मैं चांद पर हूं... मगर कब तक (आजादी और अजाब में फंसी चालीस पार औरतों के बारे में...) प्रेम भारद्वाज "खड़ी किसी को लुभा रही थी चालिस …
आगे पढ़ें »समीक्षा सरकारी भ्रष्टाचार से लहू-लुहान होता एक ईमानदार अधिकारी डॉ. बिभा कुमारी कथाकार रूपसिंह चंदेल का नवीनतम प्रकाशित उपन्यास है -“ गलियारे …
आगे पढ़ें »अगर हम साहित्य अकादमी के क्रियाकलापों पर नजर डालें तो यह देखकर तकलीफ होती है कि वहां किस तरह से स्वायत्ता के नाम पर प्रतिभाहीनता को बढ़ावा दिया जा …
आगे पढ़ें »पुस्तक समीक्षा साहित्य और समाज के लोकतान्त्रिककरण की प्रक्रिया का नया आख्यान ‘मुस्लिम विमर्श : साहित्य के आईने में’ एम. फिरोज खान की नई …
आगे पढ़ें »रोशनी कहाँ है? राजेन्द्र यादव वाकई बिस्सो बाबू आज परेशान था। इतने विश्वास का परिणाम यह हुआ! भूखे मरते उस सोभा को खिलाया-पिलाया, रखा, और अब यों…
आगे पढ़ें »टेलीविजन पत्रकारों ने खबरों को समझना बंद कर दिया है - शैलेश (न्यूज नेशन) मीडिया की भाषा- खतरे और चुनौतियां के साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के …
आगे पढ़ें »राजेन्द्र यादव की कवितायेँ न-बोले क्षण न, कुछ न बोलो मौन पीने दो मुझे अपनी हथेली से तुम्हारी उँगलियों का कम्प... उँह, गुज़रते सै…
आगे पढ़ें »हद्द बेशरम हो तुम, जब बच्चे छोटे थे तो कभी गोदी में बिठाया तुमने? आज बड़े आये ह…
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