान, भारतीय ज्ञानपीठ नवलेखन सम्मान, रमाकांत स्मृति कहानी पुरस्कार, अंकुर मिश्र स्मृति सम्मान और पाखी का जनप्रिय लेखक सम्मान। 
कहानियों, कविताओं का विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद। कविता संग्रह ‘कहते हैं तब शहंशाह सो रहे थे’ का मराठी अनुवाद साहित्य अकादमी से प्रकाशित।
कविताएं केरल विश्वविद्यालय, केरल, शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय, कलाडी, केरल और एम. जी. विश्वविद्यालय, कोट्टयम, केरल के स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में शामिल। 
विभिन्न महत्वपूर्ण श्रृंखलाओं में कहानियां और कविताएं संकलित। कहानी ‘अयोध्या बाबू सनक गए हैं’ पर प्रसिद्ध रंगकर्मी देवेन्द्र राज अंकुर द्वारा एनएसडी सहित देश की विभिन्न जगहों पर पच्चीस से अधिक नाट्य प्रस्तुतियां।
बी-364, सरिता विहार, दिल्ली-110076 / मो0-9810229111 / umashankarchd@gmail.com



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अनिकेत आज बहुत खुश है। घर लौटा है तो पसीने से तर-बतर है। पर आज वह इतना खुश है कि अपनी मुस्कुराहट को रोक नहीं पा रहा है। उसका मासूम-सा दिमाग सोचता है कि आज जो हुआ वह पता नहीं फिर कभी हो भी पाएगा या नहीं। आज वह अपने विपक्षी राहुल की टीम को हरा कर आया है। और सिर्फ हरा कर ही नहीं आया है बल्कि अपने दम पर हरा कर आया है। सिर्फ बारह रन पर ही जब सारी विकटें गिर गयीं थीं तब अनिकेत ने अकेले बैटिंग करके स्कोर को सेवेंटी सिक्स तक पहुंचा दिया। अकेले मतलब अकेले। कोई इस पंक्ति को पढ़कर यही कहेगा कि मेरी क्रिकेट की नॉलेज बहुत ही कमजोर है। आखिरी विकेट में कोई अकेले थोड़े ही ना बैटिंग कर सकता है। परन्तु यह मेरी नॉलेज का मसला है ही नहीं। यहां इस मोहल्ले के क्रिकेट के नियम ही कुछ अजीब हैं। फुल टॉस में अगर कमर से ऊपर बॉल चली गयी तो नो बॉल। और टप्पा खाकर कंधे से ऊपर चली गयी तो भी नो बॉल। यहां नो बॉल का तो रन नहीं है लेकिन बॉल वाइड गयी तो एक रन। बॉल यदि पेड़ पर अटकी रह गयी या फिर यह जो यहां-वहां झाड़ियां हैं उसमें फंसी रह गयी तो दौड़ने का कोई फायदा नहीं। यहां फिक्स्ड हैं दो रन। आखिरी विकेट तक का यहां महत्व है। कोई एक भी बचा रहेगा तो वह आखिरी ओवर तक खेलेगा। एक मैच आठ ओवर का होता है। और तीसरे मैच में अगर अंधेरा होने लगा तो यह पांच या छह ओवर का भी हो सकता है। यहां बाहर के लोग अगर क्रिकेट देखने आते हैं और उन्हें अजीब लगता है तो यहां के बच्चे कहते हैं - यह ड्रीम इलेवन है बॉस। यहां सब सेम है, हां ये अपना गेम है। ड्रीम बिग, ड्रीम इलेवन।

आज अनिकेत ने दो ही मैच खेले हैं और दोनों में जीत। लेकिन आखिरी मैच की तो बात ही कुछ और थी। अनिकेत अपने टीम का कैप्टन है। दूसरा मैच उसने अपने दम पर जिताया है। उसने न केवल रन बनाए बल्कि अपने बॉलिंग के ओवर में भी उसने दो महत्वपूर्ण विकेट चटका दिए। और खासकर राहुल का विकेट। राहुल दूसरी टीम का कैप्टन है। अनिकेत खेल कर जब घर लौटा, वह काफी खुश था और वह अपनी मम्मी से अपनी खुशी साझा करना चाहता था।

‘‘मम्मा आज आपका बेटा तो विराट कोहली बन गया।’’ बिना इस बात की चिंता किए कि उसका शरीर पसीने से भीगा हुआ है, वह अपनी मां से लिपट गया।

‘‘फेबुलस! एक दिन बड़ा होकर मेरा बेटा विराट कोहली से भी बड़ा क्रिकेटर बनेगा।’’ मम्मी ने भी इस बात की चिंता किए बिना कि अनिकेत पसीने से भीगा हुआ है, अपने से चिपटा कर उसकी खुशी में डूबती-उतरती रही।

‘‘लेकिन जहां तक मुझे पता है विराट कोहली तो बॉलिंग करता ही नहीं है।’’ मम्मा ने हल्की-सी चुटकी ली।

‘‘अरे वैसे नहीं ना मम्मा।’’ अनिकेत ने नाक सिकोड़कर मम्मा से और लिपट गया।

अनिकेत रोज शाम को खेल कर लौटने के बाद अपनी मम्मी को वहां की खुश होने वाली और दुखी होने वाली ढेर सारी बातें सुनाता है। उसकी अपनी टीम में ही सिद्धार्थ है जो जल्दी आउट मानने को तैयार ही नहीं होता है। अनिकेत कई बार अपनी मां को सुना चुका है कि वह उसकी बात भी नहीं मानता है और आउट होने के बाद भी जल्दी विकेट से हटता नहीं है। अनिकेत जब यह कहता है कि बताओ मम्मी वह कैप्टन की भी बात नहीं मानता है, तब मम्मी मुस्कराने लगती है। और तब वह और जोर देकर कहता है - कैप्टन तो सबसे बड़ा होता है ना।

आज भी जब अनिकेत पूरी शाम की एक-एक बात अपनी मम्मी को बतला रहा था तो काफी उत्साहित था। वह लगभग पंद्रह मिनट तक अपनी मां को अपनी उपलब्धियां बतलाता रहा और यह भी कि अब उसकी आगे की योजना कैसी रहेगी, इस तरह की योजना कि वह रोज इसी तरह की बैटिंग कर पाए। जब उसकी बात खत्म हुई तब मां ने कहा, जाओ कपड़े चेंज कर लो और पढ़ने बैठ जाओ, कल आपका स्कूल में इंटरेक्शन भी है ना। सुबह-सुबह ही निकलना है बेटा। बस अनिकेत के लिए यही एक शब्द इंटरेक्शन बहुत दुखी करता है। वह इसे सुनता है और उदास हो जाता है। बिना अपनी मां को कुछ कहे वह अपने कमरे में चला गया।

यह पिछले कुछ दिनों से चलने वाला दौर है। उसे नोएडा के विभिन्न स्कूलों में इंटरेक्शन के लिए ले जाया जा रहा है ताकि वहां के किसी ढंग के स्कूल में उसका एडमिशन हो जाए। उसके मां-पिता ने कुछ स्कूलों को शॉर्टलिस्ट कर रखा है और उनकी इच्छा है कि अनिकेत का दाखिला उन्हीं में से किसी एक स्कूल में हो जाए। परन्तु अनिकेत ऐसा नहीं चाहता। ऐसा नहीं है कि अनिकेत ने अपने मां-पिता को समझाना नहीं चाहा होगा। लेकिन अनिकेत समझता है कि मां-पिता की भी अपनी मजबूरी है। मां-पिता को घर खरीदना ही है और इसमें वह कुछ कर भी नहीं सकता है। उसे लगता है कि अगर वह अभी बड़ा होता तो यहां से कहीं नहीं जाता। अपने मां-पिता को यहीं जमीन खरीद देता। यह ग्राउंड भी वह खरीद लेता और ताउम्र वह अपने दोस्तों के साथ यहां क्रिकेट खेलता। लेकिन अनिकेत अभी छोटा है और जहां उसके माता-पिता घर खरीद रहे हैं, वहां चाहे चमकदार चीजें जितनी भी हों, क्रिकेट खेलने की जगह नहीं है।

अनिकेत अपने माता-पिता की इकलौती संतान है। पिता रजत और मां जागृति। अनिकेत के माता-पिता दोनों नौकरी करते हैं। मल्टीनेशनल कम्पनी की नौकरी। अपनी नौकरी में कोई अपनी कम्पनी के लिए सर्वे जुटा रहा है तो कोई अपनी कम्पनी के हित में लोगों के भीतर जरूरतों को पैदा करने की कोशिश कर रहा है। वे लोग अभी जहां रह रहे हैं वह बहुत विकसित जगह नहीं है। इसलिए वहां ढेर सारी खुली जगह है। लेकिन उनकी जब यह योजना बनी कि अब घर खरीदा जाए तो सबसे पहले नोएडा का ही ख्याल आया।

अनिकेत का परिवार एक मध्यवर्गीय परिवार है। रजत और जागृति अपनी नौकरियों के सहारे अपने परिवार को धीरे-धीरे समृद्ध करने की कोशिश में लगे हुए थे। यही कारण है कि जब प्रेम विवाह के बाद वे इस शहर में नौकरी के साथ पहुंचे तो यहां उन्होंने किराये के मकान से ही जीवन की शुरुआत की। हालांकि इस शहर ने उनका बांहें फैला कर स्वागत किया। यहीं नौकरी मिली, सुखद परिवार शुरू हुआ। इसी शहर में आने के बाद अनिकेत जैसा दुनिया का सबसे प्यारा बेटा उन्हें मिला। लेकिन घर! घर इतना आसान कहां है? सबसे पहले उन्होंने यहां एक कमरे से जीवन की शुरुआत की। अनिकेत का जब जन्म हुआ, तो दो-तीन साल तक तो जागृति ने अपनी नौकरी से अवकाश लिए रखा। उसके बाद जब अनिकेत तीन वर्ष का हो गया तब उसने दुबारा नौकरी ज्वाइन की और फिर किराये के थोड़े बड़े घर में वे आए। किराये के इस घर में वे लगभग सात वर्षों से हैं।

यह घर जहां है, वह इलाका बहुत सुनियोजित तरीके से नहीं बसाया गया है। इसलिए यहां अभी बहुत सारी जगह खाली है। यह जगह जिसमें अनिकेत क्रिकेट खेल रहा है, वह सरकार के अधीन आने वाली वह जमीन है जिसमें भविष्य में कभी पार्क बनने की योजना है। भविष्य में चाहे इस जमीन पर जो भी बने, लोग इसे आज भी पार्क की तरह से ही इस्तेमाल कर रहे हैं। कहने को लोग इसे पार्क कह लेते हैं परन्तु यह पार्क की तरह अभी विकसित हुआ नहीं है। यहां बड़े-बुजुर्ग टहलने आते हैं। यह खुली जगह इतनी बड़ी है कि बच्चे क्रिकेट भी बिना किसी बाधा के खेल लेते हैं। अभी इनका घर जहां है वह सैकेण्ड फ्लोर है। लेकिन यह पार्क इनके घर के नजदीक है।

अनिकेत बार-बार कहता है कि उसने यहां क्रिकेट टीम में बने रहने के लिए ट्वैल्थमैन यानि पानी पिलाने वाले से लेकर कैप्टन तक का सफर तय किया है। उसने इस टीम को अपने पसीने से सींचा है। यह मुझसे मत छीनों मेरी मां! रजत और जागृति अपने घर की अहमियत को समझते हैं। जीवन की तमाम अनिश्चितताओं के बीच वे सोचते हैं जितनी जल्दी अपना एक घर हो जाए।

अनिकेत कहता है - तो इसी घर को खरीद लो ना! अपना पूरा पिग्गी बैंक भी दे दूंगा। निकाल लो सारे पैसे। और प्रॉमिस, अगले बर्थडे पर कोई गिफ्ट भी नहीं मांगूंगा। और कपड़े तो अभी मेरे पास बहुत हैं। कम से कम तीन साल मुझे कपड़े तो चाहिए ही नहीं। बस हो गया घर।

जागृति, अनिकेत की भोली बातों को सुनती है और रूआंसी होती है, मुस्कराती है और फिर अपने बेटे को समझाती है - इस घर की कीमत अली बाबा की हवेली से भी ज्यादा है। और फिर आप ऐसा भी तो सोचो कि घर कितना पुराने स्टाइल का बना है। हमारा घर तो बिल्कुल चमचमाता हुआ होगा।

अनिकेत की बातों के साथ यह मान-मनौव्वल भले ही चलती रही परन्तु रजत और जागृति सच्चाई को जानते थे। वे जानते थे कि यथार्थ में इस घर को, जिसमें वे रह रहे हैं, खरीदना उनके लिए संभव नहीं है। और जो किराया उस घर में जा रहा है वह वेस्टेज है। इसी किराये से इएमआई देकर अपना घर बनाया जा सकता है। इसलिए समानान्तर रूप से वे लगातार घर देखते भी रहे और फिर एक दिन उन्होंने नोएडा की एक ऊंची बिल्डिंग में उन्नीसवें माले पर अपना एक आशियाना बुक कर दिया। घर लगभग तैयार था। कुछ कागजी कार्रवाई और फिर लकड़ी के अपने मन के अनुकूल कुछ काम। यानि कुल मिलाकर ज्यादा से ज्यादा चार महीने।

और फिर शुरू हुआ स्कूल बदलने का दबाव। इस बीच स्कूल को ध्यान में रखा गया और जब-तब अनिकेत को इन्ट्रैक्शन के लिए ले जाया गया। अनिकेत अपने मन से कई बार अपना इन्ट्रैक्शन खराब करके आता। जैसे एक बड़े से स्कूल में पूछा गया कि आप इस नए स्कूल में नए दोस्त बना लोगे ना, तो उसने साफ कह दिया कि उसके दोस्त उस पुराने स्कूल में है और वह यहां किसी को भी अपना दोस्त नहीं बनाएगा। दोस्त बार-बार बदले नहीं जाते हैं। एक बार उसने इनट्रैक्शन के दौरान कह दिया कि आपके स्कूल का तो रंग ही मुझे नहीं पसंद। एक बार तो जब मम्मी-पापा बाहर थे तब उसने मिस से कह दिया था - मैम प्लीज़ मुझे बचा लीजिए, मुझे स्कूल चेंज नहीं करना। इनफैक्ट मुझे घर ही चेंज नहीं करना। आप मुझे यहां एडमिशन ही मत दीजिए प्लीज़।

लेकिन अनिकेत की तमाम कोशिशों के बावजूद उसका एडमिशन एक स्कूल में हुआ।

अनिकेत को जब यह पता चला, तब वह बहुत उदास हुआ। जागृति समझती थी अनिकेत के दुख को परन्तु वह कर भी क्या सकती थी। उसने अनिकेत को समझाने का बहुत प्रयास किया।

बेटा हमें अपना फ्यूचर भी देखना होता है ना। अगर हमने अभी घर नहीं लिया और किराया देते रहे तो कभी हमारे पास अपना घर ही नहीं हो पाएगा। और अपना घर तो सबके पास होना चाहिए ना। अभी मान लो हमको हमारा मकान मालिक ही इस घर से निकाल दे तो हम कहां जाएंगे। हमारे पास अपना कोई घर तो है नहीं। हम जो भी कर रहे हैं वह आपके फ्यूचर के लिए ही तो कर रहे हैं ना।

मैं समझती हूं कि यहां पर आपके सारे फ्रेंड्स हैं। फ्रेंड्स तो हम वहां भी बना लेंगे। और सबसे अच्छा फ्रेंड तो पापा-मम्मी ही तो होते हैं।

अनिकेत का दुख कम तो नहीं हुआ परन्तु उसने इतना समझ लिया कि मम्मी-पापा कुछ अच्छा ही सोच रहे होंगे। और यह भी कि घर लिया जा चुका है। वहां के स्कूल में एडमिशन हो चुका है, तो जाना तो होगा ही।

फिर शुरू हुआ अनिकेत के पेट दर्द, सिर दर्द, पैर दर्द का बहाना। अभी नहीं मम्मा, अभी तो मेरी तबियत ही ठीक नहीं है। कभी अद्वैत का जन्मदिन आ गया तो कभी राहुल ने आज हमारी टीम को हरा दिया है, बिना उसे हराए तो यहां से जा ही नहीं सकता। ऐसा नहीं है कि जागृति नहीं समझती है कि ये सारे अनिकेत के बहाने हैं। वह तो खुद ही इस मसले पर बहुत भावुक थी। लेकिन उसकी भावना से ऊपर बैंक की इ.एम.आई थी, जो शुरू हो चुकी थी। एक तरफ यहां मकान का किराया जा रहा था और दूसरी तरफ बैंक की इ.एम.आई। फिर एक दिन ऐसा भी आया कि भावनाओं को दरकिनार कर एक तारीख तय कर ली गयी। रजत ने कहा - जिस भी दिन यहां से जाओगे, उसे दुख तो होना ही है। लेकिन तब तक बहुत सारे रूपयों का नुकसान हो चुका होगा।

अनिकेत की इस क्रिकेट ग्राउंड से आंसूओं भरी विदाई दी गयी। कई बच्चों ने अलग अलग तरीके से उसके फेयरवेल को सेलिब्रेट किया। कुछ ने गिफ्ट दिया तो कुछ ने आते रहने का वायदा। तय यह हुआ कि शनिवार-रविवार को अनकेत अपने मम्मी या पापा के साथ यहां क्रिकेट के लिए आया करेगा। जागृति के सामने यह वायदा हुआ। जागृति यह जानती थी कि यह कभी भी पूरा नहीं होने वाला है लेकिन वह अनिकेत को और दुखी नहीं करना चाहती थी।

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तेइस माले की यह बिल्डिंग, जिसके उन्नीसवें माले पर अनिकेत रहने आया था, का नाम स्काई व्यू अपार्टमेंट था। नाम स्काई व्यू था तो स्काई का व्यू तो था। ऐसा लगता था जैसे आसमान अब उनसे थोड़ा ही ऊपर है। यह अपार्टमेंट तीन विंग में बंटा हुआ था। तीन विंग, तीन नाम। एक था एम विंग, दूसरा था एस विंग और तीसरा था के विंग। जो भी लोग यहां मकान खरीदने आते हैं या फिर यहां रहने आते हैं या फिर यहां किसी के घर ही आते हैं तो यह सवाल जरूर पूछते हैं कि ए,बी,सी तो हो सकता था लेकिन इस एम,एस और के का क्या मतलब है। बहुत सारे लोग इसे या तो संयोग मानते हैं या फिर मन का फितूर। लेकिन कुछ शोधी प्रवृति के भी लोग यहां हैं। वे जानते हैं कि जिस बिल्डर ने इस अपार्टमेंट को बनाया था उसकी पत्नी का नाम सुनैना था और उसके पिता का नाम महेंन्द्रनाथ और उसके पुत्र का नाम कार्तिक था।

अनिकेत ‘एस’ विंग में रहता है। तीनों विंग गोलाकार में एक सर्कल बनाने की कोशिश कर रहे थे। उस तीनों विंग के बीच में एक पार्क था। इस बिल्डिंग के किसी भी माले पर से देखा जाता तो वह पार्क अवश्य दिखता। उस पार्क में अलग-अलग तरह के झूले थे। हरी मुलायम घास थी। शाम को पार्क में बच्चों की भीड़ रहती है। लेकिन इस अपार्टमेंट में यह अकेला पार्क नहीं है, बल्कि दो छोटे पार्क और भी हैं। इन तीनों विंग के पीछे जाकर एक स्वीमिंग पूल है। उसे जानबूझकर ऐसे एकांत में बनाया गया था कि वह आसानी से नजर नहीं आए। अपार्टमेंट में घुसते ही दोनों छोटे वाले पार्क दाएं और बाएं हैं। दोनों पार्कों के बीच से अंडर ग्राउंड पार्किंग का रास्ता था। इन दोनों पार्कों में पानी के झरने हैं। दोनों पार्कों में फूलों के ढेर सारे पौधे भी हैं।

अनिकेत जब से इस अपार्टमेंट में आया है, वह यहां धीरे-धीरे एडजस्ट करने की कोशिश कर रहा है। यहां आने से ना केवल उसके रहने की जगह बदली बल्कि उसका स्कूल, स्कूल बस और उसके दोस्त भी बदल गए। शुरुआत के एक महीने तक तो काफी चीजें अस्त-व्यस्त रहीं। जागृति ने एक महीने की छुट्टी ली और फिर घर और अनिकेत के स्कूल जाने और आने को सेटल करती रही। चूंकि इस सोसायटी में काफी लोग रहने लगे हैं इसलिए उसे इन सब चीजों के लिए बहुत मेहनत करने की जरूरत पड़ी नहीं। स्कूल की बस चूंकि सोसायटी के गेट तक आती थी तो जागृति को कभी ऐसा लगा नहीं कि कुछ डरने की जरूरत है। सोसायटी गेट पर सिक्योरिटी गार्ड इन बच्चों को अपने सामने उतारते और फिर वहां अनिकेत को रिसीव करने उसकी नई दीदी रश्मि खड़ी रहती।

अनिकेत का यह घर टू बीएचके है। इसमें दो कमरों के अलावा एक ड्रॉइिंग हॉल और एक डायनिंग हॉल है। अनिकेत के पास अपना एक कमरा है, उसी में पढ़ने के लिए टेबल-कुर्सी लगा दी गयी है। अनिकेत की जिद पर उसके कमरे में क्रिकेटर के बड़े-बड़े पोस्टर लगाए गए हैं। एक दीवार पर विराट कोहली की तस्वीर है तो दूसरी तरफ रवीन्द्र जडेजा की। अनिकेत जडेजा का बहुत बड़ा फैन है। वह कहता है कि खेल तो सब लेते हैं लेकिन ऐसी फील्डिंग कौन कर सकता है। जडेजा का हवा में लहराता कैच लेने का स्टाइल उसे बहुत पसंद है। इस कमरे में उसके सोने के लिए एक बेड के अलावा बस टेबल-कुर्सी है। कमरे में एक अल्मीरा है जिसमें अनिकेत के कपड़े हैं। स्कूल में पहनने के एक तरफ, घर पहनने के एक तरफ। उसके दरवाजे पर अनिकेत के स्कूल की टाई और बेल्ट टंगी रहती है। इसी कमरे में वह बैट-बॉल भी है जो अनिकेत अपने साथ अपने पुराने घर से लेकर आया था इस उम्मीद के साथ कि वह शनिवार-रविवार को वहां खेलने जाया करेगा।

अनिकेत का घर इस डिजाइन से बना हुआ था कि घर में घुसते ही सबसे पहले ड्राइिंग हॉल था और उसके बाद सीधे में जो कमरा था वह अनिकेत का कमरा था। बाएं तरफ मम्मी-पापा का कमरा था और दायीं तरफ ड्राइिंग हॉल को पार करके बाल्कनी थी। रसोई घर दोनों कमरों के बीच में था। रसोई घर में एक खिड़की थी। अनिकेत स्कूल से ढाई बजे आ जाता है। रश्मि उसे सोसायटी के गेट से लेती है और घर में उसके साथ रहती है। चार बजे तक रश्मि की यह ड्यूटी है कि वह उसके साथ रहे। उसकी जरूरतों का ध्यान रखे। चार बजे के बाद रश्मि मेन गेट बंद करके चली जाती है। जागृति छः बजे के करीब आ जाती है। दो घंटे के करीब अनिकेत अकेला रहता है। जब वह पुराने घर में था तब उसकी दिनचर्या यह थी कि वह साढ़े चार बजे सो कर उठ जाता था और फिर वह तैयार होकर अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने चला जाता था। घर के पास में ही ग्राउंड था तो उसे वहां मम्मा की भी जरूरत नहीं थी।

यहां भी अनिकेत के लिए सख्त हिदायत है कि वह स्कूल से आने के बाद खाना खाकर कम से कम एक घंटे के लिए सो लिया करे। रश्मि को यह निर्देश था कि वह अनिकेत को खाना खिलाकर सुला दिया करे और फिर वह अपना काम खत्म कर बगैर उसे जगाए मेन गेट बन्द करके चली जाया करे। जागृति सोचती थी कि अनिकेत उसके आने तक सोया रहे तो ज्यादा बढ़िया है। क्योंकि जब तक वह घर पहुंचेगी नहीं तब तक अनिकेत का नीचे उतर कर खेलना सम्भव नहीं। वैसे अनिकेत यहां नीचे उतर कर पार्क जाने के पक्ष में बहुत होता भी नहीं था क्योंकि उसे लगता है कि यह पार्क खेलने की जगह कम, सजाने की जगह ज्यादा है। वहां जो झूले लगे थे अनिकेत उस झूले की उम्र से थोड़ा आगे निकल आया था। और दूसरे पार्क में जो जिम लगा हुआ था उसकी उम्र से वह अभी थोड़ा ज्यादा पीछे था।

अनिकेत यहां आकर मम्मा की बात मानने वाला बच्चा बन गया है। मम्मा जो कहती है, वह उसे चुपचाप मान लेता है। वह यह जानता है कि मम्मा-पापा ने जो निर्णय लिया है उसके लिए, वह ठीक ही लिया है। वह यह भी जानता है कि उसका खेल छूटा तो मम्मा-पापा का ऑफिस भी तो यहां से दूर हो गया। मम्मा-पापा सुबह तैयार कर उसे स्कूल भेजते हैं। मम्मा उसका ब्रेकफास्ट और लंच तैयार करती है और पापा उसे तैयार होने में मदद करते हैं। पापा उसे बस तक छोड़ते हैं। फिर मम्मी-पापा तैयार होकर खुद भी ऑफिस भागते हैं। दोनों के ऑफिस की दूरी अब बढ़ गयी है। दोनों अब शाम को थोड़ी देर से आने लगे हैं। पापा तो पहले से ही देर से आते थे और अब वे और देर से आने लगे हैं। इसलिए अनिकेत कोशिश करता है कि वह मम्मा को कम से कम दुखी करे।

लेकिन वह अपने क्रिकेट के छूट जाने के गम से बाहर नहीं आ पा रहा था।

मम्मा का निर्देश था तो वह स्कूल से आने के बाद खाना खाकर सो जाता था। वह सोने की कोशिश करता था और नींद आ भी जाती थी परन्तु नींद में उसे सपने आते थे। वह नींद में रोज अजीब-अजीब सपने देखता। उसे कई बार इस तरह के सपने आते कि वह क्रिकेट खेल रहा है और उसे एक यॉर्कर बॉल को गिरने से पहले ही फुल टॉस बनाकर उसे उड़ा दिया है। इतना दूर उड़ा दिया है कि बॉल ऊपर की तरफ ही जाए जा रही है। दूर, बहुत दूर। बॉल जाए जा रही है और फिर वह दिखना बंद हो जाती है। कभी वह फील्डिंग कर रहा है और बॉल के पीछे दौड़ रहा है और दौड़ते-दौड़ते उसे अचानक दिखता है कि आगे जमीन खत्म हो रही है, वह बॉल को पकड़ने के लिए बॉल पर झपट्टा मारता है लेकिन बॉल के साथ-साथ वह नीचे कहीं गहरी खाई में गिर जाता है। एक बार वह बैटिंग कर रहा था, बॉल आयी और बिना बैट में लगे बॉल गायब। अनिकेत ने पीछे पलटकर देखा तो पीछे विकेट नहीं था। विकेटकीपर भी नहीं था। पीछे एक भेड़िया खड़ा था। उस भेड़िये ने उस बॉल को अपने मुंह में दबा रखा था।

अनिकेत अक्सर ऐसे सपने देखता और डर जाता। उसके कपड़े पसीने से गीले हो जाते। वह डर कर उठता और रसोई में जाकर अपने लिए पानी लेता। कुछ दिन ऐसे गुजरे तो उसने रश्मि दीदी को कहना शुरू कर दिया कि जब वह सो रहा हो तो उसके बिस्तर के पास में पानी की बोतल रख दिया करे।

अनिकेत जिस दिन भी ऐसे डरावने सपने देखता उस दिन वह काफी डरा हुआ रहता। मम्मा के आने पर भी वह डरा रहता। परन्तु मम्मी-पापा के बार-बार पूछने पर भी वह कभी अपने डर को साझा नहीं करता। मम्मा उसे रात में उसके कमरे में सुलाने आती तो वह बिना कुछ सुने उनसे जिद करता कि आज मम्मा उसी के साथ उसी के कमरे में सोए। वह अपनी मम्मा के सीने से चिपककर उस काले भेड़िए को अपने दिमाग से दूर भगाने की कोशिश करता।

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कुछ दिन इन सपनों के साथ गुजारने के बाद अनिकेत दिन में सोने से डरने लगा था। लेकिन वह सोने से इंकार कर नहीं सकता था क्योंकि रश्मि दीदी को मम्मा का सख्त निर्देश था कि वह उसे सुला कर जाए। जागृति चाहती थी कि जब तक वह नहीं लौट आती तब तक अनिकेत सोया रहे। जागृति को डर लगता था कि अनिकेत जगकर पता नहीं क्या-क्या शैतानियां करता रहेगा। और अनिकेत अपनी मम्मा को दुखी नहीं करना चाहता था।

लेकिन अब अनिकेत इंतजार करता था कि मेन दरवाजे़ के बन्द होने की आवाज आए और कब वह अपने बैट बॉल के साथ मैदान में उतर जाए। मैदान यानि उसका कमरा। उसने अपने कमरे को ही बना लिया था अपना मैदान। दीवार के सामने बैट लेकर खड़े होकर वह बैटिंग करता। बैट से दीवार की तरफ बॉल को मारता और फिर बॉल के दीवार से टकराकर वापस आने पर दुबारा वह बैट से उस पर हिट करता। और इस तरह उसका यह कमरा अब उसका खेल का मैदान था। यहां की दीवारें उसके क्रिकेट के बॉलर भी थीं और फील्डर भी। अनिकेत इस बात को जानता था कि जिस दिन उसकी चोरी पकड़ी गई कि वह दिन में नहीं सो कर, बैटिंग कर रहा है उसे मम्मी से पक्का डांट पड़ेगी। इसलिए सतर्कता के लिए उसने ड्राइिंग हॉल की जगह अपने कमरे को खेल के मैदान के रूप में चुना। उसे यहां-वहां खेलने में किसी भी चीज के टूट जाने का भी डर था। वह पहले अपने कमरे में उन दीवार पर टंगी सारी तस्वीरों को उतार लेता। खेल खत्म हो जाने के बाद वह अपनी निगाह को चारों तरफ घुमाकर पूरे कमरे का मुआयना करता। अपने टेबल को संभालता और दीवार को फिर पहले जैसा करने की कोशिश करता। मम्मी के आने के समय से पहले वह बिस्तर पर फिर से लेट जाता। पापा के बारे में उसे पता था कि वे और देर से आते हैं। वैसे भी पापा से अनि कम ही डरता था। उसे लगता था पापा को तो कुछ पता भी नहीं चलेगा कि घर में क्या चल रहा है।

लेकिन यह सिलसिला भी ज्यादा दिन चल नहीं पाया। एक दिन खेलते-खेलते अचानक अनिकेत की निगाह उस दीवार पर गई जिसे उसने एक तरह से बॉलर और फील्डर बना लिया था, उस पर गेंद के ढेर से धब्बे पड़ गए थे। जब अनिकेत की निगाह उस पर गई तो वहां उसे एक आकृति उभरी हुई-सी दिखी। अनिकेत को लगा कि आज तक उसने कभी इन धब्बों पर ध्यान क्यों नहीं दिया। ये धब्बे अचानक इतना कैसे उभर गए। वह घबरा गया। उसे लगा अब मम्मा तो उसे डांटे बिना नहीं छोड़ेगी। उसने जल्दी से अपने बाथरूम से तौलिया उठाकर उस दीवार को साफ कर देना चाहा, परन्तु दाग बस हल्का हुआ। अब चूंकि उसका ध्यान उसकी तरफ जा चुका था इसलिए वह दाग उसे बहुत ज्यादा ही दिखने लगा था। उसे इस बात का दुख इस समय कम था कि अब आगे से यहां उसके लिए क्रिकेट खेलना संभव नहीं हो पाएगा बल्कि उसे इस बात का डर ज्यादा था कि मम्मा इस दीवार को देखेगी तो क्या सोचेगी।

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ऐसा नहीं है कि जागृति ने धीरे-धीरे गंदी हो रही उस दीवार को देखा नहीं था। ऐसा भी नहीं है कि इस नए घर में उस दीवार के गन्दे होने से उसे कोई दुख नहीं हो रहा था। परन्तु वह अनिकेत को कुछ कहना नहीं चाह रही थी। वह उसे यह अहसास भी नहीं कराना चाह रही थी कि उसे इस दीवार के बारे में पता है। वह चाहती थी और उसे भरोसा भी था कि एक दिन इन दागों को देखकर अनिकेत खुद ही यहां खेलना छोड़ देगा। और हुआ भी ऐसा ही।

लेकिन अनिकेत को जिस दिन से इस दीवार का दाग दिखा था वह मम्मा से डर कर रह रहा था। उसे ऐसा लग रहा था कि मम्मा अभी उसके कमरे में जाएगी और अभी वह मम्मा से डांट सुन लेगा। इतनी बड़ी घटना के लिए वह पिट भी सकता है। उसने कई बार ऐसी कोशिश की थी कि जब भी मम्मा उसके कमरे में जाने की कोशिश करती वह कुछ-न-कुछ बहाने से उसे रोक लेता। मम्मा को स्कूल की बातें सुनाने के लिए या फिर टीवी पर आने वाले अपने किसी फेवरिट शो की बातों को लेकर। अभी उस दिन रविवार के दिन जब वह ड्राइिंग रूम के साथ वाली बाल्कनी में पापा के साथ बैठकर जेरेनिमो सिल्टन सीरीज की पुस्तक पढ़ रहा था और जब वह अचानक अंदर आया तो मम्मी उसके कमरे से निकल रही थी। अनिकेत एकदम सहम गया था। उसे लगा आज तो बस हो ही गया। उसने दौड़ कर अपनी मम्मा को पकड़ा और कहा - मम्मा आज घर की सफाई में मैं भी आपका हाथ बटाउं क्या। मम्मी मुस्कराई और अनि के गाल पर चिकोटी काटकर चली गई।

लगभग आठ-दस दिनों तक यह सिलसिला चलता रहा फिर उसे यह लगने लगा कि मम्मा को इन दागों के बारे में बिल्कुल भी पता नहीं चला। उसने अपने मन में सोचा कि मम्मा कितनी भोली है। फिर वह धीरे-धीरे उस दाग को भूलने लगा। लेकिन हां उसने कमरे में खेलना एकदम बंद कर दिया।

ऐसा नहीं है कि रजत और जागृति ने इस बारे में विचार करना छोड़ दिया था। रजत वैसे तो ऑफिस के कामों में ज्यादा उलझा ही रहता था परन्तु जब भी रजत और जागृति को फुरसत मिलती थी वे आपस में इस बात पर चर्चा अवश्य करते थे। कई बार जागृति इस बात को दुहरा चुकी थी कि कहीं यहां आकर हमने उससे उसका बचपना तो नहीं छीन लिया। लेकिन रजत हर बार कहता कि हम कर ही क्या सकते थे यह तो हमारी मजबूरी थी।

उधर जब से दीवार पर यह दाग अनिकेत को दिखा था उसके लिए फिर से संकट शुरू हो गया था। उसे अब फिर से समझ नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करे। नींद उसे आती नहीं थी और खेल वह सकता नहीं था।

कुछ दिनों तक तो वह उस आकृति को ही देखता रहता जिसे उभारने का श्रेय उसे ही जाता है। वह अपने बिस्तर पर लेट कर उस आकृति को देखता और अपने मन में कई कहानियों को आकार देता। कभी उसे लगता कि यह एक चार साल के बच्चे की तस्वीर है। बच्चा अपने पापा के साथ खेल रहा है और खेलते-खेलते वह गिर गया है फिर रोते हुए अपनी बांहें फैलाए पापा से गोद में उठा लेने की जिद कर रहा है। कभी उसे लगता कि एक पेंगुइन मां अपने बच्चे को पकड़ने जा रही है। कभी उसे लगता कि यह उसके बचपन की तस्वीर है जिसमें मां ने उसे अपनी बांहों में घेर रखा है। फिर एक दिन उसे उस तस्वीर में एक बल्लेबाज दिखा जो अपनी एक गलत ड्राइव से आउट होकर विकेट के सामने उदास बैठ गया है। अनिकेत बार-बार उस तस्वीर को देखता और उस बल्लेबाज का दुख उसके चेहरे पर तारी हो जाता। उस बल्लेबाज की आंखों में आंसू नहीं थे बल्कि उसका चेहरा एक पूर्णतया उदास चेहरा था। फिर धीरे-धीरे कुछ दिन गुजरने के बाद उसका यह खेल भी बासी पड़ने लग गया।

और फिर उसके ध्यान में यह आया कि उसके पास मोबाइल भी है। अभी तक मोबाइल का बहुत ध्यान उसे आता इसलिए नहीं था कि वह घर में रश्मि के जाने के बाद लगभग दो घंटे ही अकेले रहता था और इस बीच जागृति उसे इसलिए फोन नहीं करती थी कि वह सो रहा होगा। लेकिन अब जब कुछ बचा नहीं तब अनिकेत को यह याद आया कि मोबाइल से भी खोला जा सकता है। जब उसे मोबाइल का ध्यान आया तो उसे टीवी का भी ध्यान आया। अब उसका साथी ये दो गजेट्स थे- टीवी और मोबाइल। मोबाइल को खंगालना शुरू किया तो उसमें कॉलिंग के अलावा कुछ ज्यादा था नहीं। उसे इंटरनेट से जोड़ा नहीं गया था। रजत और जागृति ने जानबूझकर इस मोबाइल को सिर्फ कॉलिंग के लिए ही रखा था ताकि बहुत सारी अवांछित चीजों से बच्चे को बचाकर रखा जा सके। मोबाइल को पूरी तरह खंगालने के बाद जो अनिकेत को समझ में आया उसमें सिर्फ एक चीज थी जो थोड़ा रोमांच पैदा कर सकती थी वह थी उसका कैमरा। अब अनिकेत के दो साथी थे एक टेलीविजन, जिससे वह दूसरों के कैमरे से दुनिया को देखता था और दूसरा मोबाइल जिसमें अपने कैमरे से वह दुनिया को देखना चाहता था।

टेलीविजन पर उसे सिर्फ क्रिकेट पसंद था। परन्तु जब कभी क्रिकेट वहां नहीं आता था तब वह खाली रहता था। वह कई-कई बार पुराने मैच भी देख चुका था। बहुत सारे पुराने हाइलाइटस। उसे मुंहजबानी सारे क्रिकेटरों के स्टाइक रेट याद थे। किसकी कितनी सेंचुरी हैं और किसके खिलाफ, सब याद थे उसे। यहां तक कि बहुत सारे क्रिकेटरों के निजी जीवन के बारे में वह जानने लगा था। वह टीवी पर मैच लगाता और अपने हाथ में बैट लेकर टीवी के सामने उस शॉट को खेलने की कोशिश करता। वह टीवी के सामने बॉल का इस्तेमाल नहीं करता। उसे मालूम था चाहे वह जितना भी संभलकर खेले लेकिन बॉल एक न एक दिन उसकी पकड़ से निकल ही जाएगी और फिर कुछ न कुछ बुरा जरूर होगा। उसने यह समझ लिया था कि कमरे में दाग वाला मसला किसी तरह संभल गया था परन्तु वह उसका कमरा था। यह ड्राइंग रूम था। यहां अगर कुछ टूट-फूट या गंदगी हुई तो मम्मा उसे माफ नहीं करेगी।

अपनी क्रिकेट की दीवानगी में अनिकेत टेलीविजन पर बहुत देर नहीं रह पाता था।

5

अब अनिकेत के पास सिर्फ मोबाइल ही बचा रह गया था। उसने अपने खाली समय को मोबाइल से भरना शुरू कर दिया। मोबाइल ही उसकी दुनिया हो गया था। अब उसके एक हाथ में गेंद थी और दूसरे हाथ में मोबाइल का कैमरा। वह इन दोनों का इस्तेमाल कई तरीकों से करता और अपने में खुश रहने की कोशिश करता।

जब पहली बार टेलीविजन से अलग होकर उसने कुछ करने का सोचा तब उसने उस घर को एक बार गौर से देखा। मम्मी के घर में उपस्थित नहीं होने तक अनिकेत को बाल्कनी में जाने की इजाज़त नहीं थी। और अनिकेत एक प्यारा बच्चा था इसलिए उसके लिए मम्मी के कहने का मान था। बाल्कनी में जाने के लिए दरवाजे में एक बाहर की तरफ खुलने वाला जाली का पल्ला था और अंदर खुलने वाला लकड़ी का पल्ला। लकड़ी वाला पल्ला खुला रहता था और जाली वाला बंद। अनिकेत ने उस दिन उस बंद जाली वाले पल्ले के पास से अपने घर को देखा। घर में सन्नाटा पसरा हुआ था। उसने अपने मुंह से एक जोर की आवाज निकाली और आवाज उस तक लौट कर आ गई।

अनिकेत ने सबसे पहले अपने मोबाइल के कैमरे से बाल्कनी वाले दरवाजे से शुरू कर पूरे घर की एक वीडियो बनाई। फिर उसने जमीन पर बैठकर उस वीडियो को देखा। घर में एक खालीपन था। घर के सारा सामान चुपचाप अपनी जगह पर रखा हुआ था। कोई हलचल नहीं थी। अनिकेत ने फोन वाल्यूम को फुल करके सुनने की कोशिश की। उस वीडियो में कोई आवाज नहीं थी। फिर जमीन से उठकर अनिकेत ने एक वीडियो ऐसी ही बनानी शुरू की। एक हाथ में मोबाइल और दूसरे हाथ से वह एक-एक सामान से आवाज निकालने की कोशिश करने लगा। वह दरवाजे के पास गया, दरवाजे को खोला और एक हल्की-सी आवाज को नोटिस किया। उसने बाल्कनी वाले जाली के दरवाजे को खोला और और फिर उसे जोर से बन्द किया। उसने डायनिंग टेबल के साथ लगी कुर्सी को हिलाया और उसे पटका। वह रसोई घर में पहुंचा और नल को चलाया। मम्मी के बेडरूम में जाकर मम्मी के ड्रेसिंग टेबल पर उनके बहुत सारे डिब्बों को हिलाकर उससे आवाज निकाल कर उसे रिकार्ड कर लिया।

अब फिर से अनिकेत जमीन पर बैठ कर इस नए वीडियो को चलाकर अपने घर के सामानों से निकलने वाली आवाज को सुनकर खुशी महसूस करने लगा। उसने उस वीडियो को दो बार चलाया और उसे लगा कि अब वह मकसद पूरा हो गया है। वह आवाज को उस घर में स्थापित कर चुका था। फिर वह अपने बिस्तर पर जाकर लेट गया।

अलग-अलग दिन वह अपने मोबाइल के कैमरे का अलग-अलग तरीके से इस्तेमाल करने लगा। कई बार वह बाल्कनी वाले उस दरवाजे के पास बैठकर अपने बाएं हाथ में मोबाइल का कैमरा चलाकर दाएं हाथ से बॉल को धीरे-धीरे टप्पा खिलाते हुए दूर तक फेंकता। उसका लक्ष्य रसोई घर की दीवार होता। वह अपने हाथ से धीरे से ही सही लेकिन अलग-अलग तरीके से बॉल को फेंक कर उसकी गति को रिकॉर्ड करना चाहता था। कभी वह बायीं तरफ हाथ को झुकाकर तो कभी दायें हाथ को झुकाकर बॉल को स्पिन करना चाहता। कभी वह पेस देता तो कभी गुगली। कभी शॉर्ट गेंद। बॉल टप्पा खाते धीरे-धीरे रसोई की दीवार तक पहुंचना चाहती। पहुंच पाती या नहीं, यही उस विडियो में कैद होता। उसका लक्ष्य मम्मी-पापा के बेडरूम और रसोई के बीच बनी साझी दीवार होता। उस दीवार में लगभग दस इंच की एक चौड़ाई थी। अनिकेत कोशिश करता कि उस दीवार पर बॉल लग जाए। लेकिन बाल्कनी के दरवाजे से उस दीवार की दूरी इतनी भी कम नहीं थी कि बॉल अपने ठीक निशाने पर लग ही जाए। वह अलग-अलग स्टाइल से बॉल को फेंककर उस टार्गेट को हिट करने की कोशिश करता। अगर बॉल स्पिन ज्यादा हो जाती तो वह इधर या उधर हो जाता। कभी बॉल की स्पीड इतनी कम होती कि वह अपने गन्तव्य तक पहुंच ही नहीं पाती।

यह भी उसके खेल का एक हिस्सा था। कई बार वह डायनिंग टेबल पर भी इस खेल को दुहराने की कोशिश करता। डायनिंग टेबल पर एक कोने से वह बॉल को दूसरे कोने तक पहुंचाना चाहता था। कई बार वह पहुंचती, कई बार वह भटक जाती। लेकिन अनिकेत वीडियो सबकी बनाता था। वह फिर बैठकर उन वीडियोज को एक-एक कर देखता और खुश होता था।

अनिकेत को यह सन्नाटा बुरा लगता था। वह चाहता था कि कोई आवाज वहां उसके साथ रहे। इसलिए वह अपने मोबाइल में अपने से बात करने का वीडियो बनाता। वह मोबाइल के फ्रंट कैमरे को पहले ऑन करता और अपना इंट्रोडक्शन देता। मैं अनिकेत हूं, मुझे तो आप जानते ही हैं। और फिर वह बैक कैमरे को ऑन करके दीवार की घड़ी को दिखलाता। अभी चार बजकर सैंतीस मिनट हो रहे हैं। या पांच बजकर बारह मिनट हुए हैं। आदि। वह अपने वीडियो में कभी पूरे घर को दिखलाते हुए कहता कि अभी यह टाइम हुआ है और देखिए घर में कितनी शांति है। यह मम्मा-पापा का बेडरूम है। यहां मैं मम्मा के साथ सोता हूं।... लेकिन तभी जब मम्मा को मैं उनके साथ सोने के लिए मना सकूं। यह किचन है। और मम्मा मेरे लिए यहीं से मजेदार सेंडविच बनाकर लाती हैं। यह डायनिंग टेबल है। हम सब रात को साथ बैठकर खाना खाते हैं। पापा के साथ वाली चेयर पर मैं बैठता हूं और पापा ऑफिस की, घर की बहुत सारी कहानियां बतलाते हैं। और आपको यह पता है कि यह क्या है? यह है डिजाइनर पॉट, जिसमें मम्मा इस संडे छोटे-छोटे पौधे लगाएगी। और यह है मेरा लेजेंडरी बैट जिससे मैंने बहुत सारे रन बनाए। तीन सेंचुरी और कम से कम सात-आठ फिफ्टी। और यह है मेरा फेवरेट खिलाड़ी है रवीन्द्र जाडेजा। आपने हवा में उड़कर उसे कैच लेते तो देखा ही होगा।

कई बार ऐसा भी होता था कि अनिकेत डायनिंग टेबल पर मोबाइल को किसी सामान के सहारे टिका कर कुर्सी लगाकर फ्रंट कैमरा ऑन कर अपने आप से बातें किया करता था। वीडियो तीन-चार मिनट का ही हुआ करता था। वीडियो कई हो सकते थे पर सारे छोटे-छोटे। मेरे मम्मी-पापा ने इतनी ऊंचाई पर यह घर लिया है। उन्नीसवां फ्लोर है यह। इतना ऊंचा कि प्लेन भी हमसे थोड़ा ही ऊपर उड़ता है। आप मानो कि अगर मैं एक पत्थर भी नीचे फेंकूँ तो उसे जमीन पर गिरने में कम से कम एक मिनट तो लग ही जाएगा। वैसे मैंने ऐसा कभी किया नहीं है। मुझे बाल्कनी में जाने की परमिशन नहीं है नहीं तो मैं दिखाता कि यहां से नीचे लोग कैसे चींटी जैसे दिखते हैं। थोड़ी-थोड़ी जगहों पर बच्चे अपनी साइकिल घुमाते रहते हैं लेकिन उनकी आवाज ऊपर तक नहीं आ पाती है।

वह कई बार डायनिंग टेबल पर मोबाइल रखकर सिर्फ उसके कैमरे को ऑन कर अपनी दोनों हथेलियों पर अपनी ठुड्डी रखकर अपने मुंह के अलग-अलग एक्सप्रेशन देखता रहता। कई बार वह वीडियो बनाते हुए वीडियो को एकदम मुंह के करीब लाकर बोलते-बोलते अजीब-अजीब तरह की आवाजें निकालने लगता। जैसे आज मेरे स्कूल में मैथ्स की टीचर ने अनुष्का को सिर्फ इसलिए डांट दिया कि उसने एक बार फिर से उस सवाल का जवाब पूछ लिया था। मेरी मैथ्स की टीचर से तो आप भी मिलोगे तो वह आपको भी डांट देगी। और अब मैं अपने बेड पर लेटने जा रहा हूं। बाय। फिर वीडियो के अंत में एक अस्पष्ट आवाज ‘उ लु लु इ उ तो ला पी चू का........’। कई बहुत छोटे वीडियोज तो इसी तरह की अस्पष्ट ध्वनियों के थे। जाजा तूतू लेले पीपी नीनी जाजा इ उं उं उई ठक्क..’ आदि।

6

यह गर्मी का मौसम था। चूंकि अनिकेत का घर उन्नीसवें माले पर था तो गर्मी थोड़ी कम थी। पानी के लिए अनिकेत की मम्मी घड़े का इस्तेमाल करती हैं। जागृति को घड़े का पानी बहुत पसंद है। अनिकेत फ्रिज का पानी पी कर अपना गला न खराब कर ले, इसलिए जागृति फ्रिज में पानी रखती ही नहीं। कई बार बहुत गर्मी में बाहर से आने पर रजत को यह लगता भी कि फ्रिज का पानी मिल जाए लेकिन जागृति इस मामले में बहुत सख्त है। उसे पता है कि अगर फ्रिज में पानी होगा तो जब घर में कोई नहीं होगा तब अनिकेत ठंडा पानी पीकर अपनी तबीयत खराब कर सकता है। इसलिए ना ही फ्रिज में ठंडा पानी होता और ना ही बर्फ।

उस दिन जब टीवी पर 2014 का आईपीएल का फाइनल का हाइलाइट देखकर और अपने फेवरेट टीम केकेआर को दसूरी बार जीताकर अनिकेत घड़े से पानी निकालने आया तब पानी निकालकर और गिलास को हाथ में पकड़े ही उसने ऊपर देखा और उसे यह ख्याल आया।

किचेन में बर्तन धोने का सिंक जहां लगा है उसी के साथ घड़ा रखा गया है। घड़े में नल लगा है। नल का मुंह सिंक की तरफ है, ताकि पानी अगर गिर भी जाए तो रसोई गीली ना हो। सिंक में नल उल्टा जे बनाकर लगा हुआ है तो थोड़ा ऊंचा है। जहां तक नल है उससे थोड़ा-सा और ऊपर एक खिड़की है। अनिकेत ने सोचा इस खिड़की के पार क्या है उसने आज तक देखा नहीं है। उसने पहले हाथ में पकड़े गिलास से पानी पिया और फिर स्लैब पर चढ़ने के बारे में सोचना शुरू किया। स्लैब पर चढ़ना उसके लिए इतना आसान नहीं था। वह बालकनी में रखे मूढ़े को उठा लाया और स्लैब पर चढ़ने में सफलता हासिल की।

खिड़की बहुत बड़ी तो नहीं थी, लेकिन इतनी छोटी भी नहीं थी कि वहां से बाहर का नजारा देखा ना जा सके। यह सोसाइटी गोलाई में थी। इस घर की रसोई पीछे की तरफ थी तो वहां से पीछे की खुली जगह दिख रही थी। सोसाइटी का अहाता इस घर से थोड़ी दूर था। इस अहाते के बाद एक जगह और थी जो घेरी हुई थी। ऐसा लग रहा था कि भविष्य में उस पर कोई ऊंची इमारत बनने की योजना है। उसके बाद एक जगह थी, जो अभी खाली थी। अनिकेत यह देखकर खुश हो गया कि वहां बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे। यह उन्नीसवां माला था, उसके बाद उस ग्राउंड की दूरी भी कम नहीं थी। खिड़की में शीशे का दरवाजा था जो खुला ही रहता था। उसके बाद ग्रिल था। ग्रिल के पार जाली का दरवाजा था। जब अनिकेत ने वहां खड़े होकर बाहर देखना चाहा तो उसे वहां क्रिकेट खेलते बच्चों को देखना, जैसे उसके लिए जैकपॉट का खुल जाना था। ये बच्चे वहीं के आसपास के गांव के थे जो अपने स्कूल से लौटने के बाद अभी उस खाली पड़े मैदान पर क्रिकेट खेलने आ जाते थे।

इस बिल्डिंग की उस ग्राउंड से इतनी दूरी थी कि क्रिकेट खेलते बच्चे तो दिख जाएं परन्तु स्पष्ट नहीं। एक तो दूरी, दूसरे उन्नीसवें माले से देखना। अनिकेत ने खिड़की की जाली वाले दरवाजे को खोला तो तस्वीर और थोड़ी स्पष्ट हुई। अनिकेत वहां खड़े होकर क्रिकेट देखने लगा। मिस कर दिए गए हर बॉल पर उसे लगता कि अरे इसे तो मिस कर दिया गया, इस पर कवर डाइव में सिक्स लग जाता। अगर कोई बल्लेबाज टिक जाता तो वह वहीं से खड़े-खड़े बोलता - अरे इसे यॉर्कर दो भाई यॉर्कर। अरे इसे एक शॉर्ट बॉल दे दो यह स्लिप में आउट हो जाएगा।

पहले दिन तो कम ही समय बचा था, इसलिए अनिकेत मम्मी के आने के समय तक वहां से उतरकर अपने कमरे में आ गया था। उसने जाली का दरवाजा बन्द कर दिया था और मूढ़े को उठाकर अपनी जगह रख आया था। मम्मी के आने के बाद उसने रसोई में जाती हुई मम्मी की नजर में यह ढूंढने की बार-बार कोशिश की कि कहीं कुछ पकड़ में तो नहीं आ गया। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था।

अगले दिन से उसका यह रुटीन हो गया था। रश्मि के जाते ही अनिकेत दो मूढ़े लाता, एक स्लैब पर चढ़ने के लिए और दूसरा स्लैब पर रखकर उस पर बैठने के लिए। वह बैठकर वहां से आराम से क्रिकेट का मजा लेता था। एक-दो दिन में उसे एक और आइडिया आया कि मैच को और स्पष्ट कैसे देखा जाए। वह अपना मोबाइल ले आया। अनिकेत ने मोबाइल के कैमरे को ऑन कर उसे ज़ूम-इन कर उसे और स्पष्ट करना चाहा। कितना हो पाता था पता नहीं लेकिन अनिकेत को ज़रूर लगता था कि वह कम से कम अब बैट्समैन के शॉट्स को क़रीब से देख पा रहा है। वह अलग-अलग शॉट्स की तस्वीरें भी लेता रहता था। बॉलर के अलग-अलग एंगल की तस्वीरें। बैट्समैन के अलग-अलग शॉट्स की अलग-अलग तस्वीरें। और फिर वह उन तस्वीरों को और ज़ूम करके उसे घेरकर अपने मन में समझने की कोशिश करता कि अगर यहां पर बैट्समैन ने बायें पैर को आगे निकालकर इस शॉट को लगाया होता तो वह आउट नहीं होता। वह अपने मन में कहता कि इस बैट्समैन का तो फुट वर्क ही नहीं है। उसके मोबाइल की गैलरी इस तरह की फोटोज से भर गई थी। वह अपने फोटोज में बारीक से बारीक चीजों को नोट करता था और उसे घेर कर या अंडरलाइन कर उसको समझने की कोशिश करता था।

अनिकेत की अब यह दिनचर्या बन गयी थी। अब वह टीवी नहीं देखता था। उसने देखते-देखते यह समझ लिया था कि उस ग्राउंड पर लड़के चार बजे के आसपास इकट्ठे हो जाते हैं और लगभग अंधेरा होने तक खेलते हैं। अनि ने खेल को कभी खत्म होने तक तो नहीं देखा लेकिन उसे उसके शुरू होने का बहुत बेसब्री से इंतजार रहता था। अपने मोबाइल में उस क्रिकेट को देखता और अपने उन दिनों को याद करता जब वह इसी तरह के लम्बे-लम्बे छक्के लगाया करता था। उसका मन करता कि काश! इस सोसाइटी का बंधन नहीं होता और वह उड़ कर वहां तक जा पाता। उसका मन एकदम रूंआसा-सा हो जाता। उसे कई बार लगता कि जैसे उसे एक डिब्बे में बंद कर दिया गया है जहां सारी सुख-सुविधाएं तो हैं लेकिन चारों तरफ सूखा है। कोई हरियाली नहीं है। उन बच्चों को क्रिकेट खेलते, उछल-कूद, मौज-मस्ती करते देखते हुए कई बार उसके मन में आता कि काश! वह भी उन बच्चों जैसा ही होता। उसे खीझ होती तो लगता मम्मी-पापा ने ग़लत तो किया ही है उसके साथ। काश! वह अनिकेत नहीं होकर कोई और होता।

लेकिन फिर उसे मम्मी-पापा का स्ट्रगल याद आ जाता। उनका थका हुआ चेहरा याद आ जाता। तब वह अपने-आप को एक झटका देता और सोचता कि वह कितना ग़लत सोच रहा था। मम्मी-पापा जितनी मेहनत कर रहे हैं, उसके लिए ही तो कर रहे हैं। वह कितना स्वार्थी होता जा रहा है। अनिकेत धीरे-धीरे मेच्योर होने की कोशिश करता। लेकिन यह क्रिकेट की भूख उसके हृदय में एक टीस की तरह उठती।

7

यह दिनचर्या यूं ही चलती रहती अगर उस रविवार के दिन अनिकेत के पापा के हाथ अनिकेत का मोबाइल नहीं आ गया होता। गर्मी बढ़ गयी थी और रजत उस दिन शाम को बाल्कनी में बैठकर अपने मोबाइल पर किसी से बात कर रहा था। अनिकेत अपनी मम्मी के साथ पढ़ाई कर रहा था। रजत के हाथ में अनिकेत का मोबाइल था और बात करते-करते उसने यूं ही उस फोन की गैलरी को खोला तो वह भौंचक रह गया। तमाम वीडियोज़ और फोटोज़ को देखकर वह सन्न रह गया। पहले तो उसे यह समझ में नहीं आया कि यह है क्या? मोबाइल में इस तरह के छोटे-छोटे अनगिनत वीडियोज़ थे। उसने रेंडमली कई वीडियोज़ को खोलकर देखा और वह डर गया।

नए वीडियोज़ और फोटोज़ में खिड़की से क्रिकेट देखने के ज्यादा थे। बहुत देर तक तो रजत को यह समझ नहीं आया कि ये फोटोज़ कहां से लिए गए हैं। फिर उसे उन फोटोज़ में कहीं-कहीं खिड़की का कोना दिखा। फिर उसने धीरे-धीरे यह समझा कि वह खिड़की कौन-सी है। उसने रसोई में जाकर देखने की कोशिश की। अभी बाहर अंधेरा था। ग्राउंड उसे अभी दिखा तो नहीं लेकिन उसने अब पूरा वाकया समझ लिया। रजत एकबारगी गिल्ट में भर गया। उसे लगा कि वह आजकल नौकरी में कितना व्यस्त हो गया है कि उसे अपने बेटे को देखने की फुर्सत ही नहीं मिली। मोबाइल के वीडियोज़ और फोटोज़ को देखकर अचानक रजत को लगा जैसे उसका बेटा इस बंद कमरे में कहीं पागल तो नहीं हो रहा। उसने अपने सिर को ज़ोर से झटका और इस बुरे ख्याल को उसने अपने दिमाग से झटक देना चाहा।

रजत ने मोबाइल को किनारे रख दिया। कुर्सी से खड़े होकर उसने बाहर देखा, गोलाई में घूमकर दूसरी बिल्डिंग थी। चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था। उसकी नजर उस बिल्डिंग पर जाकर ठहर गयी। बिल्डिंग दूर थी लेकिन वहां से रोशनी छनकर आ रही थी। रजत उसे देखता रहा। देखता रहा। रोशनी धुंधली होने लगी। उसने अपनी आंखें बंद कीं, आंसू की कुछ बूंदें जमीन पर गिर गयीं। वह खड़ा हुआ, उसने नीचे देखा। नीचे कुछ लोग उस सजावटी पार्क में टहल रहे थे। वे लोग वहां बिल्कुल चींटी जैसे लग रहे थे। पता नहीं क्यों लेकिन उनका वहां टहलना रजत को अच्छा नहीं लगा। उसे लगा कि सारे लोग अपने घर चले जाएं। रजत कुछ देर वहीं खड़ा होकर उस पार्क को देखता रहा। उसे लगा आज कितने दिनों बाद उसने यूं अपनी इस बाल्कनी से इस पार्क को, चारों तरफ की बिल्डिंग को देखा है। वह देखता रहा और सोचता रहा। उसे बहुत ही अजनबिय्यत-सी महसूस हुई। उसे लगा आज पहली बार वह इन सब चीजों को देख रहा है। उसने अपनी नज़रों को चारों तरफ घुमाया और उसका मन भन्ना गया। उसे लगा आसमान से ठीक तारे नोचने की तर्ज पर इस सभी बिल्डिंगों को नोचकर वह कचरे के डब्बे में डाल दे।

तभी उसका फोन बजा। फोन की रिंगटोन ने उसकी तंद्रा तोड़ी। फोन उसके ऑफिस से था। उसने फोन की तरफ देखा, उसे एक अजीब-सी खीझ महसूस हुई। उसने फोन को काटा तो नहीं लेकिन साइड वाला बटन दबाकर उसे म्यूट कर दिया। उसके मुंह से अनायास ही निकला - तुम्हें तुम्हारे पापा बचाएंगे मेरे बच्चे।

जब रजत को लगा कि उसे चक्कर आ जाएगा, तब वह अंदर अनिकेत के कमरे में गया। अनिकेत मां के सामने बैठकर पढ़ाई कर रहा था। उसने बिना किसी आहट के दरवाजे पर खड़ा होकर अनिकेत को देखा। वह बहुत ही मासूमियत से पढ़ने में व्यस्त था। थोड़ी देर तक उसे देखते रहने के बाद रजत उसके पास गया और उसके चेहरे को अपने हाथ में लेकर उसके ललाट पर अपने ओंठ रख दिए। जागृति को कुछ समझ नहीं आया लेकिन उसने रजत के गम्भीर चेहरे को देखकर कुछ नहीं कहा। रजत ने अनिकेत को कहा ‘अब पढ़ाई बन्द। आज तो छुट्टी का दिन है। जाओ थोड़ी देर टीवी देख लो।’ अनिकेत को थोड़ा आश्चर्य हुआ, लेकिन उसने कुछ कहा नहीं। जागृति ने कुछ कहना चाहा लेकिन उसने रजत के गम्भीर चेहरे को देखकर कुछ नहीं कहा। अनिकेत टीवी देखने गया तब रजत ने जागृति के सामने मोबाइल की गैलरी को खोल कर रख दिया। जागृति ने उन छोटे-छोटे वीडियोज़ को देखते हुए जब अपना सिर ऊपर उठाया तब उसने देखा कि रजत की आंखों में आंसू थे। जागृति ने उठकर रजत को अपनी बांहों में समेट लिया।

रजत ने थोड़ी देर में अपने को संयत करते हुए बाहर निकलकर अनिकेत को कहा ‘आज हम बाहर खाना खाने जाएंगे।’ ‘खाने के साथ ब्राउनी विद आइसक्रीम।’ अनिकेत यह सुनकर खुश हो गया। वह दौड़ा आया और अपने पापा के गले से झूल गया।

बाहर से खाना खाकर लौटते-लौटते अनिकेत काफी थक गया था। रजत ने आज उसे अपने साथ सुलाया। मम्मी-पापा के बीच में दस साल का प्यारा बच्चा अनिकेत। अनिकेत सो चुका था लेकिन रजत और जागृति की आंखों में नींद नहीं थी। आज लग रहा था जैसे इस जिन्दगी ने उसे अजीब से मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। बहुत देर तक दोनों आपस में बात करते रहे। इस घर के बारे में, इस घर की योजना के बारे में। लेकिन दोनों अब भी यही समझ रहे थे कि गलत वे नहीं, गलत परिस्थितियां हैं।

खैर, जैसे-तैसे नींद आयी तो रात में अनिकेत की आवाज से नींद खुल गयी।

‘तुम्हें मैं कब से कह रहा हूं, लॉग ड्राइव पर जाकर खड़े हो।’

‘देखो वह बॉल तो जा रही है आसमान में।’

‘अरे मैं बना दूंगा, नौ बॉल में बारह रन ही तो बनाने हैं।’

‘नहीं-नहीं अभी खेलने नहीं आ सकता। अभी तो पढ़ना है ना। मम्मा डांटेगी।’

‘उधर मत जाओ, उधर जंगल है। मम्मा ने मना किया था ना।’

कुछ -कुछ अस्पष्ट ही सही लेकिन रजत और जागृति ने अनिकेत की बड़बड़ाहट में से शब्दों को मिलाकर वाक्य बना लिए थे। रजत को आज बहुत दिनों बाद एक पर एक झटका लग रहा था। उसने जागृति की तरफ देखा और कहा रोज़ अपने कमरे में इसी तरह बड़बड़ाता होता होगा ना।

इतने गहरे तक इसके भीतर क्रिकेट और यह खालीपन चल रहा है, हम तो सोच ही नहीं पाए। जागृति ने कहा।

बेचारा मासूम जूझ रहा है अपने आप से। कुछ कहता भी नहीं। कोई शिकायत भी नहीं।

यह पापा की रूआंसी-सी आवाज है।

8

खैर जैसे-तैसे एक सप्ताह और बीता। दिनचर्या ठीक उसी तरह बनी रही। चार बजते और रश्मि के जाते ही अनिकेत उस खिड़की के पास क्रिकेट देखने पहुंच जाता। वह इसी तरह अपने मोबाइल का इस्तेमाल करता रहा। इसी तरह उसकी गैलरी इन फोटोज़ से भरती रही।

उधर ऑफिस में बैठे रजत की निगाह चार बजते ही घड़ी पर अब जाने लगी। घड़ी टिक-टिक कर चल रही थी। रजत उदास था।

आज फोर्थ सेटरडे है तो जागृति की छुट्टी है। आज अनिकेत क्रिकेट नहीं देख सकता। लेकिन मम्मा के घर पर होने का मज़ा बहुत है। कोई अकेलापन नहीं। मनपसंद खाना सो अलग। मम्मा ने तेल लगाकर सिर दबाया। अपने साथ बैठाकर फिल्म दिखलाई। शाम को अनिकेत रैकेट लिए अपनी मम्मा के साथ नीचे उतरा और मम्मा के साथ बैडमिंटन खेलने का मजा लिया।

पापा आज भी ऑफिस में थे। अनिकेत जब खेल कर वापस आया तब भी पापा घर नहीं लौटे थे। अनि ने मम्मा से पूछा, तो पता चला पापा के ऑफिस में आज मीटिंग है तो पापा आज देर से आएंगे।

रात के नौ बज रहे थे और अनिकेत अभी पढ़ाई कर रहा था, तब घंटी बजी। अनि ने उठना चाहा लेकिन मम्मा ने मना किया।

रजत अपने साथ जो सामान लाया था उसने उसे छिपा दिया।

पापा अनि के कमरे में आए तो अनि उनसे लिपट गया।

9

शनिवार का दिन अनिकेत के लिए बहुत अच्छा गुज़रा। मम्मा ने बहुत प्यार किया। अच्छा-अच्छा खाना भी मिला। शाम को मम्मा के साथ वह बैडमिंटन भी खेलने गया। रात को जब वह सो रहा था तो बहुत खुश था। सोते वक्त उसके दिमाग में यह बात एक बार जरूर आयी कि आज पता नहीं उस ग्राउंड में कैसा खेल हुआ होगा। किस टीम ने किसको हराया होगा। लगातार खिड़की से मैच देखते हुए उसने उन लड़कों की पूरी टीम को लगभग समझ लिया था। उन खिलाड़ियों से अनिकेत का ना दिखने वाला एक अजीब-सा रिश्ता बन गया था। लेकिन फिर उसने अपने मन से इस विचार को बाहर निकाला और सोचा आज का दिन इतना अच्छा बीता तो वह मीठी यादों के साथ सोए। अगले दिन रविवार था। उसे पता था कि रविवार की सुबह बहुत अलसायी-सी होती है। छुट्टी का दिन। छुट्टी का मतलब देर तक सोना। मम्मा-पापा का घर पर होना। अच्छा-अच्छा खाना। और ढेर सारी मस्ती।

इन्हीं सब मीठी-मीठी यादों के साथ अनिकेत धीरे-धीरे नींद की गोद में समा गया। और गहरी नींद में वह धीरे-धीरे एक हसीन सपने में भी प्रवेश कर गया। पापा-मम्मी के साथ वह छुट्टी मनाने जा रहा है। हवाई जहाज का दृश्य है। विंडो सीट पर अनिकेत बैठा है, बीच में मम्मा और फिर पापा। हवाई जहाज एक पहाड़ पर उतरता है। वहां चारों तरफ बर्फ है और बर्फ के बीच में सिर्फ यह हवाई जहाज। जहाज के सारे पैसेंजर बर्फ के बीच उतरना नहीं चाहते हैं परन्तु अनिकेत अपने मम्मी-पापा के साथ वहां उतरता है। उसके जहाज से उतरते ही उनके पांव बर्फ में धंस जाते हैं। वहां एक आइसक्रीम की दुकान है। अनिकेत जिद करता हैं आइसक्रीम खाने की, मम्मी मना करना चाहती है, लेकिन पापा मुस्कुरा कर खाने की इजाज़त दे देते हैं। वह अपने हाथ में पकड़ी आइसक्रीम को देखता है और फिर अपने चारों ओर फैली आइस को देखता है, वह मुस्कुराने लगता है। वह मुस्कुराने लगता है तब वह हवाई जहाज चलना शुरू कर देता है। अनिकेत पापा-मम्मी के साथ दौड़कर उस जहाज को पकड़ता है।

दृश्य बदल जाता है और वह अपने पुराने स्कूल में पहुंच जाता है। वहां स्कूल के सारे दोस्त हैं और वहां वह क्रिकेट खेल रहा है। उस क्रिकेट में वे सारे दोस्त भी हैं जिनके साथ वह अपने घर पर क्रिकेट खेला करता था। अनिकेत बैटिंग करता है और बॉल को हिट करते ही बॉल इस उन्नीसवें फ्लोर पर आ जाती है जहां बाल्कनी में पापा खड़े हैं। पापा बॉल को कैच करते हैं और बॉल को नीचे उसके पास फेंकते हैं। लेकिन बॉल स्वीमिंग पूल में गिर जाती है। अनिकेत पापा से कहता है - क्या पापा! आपकी तो थ्रो भी इतनी खराब है। आपने कभी क्रिकेट खेला नहीं क्या।

अब अनिकेत समुद्र के किनारे है। समुद्र के किनारे वह रेत से खेल रहा है। रेत में वह क्रिकेटरों का नाम लिखता है। अपना नाम लिखता है, अपने दोस्तों के नाम लिखता है। तभी वहां एक आदमी आता है और वह कहता है कि उसके पापा उधर बुला रहे हैं। अनिकेत उस आदमी के साथ उस तरफ चलने को तैयार हो जाता है जिस तरफ वह इशारा कर रहा था। अनिकेत उठता है और समुद्र को गौर से देखता है। समुद्र में आवाज़ की गहराई थी। उसे समुद्र को देखकर एकबारगी अकेलापन महसूस हुआ और हल्का-सा डर भी लगा। उस आदमी के साथ चलने से पहले उसने रेत पर लिखे क्रिकेटरों के नामों को ठहरकर देखा। उसे अचानक लगा कि ए वी डीवीलियर्स का नाम छूट गया है। उसका मन किया कि वह रुककर यह नाम वहां लिख दे। परन्तु वह व्यक्ति खड़ा होकर उसका इंतज़ार कर रहा था। अनिकेत ने उस व्यक्ति के पीछे चलना शुरू कर दिया। कुछ आगे जाकर उसने पीछे मुड़कर देखा तो वहां अब समुद्र नहीं था। जिधर वह व्यक्ति चल रहा था उस तरफ सामने अचानक एक घना जंगल आ गया। अनिकेत डर गया। उसने सोचा कि वह लौट जाए। लेकिन समुद्र के वहां नहीं होने से वह डर गया था। उसने अब उस आदमी के पीछे नहीं, बराबर चलकर उसका हाथ पकड़ लेना चाहा। परन्तु वह व्यक्ति भी वहां से गायब था। अब सामने एक घना जंगल था और अनिकेत वहां अकेला था। अनिकेत ने डर के साथ उस जंगल में प्रवेश किया। जंगल ऐसा खुला जैसे हम अपने घर का दरवाजा खोलते हैं। दरवाजा खुलते ही सारा डर गायब। वहां उस जंगल के बीचों-बीच एक बड़ा-सा मैदान था और उस मैदान में क्रिकेट चल रहा था। वहां कई बच्चे खेल रहे थे। उसने उन बच्चों में अपने दोस्तों को बहुत आसानी से पहचान लिया। लेकिन उसकी खुशी दोगुनी तब हो गयी तब उसने अपने पापा-मम्मी को भी पैड-ग्लव्ज़ लगाकर पूरी तैयारी के साथ क्रिकेट के मैदान में उतरा हुआ देखा। अनिकेत के पापा ने हाथ के इशारे से अनिकेत को बुलाया और अनिकेत दौड़ते हुए आकर खेल में शामिल हो गया।

यह सुबह-सुबह का समय था और अभी अनिकेत सपने में डूबा हुआ ही था कि पापा और मम्मी की आवाज उसके कानों में पड़ी। अनिकेत को अपने सपने से बाहर आने में कुछ वक्त लगा। अभी वहां पापा उसे बॉल डाल रहे थे और मम्मी फील्डिंग कर रही थी।

अनिकेत ने अपनी आंखें खोली तो सामने पापा टीशर्ट और ट्राउजर में खड़े थे। उसने फिर से अपनी आंखें मूंद लीं। उसे लगा वह अभी तक सपने में ही है। लेकिन तब उसकी नींद मम्मी की किस्सी से खुली। उसने अब आंखें खोलीं तो पापा के हाथ में नया बैट और नए ग्लव्ज़ थे। उसने उठकर अपनी आंखों को हाथ से रगड़ा और अपनी मां की तरफ देखा। अरे आज तो मम्मा भी स्पोर्टस के मूड में तैयार। टीशर्ट और ट्राउजर वहां भी। मम्मा के हाथ में टेनिस क्रिकेट बॉल। दोनों सामने और दोनों मुस्कुराते हुए। अनिकेत स्थिति को कुछ समझता कि पापा ने दो उंगलियों को उसकी ओर आगे बढ़ाया और कहा - दोनों में से एक को चूज करो। अनि के लिए यह सपने जैसा था। उसने बहुत सोच-समझ कर एक उंगली का चुनाव किया। पापा ने मम्मा की तरफ देखकर कहा - अरे अब तो इसे दोनों खुशखबरी बतानी ही होगी।

दो-दो खुशखबरी एक साथ, अनिकेत के चेहरे पर मुस्कान तैर रही थी।

पहली खुशखबरी तो यह कि आज से हम चल रहे हैं स्पोर्टस कॉम्पलैक्स, क्रिकेट खेलने। अब शनिवार को पापा शाम को जल्दी आने की पूरी कोशिश करेंगे। शनिवार-रविवार हम चार से छः बजे तक वहां क्रिकेट खेलेंगे।

अनिकेत इतनी बड़ी खबर सुनकर ज़ोर से चिल्ला पड़ा। वह अपने बिस्तर से कूदा और पापा से लिपट गया।

देखना अब बनेगा आपका बेटा फैब डुप्लेसी।

पापा ने समझ लिया यह सब आइपीएल का असर है।

अनिकेत को लगा जब पहली खुशखबरी इतनी बड़ी है तो फिर दूसरी क्या होगी?

अब मम्मा बोली - अब दूसरी खुशखबरी मैं बतला दूं!

अनिकेत ने मम्मा की तरफ देखा, मम्मा खुशी से झूम रही थी।

आप आ गए हो इस बार सिक्स्थ में। यानि सीनियर विंग में। आपके स्कूल में पहली जुलाई से शुरू हो रही है क्रिकेट अकेडमी। हम सब पता कर चुके हैं। आपका नाम स्कूल एकेडमी में हमने लिखवा भी दिया है। अब आप पढ़ोगे भी वहीं और क्रिकेट खेलोगे भी वहीं।

और आपको अब छुप-छुप कर खिड़की से दूर के क्रिकेट को देखने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। पापा ने मजे लिए तो मम्मी ने भी अपनी ओर से जोड़ा -‘और दीवार गन्दी करने की भी।’ अनिकेत यह सब सुनकर सन्न रह गया।

तो पापा-मम्मी को सब मालूम है।

लेकिन आज मम्मी-पापा का अच्छा मूड है।

अब तो यह मन में नहीं आयेगा ना कि हमने पुराना घर छोड़कर बुरा किया। मम्मा ने पूछा।

आप दुनिया के सबसे अच्छे मम्मी-डैडी हो। अनिकेत दुलार बनते हुए मम्मा-पापा से लिपटा रहा।

अब जाकर फ्रेश हो लीजिए। दिन में पढ़ाई और शाम में क्रिकेट।

अनिकेत ने हां में सिर हिलाया। मम्मा-पापा कमरे से चले गए तो उसने अपने नए बैट को उठाया, नए ग्लव्ज़ को छुआ। उसने ग्लव्ज़ को हाथों में पहन लिया। बैट को बैटिंग के अंदाज से पकड़ लिया। अपने दोनांे हाथों को ऊपर की ओर उठाया ऐसे जैसे उसने अभीे-अभी सेंचुरी मारी हो।

अनिकेत ने खुशी से अब फिर से एक बार उस दाग की तरफ देखा, जो उसके क्रिकेट खेलने से बना था। अब उस दाग ने आकृति बदल ली थी। अनिकेत ने ध्यान से देखा अब वहां दस-ग्यारह साल का एक बच्चा था और उसने अभी-अभी एक जबरदस्त छक्का लगाया था। छक्का लगाते हुए बच्चे की तस्वीर वहां फ्रीज़ हो गयी थी। अनिकेत ने देखा उस बच्चे के चेहरे पर एक संतुष्टि थी। एक अविरल मुस्कान थी।

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