
पिटाई को लेकर मैं बचपन से ही सेंटी रही हूं। तब देखती थी कि ज्यादातर लड़के-लड़कियों की पिटाई उनके बाप करते हैं लेकिन हमारे यहां उल्टी गंगा बहती थी, तीनों बहन-भाई मौके-बेमौके मां से ही पिटते थे। जब कभी पिताजी की मौजूदगी में यह शुभ कार्य संपन्न होता तो उनका चेहरा देखते ही बनता था। उनकी उपस्थिति में मां कुछ ज्यादा ही निर्मम हो उठतीं, जैसे बता रही हों कि ऎसे अनुशासित किया जाता है बच्चों को। और वे अपने बच्चों की ठुकाई कुछ इस भाव से देखते थे जैसे किसी कसाई की दुकान पर खड़े होकर बकरा हलाल होते हुए देख रहे हों। हमें पिटते हुए इतनी तकलीफ नहीं होती होगी जितनी उन्हे मूकदर्शक के रूप में होती दिखती थी। और मां का गुस्सा ऎसा कि कोई बीच में पड़ने की हिम्मत नही जुटा पाता। जाने क्यों बुरी तरह पसीजते और विगलित होते पापा को देख कर मुझे मन ही मन बहुत कोफ़्त होती। समझ में नहीं आता था कि मां के बजाए वे क्यों नहीं करते हमारी मरम्मत !क्यों ऎसे डरे डरे से हो जाते हैं थे ?सच कहती हूं ऎसी ही खीज मुझे रवी पर होती है। ठीक है तुम बहुत शरीफ़ आदमी हो, पराई बहू-बेटियों को नहीं ताकते हो मगर हो तो मर्द !क्यों हर समय भीगी बिल्ली बने रहते हो। अच्छा यार एक खतरनाक सिमली नजर आ रही है। यह कम्बख्त रवी कुछ कुछ मेरे बाप जैसा लगता है ना ?कुछ कुछ नहीं बहुत कुछ ! शायद उसकी तरफ़ मेरा खिंचाव इस करके रहा हो। नहीं तो कहां वो कहां मैं , हम दोनो के एटीट्यूड में जमीन आसमान का फ़र्क है फिर भी हम एक सो सो रिलेशनशिप का का चक्कर चलाए हुए हैं भले ही उसमें खासा लोचा हो।
लोचा ये है ना कि रवी जो है भले ही सोणा जेया मुंडा हो लेकिन मैरिज मैटीरियल नहीं है। हो सकता है कि इसके साथ शादी करके मैं खुश रहूं मगर वह फोकट की खुशी होगी। उसमें कोई बड़ा सुख मिलने वाला नहीं होगा। कारण, रवी की एंबीशंस का दायरा बड़ा छोटा है। ठीक वन बी एच के फ्लैट की तरह। यह उसी में मस्त रहेगा, एक दो बच्चे पैदा करके उसी में काट देगा जिंदगी। बताइये कि ऎसी सोच और समझ से कहां तक समझौता किया जा सकता है !अब ऎसा भी नहीं है कि मैं कोई महल-दोमहले की आस में जीने वाली लड़की हूं (अरे ३२ की हो गई तो क्या, शादी होए तक तो लड़की ही कहलाउंगी कि नहीं ?)लेकिन यार कुछ तो साला ठाठ-बाट होना चाहिये जिंदगी में कि नहीं ?लेकिन इसमें कुछ है जो मुझे लगाए हुए है। कभी कभी तो इस पर इतना प्यार उमड़ आता है कि आपसे क्या कहूं ! एक बार तो मैं ऎसी पागल हो गई कि उसको बाहों में भर कर चूमने जा रही थी कि इस हरामखोर ने अपना मुंह मेरे सीने में छुपा लिया। एकदम बच्चों की तरह। इनोसेंटली एंड डिवाइन….. और सच बताती हूं कि एक बिलकुल नई तरह की , अनोखी फीलिंग मेरे अंदर से उठी और मेरा मन जैसे कमल के फूल के तरह खिल उठा। उस दिन बड़ी देर तक यह मुझसे चिपका रहा। मेरा मन कर रहा था कि उसका मुंह ऊपर उठा कर उसकी आंखों में झांक कर देखूं अंदर क्या चल रहा है लेकिन समर्पण के उस दुर्लभ क्षण को खो देने को मन कहां तैयार था। बाद में लगा कि उसे डिस्टर्ब न करके ठीक ही किया। जब उसने अंतोत्गत्वा वहां से मुंह उठाया तो कुर्ते पर गीलापन महसूस हुआ। क्या था वह, आंसू या सैलाइवा या दोनों ?कह नहीं सकती। हो सकता है मेरी देह ने ही रिएक्ट किया हो क्योंकि जब वह वहां था तो मेरे सीने में जैसे कोई सैलाब लहरा रहा था।
जैसे कांच के बड़े बर्तन को सावधानी से उठाते हैं वैसे ही वह सुंदर मुख दोनों हथेलियों में थाम कर, उसके होठों को चूम लिया मैंने। उसकी आंखें किसी स्वप्न में डूबी थीं। अपने चुंबन की आवेगहीनता पर मुझे आश्चर्य नहीं हुआ। छोटे भाई को , जब वह बच्चा था, हम बहनें इसी तरह चूमा करती थीं। – वह निश्चित रूप से एक खूबसूरत क्षण था मगर इस रिलेशनशिप के प्रति मन में संदेह का बीज भी तभी पड़ा। देह राग की ऎसी परिणिति किसी भी लड़की के मन में बदलाव लाए बिना नहीं रहेगी। – ऎसा ही प्यार करना है तो अरविंद (छोटा भाई) है ना, इसकी क्या जरूरत है? मैंने सोचा। हम लोग अपनी भावनाओं को छुपाए रखना कितनी अच्छी तरह से जानती हैं, कई रोज तक इसे पता ही नहीं चला। वैसे भी ज्यादा सटने चिपकने की इसे आदत नहीं है, जो कुछ करना होता है वह मेरे ही हिस्से में आता है। देर सबेर उसकी समझ में यह बात आ ही गई कि देयर इज समथिंग मिसिंग बिटवीन अस। –यूं बहुत सेंसेटिव है ये लड़का। जरूर हर्ट हुअ होगा मगर जाहिर नहीं होने दिया। पेशेंस भी बहुत है , मेरी तरह हमेशा हड़बड़ी में नहीं रहता। –एक छुट्टी के दिन हम बुद्धा जयंती गार्डन गए, मिनी पिकनिक पर। खाना पीना हो चुका तो इसने अपनी जिंदगी की किताब के कुछ पन्ने उलट पलट कर मुझे सुनाए। खास तौर पर अपने बचपन के बारे में, वह अकेली संतान था। मां की आंखों का तारा। उसे याद है मां उसे पांच बरस की उम्र तक लड़कियों की तरह सजाती संवारती थी। मुंडन देर से होने के कारण बड़े प्यार से उसकी दो चोटियां गूंथी जाती थीं। पाउडर, बिंदी, काजल, लाल हरे रिबन ही नहीं नन्ही नन्ही चूड़ियां और पुकारने का नाम गुड़िया। पिता इस सनक पर झल्लाते थे। मना करते थे कि इसे लड़कियों की तरह ट्रीट मत करो, तुम समझती नहीं हो, आगे जाकर मुश्किल होगी लेकिन मां का मन !उन्हे औलाद क्या मिली एक खिलौना मिल गया था। आज ब्रेस्ट फीडिंग के इतने फायदे बताए जाते हैं लेकिन मां ने डे वन से जो अपना दूध पिलाना शुरू किया तो जैसे उसका कोई अंत ही न था। न उनकी तरफ़ से न उनकी गुड़िया की तरफ़ से। रवी ने छटे साल तक मां का दूध पिया था। इसे लोगों ने विसंगति माना और लगभग सभी रिश्तेदार महिलाओं ने मां को टोका , डांटा यहां तक कि मजाक भी उड़ाया लेकिन मां बेटे ने किसी की परवाह नहीं की। छ्ठे साल में जब वह खूब लंबा हो गया और गुड़िया के बजाए गुड्डू कहलाने लगा तो उलझन होने लगी। अब वह किसी तरह से भी गोद में तो समाता नही था इसलिए बिस्तर पर लेट कर फीडिंग करनी पड़ती। गुड्डू ठहरा अबोध मगर अब मां को शरम आने लगी। दूध छुड़ाने के लिए आदिम तरकीब आजमाई गई , कुचाग्रों पर नीम की पत्ती पीस कर लगाई गई, तरह तरह की दूध की बोतलें आजमाई गईं मगर लाल स्तनपान छोड़ने को तैय्यार नहीं हुआ। नीम लगाओ या और कोई कड़वा आलेप वह नीलकंठ की तरह उसे भी पी जाता। सब इस विकट स्थिति के लिए मां को दोषी ठहराते और नये नये उपाय सुझाते। यह अभियान लंबे समय तक लगभग युद्धस्तर पर चला और किसी तरह रो पीट कर अपने अंजाम तक पहुंचा।

मैंने चिढ़कर कहा , ’क्यों , क्या काम है तुम्हे उनसे ? क्या उनसे मिल कर मेरा हाथ मांगना चाहते हो?’जानते हैं उसने क्या कहा - ‘अरे आप भी खूब मजाक करती हैं मेधाजी ! मैं तो उनके पैर छूने के लिए आना चाहता हूं। आप नहीं जानतीं ट्यूशन पढ़ाने वाले टीचर्स के लिए मेरे मन में कितनी इज्जत है। मेरा तो बेड़ा ही इन्होने पार लगाया है, नहीं तो शायद मैं हाईस्कूल से आगे पढ़ ही नहीं पाता, इंजीनियरिंग और एम बी ए तो दूर की बात है। मैथ्स के नाम से ही मेरे प्राण सूखते थे। ट्रिग्नोमेट्री, कैलकुलस और कोआर्डिनेट मेरे भेजे में उतरती ही नहीं थीं लेकिन मेरे ट्यूटर्स ने मुझे इस गहरी नदी में तैरना सिखाया और हमेशा हमेशा के लिए मेरे मन से मैथ्स का डर निकाल दिया। मेधाजी ! ये ट्यूटर्स जो हैं ये कुम्हार की तरह अपने स्टूडेंट्स को ट्यूशन की चाक पर गढ़ते हैं और अक्सर मिट्टी को सोना बना देते हैं। ‘
अब बताइये ऎसे घामड़ को मै क्या कहती। सो एक दिन ले गई अपने पूज्य पिताजी से मिलवाने। इसके सौभाग्य से उस समय किसी स्टूडेंट के एब्सेंट हो जाने से पापा खाली बैठे थे। मैंने परिचय कराया और इसने पांव छुए , छुए क्या पैर कस के पकड़ लिए और ऎसे पकड़े कि आज तक छोड़े नहीं हैं। दोनों एक दूसरे से मिलकर बहुत खुश हुए , मैं अंदर चाय लाने के लिए क्या गई मानो रवी की प्राथमिकताओं से ही बाहर हो गई। ….छोड़िये आपको ज्यादा डिटेल्स बता कर क्यों बोर करूं, इन नट शैल बता रही हूं कि रवी का पापा से एक विचित्र तरह का रोमांस चलना शुरू हो गया। एक वो दिन था और एक आज का दिन है दोनों को एक दूसरे के बिना चैन नहीं पड़ता। –कई बार तो ऎसा होता है कि आफिस से देर से लौटने पर देखा कि रवी जाने कब से आया हुआ है और पापा से बातों में मशगूल है। मैं फ्रेश व्रेश होकर आती और इंतजार में बेवकूफ़ की तरह बैठी मन ही मन भुनभुनाया करती कि कब इन दोनों की बातें खत्म हों और हम उस दड़बे से बाहर निकलें। मेरी मां को शायद रवी ज्यादा पसंद नहीं आया हो क्योंकि वह उसके सामने आने से बचती थी। चाय ले जाने के लिए भी मुझे ही अंदर बुलाती, कहती , हमें अच्छा नहीं लगता जिस तिस के सामने सिर उघाड़े जाना। खैर यह तो अपनी अपनी पसंद है।

उन्होने कुछ देर बाद जैसे ट्रांस से बाहर आकर कहा , ’मेधा , यहां मेरे पास आकर बैठो। मैं तुम्हे ठीक से नहीं देख पा रही हूं। ‘ अब मैं क्या करती, उठ कर गई और उनके पास जा बैठी। उन्होने प्यार भरी नजर डाली और अपने दोनों हाथों में मेरे चेहरे को थाम कर देखने लगीं। उन्होने मेरी आंखें देखीं, होंठ देखे और मेरा सबसे बड़ा प्लस पांइंट मेरे लंबे रेशमी बाल छुए, उन्हे सहलाया, मेरे सिर को सूंघा (थैंकफुली मैंने उसी सुब्ह शैंपू किया था) फिर जाने कब तक मेरी गर्दन के कर्व्स को निहारती रहीं। सच कहती हूं उस लेडी के स्पर्श में जादू था वर्ना मैं उनका हाथ झटक चुकी होती। मैं बचपन से ही बहुत टच सेंसेटिव हूं, किसी ने छुआ और मेरे रोंए खड़े होने लगते हैं (ये तो शुक्र है कि रवी ज्यादा पकड़ने-धकड़ने वाला बाय फ्रेंड नहीं है। शायद इसलिए कि उसकी हथेली में पसीना जल्दी आने लगता है। ‘माइ गाड! गीली हथेली का टच कितना थ्रिलिंग होता है, नेचुरल लुब्रिकेंट !बट दैट इज अनदर स्टोरी…) हां तो मैं बता रही थी कि रवी की माम ने जिस तरह मेरे रूप को खुली आंखों से देखा-परखा-छुआ , वह मेरे लिए एकदम नया अनुभव था। इससे पहले किसी ने भी ऎसे मुग्धभाव से न तो मुझे देखा था न छुआ था। पहली बार किसी स्पर्श से देह की कैमेस्ट्री में होने वाले चेन रिएक्शन को अपने अंदर घटित होते हुए महसूस किया। उनकी निगाह वह थी जो किसी बेनूर समझी जाने वाली नरगिस पर हजारों साल बाद पड़ती है। मैं मरी जा रही थी उन लबों से यह सुनने के लिए कि, तुम बहुत सुंदर हो !मैं अपना सारा नकचढ़ापन और स्मार्टनेस भूल कर किसी बेवकूफ लड़की की तरह अपने रूप की तारीफ़ सुनने को सांस रोक कर बैठी थी। उन्होने कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह दिया था, यह मुझे जल्दी ही रिएलाइज हो गया और सच कह रही हूं अपने आप पर इतराने का मन होने लगा। इस बीच उन्होने मेरे बाल खोल दिए थे और शायद उन्हे नये सिरे से बांधने के मूड में थीं कि उनका सपूत चाय की ट्रे लेकर हाजिर हो गया। माता ने आज्ञा दी- चाय की ट्रे रखकर ड्रेसिंग टेबुल से मेरे कंघे उठा लाओ !

उसने हैरान होकर अविश्वास से मेरी ओर देखा , जैसे मैं कोई मजाक कर रही होऊं फिर कुछ गिरी हुई आवाज में कहा, ’नहीं मेधाजी ऎसी कोई बात नहीं है। आज तक हमें ऎसा नहीं लगा कि यह सोफा अच्छा नहीं दिखता…इसके बारे में कभी सोचा ही नहीं। अब आप कहती हैं तो कुछ करेंगे …। ‘मैं समझ गई कि अगर, किसी तरह मजबूरी में (जिसके बहुत आसार हैं) इस शख्स से शादी करनी ही पड़ गई तो इसको सिखाने-पढ़ाने में बहुत सिर खपाना पड़ेगा। कोई एस्थेटिक सेंस ही नहीं है इन लोगों में , यह पढ़ लिख जरूर गया है, अच्छी नौकरी भी पा गया है मगर टेस्ट डवलप करने का मौका ही नहीं मिला तो इसका भी क्या कसूर है !मुझे भी इसने इसी तरह सेलेक्ट किया होगा, जैसे सोफा अच्छा लगे न लगे कोई फर्क नहीं पड़ता ऎसे ही गर्ल्फ्रेंड सुंदर हो या नहीं हो, इसकी बला से। फिर दूसरे ही क्षण मुझे अपने घर के खूसट और उससे भी बुरे सोफे की याद आ गई तो मैं मन ही मन शर्मिंदा हुई और बात बदल कर बोली, ’आंटी सच में बहुत स्वीट हैं, इतनी केयर तो मेरी मां ने भी कभी नहीं की। हम दोनों बहनें एक दूसरे के बाल काढ़ लेती थीं। मम्मी को तो घर और बाजार से कभी फुरसत ही नहीं होती थी। ‘यह सुन कर उसका चेहरा खिल उठा, ’मैंने आपको बताया था ना कि बचपन में मम्मी मुझे लड़की की तरह सजा कर रखतीं थीं। बाल काढ़ने का तो उन्हे शौक है। ‘ मेरा घर आ गया था और मैं उसे अंदर बुलाने के मूड में बिल्कुल नहीं थी, कार से उतरते ही मैंने बाइ किया तो वह बेशर्मी से बोला, ’रुकिये, सोच रहा हूं कि जब यहां तक आ ही गया तो एक बार पापा को हेलो कर आऊं। ‘ वह नीचे उतर आया और मेरी ओर देखे बिना दरवाजे की ओर बढ़ गया। मैं जल भुन कर खाक हो गई और गंभीरता से रवी की सुटेबिलटी पर नये सिरे से विचार करने लगी।
मेरा सिक्स्थ सेंस कह रहा था कि हमारे रिलेशनशिप एक खतरनाक मोड़ पर पहुंच चुके है। मुझे अब फायर फाइटिंग के लिए कमर कस लेनी चाहिये नहीं तो फिर बहुत देर हो जाएगी और पछताने के अलावा कुछ हाथ नहीं लगेगा। जिंदगी भर। गुस्से में भरी हुई मैं अंदर गई तो देखा वे दोनो इतना चमी होकर बतिया रहे थे कि किसी तीसरे की मौजूदगी का उन्हे अहसास ही नहीं हुआ। कर लो जिसे जो करना हो। उन्हे उनके हाल पर छोड़कर मैं चल दी। - मम्मी सामने पड़ीं तो मेरा मन किया कि और मांओं की की तरह ये भी चिंतित होकर मुझसे पूछें कि इतनी देर तक कहां थी मुंहजली , तुझे अपने खानदान के इज्जत का बिल्कुल भी ख्याल नहीं है ? लेकिन वो मेरी मम्मी ही क्या हुईं जो ऎसी फाल्तू की चिंता में घुली जाएं। उन्हे रत्ती भर भी फिक्र नहीं थी कि लड़की खुलेआम एक जवान लड़के के साथ घूमा करती है , कल को कुछ हो गया तो किसी को भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे। …बाद में अपनी इस अल्हड़ सोच पर बड़ी हंसी आई। ये साली हिंदी फिल्में देख देख कर नई पीढ़ी का मानसिक विकास कैसे थम गया है इसका मुझसे बेहतर नमूना और कहां मिलेगा !
चिंतित होना तो दूर उन्होने मुस्कुराते हुए धीरे से पूछा, ’क्या रवि आए हैं ?तुम्हारे पापा लगता है उन्ही का इंतजार कर रहे थे। नौकर से स्वीट्स और समोसे मंगा कर बैठे थे। ‘ सुन के ना मेरा तो दिमाग ही घूम गया। कितना घुन्ना है ये रवी का बच्चा !इसने जरा भी जाहिर नहीं किया कि यह मुलाकात प्रीअरेंज्ड है। खैर अपने मन के भाव छुपाते हुए मैंने बात को दूसरी तरफ़ मोड़ दिया , ’मम्मी मैं बहुत दिनों से एक बात कहना चाह रही हूं, आप सुनेंगी ?’उन्होने जाने क्या समझा कि एकदम सीरियस होकर बोलीं, ’क्या बात है मेधा? इस तरह क्यों बोल रही हो !हमने तो हमेशा अपने बच्चों की खुशी नाखुशी को सबसे ऊपर रखा है। राधिका ने अपना दूल्हा पसंद कर लिया तो हमने कोई ऎतराज किया ?’-‘एल्लो, ये तो तैयार बैठी हैं !’मैंने मन ही मन सोचा, ’भगवान !कैसे मां बाप पकड़ा दिये हैं आपने भी मुझे !’अपनी खीझ को दरकिनार कर जबर्दस्ती मुस्कुराते हुए मैंने कहा , ’नहीं मम्मी वो बात नहीं है। मैं यह कहना चाह रही थी कि हमें एक अच्छा सा नया सोफा ले लेना चाहिये। कोई आ बैठता है तो इस सोफे की वजह से कितनी किरकिरी होती है कि मैं कह नहीं सकती। मम्मी प्लीज चेंज दिस सोफा फार गाड्स सेक !’
उन्होने ठंडी सांस छोड कर सिर हिलाते हुए पूछा , ’क्यों इस सोफे में क्या बुराई है ?अच्छा खासा तो है। अभी दो साल पहले ही तो इसे रिनोवेट कराया था। रेक्सीन का कलर खुद तुमने पसंद किया था। अभी इसकी एक्को टांग नहीं हिली है फिर इसे निकाल फेंकने की क्या तुक है ?’
सुन कर माथा पीटने को दिल किया। -‘जो लोग अपना सड़ा सोफा बदलने को भी मानसिक रूप से तैयार नहीं हैं मैं क्यों उनकी जिदगी को बदलने के ख्वाब देखा करती हूं !’मैंने अपने आप को धिक्कारा। कुछ ही देर में दूसरी बार यह सोफा पुराण छेड़कर मुझे अकल आ गई। मन कर रहा था कि चीख कर कहूं , ’भाड़ में जाओ मेरी बला से, चिपके रही जिंदगी भर अपने अपने चीकट सोफों से !मगर मुझसे यह उम्मीद मत रखना कि मैं इस या उस सोफे को झाड़ते पोंछते बिताऊंगी अपनी जिंदगी। अरे ३२ साल बिता दिए , ये क्या कम है !’

रवी में और चाहे जो कमी हो आत्मविश्वास खूब भरा है। मेरी उत्तेजना और हैरानी को दरकिनार कर वह बोला, ’मैं नौकरी में कभी भी इंटरेस्टेड नहीं था। शुरू से ही मेरे मन में अपना खुद का कुछ करने की एंबीशन रही है लेकिन इनवेस्टमेंट नहीं जुट पा रहा था। मेरे पापा ने तो टके सा जवाब दे दिया, शायद उनके पास इतना पैसा है भी नहीं। कई लोगों से मैंने इस प्रोजेक्ट को डिस्कस किया, मोटिवेट किया मगर कोई पैसा लगाने को तैयार नहीं हुआ। तब तुम्हारे पापा से इंट्रो हुआ और सुनते ही वे उछल पड़े, बोले मैं जाने कब से एक पार्टनर की तलाश में था। मेरे पास ज्यादातर लड़के लड़कियां ऎसे ही आते हैं जिन्हे इंजीनियरिंग एडमीशन की तैयारी करनी होती है। मैं सबको एकोमडेट नहीं कर पाता , बहुत से निराश होकर लौट जाते हैं क्योंकि मेरे स्टूडेंट्स का सक्सेस रेट बहुत अच्छा है। –अब मोटा मोटी प्लान यह है कि फिलहाल किसी अच्छी लोकेशन में किराए पर बिल्डिंग लेकर कोचिंग इंस्टीच्यूट खोलेंगे, फिल्हाल मैथ्स पापा, फिजिक्स मैं और कैमेस्ट्री मेरा एक बैचमेट सम्हालेगा और धीरे धीरे बाकी फैकल्टी रिक्रूट करते जाएंगे। मेधाजी मेरी खुशकिस्मती है कि आपके थ्रू पापा से मुलाकात हो गई और एक सौलिड प्लान बन गया। ‘
यह सब सुन कर मेरा मन बुझ गया। ३२साल तक दिन रात ट्यूशन के धंधे में लगे रहने वाले पिता को हमने किस तरह झेला यह हमारा दिल ही जानता था। मेरी किस्मत देखिये अब एक संभावित पति भी उसी नस्ल का मिल गया था। मेरा चेहरा उतरते देख उसने बात सम्हालने की कोशिश की, ’मेधाजी, यह सब अभी प्लानिंग स्टेज पर ही है। आपसे पूछ कर ही इसमें हाथ डालूंगा। मगर एक बात समझ लीजिये, इस धंधे में इतना पैसा है कि आप शायद कल्पना भी न कर पायें। इन एनी केस इस प्रोजेक्ट में आप भी पार्टनर होंगी। एडमिनिस्ट्रेशन और फाइनेंस आप ही देखेंगी। बस दुआ कीजिए कि सब कुछ राइट ट्रैक पर चलता रहे। ‘उसने यह कहते हुए अपनी घड़ी देखी , ’चलिए, घर चलते हैं। पापा इंतजार कर रहे होंगे। अरे मैं तो कहना ही भूल गया आज मम्मी ने आपको बुलाया है। ‘कहते हुए वह उठ खड़ा हुआ।
-“बैठ जाओ रवी !यह सब क्या है ?इतनी लंबी प्लानिंग करते हुए तुम्हें एक बार भी मुझसे कंसल्ट करने की जरूरत महसूस नहीं हुई?सब कुछ तै करके यह कहने का क्या मतलब रह जाता कि मुझसे पूछ कर ही इसमें हाथ डालोगे?हाथ तो तुम डाल ही चुके हो। और तो और मुझे जो करना है उसका भी एकतरफा फैसला तुमने ले लिया है। रवी, हाउ यू डेयर ! तुमने कैसे सोच लिया कि तुम्हारे कहने पर मैं अपनी नौकरी छोड़ दूंगी ?बल्कि मैं तो कतई इस फेवर में नहीं हूं कि तुम अपना अच्छा खासा जाब छोड़ कर पापा की तरह घरघुसरे बन जाओ। हो सकता है कि इसमें कुछ ज्यादा कमाई होती हो मगर आज से दस साल, बीस साल बाद की सोचो कि इस नौकरी में तुम कहां पहुंच जाओगे !मुझे पूरा विश्वास है कि तुम उससे भी पहले किसी कंपनी के सी ई ओ हो चुकोगे। और समाज में इस कोचिंग के धंधे की क्या रेपुटेशन जरा पता तो कर लो!....रियली आइ एम वेरी मच डिसअपाइंटेड !तुमने मुझे बिल्कुल भी कांफीडेंस में नहीं लिया, मैं जानती हूं कि पापा ने तुम्हारा ब्रेनवाश कर दिया। एनी हाऊ प्लीज कीप मी आउट आफ दिस!”

मैं कुछ देर अकेले बैठना चाहती थी, सैल्फ एनेलिसिस और सैल्फ एप्राइजल के लिए। मुझे लग रहा था जैसे मैं समय की नदी की तेज धार में बही जा रही हूं। यह मुझे कहां जा पटकेगी इसका कुछ पता नहीं है। मैंने कल्पना में अपने दोनों हाथों से किनारे के एक वृक्ष की पानी में निकली हुई जड़ को कस कर पकड लिया और उस बहाव में कुछ देर के लिए ठहर गई। मैं दर असल सदमे में थी। जैसे आसमान से गिरी होऊं। सचाई यह थी कि रवी की तरह ही मैंने भी एक प्लान बना लिया था और अभी तक किसी को उसकी भनक नहीं लगने दी थी। भले ही हमारे बीच कुछ भी इमोशनल या सेंटी न रहा हो मगर कुछ था जो मुझे उसकी ओर खींचता था। मैं चाहे कितने ही नखरे दिखाती रही होऊं मगर हर पल हर घड़ी यह अहसास बना रहता था कि मैं ३२ साल की हो गई हूं और तेजी से रौंग साइड आफ थर्टी की तरफ बढ़ रही हूं और यह मेधा जी, मेधा जी करने वाला गुड़िया टर्न्ड गुड्डा भले ही ज्यादा डैशिंग न हो मगर एक एश्योर्ड फ्यूचर तो है ही। अपनी मधुर कल्पनाओं में मैं सी ई ओ की बीबी बन कर लंबी कार में तन कर बैठती थी। यह दृष्य चित्रित किया जा सकता तो उसमें मुझे देख कर पहचानना मुश्किल होता। समझे आप !....वेटर ब्लैक काफी रख गया , उसकी कड़वाहट मुझे भाई। जल्दी ही कैफीन ने अपना असर दिखाया और मेरा खुराफाती दिमाग बूट अप हो गया। – प्लान बी , प्लान सी और प्लान डी बनने लगे। मुझे लग रहा था कि अभी मेरे पास समय है……. लेकिन मन की गहराइयों में छुपा संदेह भी बार बार अपना फन उठा रहा था। अच्छी बात यह थी कि अभी मेरे सारे आप्शन ओपिन थे। ….लेकिन कब तक ? .....वाशबेसिन जाकर मैंने चेहरे पर पानी के छींटे मारे। शीशे में मुंह देखा तो लगा जैसे हवाइयां उड़ी हुई हों। सबसे खराब हालत थी मेरे बालों की उनमें बेइंतहा रूखापन था, जरा भी चमक नहीं थी। ऎसा लग रहा था जैसे चील का घोंसला मेरे सिर पर रखा हो। –हाय राम ! ये रवी कैसे टोलरेट करता है मेरे जैसी बेशऊर लड़की को। साले को कोई और मिलेगी भी तो नहीं।
वहां से निकली तो खाली खाली लग रहा था। कम्बख्त रवी एक पुछल्ले की तरह, मेरी आदत जो बन चुका था। और अब खराब आदतों को छोड़ने का वक्त आ गया था। कैफे की घुटन के मुकाबले बाहर की हवा में ताजगी थी, और ठंडक भी। मैं आटो के पास जाकर खड़ी हो गई और सोचने लगी कि कहां चलने को कहूं ?घर कि घाट ?....सोचते सोचते मेरा माथा घूमने लगा। मन कर रहा था कि किसी ऎसी जगह जाऊं जहां कोई मेरी हालत पर तरस खाने वाला हो। जहां कॊई मुझे पकड़ कर अपने पास बिठा ले। मेरा चेहरा उठा कर अपनी हथेलियों में थाम ले, मेरी आंखों में झांक कर , गहरी उदासी को देख ले। मेरे रूखे बेजान बालों में निगाहे करम की शीशी उलट दे। उन्हें खोल कर छितरा दे….और प्यार से संवार कर बांध दे। मैंने कल्पना की- मेरी कस कर गुंथी हुई दो चोटियां दाएं बाएं लटक रही हैं , उनमें लाल रिबन के फूल खिले हैं और मैं….एक शोख खिलंदडी लड़की की तरह उनकी गोद में बैठी इतरा रही हूं।
दोस्तों, मुझे मालूम पड़ गया कि मुझे कहां जाना है और मैंने आटो वाले को बता दिया। मगर आपको नहीं बताऊंगी।
राजेन्द्र राव
३७४ ए-२, तिवारीपुर, जे के रेयन के सामने, जाजमऊ, कानपुर-२०८०१०
मो.०९९३५२६६६९३
1 टिप्पणियाँ
कहानी मन भायी| सब कुछ है इसमें हंसी के चटखारे गुस्से के शोले शकारे, और वो जो कुछ नहीं है, वह है रोना धोना, ड्रामेबाजी| एकदम तेज रील वाली फिल्म सरीखी कि चली तो फिर पूरी कंप्लीट करके ही दम लेना पाठक को|
जवाब देंहटाएंबधाई आ0 राजेंद्र जी!