बूढा बरगद
छाँह घनेरी,
मंदिर
घाट
नदी के,
आसमान
धूसर पगडण्डी,
कब से तुझे
पुकारे,
लौट न आ रे
लौट न आ रे…
*
सौदागर
नगरी में जाकर,
क्या खोया
क्या पाया,
भोला मुखड़ा
सपन सजीले ,
हीरा
कहाँ गंवाया,
कहाँ गया
तेरा इकतारा,
राम
कहाँ बिसराया ,
कुछ तो कह
ओ राम बावरे
कुइच तो गा रे !
**
कंचन नगरी
छत्र बिराजै,
मंदिर बरन
मदिरा-सुख साजै,
कामिनी
निरत करे हमजोली ,
रंग अनंत
अनंत ठिठोली,
-ऐहिक
इंद्रजाल उरूझानी
हिवड़ा
हुडुक-हुडुक हलकानी,
माहुर-धार
कटार सरीखी,
तृष्णा
मृगतृष्णा रे,
मातुल
पितुल कहाँ रे !
***
प्राण-पुहुप
जननी हम तेरे,
पुनरपि जन्मम
हेरे-फेरे,
निपट अजोग,
ललाट लिखाने,
हम हीरा
अनमोल बिकाने,
टूटा
रुनक-झुनक
इकतारा,
ना हम जीते
ना जग हारा,
लीजो
अग्नि-प्रणाम हमारे,
कीजो
हमें क्षमा रे !
प्रेम शर्मा
('साक्षात्कार', अगस्त, १९९८)
छाँह घनेरी,
मंदिर
घाट
नदी के,
आसमान
धूसर पगडण्डी,
कब से तुझे
पुकारे,
लौट न आ रे
लौट न आ रे…
*
सौदागर
नगरी में जाकर,
क्या खोया
क्या पाया,
भोला मुखड़ा
सपन सजीले ,
हीरा
कहाँ गंवाया,
कहाँ गया
तेरा इकतारा,
राम
कहाँ बिसराया ,
कुछ तो कह
ओ राम बावरे
कुइच तो गा रे !
**
कंचन नगरी
छत्र बिराजै,
मंदिर बरन
मदिरा-सुख साजै,
कामिनी
निरत करे हमजोली ,
रंग अनंत
अनंत ठिठोली,
-ऐहिक
इंद्रजाल उरूझानी
हिवड़ा
हुडुक-हुडुक हलकानी,
माहुर-धार
कटार सरीखी,
तृष्णा
मृगतृष्णा रे,
मातुल
पितुल कहाँ रे !
***
प्राण-पुहुप
जननी हम तेरे,
पुनरपि जन्मम
हेरे-फेरे,
निपट अजोग,
ललाट लिखाने,
हम हीरा
अनमोल बिकाने,
टूटा
रुनक-झुनक
इकतारा,
ना हम जीते
ना जग हारा,
लीजो
अग्नि-प्रणाम हमारे,
कीजो
हमें क्षमा रे !
प्रेम शर्मा
('साक्षात्कार', अगस्त, १९९८)
0 टिप्पणियाँ