नई दिल्ली, 17 अक्टूबर 2013, सीताराम येचुरी (सांसद एवं अध्यक्ष स्थायी संसदीय समिति, यातायात, पर्यटन एवं संस्कृति) ने साहित्य अकादेमी के कार्यक्रम “व्यक्ति और कृति” में अपनी पसंदीदा कृति के सम्बन्ध में श्रोताओं से भरे हाल में बोलते हुए, कार्ल मार्क्स द्वारा रचित ‘दास कैपिटल’ को सर्वाधिक महत्वपूर्ण रचना बताया, कार्यक्रम का संचालन अकादमी के सचिव के०एस० राव ने किया।
The History of all previous societies has been the history of class struggle. उन्होंने कहा कि यह कहना बड़ा मुश्किल काम है कि कौन सी किताब और साहित्य से इंसान प्रभावित होता है। यह लगातार चलने वाली प्रक्रिया है – जिसे ठहर कर एकांगी भाव से विश्लेषित नहीं किया जा सकता।
मैं पूछता था अपने नाना से “क्यों वे इतना पढ़ते हैं” ? उनका जवाब आज भी मेरे कई प्रश्नों के उत्तर देता है कि ज़िन्दगी बहुत छोटी है, कम है, इमोशंस बहुत ज्यादा हैं, मनुष्य कई प्रकार के। हम साहित्य से ही अनुभूति पाकर अधिक संवेदनशील हो सकते हैं, समृद्ध होते हैं।
जे०एन०यू० से धार पाकर, विधानसभा के गलियारे में पूंजीवाद के खिलाफ़ आवाज़ उठाने वाले इस शख्स ने पुनः ‘दास कैपिटल’ और मार्क्स को नयी स्तिथियों में नए सिरे से समझने कि गुज़ारिश की और जीवन को वैज्ञानिकता पर कसने का आह्वान किया।
प्रश्नकाल में बड़े धीर-गम्भीर और उत्तेजक प्रश्नों का सामना उसी रोचकता गंभीरता के साथ करते हुए उन्होंने सटीक उत्तर दिए। मार्क्सवाद की प्रासंगिकता पर उन्होंने दिल खोल कर जवाब दिए। मजदूर, श्रमजीवियों की एकता पर बल दिया और अनुरोध करने पर शेक्सपियर की कुछ पंक्तियाँ काव्यत्मक लहजे में गुनगुनाई भी। धर्म कैसा अफीम है और भारतीय वांग्मय में मार्क्सवाद कैसे कहाँ फिट बैठता है, इस पर भी अच्छी चर्चा रही।
पूरा हॉल युवा चेहरों से भरा था। जे०एन०यु० और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों की मौजूदगी उत्साहवर्धक थी। गंभीरता और रोचकता से संतुलन कैसे साधते हैं – आज सीताराम ने इसे फिर सफलतापूर्वक अंजाम दिया
शब्दांकन संपादक रूपा सिंह की रिपोर्ट

मैं पूछता था अपने नाना से “क्यों वे इतना पढ़ते हैं” ? उनका जवाब आज भी मेरे कई प्रश्नों के उत्तर देता है कि ज़िन्दगी बहुत छोटी है, कम है, इमोशंस बहुत ज्यादा हैं, मनुष्य कई प्रकार के। हम साहित्य से ही अनुभूति पाकर अधिक संवेदनशील हो सकते हैं, समृद्ध होते हैं।
जे०एन०यू० से धार पाकर, विधानसभा के गलियारे में पूंजीवाद के खिलाफ़ आवाज़ उठाने वाले इस शख्स ने पुनः ‘दास कैपिटल’ और मार्क्स को नयी स्तिथियों में नए सिरे से समझने कि गुज़ारिश की और जीवन को वैज्ञानिकता पर कसने का आह्वान किया।
प्रश्नकाल में बड़े धीर-गम्भीर और उत्तेजक प्रश्नों का सामना उसी रोचकता गंभीरता के साथ करते हुए उन्होंने सटीक उत्तर दिए। मार्क्सवाद की प्रासंगिकता पर उन्होंने दिल खोल कर जवाब दिए। मजदूर, श्रमजीवियों की एकता पर बल दिया और अनुरोध करने पर शेक्सपियर की कुछ पंक्तियाँ काव्यत्मक लहजे में गुनगुनाई भी। धर्म कैसा अफीम है और भारतीय वांग्मय में मार्क्सवाद कैसे कहाँ फिट बैठता है, इस पर भी अच्छी चर्चा रही।
पूरा हॉल युवा चेहरों से भरा था। जे०एन०यु० और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों की मौजूदगी उत्साहवर्धक थी। गंभीरता और रोचकता से संतुलन कैसे साधते हैं – आज सीताराम ने इसे फिर सफलतापूर्वक अंजाम दिया
शब्दांकन संपादक रूपा सिंह की रिपोर्ट
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