आगे कविता -
आज से करीब ३५ वर्ष पहले जब साहित्य अकादमी अध्यक्ष श्री विश्वनाथ प्रसाद तिवारी 'दस्तावेज़' के संपादक थे उस वक्त अवधेश निगम जी, कुमार अवधेश की नाम से अपनी कवितायेँ लिखते थे.
गए दिनों जब विश्वनाथ जी के अध्यक्ष बनने की खबर 'शब्दांकन' पर प्रकाशित हुई, उसे पढ़ कर अवधेश जी ने बातों बातों में ज़िक्र किया कि उनकी कविता, उस समय श्री तिवारी जी ने 'दस्तावेज़' में प्रकशित करी थी -
मेरे आग्रह पर अवधेश निगम जी ने वह कविता हम कविता प्रेमियों के लिए भेजी इसका उन्हें धन्यवाद.
पैरों के विरूद्ध
बच्चा खेलता रहा
खिलौनों से
तुम सपनो से |
तुम्हे मालूम न था
टूट जाते हैं और फिर खरीदे नहीं जाते
सपने खिलौने नहीं होते |
तुम्हें भी खिलौनों से खेलना था
टूटते, खरीद लाते
इस तरह तुम टूटने से बच जाते |
घुटनों के बल
चलते हुए
जब जब तुमने
अपने पैरों पर चलने की बात सोची
हर बार तुम्हारी आँखों में
एक सपना ठूंस दिया गया
सपना एक साजिश है
वयस्क होने की संभावनाओं और
पैरों के विरूद्ध |
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