मेरी जेब में पैसे हैं, फिर भी मेरा परिवार भूखा है। मोदी जी से पूछिए आखिर मैंने क्या गलती की है?’ — गोपाल, बढ़ई
40 year old woman dies of shock from demonetization move in Gorakhpur Photo: www.indialivetoday.com/ |
ग़रीब चैन की नींद नहीं, भूखे पेट सो रहा है मोदी जी!
— नीरेंद्र नागर
गोपाल, बढ़ई का काम करता है। घर पर उसकी दो बच्चियां भूखी हैं। उसकी जेब में 500 रुपए का नोट है, बावजूद इसके वह अपनी बच्चियों को खाना नहीं खिला पा रहा। गोपाल खुद तो पिछले कुछ दिनों से मंदिर के लंगर में खाना खा रहा था और 15 दिन पहले राशन में जो अनाज मिला था उससे घर पर खाना बन रहा था जो उसकी बच्चियां खा रहीं थीं। लेकिन अब मंदिर ने भी लंगर खिलाना बंद कर दिया है और घर का राशन भी खत्म हो चुका है। इस कठिन परिस्थिति से परेशान गोपाल की आंखों में आंसू हैं और वह कह रहा है, ‘मेरी जेब में पैसे हैं, फिर भी मेरा परिवार भूखा है। मोदी जी से पूछिए आखिर मैंने क्या गलती की है?’
यह नवभारत टाइम्स में छपी एक स्टोरी का शुरुआती हिस्सा है (पूरी स्टोरी यहां पढ़ सकते हैं)। 500 और 1000 रुपए के नोट बंद करने के फैसले का सबसे बुरा असर जिस तबके पर पड़ रहा है, वह यह है और इसके बारे में कोई बात नहीं कर रहा। जिस ग़रीब की बात मोदी कर रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि वह चैन की नींद सो रहा है, वह गरीब यह है जिस पर इस कदम की सबसे तीखी मार पड़ी है। रोजी-रोजी तो नहीं ही मिल रही, खाना भी नसीब नहीं हो रहा। वह चैन की नींद नहीं सो रहा, वह भूखे पेट सो रहा है मोदी जी। नीचे देखें विडियो, क्या बोले थे PM मोदी…
वे कौन लोग हैं जिनको पिछले कई दिनों से काम नहीं मिल रहा या कम हो गया है क्योंकि बाज़ार में छुट्टे नहीं हैं? वे कौन लोग हैं जिनके बच्चे भूखे सो रहे हैं क्योंकि किसी भी ढाबे पर छुट्टे नहीं हैं?
सारा भक्त मीडिया या तो इस कदम की तारीफ़ में लगा हुआ है कि कैसे मोदी जी काले धन के पीछे लट्ठ लेकर पड़ गए हैं या फिर एटीएम और बैंकों के सामने लगी लाइनों की तस्वीरें दिखा रहा है। असली कहानी इन लाइनों से परे है। वे कौन लोग हैं जिनको पिछले कई दिनों से काम नहीं मिल रहा या कम हो गया है क्योंकि बाज़ार में छुट्टे नहीं हैं? वे कौन लोग हैं जिनके बच्चे भूखे सो रहे हैं क्योंकि किसी भी ढाबे पर छुट्टे नहीं हैं? और कौन है जो इन लोगों की चिंता कर रहा है? कोई नहीं। न मोदी जी, न मोदी के भक्त जी। विपक्ष के कुछ लोग जब इनके बारे में बोलते हैं तो उनको ही निशाना बना दिया जाता है कि उनका काला पैसा फंस गया है इसीलिए इस कदम की आलोचना कर रहे हैं।
टीवी चैनलों पर आपको लाइन में लगे लोगों की बाइट मिल जाएगी कि तकलीफ तो है लेकिन देश के लिए इतना तो झेल ही सकते हैं। ये वे लोग हैं जिनके पासे स्मार्ट फोन है जिसमें पेटीएम समेत कई ऐप हैं जिससे वह हर सामान खरीद सकते हैं, पक्का घर है जहां बिग बास्किट वाले सामान दे जाते हैं, दोपहिया वाहन या कार है जिसमें पेट्रोल पंप से तेल मिल जाता है पुराने नोटों के बल पर या क्रेडिट/डेबिट कार्ड से।
ये हम-आप जैसे लोग हैं जिनको इस कदम से खास फर्क नहीं पड़ा है और इसीलिए ये मोदी जी के कदम की तारीफ कर रहे हैं। यदि आपको या आपके बच्चों को एक दिन भूखे रहना पड़ता तो पूछता, कितना अच्छा कदम है मोदी जी का?
BJP spent about Rs 487 crore in propaganda activities which included Rs 304 crore on advertisements in print, electronic, cable and news portals besides bulk SMSs Photo: timesofindia.indiatimes.com |
BJP हो या कांग्रेस, BSP हो या SP या अम्मा की AIADMK, यहां तक कि आम आदमी पार्टी – कोई भी पार्टी काले धन के बगैर चुनाव नहीं लड़ती, न अतीत में लड़ी है, न भविष्य में लड़ेगी।
क्या आपको लगता है, काला धन केवल मायावती और मुलायम के पास है, बीजेपी और उसके नेताओं के पास काला धन नहीं है? 2014 में जो अरबों रुपए खर्च हुए, वह सबका-सब क्या चेक का और टैक्सपेड पैसा था? यदि आप सोचते हैं कि हां, था तो आपसे ज़्यादा अंधभक्त कोई नहीं होगा और बेहतर है कि आप आगे न पढ़ें, आपका समय नष्ट होगा।लेकिन यदि आप सोचते हैं कि नहीं था तो आपको भी मेरी तरह यह कहना चाहिए कि यह तमाशा बंद होना चाहिए।
मैं यह ब्लॉग आज लिख रहा हूं। यह आगे भी यहीं रहेगा। एक साल बाद मैं आपसे और सरकार से पूछूंगा कि देश में काला धन कितना कम हुआ। मकानों में दो नंबरी पैसा लगना कितना कम हुआ? हीरे-जवाहारात के कामों में कितनी सफेदी आई? हवाला कारोबार में कितनी कटौती हुई? रिश्वतखोरी क्या देश से चली गई? सारे बेईमान क्या देश छोड़कर चले गए जैसा कि मोदी जी दावा कर रहे हैं?
मेरा मानना है कि अधिक से अधिक छह महीनों तक इस कदम का असर रहेगा। उसके बाद सब पहले जैसा हो जाएगा। हां, पांच सौ और हज़ार रुपए की जगह अब दो हज़ार के बंडल चलेंगे और लोग कैश रखने के बजाय प्रॉपर्टी और सोने में अधिक निवेश करेंगे। यानी प्रॉपर्टी सस्ती होने के बजाय महंगी होने का इंतज़ार करें।
पॉलिटिशन पहले भी बिकते रहे हैं पैसे की खातिर। आगे भी बिकेंगे बल्कि वे राजनीति में आते ही इसलिए हैं कि लोगों के वोट खरीदें और पैसेवालों के हाथों खुद को बेचें। हां, बीच-बीच में ये तमाशे होते रहेंगे ब्लैक मनी निकालने के नाम पर ताकि आपको लगे कि यह बंदा तो बहुत ही ईमानदार है।कमाल तो यह है कि वे लोग जिनका सारा धंधा काले धन और धनवालों के बल पर चलता है जैसे वकील, चार्टर्ड अकाउंटेंट, फिल्मी कलाकार, व्यापारी, वे सब भी इस कदम की तारीफ़ कर रहे हैं। इस देश का हर आदमी – रिपीट हर आदमी – अपनी दोनंबरी आय छुपाने और टैक्स बचाने में लगा हुआ है लेकिन ताली बजाने का मौका वह भी नहीं छोड़ रहा है। इन तालियों की गूंज में किसी गरीब की आह किसको सुनाई दे और क्यों सुनाई दे?
रात को भूखे सोते इन बच्चों की चिंता आप क्यों करें? अभी तो आपकी प्रिय पार्टी बीजेपी को यूपी और गुजरात का चुनाव जिताना है।
नीरेंद्र नागर, वरिष्ठ संपादक, नवभारत टाइम्स |
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं
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