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मोदी जी! वे कौन लोग हैं जिनके बच्चे भूखे सो रहे हैं — नीरेंद्र नागर — #demonetization


मेरी जेब में पैसे हैं, फिर भी मेरा परिवार भूखा है। मोदी जी से पूछिए आखिर मैंने क्या गलती की है?’ — गोपाल, बढ़ई

40 year old woman dies of shock from demonetization move in Gorakhpur Photo: www.indialivetoday.com/

ग़रीब चैन की नींद नहीं, भूखे पेट सो रहा है मोदी जी!

— नीरेंद्र नागर



गोपाल, बढ़ई का काम करता है। घर पर उसकी दो बच्चियां भूखी हैं। उसकी जेब में 500 रुपए का नोट है, बावजूद इसके वह अपनी बच्चियों को खाना नहीं खिला पा रहा। गोपाल खुद तो पिछले कुछ दिनों से मंदिर के लंगर में खाना खा रहा था और 15 दिन पहले राशन में जो अनाज मिला था उससे घर पर खाना बन रहा था जो उसकी बच्चियां खा रहीं थीं। लेकिन अब मंदिर ने भी लंगर खिलाना बंद कर दिया है और घर का राशन भी खत्म हो चुका है। इस कठिन परिस्थिति से परेशान गोपाल की आंखों में आंसू हैं और वह कह रहा है, ‘मेरी जेब में पैसे हैं, फिर भी मेरा परिवार भूखा है। मोदी जी से पूछिए आखिर मैंने क्या गलती की है?’


यह नवभारत टाइम्स में छपी एक स्टोरी का शुरुआती हिस्सा है (पूरी स्टोरी यहां पढ़ सकते हैं)। 500 और 1000 रुपए के नोट बंद करने के फैसले का सबसे बुरा असर जिस तबके पर पड़ रहा है, वह यह है और इसके बारे में कोई बात नहीं कर रहा। जिस ग़रीब की बात मोदी कर रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि वह चैन की नींद सो  रहा है, वह गरीब यह है जिस पर इस कदम की सबसे तीखी मार पड़ी है। रोजी-रोजी तो नहीं ही मिल रही, खाना भी नसीब नहीं हो रहा। वह चैन की नींद नहीं सो रहा, वह भूखे पेट सो रहा है मोदी जी। नीचे देखें विडियो, क्या बोले थे PM मोदी…


वे कौन लोग हैं जिनको पिछले कई दिनों से काम नहीं मिल रहा या कम हो गया है क्योंकि बाज़ार में छुट्टे नहीं हैं? वे कौन लोग हैं जिनके बच्चे भूखे सो रहे हैं क्योंकि किसी भी ढाबे पर छुट्टे नहीं हैं? 

सारा भक्त मीडिया या तो इस कदम की तारीफ़ में लगा हुआ है कि कैसे मोदी जी काले धन के पीछे लट्ठ लेकर पड़ गए हैं या फिर एटीएम और बैंकों के सामने लगी लाइनों की तस्वीरें दिखा रहा है। असली कहानी इन लाइनों से परे है। वे कौन लोग हैं जिनको पिछले कई दिनों से काम नहीं मिल रहा या कम हो गया है क्योंकि बाज़ार में छुट्टे नहीं हैं? वे कौन लोग हैं जिनके बच्चे भूखे सो रहे हैं क्योंकि किसी भी ढाबे पर छुट्टे नहीं हैं? और कौन है जो इन लोगों की चिंता कर रहा है? कोई नहीं। न मोदी जी, न मोदी के भक्त जी। विपक्ष के कुछ लोग जब इनके बारे में बोलते हैं तो उनको ही निशाना बना दिया जाता है कि उनका काला पैसा फंस गया है इसीलिए इस कदम की आलोचना कर रहे हैं।

टीवी चैनलों पर आपको लाइन में लगे लोगों की बाइट मिल जाएगी कि तकलीफ तो है लेकिन देश के लिए इतना तो झेल ही सकते हैं। ये वे लोग हैं जिनके पासे स्मार्ट फोन है जिसमें पेटीएम समेत कई ऐप हैं जिससे वह हर सामान खरीद सकते हैं, पक्का घर है जहां बिग बास्किट वाले सामान दे जाते हैं, दोपहिया वाहन या कार है जिसमें पेट्रोल पंप से तेल मिल जाता है पुराने नोटों के बल पर या क्रेडिट/डेबिट कार्ड से।
ये हम-आप जैसे लोग हैं जिनको इस कदम से खास फर्क नहीं पड़ा है और इसीलिए ये मोदी जी के कदम की तारीफ कर रहे हैं। यदि आपको या आपके बच्चों को एक दिन भूखे रहना पड़ता तो पूछता, कितना अच्छा कदम है मोदी जी का?

BJP spent Rs 60 crore on Narendra Modi's 3D rallies during Lok Sabha polls
 BJP spent about Rs 487 crore in propaganda activities which included Rs 304 crore on advertisements in print, electronic, cable and news portals besides bulk SMSs  Photo: timesofindia.indiatimes.com


BJP हो या कांग्रेस, BSP हो या SP या अम्मा की AIADMK, यहां तक कि आम आदमी पार्टी  – कोई भी पार्टी काले धन के बगैर चुनाव नहीं लड़ती, न अतीत में लड़ी है, न भविष्य में लड़ेगी।
क्या आपको लगता है, काला धन केवल मायावती और मुलायम के पास है, बीजेपी और उसके नेताओं के पास काला धन नहीं है? 2014 में जो अरबों रुपए खर्च हुए, वह सबका-सब क्या चेक का और टैक्सपेड पैसा था? यदि आप सोचते हैं कि हां, था तो आपसे ज़्यादा अंधभक्त कोई नहीं होगा और बेहतर है कि आप आगे न पढ़ें, आपका समय नष्ट होगा। 
लेकिन यदि आप सोचते हैं कि नहीं था तो आपको भी मेरी तरह यह कहना चाहिए कि यह तमाशा बंद होना चाहिए।

मैं यह ब्लॉग आज लिख रहा हूं। यह आगे भी यहीं रहेगा। एक साल बाद मैं आपसे और सरकार से पूछूंगा कि देश में काला धन कितना कम हुआ। मकानों में दो नंबरी पैसा लगना कितना कम हुआ? हीरे-जवाहारात के कामों में कितनी सफेदी आई? हवाला कारोबार में कितनी कटौती हुई? रिश्वतखोरी क्या देश से चली गई? सारे बेईमान क्या देश छोड़कर चले गए जैसा कि मोदी जी दावा कर रहे हैं?

मेरा मानना है कि अधिक से अधिक छह महीनों तक इस कदम का असर रहेगा। उसके बाद सब पहले जैसा हो जाएगा। हां, पांच सौ और हज़ार रुपए की जगह अब दो हज़ार के बंडल चलेंगे और लोग कैश रखने के बजाय प्रॉपर्टी और सोने में अधिक निवेश करेंगे। यानी प्रॉपर्टी सस्ती होने के बजाय महंगी होने का इंतज़ार करें।

पॉलिटिशन पहले भी बिकते रहे हैं पैसे की खातिर। आगे भी बिकेंगे बल्कि वे राजनीति में आते ही इसलिए हैं कि लोगों के वोट खरीदें और पैसेवालों के हाथों खुद को बेचें। हां, बीच-बीच में ये तमाशे होते रहेंगे ब्लैक मनी निकालने के नाम पर ताकि आपको लगे कि यह बंदा तो बहुत ही ईमानदार है। 
कमाल तो यह है कि वे लोग जिनका सारा धंधा काले धन और धनवालों के बल पर चलता है जैसे वकील, चार्टर्ड अकाउंटेंट, फिल्मी कलाकार, व्यापारी, वे सब भी इस कदम की तारीफ़ कर रहे हैं। इस देश का हर आदमी – रिपीट हर आदमी –  अपनी दोनंबरी आय छुपाने और टैक्स बचाने में लगा हुआ है लेकिन ताली बजाने का मौका वह भी नहीं छोड़ रहा है। इन तालियों की गूंज में किसी गरीब की आह किसको सुनाई दे और क्यों सुनाई दे?

रात को भूखे सोते इन बच्चों की चिंता आप क्यों करें? अभी तो आपकी प्रिय पार्टी बीजेपी को यूपी और गुजरात का चुनाव जिताना है।
नीरेंद्र नागर, वरिष्ठ संपादक, नवभारत टाइम्स
नीरेंद्र नागर, वरिष्ठ संपादक, नवभारत टाइम्स


डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं
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2000 का नोट कालेघनियों की सहूलियत "बाबा रामदेव" Baba Ramdev Against Rs 2000 note


बाबा रामदेव से नवभारत टाइम्स के अमित मिश्र की  बातचीत

इस मुहिम का कोई मतलब नहीं रह जाएगा

बाबा रामदेव से नवभारत टाइम्स  के अमित मिश्रा की  बातचीत



सरकार ने 500, 1000 रुपये का नोट बदल कर 2000 रुपये का नोट चलाया है। आप तो बड़े नोट बंद करने की बात करते थे क्योंकि इससे काला धन इकट्ठा होता है। इस कदम पर आपका क्या कहना है?
मैं बड़े नोटों का विरोध की बात पर अब भी कायम हूं। मेरे हिसाब से 2000 रुपये का नोट चलाने से काला धन इकट्ठा करने वालों को और सहूलियत हो जाएगी। ऐसे में इस मुहिम का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।
एक तरफ आम आदमी से थोड़ा एडजस्ट करने की बात कह कर उसे नोट बदलवाने के लिए घंटों लाइनों में लगवाया जा रहा है और दूसरी तरफ राजनैतिक पार्टियां अपने चंदे का श्रोत छुपाने के लिए खुद को आरटीआई से बाहर रखने के लिए एकजुट हो चुके हैं। इस पर आपका क्या कहना है?
दोहरे मापदंड नहीं चलेंगे। राजनैतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाने की जरूरत है जिससे यह बात साफ हो सके कि कोई भी दल काला धन नहीं ले रहा। ऐसा करना काले धन को रोकने के लिए बहुत जरूरी है।
सरकार को पास तकरीबन 141 ऐसे लोगों की लिस्ट है जो देश का लाखों करोड़ रुपये दबा कर बैठ गए हैं। कोई भी सरकार इनका नाम बताने को राजी नहीं है। आपका क्या मानना है?
सरकार को नाम बताना चाहिए। लोगों को नाम जानने का हक है और ऐसा करने से बाकियों को भी भय होगा कि वह ऐसा न करें। उन पर उचित कार्रवाई भी होनी चाहिए।
आपके प्रॉडक्ट्स और कंपनी को लेकर सोशल मीडिया में गाहे-बगाहे अफवाहें सुनने को मिलती हैं लेकिन आपकी तरफ से इन पर कोई सफाई नहीं आता ऐसा क्यों?
सोशल मीडिया पर जिम्मेदार, देशभक्त, साइंटिफिक यूनिवर्सल सेक्युलर और इंक्लूसिव सोच रखने वाले लोग भी हैं और कुछ फिजूल लोग हैं। इन फिजूल लोगों पर कमेंट न करना हमारी समझदारी और जिम्मेदारी है। ऐसे लोग तो चाहते ही हैं कि हम उनकी बातों का जवाब दें और अपनी एनर्जी उनकी बकवास बातों में लगा दें। ऐसा करने पर तो हम उनके मिशन को सफल कर रहे हैं। बेहतर है उनका जवाब न दिया जाए।
फिर भी कोई स्ट्रैटजी तो होगी इन चीजों से निपटने की?
स्ट्रैटजी की क्या जरूरत है। अगर हम सही हैं तो हमें किसी स्ट्रैटजी की क्या जरूरत है। अगर कोई गलत है तो चाहें जितनी स्ट्रैटजी बना ले सब बेकार हो जाना है।
कहा जा रहा है कि पतंजलि के प्रॉडक्ट्स की भारी डिमांड के चलते उसे आउटसोर्सिंग के जरिए पूरा किया जा रहा है इसमें कितनी सचाई है?
हमारे 90 से लेकर 99 फीसदी प्रॉडक्शन इन-हाउस है। यदि कहीं पर आउटसोर्स भी किया जा रहा है तो इससे काफी लोगों को फायदा हो रहा है। मिसाल के तौर पर नमक है, इससे कई मजदूरों और देसी कंपनियों को भी काम मिल रहा है। हम तो सबके विकास की बात करते हैं। हम सबको साथ लेकर आगे जाना चाहते हैं। यदि कुछ लोगों को हमने काम दिया तो हमारे स्वदेशी अभियान और विकेंद्रित विकास और समावेशी विकास का एक हिस्सा है। किसी से काम करवाना या उसे काम या समृद्धि देना देश की भलाई है। पतंजलि के अलावा बाकी को आगे बढ़ाना भी स्वदेशी अभियान के लिए जरूरी है।
लेकिन लोगों की चिंता क्वॉलिटी को लेकर है? मिसाल के तौर पर लोग कहते हैं कि आपका शहद जम जाता है इसलिए खराब है?
हम खुद क्वॉलिटी को लेकर सबसे सख्त हैं। एक भी प्रॉडक्ट बताएं, जिसमें हमने क्वॉलिटी के साथ समझौता किया गया है। जहां तक बात शहद की है तो इसे लेकर देश को लोगों में भारी अज्ञानता है। हमने इसके बारे में जानकारी प्रॉडक्ट के लेबल पर भी दिया है। शहद का जमना एक स्वाभाविक बात है। विदेशों में 99 फीसदी जमा शहद ही बिकता है। सरसों के फूलों से मधु लेने वाली मधुमक्खी का शहद जरूर जमेगा। दुनिया भर में लोग जमे हुए शहद को फ्रूट जैम की तरह ब्रेड पर लगा कर खाते हैं, कुछ लोग चाय में डाल कर पीते हैं। अगर कोई शहद बिल्कुल नहीं जमता तो इसका मतलब वह नैचरल नहीं है।
हाल ही में फॉर्ब्स मैगजीन में एक रिपोर्ट छपी है जिसमें आपके घी को लेकर कंपनी के बड़े अधिकारियों को कोट करते हुए स्टोरी की गई है। इस पर आप क्या कहेंगे, क्या आप कानूनी कार्रवाई करने का मन बना रहे हैं?
विदेशी मिडिया हमेशा मल्टीनैशनल कंपनियों का साथ देता है। ये उनकी हरकत है। जहां तक बात कानूनी कार्रवाई की है तो हम मीडिया पर किसी भी तरह की कार्रवाई से हमेशा बचते हैं। मैंने ये पॉलिसी बना रखी है कि मैं मीडिया और साधु-संत समाज पर कोई टिप्पणी नहीं करता। हर जगह अच्छे-बुरे लोग हैं। कोई ज्यादा ही हरकत करेगा तो हम सोचेंगे। आचार्य बालकृष्ण और सिंघलजी को पूरी तरह से गलत कोट किया गया है।
आप और आचार्य बालकृष्ण कई घरेलू नुस्खे बताते हैं। क्या आप इसके ट्रायल करके लोगों को साइंटिफिक तरीके से बताएं तो लोगों को घर पर ही सस्ता इलाज मिल सकता है। इस बारे में क्या आप कुछ कर रहे हैं?
देश में सैकड़ों तरीके की सब्जियां और अनाज खाए जाते हैं। दुनिया भर में ऐसा ही नॉन वेज खाने वालों के साथ है। क्या हर तरीके के खाने को खाने से पहले क्लीनिकल ट्रायल किए गए हैं? आहार, विचार, व्यवहार और संस्कार पीढ़ी-दर-पीढ़ी चले आ रहे हैं और इनके पीछे वैज्ञानिक तथ्य है। ठीक वैसे ही हमारे नुस्खे में भी बहुत वैज्ञानिक तथ्य हैं। मिसाल के तौर पर डेंगू पर हमारे दिए नुस्खे का बेहतरीन असर रहा है। हमने अपने आसपास कई लोगों का इलाज इसके जरिए किया है। अब इसके ट्रायल की जरूरत क्या है।
आयुर्वेद एक पुराना तरीका है। तब से काफी बदलाव आ चुका है। क्या आयुर्वेद की सक्षमता हर बीमारी से निपटने में है और क्या इसमें कोई नया रिसर्च भी हो रहा है?
एक बात समझ लीजिए, धरती पर जितनी बीमारियां हैं उनके इलाज भी इसी धरती पर हैं। मॉडर्न मेडिकल साइंस कहता है कि वायरल हर वक्त शक्ल बदलता रहता है लेकिन वायरल से होने वाली बीमारियां तो मात्र 1-2 फीसदी ही हैं। बाकी डायबिटीज, बीपी, हार्ट आदि से जुड़ी बीमारियां ही ज्यादा है। ऐसे में यह कहना गलत है कि आयुर्वेद कारक नहीं है। मिसाल के तौर पर गिलोय को ही ले लें वह 90 से 95 फीसदी बैक्टीरिया और वायरस पर कारगर है। घरेलू नुस्खे हजारों हजार साल से आजमाई या रही हैं। ऐसा नहीं है कि हम रिसर्च नहीं कर रहे। हमने हाल ही में रिसर्च सेंटर बनाया है जिसमें काम हो रहा है। जल्दी ही नई रिसर्च सामने आएंगे। हमने इस पर भारी निवेश किया है।
आपके प्रॉडक्ट में काफी कृषि उत्पाद इस्तेमाल होते हैं। क्या सब ऑर्गेनिक उत्पाद हैं। अगर आप पहल करें तो लोग ऑर्गेनिक की तरफ मुड़ेंगे। क्या आप सबके सर्टिफिकेट के लिए कहेंगे?
हर चीज के सर्टिफिकेट की जरूरत क्या है। मैं बाबा हूं तो क्या मुझे किसी सर्टिफिकेट की जरूरत है। मैं हर चीज के सर्टिफिकेट की बात करना बेमायने हैं। किसान को ऑर्गेनिक सर्टिफिकेट के लिए मल्टीनैशनल कंपनी को हजारों रुपये देने होंगे। यह तो उसे परेशान करने की बात है। ऐसे तो किसान मर जाएगा। यह एक फैशन बन चुका है कि सब अपराध किसान कर रहा है। देश को असली खतरा एसी और बड़ी बिल्डिगों में बैठे लोगों से है। नैसर्गिक या ऑर्गेनिक खेती की बात तो सही है लेकिन सर्टिफिकेट को जरूरी करना किसानों के लिए एक नई समस्या पैदा करने वाला काम होगा। वो पहले ही परेशान हैं और हम उन पर एक और बोझ लाद देंगे। हां मैं इस बात की गारंटी लेता हूं कि हमारे अपने फॉर्म में हम पूरी तरह से नैसर्गिक खेती कर रहे हैं। वैसे हम जरूर सर्टिफिकेशन जैसे फूड के लिए FSSAI और आयुर्वेद के लिए आयुष मंत्रालय के लिए सर्टिफिकेट तो लेते ही हैं।
आप अपने विज्ञापनों में मल्टीनैशनल कंपनियों को भला-बुरा कहते हैं और देश विरोधी बताते हैं जबकि सरकार तो उन्हें लाइसेंस देकर काम करने का बढ़ावा देती है। आप क्या कहेंगे?
विज्ञापन हमने चलाया है और बिल्कुल सही चलाया है और आगे भी चलाएंगे। जरूरी नहीं है कि सरकार जिस काम के लिए लाइसेंस दो वह सही ही हो। मैंने तो कोई सरकारी डिग्री नहीं ली लेकिन फिर भी मैं आयुर्वेद और योग का जानकार हूं और डिग्री भी देता हूं। लेकिन मैं विद्वान हूं इसके लिए मुझे किसी डिग्री की जरूरत नहीं है। सरकार तो शराब, सिगरेट और न जाने किन-किन चीजों को लाइसेंस दे देती है तो क्या ये सब सही है। कोई चीज लीगल हो सकती है लेकिन इससे वह समाज के लिए सही हो जरूरी नहीं। सरकार ने तो गायों का कत्लखाना खोलने की भी लाइसेंस दिए हैं तो क्या ये सही है। मैं विदेशी कंपनियों के खिलाफ हूं। ये ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह हैं। सरकार ने डब्लूटीओ के साथ संधि की है जिससे वो बंधे हैं लेकिन मैंने ऐसी कोई संधि नहीं की है। इसलिए मैं खुल कर विरोध करता हूं मुझे कोई नहीं रोक सकता। ये बात और है कि पहले बीजेपी और मोदी जी भी ऐसी बातें करते थे। सरकारें संधियों की बंदिशों की वजह से ‘मेक इन इंडिया’ कहती है लेकिन मैं कहता हूं ‘मेक बाई इंडियंस’।
अब आप और क्या लाने वाले हैं?
फिलहाल टेक्सटाइल पर काम चल रहा है जिसमें 15 श्रेणियां होंगी। अंडरवियर से लेकर जींस तक सब बनाएंगे। खादी के ऊपर भी कई कंपनियां पैसे बना रही हैं। इसको तो बंद करना ही होगी। ये पूरी तरह से फरेब इंडिया है। इसे हम खत्म कर के रहेंगे। हम करीब 1000 प्रॉडक्ट्स के साथ आने वाले हैं। इसके पूरे शो रूम होंगे और अगले साल से इसे शुरू करने का इरादा है।
दूध की कीमतें कुछ वक्त के बाद बढ़ जाती हैं क्या आप इस परेशानी से निपटने के लिए दूध भी लाने वाले हैं?
हम इस साल दिसंबर तक ताजा दूध लेकर आने वाले हैं लेकिन सिर्फ गाय का।
एक तरफ कहा जाता है कि प्रेजर्वेटिव वाली चीजें न खाओ। आप भी सोडियम बेंजोनेट का इस्तेमाल करते हैं। तो ये बाकियों से कैसे बेहतर हैं?
सोडियम बेंजोनेट का इस्तेमाल काफी सीमित मात्रा में होता है जिससे कोई नुकसान नहीं है। अगर हम किसी चीज को प्रोसेस न करें तो साल भर उसे कैसे उपलब्ध करवाया जा सकता है। मिसाल के तौर आंवले को ले लें। इसे साल भर खाने के लिए ऐसा करना जरूरी हो गया है। वैसे भी आयुर्वेद कहता है कि फल तो सीजनल खाओ लेकिन आंवला और साक-सब्जियां 12 महीने खाने का विधान है।
हाल ही में आचार्य बालकृष्ण तो फोर्ब्स मैगजीन ने सबसे धनवान लोगों की लिस्ट में शामिल किया जबकि आप कहते हैं कि पतंजलि किसी एक इंसान की कंपनी नहीं है?
कंपनी बनाने के लिए कुछ नियम होते हैं जिनसे हम भी बंधे हैं। ऐसा ही एक नियम है कि शेयर कोई इंसान ही रख सकता है न कि कोई ट्रस्ट इसलिए आचार्य जी को हमने वह जिम्मेदारी सौंपी। आचार्य जी ने अपनी वसीयत के जरिए ऐसा लिख दिया है कि मेरा सबकुछ ट्रस्ट का है। वह तकनीकी रूप से भले अमीर हों लेकिन असल में वह 1 रुपये सैलरी भी नहीं लेते।
आप कहते हैं कि कंपनी प्रॉफिट नहीं कमाती लेकिन हजारों करोड़ का प्रॉफिट तो दिखाया जा रहा है। तो क्या आप प्रॉफिट के बिजनेस में आ गए हैं?
हम सस्ता बनाएं तब भी दिक्कत, हम प्रॉफिट न कमाएं तब भी दिक्कत। जो थोड़ा बहुत प्रॉफिट है वह इस वजह से है कि उत्तराखंड टैक्स फ्री जोन है इसकी वजह से 10-15 फीसदी बचत हो जाती है। बाकी अगर थोड़ा बहुत प्रॉफिट होगा तभी तो काम आगे बढ़ेगा। हम न बैंक का पैसा मारते, न किसी से दान लेते, न हम कॉर्पोरेट फैमिली से हैं। हमें तो सब इसी से करना है।
ऑनलाइन पर आपका सामान महंगा है लेकिन आपके डेडिकेटेड स्टोर पर एमआरपी पर ही मिलता है। ऐसा क्यों?
ऑनलाइन कंपनियां तो वैसे ही डूबने वाली हैं। पतंजलि के प्रॉडक्ट बेचने वाला काफी इनवेस्टमेंट करता है। अब सस्ता बेचेंगे तब कैसे सर्वाइव कर पाएंगे।
क्या अब भी आपका कोई ड्रीम प्रोजेक्ट है?
मैं अगले 5-10 साल में 100 लाख करोड़ का मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने का सपना देखता हूं। इस तरह के सौ लोग हों तो ऐसा मुमकिन है। मैं इसमें 1 लाख करोड़ रुपये का योगदान करने को तैयार हूं।
यूपी और उत्तराखंड में चुनाव आने वाले हैं आप किसके साथ हैं?
हम फिलहाल राजनैतिक तौर पर सर्वदलीय निर्दलीय हो गए हैं। जब तक देश पर कोई भारी संकट न आए तब तक राजनीति पर कोई बात नहीं करूंगा।
दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और पीएम नरेंद्र मोदी दोनों ही आपके करीब हैं लेकिन दोनों ही हमेशा एक दूसरे से भिड़े रहते हैं। क्या आप बीच-बचाव के लिए आएंगे?
जब मैं ऐसे मामलों में बोलता था तब मीडिया कहता था कि बाबा राजनीति में क्यों घुस रहे हैं। अब मैं कुछ नहीं बोल रहा हूं तो पूछ रहे हैं कि बीच-बचाव क्यों नहीं कर रहे। मैं पहले ही कह चुका हूं कि मैं राजनीति पर तभी कोई बात करूंगा जब देश पर कोई राजनैतिक संकट हो।
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