डिजिटल कुंभ की संभावनाएँ: राजिंदर अरोड़ा की कविता | शब्दांकन

राजिंदर अरोड़ा की कविता 'डिजिटल कुंभ की संभावनाएँ' आपसे पूछ रही है, क्या इस युग में पानी भी डिजिटल हो सकता है। शब्दांकन पर पढ़ें यह खूबसूरत रचना। ~ सं (भरत तिवारी)

डिजिटल कुंभ की संभावनाएँ कविता



डिजिटल कुंभ की संभावनाएँ: एक अनोखी कविता

राजिंदर अरोड़ा

विज्ञापन की दुनिया से जुड़े राजिंदर कविता के साथ साथ बच्चों के लिए भी खूब लिखते हैं। पहाड़ों से उन्हें प्रेम और लगाव है।  पिछले 30 वर्षों में वो हिमालय की वादियों में खूब भटके हैं। उनकी एक किताब कैलाश मानसरोवर पर है और दूसरी लाहौर यात्रा का संस्मरण है। राजिंदर अरोरा गुडगाँव में अपने परिवार के साथ रहते हैं।

हिन्दी कविता - डिजिटल कुंभ की संभावनाएँ

डिजिटल कुंभ की संभावनाओं के चलते

क्या कभी पानी भी डिजिटल हो जायेगा?
तब क्या वो डिजि-जल कहलायेगा?

फिर वो नल से आएगा या मोबाइल से,
या किसी और मशीनी तरीके से
डाउनलोड किया जायेगा?

क्या डिजि-जल प्यास बुझाएगा?

क्या होगा डिजि-जल का स्त्रोत
वो किसी नदी से आयेगा या फिर
ताल, तलैया, झरने या जोहड़ से?
क्या वो भी गंगा सा पवित्र कहलायेगा?
और फिर सदियों बाद, क्या
डिजि-जल भी प्रदूषित हो जायेगा?

फिर उस पे भी गाना लिखा जायेगा
’’डिजि-जल तेरी धारा मैली’’

डिजि-जल डिजि-समुद्र से उठ कर
डिजि-बादल से बरसेगा या
डिजि-गलेश्यिर से पिधल कर आयेगा
क्या उसकी भी उड़ेगी डिजि-भाप?

डिजि-जल से बन सकेगी चाय और कॅाफ़ी?
क्या मिलाया जा सकेगा उसमें दूध, चीनी और पत्ती
क्या बनेगी उस से कच्ची लस्सी और शिकंजवी
क्या पकाई जा सकेगी उसमे दाल
क्या वो दारु में घुल बन सकेगा सोमरस?

डिजि-जल किस तापमान पर उबलेगा?
100 या फिर उस से ऊपर या नीचे
क्या हम जमा सकेंगे उसकी बर्फ
बना सकेंगे उसके गोले?
डिजिटल पानी से आटा कैसे गूंथा जायेगा?
बेचारे दूधियों और ग्वालों का क्या होगा
क्या वो मिला सकेंगे डिजि-जल को
गाय या भैंस के गाढ़े दूध में?
सबसे जरुरी सवाल ये होगा, कि
क्या उसमे हम पक्का सकेंगे राजमा-चावल?
क्या उसे हुक्के में गुड़गुड़ा सकेंगे
गला ख़राब होने पर क्या
उस से हम कर सकेंगे गरारे?

क्या डिजि-जल भी डिजि-हिम सा जम जायेगा
क्या वो भी सदानीरा होगा या थम जायेगा?
क्या डिजि-जल के भी बन सकेंगे हिम मानव
और गुफाओं में बनेंगे नुकीले और सुदंर हिमलम्ब?

जब पानीे डिजिटल हो जाएगा
तो आसमान से कैसे टपकेगा
नदी में कैसे बहेगा, कैसे होंगे उसके ताल?
क्या उसमे भी उठेंगी तरंगें
क्या उसमे भी उतर सकेगी भैंस
नहा सकेगा आदम, मैंडक और गैंडा ?

डिजि-जल का समंदर कैसा होगा
क्या उसमें भी तैरती मिलेगीं
डिजिटल मछलियां, व्हेल और शार्क
क्या उसमें भी फैंकें जा सकेंगे जाल
क्या उसमें भी चल सकेंगे जहाज़?

कितना गहरा होगा डिजि-जल कुआं
कितना बड़ा डिजि-जल पोखर
कितना लम्बी डिजि-जल नहर या फिर
कितना ऊँचा डिजि-जल झरना?
डिजि-जल नाली में कैसे बहेगा
कैसे चलेगा पाईप में?

इस सब के बाद कैसा होगा
हमारे बदन से रिसता पसीना?
डिजिटल पसीना भी क्या बास मारेगा
डिजिटल पसीना भी छोेड़ेगा क्या
कमीज़ों-ब्लाउजों की बगलों पे अपने निशान?
कोई ये भी सोचे कैसे होंगें डिजिटल आँसू
डिजि-जल आँसू बहेंगे या आखों में ही रुक जाऐंगे
वल्लाहः कहीं वो मीठे तो नहीं हो जाएंगे?

डिजिटल पानी में क्या कोई कूद भी सकेगा
तैर सकेगा, नहा सकेगा या फिर उसमे
डूब के कर सकेगा आत्महत्या?
चुल्लू भर डिजिजल में भी क्या कोई डूब सकेंगा,
क्या कोई मर भी सकेगा उसके जहर मे?

डिजि-जल से क्या खेल सकेंगे होली
क्या उसे भर सकेंगे हम गुब्बारों मे
पिचकारी में भी भरा जा सकेगा ना वो?

डिजि-जल क्या बुझा सकेगा सदियों की प्यास
क्या उसकी भी होगी कोई नूर की बूदँ?
क्या कहीं होगा डिजि-नदियों का संगम
जहां होगा हर साल डिजि-जल कुंभ?

आख़िरी सवाल
डिजि-जल में क्या खिल सकेंगे कमल?
नहीं नहीं बस रहने दो।

राजिंदर - 13 दिसंबर 2024

#डिजिटल_कुंभ #हिंदी_कविता #साहित्य 

 
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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