कुछ इधर से कुछ उधर से आ गए पत्थर कई
घर को खाली देख कर बरसा गये पत्थर कई
दो जमातों में हुआ कुछ ज़ोर से ऐसा फसाद
देखते ही देखते टकरा गये पत्थर कई
एक छोटी सी पहाड़ी क्या गिरी बरसात में
राहगीरों को अचानक खा गये पत्थर कई
घाटियों में कुल्लू की उनको जो देखा ध्यान से
फूलों से बढ़ कर सभी को भा गये पत्थर कई
मुस्कराते - गुनगुनाते क्यों न घर वे लौटते
हीरे जैसे कीमती जो पा गये पत्थर कई
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लोभ में करते नहीं हैं नेक बन्दे काम जी
देख लें करके भले ही गाम उनके नाम जी
कितने अच्छे लगते हैं जो करते हैं अठखेलियाँ
और जिन्हें आता नहीं है गुस्सा करना राम जी
खाने - पीने के जिन्हें लाले पड़े हैं दोस्तो
पूछते हैं आप उनसे सब्ज़ियों के दाम जी
देते हैं झूठी गवाही आप जब भी देखिये
देखना के आप पर आयें नहीं इल्ज़ाम जी
उसकी किस्मत में कहाँ आराम पल भर के लिए
जिसके सर पर होते हैं ऐ `प्राण` सौ - सौ काम जी
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ज़रा ये सोच मेरे दोस्त दुश्मनी क्या है
दिलों में फूट जो डाले वो दोस्ती क्या है
हज़ार बार ही उलझा हूँ इसके बारे में
कोई तो मुझ को बताये कि ज़िंदगी क्या है
ये माना , आदमी की जात हो मगर तुमने
कभी तो जाना ये होता कि आदमी क्या है
खुदा की बंदगी करना चलो ज़रूरी सही
मगर इंसान की ऐ दोस्त बंदगी क्या है
किसी अमीर से पूछा तो तुमने क्या पूछा
किसी गरीब से पूछो कि ज़िंदगी क्या है
नज़र में आदमी अपनी नवाब जैसा सही
नज़र में दूसरे की `प्राण` आदमी क्या है
घर को खाली देख कर बरसा गये पत्थर कई
दो जमातों में हुआ कुछ ज़ोर से ऐसा फसाद
देखते ही देखते टकरा गये पत्थर कई
एक छोटी सी पहाड़ी क्या गिरी बरसात में
राहगीरों को अचानक खा गये पत्थर कई
घाटियों में कुल्लू की उनको जो देखा ध्यान से
फूलों से बढ़ कर सभी को भा गये पत्थर कई
मुस्कराते - गुनगुनाते क्यों न घर वे लौटते
हीरे जैसे कीमती जो पा गये पत्थर कई
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लोभ में करते नहीं हैं नेक बन्दे काम जी
देख लें करके भले ही गाम उनके नाम जी
कितने अच्छे लगते हैं जो करते हैं अठखेलियाँ
और जिन्हें आता नहीं है गुस्सा करना राम जी
खाने - पीने के जिन्हें लाले पड़े हैं दोस्तो
पूछते हैं आप उनसे सब्ज़ियों के दाम जी
देते हैं झूठी गवाही आप जब भी देखिये
देखना के आप पर आयें नहीं इल्ज़ाम जी
उसकी किस्मत में कहाँ आराम पल भर के लिए
जिसके सर पर होते हैं ऐ `प्राण` सौ - सौ काम जी
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ज़रा ये सोच मेरे दोस्त दुश्मनी क्या है
दिलों में फूट जो डाले वो दोस्ती क्या है
हज़ार बार ही उलझा हूँ इसके बारे में
कोई तो मुझ को बताये कि ज़िंदगी क्या है
ये माना , आदमी की जात हो मगर तुमने
कभी तो जाना ये होता कि आदमी क्या है
खुदा की बंदगी करना चलो ज़रूरी सही
मगर इंसान की ऐ दोस्त बंदगी क्या है
किसी अमीर से पूछा तो तुमने क्या पूछा
किसी गरीब से पूछो कि ज़िंदगी क्या है
नज़र में आदमी अपनी नवाब जैसा सही
नज़र में दूसरे की `प्राण` आदमी क्या है
१३ जून १९३७ को वजीराबाद में जन्में, श्री प्राण शर्मा ब्रिटेन मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। दिल्ली विश्वविद्यालय से एम ए बी एड प्राण शर्मा कॉवेन्टरी, ब्रिटेन में हिन्दी ग़ज़ल के उस्ताद शायर हैं। प्राण जी बहुत शिद्दत के साथ ब्रिटेन के ग़ज़ल लिखने वालों की ग़ज़लों को पढ़कर उन्हें दुरुस्त करने में सहायता करते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि ब्रिटेन में पहली हिन्दी कहानी शायद प्राण जी ने ही लिखी थी।
देश-विदेश के कवि सम्मेलनों, मुशायरों तथा आकाशवाणी कार्यक्रमों में भाग ले चुके प्राण शर्मा जी को उनके लेखन के लिये अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए हैं और उनकी लेखनी आज भी बेहतरीन गज़लें कह रही है।
7 टिप्पणियाँ
हमेशा की तरह अद्भुत!!
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी की तल्खियों दुश्वारियों को संजीदगी से सहेजना कोई प्राण शर्मा जी से सीखे ………बेहद उम्दा और सटीक गज़लें।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह जीवन दर्शन से भरी लाजवाब ग़ज़लें ...
जवाब देंहटाएंबार बार पढ़ने का जी करता है ... प्राण जी को बधाई और शुभकामनायें ...
प्राण जी की तीनो गज़ले हर बार की तरह दिल को छू गयी, आप इसी तरह कालजयी शेर लिख कर हमें हर्षित करते रहे .
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachanayen. hardik badhai
जवाब देंहटाएंभाई प्राण शर्मा जी की तीनो गजलें बहुत गहरी बात कह गयी,बहुत उम्दा गजलों को पढ़ कर जीवन दर्शन से एक नये रूप में साक्षातकार करने का मौका मिला,अद्भुत.
जवाब देंहटाएंप्राण जी ,. आपकी गज़ले तो हमेशा अपना लोहा मनवाती है. लेकिन इस बार आपकी तीसरी ग़ज़ल ने मन को बहुत सकूँ पहुंचाया .
जवाब देंहटाएंदिल से बधाई सर.
आपका
विजय