हिंदी विवि में ‘राइटर-इन रेजीडेंस’ संजीव को दी गई विदाई
वर्धा, 13 मार्च, 2013

विश्वविद्यालय में एक वर्ष बिताए पलों को साझा करते हुए संजीव ने कहा कि यहां के वातावरण को देखकर मैं अभिभूत हूँ। यहां निरंतर विद्वानों से संवाद करने और किसानों की आत्महत्या के कारणों को देख सका। उन्होंने कहा कि अनुसंधान की प्रवृति ने ही मुझे रचनाकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
साहित्य विद्यापीठ के विभागाध्यक्ष प्रो.के.के.सिंह ने स्वागत वक्तव्य में संजीव की रचनाधर्मिता को रेखांकित करते हुए कहा कि वे एक ऐसे कहानीकार हैं, जिन्हें भारतीय लोकजीवन से सच्ची मोहब्बत है। लेखक का सम्मान पुरस्कार नहीं अपितु उनको पढ़ा जाना है। उन्होंने कहा कि ‘अपराध’ ‘सर्कस’, ‘सावधान नीचे आग है’, ‘सूत्रधार’, ‘जंगल जहॉं शुरू होता है’, ‘प्रेरणास्त्रोत’, ‘रह गईं दिशाऍं इसी पार’ जैसी रचनाएं हिंदी जगत में पढ़ी जाती हैं। उनकी ‘पॉंव तले की दूब’ उपन्यास को पढ़कर ऐसा महसूस होता है कि इनकी रचनात्मकता जमीन से जुड़ी दूब जैसी है।उन्होंने बताया कि मैं सुबह के उजालों को देखने के लिए रात की गहरे अंधकार में उतरता हूँ और सोचता रहता हूँ कि कैसे यह अंधेरा हमारी जिंदगी से भी छंटता है और उस अंधेरे में अपने पात्रों से रू-ब-रू होता हूँ।
क्लब के सचिव अमरेन्द्र कुमार शर्मा ने कार्यक्रम का संचालन किया। इस मौके पर राजकिशोर, प्रो.आर.पी.सक्सेना, प्रो.हनुमान प्रसाद शुक्ल, जय प्रकाश ‘धूमकेतु’, अशोक मिश्र, अनिर्बाण घोष, डॉ. हरीश हुनगुन्द, अमित विश्वास सहित बड़ी संख्या में क्लब के सदस्य उपस्थित थे।
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