बची हो जो गर थोड़ी ग़ैरत एक ग़ज़ल - भरत तिवारी न इंसानियत का निशाँ ही बचेगा न काबा न मंदिर न गिरजा बचेगा बची हो जो गर थोड़ी ग़ैरत …
Social Plugin