साहित्य मज़ाक नहीं

    सच बोलना अच्छी बात है – हम सब ये जानते हैं.

    अधिकतर हम ये मान कर चलते हैं कि हमसे जो बात कही जा रही है वो सच ही है, लेकिन इसका नाजायज़ फायदा ना उठाया जाए ये भी हमें ही देखना होता है.

    पिछले दिनों एक पुस्तक के विमोचन और उससे जुड़ी गतिविधियों व लोगों पर जिस तरह से रिपोर्टिंग हुई और जिस तरह की भाषा का प्रयोग किया गया, वो शर्मनाक रहा.

    कोई भी कार्यक्रम उस में शिरकत करने वाले हर इंसान को पसंद आये ऐसा हमेशा संभव नहीं है. मगर क्या इसका ये अर्थ निकलना सही है ? कि वो कार्यक्रम किसी को भी पसंद नहीं आया होगा. मेरी समझ में ये गलत है, आप अपनी राय दें !!

    अब क्योंकि मैं खुद इस समारोह में उपस्थित था, इसलिए पढ़ कर आश्चर्य हुआ, ये सोच कर अजीब लगा कि – जो उस रिपोर्ट को पढ़ेगा, उसे आदतन सच ही मानेगा. आखिर क्या वजह है कि उसे बातों को तोड़ मरोड़ कर, अनावश्यक रूप से सनसनीखेज बनाकर बताया जाए.

    साहित्य को इस तरह के ओछे तरीकों से दूर रखना हमारा कर्तव्य है अन्यथा आने वाले कल को जवाब देना मुश्किल होगा .

    साहित्य मजाक नहीं है और ना ही साहित्यकार या अन्य कोई भी इंसान. हमें ये हक नहीं है कि हम किसी फ़िल्मी गाने को, जो द्विअर्थी हो उसके साथ किसी व्यक्ति-विशेष का नाम जोड़कर संवाद करें ... क्या ये संवाद का तरीका है? जवाब दें !!

    आगे बढ़ने के लिए मेहनत करना बहुत अच्छी बात होती है, लेकिन दिशा का ध्यान रखना उस मेहनत से भी ज्यादा ज़रूरी है. आपस में मतभेद होना एक साधारण बात है लेकिन क्या उस मतभेद को अनावश्यक तूल देना उचित है ? जवाब दें !!

    यदि कोई गलत राह पर जा रहा हो और आप उसे प्रोत्साहित करें, क्या ये मित्रता की निशानी है ? जवाब दें !!

    ऐसे प्रकरण ही हैं जो साहित्य से लोगों को दूर कर रहे हैं ... क्योंकि साहित्य का सौन्दर्य और आकर्षण साहित्यिक रूप में ही है, ना कि किसी सस्ते खबरी अख़बार या टीवी चैनल के रूप में .

    ये सारे विचार उस दिन से ज़ेहन को शांत नहीं होने दे रहे हैं, जब से ये विवाद उठा है ... और कारण ये है कि इससे जुड़े सारे ही लोग प्रिय हैं और सबको अभी बहुत लम्बा सफ़र तय करना है...

    सफर साथ मिलकर ख़ुशी से तय किया जाए तो मंजिल पर पहुँच कर मिलने वाली ख़ुशी चौगुनी होगी... वर्ना अकेले में क्या कोई ख़ुशी मनाई जाती है ?

एक टिप्पणी भेजें

2 टिप्पणियाँ

  1. ऐसे कार्यक्रम अनौपचारिक हो जाते हैं क्योंकि सब लोग आपस में परिचित होते हैं.कई बार कुछ हल्के मूड में कह दिया जाता है.उसका अलग अर्थ निकाल कर या बात को गलत मोड़ देकर सनसनी पैदा करना ठीक नहीं है. साहित्य को काजल की कोठरी बनने से रोका जाना चाहिए मगर सब ख़त्म नहीं हुआ है. कतिपय गंभीर लेखक और आलोचक मौजूद हैं. इस प्रकार की घटनाओं से विचलित होने की आवश्यकता नहीं है.

    जवाब देंहटाएं
  2. मै आदरणीया सरिता जी के कथ्य से बहुत हद तक सहमत हूँ।
    सादर

    जवाब देंहटाएं

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story: कोई रिश्ता ना होगा तब — नीलिमा शर्मा की कहानी
विडियो में कविता: कौन जो बतलाये सच  — गिरधर राठी
इरफ़ान ख़ान, गहरी आंखों और समंदर-सी प्रतिभा वाला कलाकार  — यूनुस ख़ान
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
परिन्दों का लौटना: उर्मिला शिरीष की भावुक प्रेम कहानी 2025
Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
रेणु हुसैन की 5 गज़लें और परिचय: प्रेम और संवेदना की शायरी | Shabdankan
एक पेड़ की मौत: अलका सरावगी की हिंदी कहानी | 2025 पर्यावरण चेतना
द ग्रेट कंचना सर्कस: मृदुला गर्ग की भूमिका - विश्वास पाटील की साहसिक कथा