एक बार फिर होली ! तेजेन्द्र शर्मा नजमा के लाल होते गालों ने जैसे दुर्गा मासी पर लाल सुर्ख लोहे की छड़ ज़ैसा काम किया था। शाम होते-होते इस…
आगे पढ़ें »हाथ से फिसलती ज़मीन... तेजेन्द्र शर्मा “ग्रैण्डपा, आपके हाथ इतने काले क्यों हैं?... आपका रंग मेरे जैसा सफ़ेद क्यों नहीं है?... आप मुझ से …
आगे पढ़ें »मलबे की मालकिन तेजेन्द्र शर्मा समीर ने यह क्या कह दिया! एक ज़लज़ला, एक तूफ़ान मेरे दिलो दिमाग़ को लस्त-पस्त कर गया है. मेरे पूरे जीवन की तपस्या…
आगे पढ़ें »हद्द बेशरम हो तुम, जब बच्चे छोटे थे तो कभी गोदी में बिठाया तुमने? आज बड़े आये ह…
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