शंकरानंद की कविताएँ: संवेदनाओं का गहन चित्रण | शब्दांकन

शंकरानंद की कविताएँ – संवेदनाओं का गहन चित्रण

परिचय

खगड़िया जिले के एक गांव हरिपुर में 8 अक्टूबर 1983 को जन्म। हिन्दी की लगभग सभी शीर्ष पत्रिकाओं में कविताएं प्रकाशित।अब तक चार कविता संग्रह दूसरे दिन के लिए, पदचाप के साथ, इनकार की भाषा और जमीन अपनी जगह प्रकाशित। कविताओं का पंजाबी, मराठी, गुजराती, नेपाली और अंग्रेजी भाषाओं में अनुवाद। कविता के लिए विद्यापति पुरस्कार, सृजनात्मक पुरस्कार और मलखान सिंह सिसौदिया कविता पुरस्कार।
संप्रति लेखन के साथ अध्यापन।
संपर्क - shankaranand530@gmail.com


शंकरानंद की कविताएँ किसी धीमे बहते दरिया की तरह हैं, जिनमें स्मृतियाँ, रिश्ते, अकेलापन और समाज की परछाइयाँ लहरों की तरह काँपती हैं। कहीं ये आत्मसंवाद की गहराइयों में उतरती हैं, कहीं बीते समय की टीस बनती हैं, तो कहीं आज के दौर में बसी बेचैनी को उकेरती हैं। शब्दांकन पर इन गहरी, संवेदनशील कविताओं को साझा करते हुए दिल से शुक्रिया ~ सं0 (भरत तिवारी)


शंकरानंद की कविताएँ - संवेदनाओं का गहन चित्रण | एक धुंधली नदी किनारे अकेली आकृति के साथ, जिसमें शंकरानंद का चित्र सम्मिलित है | शब्दांकन कविता प्रस्तुति


शंकरानंद की कविताएँ


1. पिता से बात

संकोच में केवल जो पूछते 
वह बता देता 
कभी हिला देता था मुंडी और 
यह डर हरगिज नहीं था 

तब मुझे लगता था कि
जब उम्र बीतेगी और 
मैं और पिता दोनों 
और गहरे दोस्त हो जाएंगे 
तब खूब सारी बातें करूँगा 
तब संकोच थोड़ा कम हो जाएगा 
साहस कुछ और बढ़ जाएगा 

इस तरह मैंने धीरे धीरे 
बहुत कुछ दबाना सीख लिया
छिपाना सीख लिया जो
कह देना था मुझे ठीक उसी समय 
अच्छा होता कि कह देता 
आज अफ़सोस नहीं होता मुझे कि
पिता से बात तक नहीं कर पाया ठीक से 

अब मेरी वे तमाम बातें 
अबोली प्रार्थनाओं की तरह हो गई हैं 
जिसके देवता नहीं रहे। 



2 . दूसरा जन्म

जो गए उनकी जगह खाली है 
उनके दिन आवारा 
जिसको थामने वाला कोई नहीं
उनकी रात स्लेट में बदल गई है 

उनके स्वप्न हाथ से छूटने के बाद 
घुरकते हुए सिक्के की तरह हो गए हैं
भूसे में गुम
उसे कोई खोज नहीं पाएगा  

सबके पास स्मृतियाँ हैं 
यादें हैं जो धीरे धीरे 
विदा होकर और धुंधली हो गई हैं 
एक धब्बे में रूपांतरित 

उनके सामानों को किनारे किया जाएगा 
फिर धीरे धीरे उनकी जगह 
कोई मेज होगी कोई कुर्सी 
कोई कंटर हमें दिखाई देगा 
जगहों की कमी के बीच उदासी होगी
आंखें नम
फिर जीवन की उलझन 

कोई तस्वीर बिना रंग के 
तारों के बिना कोई रात 
बिना फूलों के वसंत 
फिर ऊब और ऊब 

इस तरह बदल जाएगा सब कुछ सहसा 
खाली जगह एक नया मकान 
अलग रंग और नक़्शे में नया पता 
विदा हुए की कभी कभी याद शोक में 
बस इतना ही शेष बचेगा दूसरे जन्म के लिए




3 . भीड़ का चेहरा 

वह और कुछ नहीं 
पत्थर का बुरादा है 
पानी का ठिकाना 
दूर दूर तक पानी 
जैसे सावन भादों की कोई नदी 

उसके होने की सम्भावना देर तक है 
दूर तक जाती हुई 
समुद्र में मिलती हुई 
मीठे से खारा होती हुई 

तस्वीरों से उसकी गहराई का अंदाजा 
नहीं लगाया जा सकता 
उसकी ताकत कभी भी 
मौसम का रूख बदल सकती है

वह फूस का ढेर है और 
आग लगाने वाले भी कम नहीं इस दुनिया में 
मुझे तीली से डर लगता है।



4. इसलिए अकेला 

चलने के बाद की हड़बड़ी 
देर तक पीछा करती है रास्ते में 

किसी से मिलना अधूरा है 
बात कट गई है बीच में ही 
घर दूर है हजारों मील 
रास्ते इतने लम्बे कि
कोई अंत नहीं दिखता इस थकान का 

सुबह चार बजे की आँखों में चमक है 
रात दस बजे उस चमक की राख 
पूरा दिन और कुछ नहीं 
बस आग और धुंए की चिंगारी है 
जलती और बुझती हुई 

कभी सुकून है 
कभी दिल को ठेस पहुँचाने वाली बेचैनी 
पांव में कंकड़ बसाए जूते हैं 
जो मुलायम होने की हद के बावजूद 
कील की तरह चुभते हैं दिन रात 

स्मृतियाँ कितनी ही सुन्दर हो
अगर जीने की लालसा ख़त्म हो जाए तो  
वसंत के बीच भी दम घुटता है|



5. अकेले में 

तुम्हारे साथ रहने पर 
इन्द्रधनुष याद आता है 
प्यार की महक आती है 
अनार के दानों की तरह 
भर जाती है मिठास
 
धूप एक कोण पर टिक कर 
रात का चेहरा बदल देती है 
गूंजती है आवाज इस तरह 
जैसे एक घोंसले में 
न जाने कितने पक्षी चहकते हैं 
साथ रहने पर 
दिल करता है झूम जाऊ 

वही दिल डूबता है 
खाली घर में 
पत्थर की तरह 
अकेले में रोना आता है। 



6. सबकुछ होना 

मुमकिन है कि
दुनिया का हर दुःख 
एक दिन पुराना पड़ जाये 

बिना पते की चिट्ठियों का दुःख 
कभी कम नहीं होता 
वैसे जीवन के लिए 
कोई मरहम नहीं होता 

बेघरों और विस्थापितों के 
शरणार्थी शिविर में 
गूंजती सिसकी 
अपनी आखिरी साँस का 
इंतजार कर रही है 

कहीं दर्ज नहीं होगी उनकी रात 
कहीं दर्ज नहीं होगा उनका दुःख 
यह पृथ्वी उनके लिए 
नरक के सिवा कुछ नहीं है। 




7. पानी पर चेहरा 

अपने बारे में भी 
कुछ पता नहीं होता 
नहीं कह सकता दावे के साथ
मेरी जड़ें किस हद तक 
हवाओं को झेल सकती हैं 

मेरा दुःख ऊँचा है कि
मेरे स्वप्न नीले हैं 
नींद काली मिट्टी की तरह सख्त है 
या मेरी आवाज में रात का शोर ज्यादा है 
कुछ नहीं कह सकता 
मेरी इच्छाओं के पंख 
सबसे छोटी चिड़िया के हैं 
मेरी पूंजी किसी खाते में नहीं 
भरोसे की नीव पर टिकी है 

झुकी हुई टहनी की गर्दन लिए 
झांकता हूँ किसी ठहरे हुए पानी में 
मेरा चेहरा कांपता है
मैं कुछ नहीं कह पाउँगा!




8. कुछ नया 

थकी हुई रातों की सुबह 
ओस की धूप में नहाई हुई नदी है 
काले जल वाली 

बूंद बूंद में बसी है 
किसी बंजर की छाप 
जो कहती है मीलों दूर की कथा 
जहाँ से उद्गम था 

सुनकर पता चला 
कितना गहरा था दुःख 
सीमाओं को लांघता 
छिले हुए घुटनों वाला दुःख 

नहीं सुनने वाले नहीं सुन पाए 
जिन्हें सुनना था 
उनके पास वक़्त नहीं था 
बातें उफन कर बाहर आई 
लहरों की तरह 
सूख गई फैलने की हद छूने के बाद 

कुछ नया असमान से नहीं आना था 
उसे देखना था इसी पृथ्वी पर 
खोजना था उस सोते को 
जो पता नहीं 
किस पत्थर के नीचे था दबा हुआ। 





9. पुल की याद 

मैंने छोटे बड़े असंख्य पुल देखे 
नदी पर नाले पर खाई पर 
लोहे और सीमेंट से बने वे 
पार कराते रहे सबको 
जब सह नहीं पाए तो ढह गए 

वे सड़कों पर बने थे 
हमने उन्हें वहीं छोड़ दिया  
रिश्तों की दूरी को पाटने के काम 
वे नहीं आ पाए
हम लड़ते लड़ते एक दिन डूब गए !




10. किसान और मछुआरे 

वे दोनों एक जैसे हो गए हैं 
हर मौसम की मार के बाद 
उठ कर चल देंगे 
जमीन बनाने के लिए 

कुछ भी करेंगे तो हार जाएंगे 
फसल होगी 
दाने आयेंगे
मछलियाँ होंगी असंख्य  
सब कुछ होगा 
लेकिन अंत में पता चलेगा कि
वे मछलियाँ निकालते हुए 
खुद जाल में फँस गए हैं!




11. बच्चों की ताकत 

पृथ्वी का एक हिस्सा होना था उनके लिए 
वह नहीं हुआ 
घर में होना था एक कोना 
जिसे अपनी मर्जी से वे 
बसा और उजाड़ सकें 
वह भी नहीं हुआ 

कभी समझना नहीं हुआ कि
चीजों को बनाना और तोड़ना
दोनों अलग अलग है
ये आसमान किसी एक का नहीं है 
मैदान सबके खेलने के लिए है और 
दूसरों तो तबाह करना एक अपराध है 
यह सब वे सुनते रहे हाथ जोड़कर 
जैसे एक अपराधी सुनता है  

वे जो भी कर पाए 
डरते हुए कर पाए 
हम उनपर नजर रखते रहे कि
कहीं वे बिगड़ न जाएँ 

एक दिन हमने देखा कि
उन्होंने दुनिया से खेलना शुरू कर दिया है 
अब वे ताकत के साथ थे और 
हम इतने असक्त कि बस तबाही देख सकते थे।



12. इस तरह भी 

मुंह मोड़ने का कोई नियम नहीं 
पर इतना तो ख्याल रहे कि
कोई आवाज लगा रहा है तो 
यह उसका शौक नहीं होगा 

मुश्किल के आने की कोई तिथि न थी 
प्रलय की कामना कोई नहीं करता 
फिर भी टूटता है 
न जाने कितनी नदियों का बांध 

बहते हुए कुछ ख्याल नहीं रहेगा 
बस एक इच्छा होगी कि
अगर दुश्मन ही था तो 
बचा कर देवता बन सकता था 

डूबने के बाद तो 
कोई आवाज लगाने वाला भी नहीं होगा!
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

००००००००००००००००

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4 टिप्पणियाँ

  1. सुन्दर कविताएँ। बेहतरीन प्रस्तुति।
    प्रांजल धर

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  2. बहुत अच्छी कविताएँ हैं जिनका शिल्प ऊपर से शांत लेकिन भीतर से उद्वेलित करने वाला है। खासकर पिता से बात, भीड़ का चेहरा, अकेले में, पुल की याद, किसान और मछुआरे, बच्चों की ताकत, इस तरह भी के लिए तो विशेष बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  3. शंकरानन्द जी की इन कुछ कविताओं के आरंभ की कविताओं में खो जाने का एहसास दिखा मुझे। जैसे पिता कविता की इन पंक्तियां में

    अब मेरी वे तमाम बातें
    अबोली प्रार्थनाओं की तरह हो गई हैं
    जिसके देवता नहीं रहे।

    शंकरानन्द जी हर प्रकार के एहसास अपनी कविताओं में संजो कर रख सकते हैं । यह इन कविताओं की विशेषता लगी मुझे । एक जगह एक पंक्ति है कि *वसंत के बीच भी दम घुटता है* तो मुझे इन कविताओं में दम घुटने वाला स्वर भी सुनाई देने लगा । आगे एक पंक्ति है

    तुम्हारे साथ रहने पर
    इन्द्रधनुष याद आता है
    प्यार की महक आती है
    अनार के दानों की तरह
    भर जाती है मिठास

    तो कविता प्रेम के एहसासों से महक उठती है। अर्थात शंकरानन्द जी भावनाओं के साथ कदमताल करते हुए लिखते हैं। यह उनकी रचनात्मक क्षमता है जिसकी तस्वीर इन कविताओं में मिल सकती हैं।

    रचनाओं की इस प्रस्तुति में अंत की कविता के नीचे कोष्ठक में लिखा गया है कि ये लेखक के अपने विचार है।इस पंक्ति को लिखने की आवश्यकता नहीं लगी मुझे । यह कविता सहायता प्रदान करने के भाव पर रची प्रबल कविता है

    शंकरानन्द जी को हार्दिक शुभकामनाएं बधाइयां

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