सुमन कुमारी
बीएड, एम.ए, हिंदी जर्नलिज्म (डिप्लोमा )विभिन्न कविता 'लोकसत्य अखबार' 'युध्दरत आम आदमी पत्रिका' 'संघर्ष संवाद पत्रिका' आदि में कविता, कहानी व लेख प्रकाशित ।246,गली नंबर - 9, ब्लाक - एफ, मोरलबन्द, बदरपुर,नई दिल्ली -110044ईमेल - aashisumankumari@gmail.com
ट्रैफिक रेड सिग्नल
छोटे-छोटे हाथ
नन्हें-नन्हें कदम,
खुद ब खुद बढ़ जाते हैं हर बार
ट्रैफिक रेड सिग्नल की ओर
रेट हुए शब्दों में अपनी
लाचारी दिखाते हैं
उम्मीद भरी आँखों से पैसे
रूप भीख पाने को ललचाती है
थेथर रूपी स्वभाव बनाये
चुम्बक समान चिपके जाते हैं
कुछ दया कर, कुछ पीछा छुड़ाने के लिए
दो-चार पैसे
उनके हाथ पर रख देते हैं
कुछ उन्हे दुत्कार अपने से दूर कर देते हैं
ये दुत्कार उन्हें निराश या नाउम्मीद नहीं करती
अगले ही पल
वह नन्हें-नन्हें कदम, छोटे-छोटे हाथ
ट्रैफिक रेड सिग्नल कतार में नज़र आते हैं
नाम, शोहरत, और पैसा
आज
बिकते हैं बाजारों में
मिलते हैं कुछ पल कुछ ही
मिनटों में ...
बस
आपको इतना करना हैं
किसी नाम-चिन्ह शख्सियत
से खुद का परिचय कराना है
उससे मेल-जोल बढ़ाने के साथ
उसकी हाँ में हाँ मिलाना है
इंसानियत को भूल कर
खुद की आत्मा को बेच डालो
खुद ही खुद को
गिरवी रख डालो
फिर देखो
उस शख्सियत का साथ आपको
पहचान दिलाएगा
नामी-गिरामी नामो में
आपका नाम गिना जायेगा
कल फिर कोई
इस बाजार में
नाम, शोहरत और
पैसा पाने की दौड़ में
नजर आएगा ...
दर्द
खुद की कुचलन के दर्द की तड़पन को
हर माँ, बेटी, बहन, अपने भीतर महसूस करती
अपने अस्तिव को बचाने के लिए पल-पल
अंदर ही अंदर जलती
आक्रोश हैं, गुस्सा हैं, नफरत है
वो बुझाये कैसे
डर समाए हुए हैं खौफ समाये हुए हैं
कब किसी इन्सान रूपी
दरिन्दे से सामना हो जाये
कब हमसे हमें नोच डाले
चेहरे
चारों तरफ हैं बनावटी चेहरों का
जमावड़ा
जहाँ
दिन के उजाले में खुद को
मोह-माया से दूर दिखाते
वहीँ रात के अँधेरे में
मोह-माया के पीछे
भूखे जंगली कुत्तों की तरह एक-दूसरे
का शिकार करते
हर कोई
अपने सामने वाले को मूर्ख समझता
हर बात में उसका स्वार्थीपन झलकता
जितने ज्यादा रईस लोग
उतनी ही ज्यादा उनमे कुंठा
दिन-प्रतिदिन होता ऐसे
लोगो से सामना
दूसरों का खून चूसते
और उन्ही का शोषण कर
अपने को सींचते
बारिश
बारिश का वो पल
जिसमे तन था भीगा
मन था भीगा
फिर भी
कुछ रह गया था
अधूरा भीगने से
कुछ अधूरा रह गया था बारिश की
छुअन से
नाम
तपती धूप में मेरे लिए छाया बन जाता
मेरे गिरते हुए आंसुओ को
मुस्कराहट में बदल जाता
हर गम को मेरे
अपने स्पर्श से मिटा जाता
क्या नाम हैं इस
रिश्ते का
जो
बेनाम बन साथ मेरे रहता
मैं
मन के भीतर एक सोच
कचोटती है
मैं क्या हूँ
और
क्या होउंगी कल
ये एक सवाल है
जिसने सवाल बन
ज़िन्दगी को सवाल
बना दिया
मौत और ज़िन्दगी
कौन कहता है
मौत डरने की चीज़ है
हम कहते हैं
डरने की चीज़ तो ज़िन्दगी है
मौत तो
पल में आती, चली जाती है
मगर
ज़िन्दगी आती तो है पल में
जाती देर में है
पूछो उन लोगो से तुम
वह ज़िन्दगी भी क्या
ज़िन्दगी है
जिनके राह में सदैव भरा हो कांटा
हर दिन हो ग़मों और दुखों का सामना
जीते हो जो हर क्षण
घुट-घुटकर घुट-घुटकर
अपने नसीब पर
रो-रोकर रो-रोकर
जिसे हर लम्हा ज़िन्दगी से दूर करता
वो दिल मौत की चाहत करता
पूछो उन लोगो से तुम
जो ज़िन्दगी भर करता संघर्ष
लेकिन
उसे मिलता न एक पल का हर्ष
पूरी न हो मन की आशा
लगे सारा जीवन निराश
भाग्य को कोसता
अपने पर रोता
मौत को अपना हमसफ़र कहता
पूछो उन लोगो से तुम
दिन भर में जिसे न मिलती एक रोटी
शरद ऋतू में
न मिलती एक लंगोटी
घर का पता नहीं
रहते फुटपाथ पर
ज़िन्दगी का पता नहीं
कब आ जाये मौत पता नहीं
ज़िन्दगी से ज्यादा
मौत से करता प्यार
तो क्यों
मौत से डरता संसार
ना भागो मौत से तुम
ना डरो यह तो हैं तुम्हारी ही परछाई
2 टिप्पणियाँ
wakai !
जवाब देंहटाएंwakai @
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